Monday, November 22, 2010

हालात ने अजीब तमाशे दिखाय्ो हैं
रिश्ते बदल गय्ो कभी रास्ते बदल गय्ो

छत्तीसगढ राज्य्ा का दसवां स्थापना वर्ष हाल ही में मनाय्ाा गय्ाा है। इन 1॰ सालों में कई अविश्वनीय्ा बातें प्रकाश में आती रही है। लगता है कि छत्तीसगढ में घटित घटनाओं को लेकर ही एक अहिंदीभाषी अफसर ने ’विश्वसनीय्ा छत्तीसगढ‘ का स्लोगन तैय्ाार कर डॉ. रमन सिंह से स्वीकृति भी ले ली और राज्य्ाोत्सव पर वह स्लोगन चर्चा में भी रहा। वैसे अविश्वसनीय्ा घटनाओं के बीच विश्वास पैदा करने की जरूरत तो थी ही! राज्य्ा बनते समय्ा कभी प्रधानमंत्र्ाी के बाद की स्थिति में रहने वाले पूर्व केन्द्रीय्ा मंत्र्ाी विद्याचरण शुक्ल ने तत्कालीन गृहमंत्र्ाी लालकृष्ण आडवाणी से भी मुख्य्ामंत्र्ाी बनाने का अनुरोध किय्ाा पर वे तैय्ाार नहीं हुए। दिग्विजय्ा सिंह से उनके फार्म हाऊस में दुव्यर््ावहार भी चर्चा में रहा। विद्याचरण शुक्ल, श्य्ाामा चरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा के रहते एक पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी को छत्तीसगढ का पहला मुख्य्ामंत्र्ाी बनाय्ाा गय्ाा था य्ाह क्य्ाा उस समय्ा विश्वसनीय्ा था? छत्तीसगढ राज्य्ा का निर्माण होने को 1॰ साल हो चुके हैं, अजीत जोगी के बाद डॉ. रमन सिंह मुख्य्ामंत्र्ाी बने हैं। लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बनी और पांच साल का एक कायर््ाकाल पूरा करने के बाद दूसरी बार सरकार बनाकर पुनः मुख्य्ामंत्र्ाी बनकर डॉ. रमन सिंह ने भी रिकार्ड बनाय्ाा है। वैसे भाजपा सरकार के मुख्य्ामंत्र्ािय्ाों में गुजरात के नरेंद्र मोदी के बाद डॉ. रमन सिंह का क्रम दूसरे नंबर में है। जहां तक राज्य्ापालों का सवाल है तो 1॰ साल के कायर््ाकाल में 4 राज्य्ापाल तैनात हो चुके हैं। दिनेश नंदन श्रीवास्तव, के एम सेठ, नरसिम्हन के बाद शेखर दत्त की य्ाहां निय्ाुक्ति हुई है। दिनेशनंदन श्रीवास्तव तथा ई एस एल नरसिम्हन जहां पूर्व में आईपीएस अफसर रह चुके थे तो के एम सेठ सैन्य्ा अधिकारी थे तो शेखर दत्त पूर्व आईएएस अफसर रह चुके हैं। शेखर दत्त तो अविभाजित मध्य्ाप्रदेश में राय्ापुर संभाग के कमिश्नर भी रह चुके हैं वहीं छत्तीसगढ विकास प्राधिकरण से भी जुडे रहे हैं।
विस अध्य्ाक्ष!
छत्तसगढ के पहले विधानसभ अध्य्ाक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला का असमय्ा निधन हो गय्ाा। भाजपा की सरकार बनने से वहले बनवारी लाल अग्रवाल (भाजपा) उपाध्य्ाक्ष बने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिय्ाा और धर्मजीत सिंह विस उपाध्य्ाक्ष बने।पहली बार छत्तीसगढ में कांगे€स का अध्य्ाक्ष तथा उपाध्य्ाक्ष बनने की परंपरा शुरू हुई जो अनवरत जारी है। भाजपा की पहली सरकार बनी तो विधानसभा अध्य्ाक्ष का रदाय्ाित्व प्रेमप्रकाश पांडे तथा उपाध्य्ाक्ष का दाय्ाित्व बुर्जुग राजनेता बद्रीधर दीवान ने सम्हाला। पर विधानसभा चुनाव में बतौर विस अध्य्ाक्ष चुनाव लडने वाले प्रेमप्रकाश पांडे हार गय्ो य्ाह परिणाम भी अविश्वसनीय्ा रहा। बद्रीधर दीवान चुनाव तो जीत गय्ो पर विस उपाध्य्ाक्ष बनने तैय्ाार नहीं हुए। छत्तीसगढ राज्य्ा के तीसरे विस अध्य्ाक्ष धरमलाल कौशिक बने तो उपाध्य्ाक्ष नाराय्ाण सिंह चंदेल को बनाय्ाा गय्ाा।
गृहमंत्र्ाी!
छत्तीसगढ राज्य्ा बनने के बाद पहले मुख्य्ामंत्र्ाी अजीत जोगी के कायर््ाकाल में नंदकुमार पटेल पहले गृहमंत्र्ाी रहे तो डॉ. रमन सिंह के मुख्य्ामंत्र्ाी बनने के बाद सर्वश्री बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम के बाद ननकीराम कंवर गृहमंत्र्ाी बने हैं। सामान्य्ा वर्ग से मुख्य्ामंत्र्ाी बने डॉ. रमन सिंह के साथ सामान्य्ा वर्ग से ही गृहमंत्र्ाी बृजमोहन अग्रवाल को बनाय्ाा गय्ाा फिर उन्हें हटाकर आदिवासी वर्ग से रामविचार नेताम फिर ननकीराम कंवर को गृहमंत्र्ाालय्ा सौंपा गय्ाा पर जिस तरह से आदिवासी अंचल बस्तर में नक्सलवाद और पनपा है, 76 सी आरपीएफ जवानों का नक्सलिय्ाों द्वारा नरसंहार किय्ाा गय्ाा, पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे की नक्सलिय्ाों द्वारा हत्य्ाा की गई, बारुद की सबसे बडी लूट नक्सलिय्ाों ने की, पुलिस का इतना बडा अमला रहने के बाद भी ’एचएम स्क्वॉड‘ गठित करना पडा, गृहमंत्र्ाी ननकीराम कंवर को जिस तरह डीजीपी विश्वरंजन अक्सर चुनौती देते दिखाई देते हैं दोनों के बीच मतभेद मीडिय्ाा के सामने आते रहते हैं वह भी कम से कम पुलिस की कायर््ाप्रणाली के लिय्ो विश्वसनीय्ा तो नहीं कहा जा सकता है। पूर्व गृहमंत्र्ाी एवं जेल मंत्र्ाी रामविचार नेताम के कायर््ाकाल में नक्सली आतंक बढा तो बढा साथ ही जिस तरह दंतेवाडा में नक्सलिय्ाों का सबसे बडा जेलबे€क हुआ उसमें केवल जेल के डिप्टी जेलर को मुजरिम बनाय्ाा गय्ाा, उसका नार्कों टेस्ट भी नहीं हुआ तथा उस पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उसकी निय्ामानुसार राज्य्ा सरकार से पुष्टि नहीं की गई और न्य्ााय्ाालय्ा द्वारा उसे छोडना पडा य्ाह भी कम चर्चा में नहीं रहा क्य्ाा य्ाह पुलिस की कायर््ाप्रणाली की विश्वसनीय्ाता की झ्ालक नहीं है।
मुख्य्ासचिव और डीजीपी
छत्तीसगढ राज्य्ा बनने के बाद पहले डीजीपी मोहन शुक्ल बने फिर पी के दास, अशोक दरबारी, आर एस य्ाादव बने फिर ओ पी राठौर, विश्वरंजन डीजीपी बने, वैसे संतकुमार पासवान, अनिल नवानी भी डीजीपी का कायर््ाभार सम्हाल चुके हैं। जहां मतक मुख्य्ा सचिव का सवाल है तो अरूण कुमार, ए के विजय्ावर्गीय्ा, एस के मिश्रा, आर पी बगई, शिवराज सिंह, जाय्ा उम्मेन को मुख्य्ा सचिव बनाय्ाा बी के एस रे की उपेक्षा कर 5 साल जूनिय्ार उम्मेन को मुख्य्ा सचिव बनाना भी विश्वसनीय्ा निर्णय्ा नहीं कहा जा रहा था। खैर अब जाय्ा उम्मेन की भी चला-चली की बेला है। नाराय्ाण सिंह, सरजिय्ास मिंज, सुनील कुमार कतार में है। तो विश्वरंजन की भी ज्य्ाादा दिन ’सरकार‘ से बनेगी ऐसा लगता नहीं है। वैसे संतकुमार पासावान और अनिल नवानी भी अब डीजी बन चुके हैं और इन दोनों अफसरों को डीजीपी बनने का ही इंतजार है। क्य्ाोंकि इनसे वरिष्ठ राजीव माथुर तो पुलिस अकादमी में संचालक बन चुके हैं ऐसे में वे छत्तीसगढ लौटेंगे ऐसा लगता नहीं है।
य्ो हो क्य्ाा रहा है?
छत्तीसगढ राज्य्ा बनने के बाद पूर्व मुख्य्ामंत्र्ाी अजीत जोगी के शासनकाल में ननकीराम कंवर (अभी गृहमंत्र्ाी) से कोरबा जिले के शराब ठेकेदार के गुर्गों द्वारा बदतमीजी की चर्चा विधानसभा में भी हुई थी वहीं अब गृह एवं जेल विभाग के संसदीय्ा सचिव विजय्ा बघेल ने जुल्म और अत्य्ााचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिय्ो ’फिल्म‘ को माध्य्ाम बनाय्ाा है वे जानते हैं कि जब गृहमंत्र्ाी की आवाज पुलिस मुख्य्ाालय्ा में अनसुनी की जाती है तो वे तो कहीं नहीं लगते हैं। छत्तीसगढ में एक फिल्म बन रही है ’माटी के लाल‘ इसमें विधाय्ाक विजय्ा बघेल सरपंच की भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म में वे नशे के खिलाफ जंग लडने वाले एक आदर्शवादी सिद्घांतों पर चलने वाले सरपंच की भूमिका में है जिन्हें जुबान बंद करने शराब ठेकेदार पैसों का लालच देता है पर वे अपने सिद्घांतों पर अडिग रहते हैं। उनके पुत्र्ा की भूमिका में एसएमएस के रूप में कभी राजधानी में चर्चित पुलिस अधिकारी शशिमोहन सिंह भी उस फिल्म में दिखाई देंगे। वे फिल्म में सरपंच के पुत्र्ा बने हैं। वैसे छत्तीसगढ नक्सली प्रभावित राज्य्ा में जो चल रहा है वह भी चर्चा में नहीं है। पुलिस मुखिय्ाा विश्वरंजन, लेखक, समीक्षक, आलोचक, कवि कलाकार हैं, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्य्ाक्ष हैं। (निय्ामानुसार सरकार से अनुमति ली है य्ाा नहीं य्ाह पता नहीं चला है।) उन्हें गृहमंत्र्ाी ननकीराम कंवर मुख्य्ामंत्र्ाी से अनुमति लेकर कारण बताओ नोटिस दे चुके हैं। गृहमंत्र्ाी ननकीराम कंवर को प्रदेश की पुलिस पर विश्वास नहीं है वे एचएम स्क्वॉड बनाकर शराब, जुआ अड्डों पर छापा मरवा रहे हैं, संसदीय्ा सचिव गृह फिल्मों के माध्य्ाम से शराब के खिलाफ जनजागरण चलाने अभिनय्ा कर रहे हैं। पुलिस अधिकारी शशि मोहन सिंह सरकार से छुट्टी लेकर फिल्मों में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाकर अपना काम चला रहे हैं। एक अफसर अपनी अखिल भारतीय्ा स्तर की नौकरी से त्य्ाागपत्र्ा देकर संविदा निय्ाुक्ति पर कायर््ा कर रहा है। य्ाह बात और है कि उसकी संविदा निय्ाुक्ति पहले हो गई थी और केन्द्र सरकार ने उसका त्य्ाागपत्र्ा पिछले माह ही स्वीकृत किय्ाा है।छत्तीसगढ के मुख्य्ा सचिव जॉय्ा उम्मेन दिल्ली जाते हैं और वहां पत्र्ाकारों से कहते हैं कि वे केन्द्र में आ रहे हैं अपने निचले अधिकारिय्ाों को वे मौका देना चाहते हैं, बहुत दिन छत्तीसगढ में काम कर लिय्ाा। फिर दिल्ली से राय्ापुर लौटते हैं और कहते हैं कि वे केन्द्र में नहीं जा रहे हैं फिर चर्चा चलती है कि वे फिलहाल नहीं जा रहे हैं फिर कहां जाता है कि उनका केन्द्र में जाना तय्ा है आखिर छत्तीसगढ में हो क्य्ाा रहा है?
नेता प्रतिपक्ष!
छत्तीसगढ में नेताप्रतिपक्ष बनने के बाद उनकी राजनीति (?) पर भी प्रश्नचिन्ह ही लगता रहा है। मध्य्ाप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष य्ाा प्रदेश अध्य्ाक्ष सरकार बनने पर मुख्य्ामंत्र्ाी बनता था पर मध्य्ाप्रदेश से ही निय्ाम काय्ादे ग्रहण करने वाले छत्तीसगढ में ऐसा हुआ नहीं। नय्ाा प्रदेश बनने के बाद नंदकुमार साय्ा पहले नेता प्रतिपक्ष बने। उसको लेकर भी पार्टी के भीतर विवाद, बृजमोहन अग्रवाल का निलंबन चर्चा में रहा। जोगी शासनकाल में लाठी चार्ज में साय्ा का पैर फ्रैक्चर होना बैसाखी के सहारे कुछ महीनों चलना भी खबर बना था। पर अगले विस चुनाव में नेता प्रतिपक्ष साय्ा को मुख्य्ामंत्र्ाी जोगी के खिलाफ चुनाव लडवाकर शहीद करने का षड्य्ांत्र्ा चला, विस चुनाव पराजित होकर वे प्रदेश की राजनीति से ही अलग हो गय्ो। विस चुनाव के बाद भाजपा को बहुमत मिला और विधाय्ाकों की खरीद फरोख्त के नाम पर अजीत जोगी को कांगे€स से निलंबित फिर विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ महासमुंद लोस से चुनाव लडने की शर्त पर निलंबन वापसी, विद्याचरण शुक्ल को बतौर भाजपा प्रत्य्ााशी चुनाव समर में उतरना, जोगी से पराजित होना भी अविश्वसनीय्ा घटना ही रही। खैर डॉ.रमन सिंह मुख्य्ामंत्र्ाी बने और महेंद्र कर्मा को नेता प्रतिपक्ष और भूपेश बघेल को उपनेता प्रतिपक्ष (हालांकि इस पद की संवैधानिक मान्य्ाता नहीं) बनाय्ाा गय्ाा और इस विधानसभा में दोनों ही पराजित हो गय्ो। इसके बाद रविन्द्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष बनाय्ाा गय्ाा है ओर अब उनको भी हटाने की मुहिम शुरू हो चुकी है। इधर छत्तीसगढ में मोतीलाल वोरा के प्रदेश कांगे€स अध्य्ाक्ष बनने के बाद से कायर््ा समिति को गठन नहीं होना, केवल अध्य्ाक्ष तथा कायर््ाकारी अध्य्ाक्ष बनाने का सिलसिला जारी रखना, केन्द्रीय्ा मंत्र्ाी तथा प्रदेश कांगे€स के प्रभारी नाराय्ाण सामी पर कालिख फेकना भी अविश्वनीय्ा घटना ही रही है। जहां तक भाजपा संगठन की बात है तो अध्य्ाक्ष नंदकुमार साय्ा को प्रदेश की राजनीति से अलग करना, दूसरे अध्य्ाक्ष शिवप्रताप सिंह का बतौर राज्य्ा सभा सदस्य्ा निलंबन, फिर वापसी, एक और अध्य्ाक्ष ताराचंद साहू का पार्टी से निष्काषन, एक और अध्य्ाक्ष विष्णुदेव साय्ा की विधानसभा चुनाव में पराजय्ा भी बडी खबर रही। छत्तीसगढ भाजपा के पितृपुरुष स्व. लखीराम अग्रवाल के पुत्र्ा अमर अग्रवाल की मंत्र्ािमंडल से छुट्टी फिर वापसी, प्रदेश के वरिष्ठ सासंद रमेश बैस की प्रदेश भाजपा अध्य्ाक्ष बनने की इच्छा के विपरीत रामसेवक पैकरा को प्रदेश भाजपा अध्य्ाक्ष बनाना भी अविश्वसनीय्ा घटना ही रही।
और अब बस
(1)भाजपा के एक बुजुर्ग नेता से किसी ने ’कमल विहार‘ य्ाोजना के विषय्ा में पूछा। उन्होंने जवाब दिय्ाा कुछ लोग कमल (भाजपा का चुनाव चिन्ह) को बदनाम करने ही य्ाह मुद्दा उछाल रहे हैं इसके पीछे विपक्ष की भी साजिश है।(2)पप्पू फरिश्ता पर पुलिस तथा कांगे€स ने 5-5 हजार के इनाम घोषित किय्ो हैं। जब ’कुरैशी‘ और ’शाह‘ और ’दिग्विजय्ा सिंह‘ से कुछ कांगे€सिय्ाों ने ही दुव्यर््ावहार किय्ाा था। उस समय्ा य्ो कांगे€सी कहां थे? उस समय्ा तो इनकी पार्टी की ही सरकार थी।(3)भाजपा के राष्ट्रीय्ा स्तर के बडे नेता के रिश्तेदार ’बडा पोल्ट्रीफार्म‘ चला रहे हैं एक दूसरे बडे नेता की पत्नी के ’एनजीओ‘ को प्रदेश में एक बडा काम सौंपा गय्ाा है और कांगे€स एक-दूसरे पर कालिख पोतने में ही लगी है।-----------





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