Sunday, May 30, 2010

आइना ए छत्तीसगढ़

आइना ए छत्तीसगढ़
हमने मांगी थी, जरा सी रोशनी घर के लिये
आपने जलती हुई बस्ती के नजराने दिये

छत्तीसगढ़ में बस्तर जल रहा है। नक्सलियों द्वारा आये दिन की जा रही हिंसक वारदात के कारण 'छत्तीसगढ़Ó देश-विदेश की निगाह में है। एक साथ सीआरपीएफ जैसे अर्धसैनिक बल के 75 जवानों की हत्या, बारूदी सुरंग विस्फोट से यात्री वाहन को उड़ाने की घटना अभी-अभी घटित हुई है वहीं हाल ही में नक्सलियों ने 16 टन अमोनिया नाइटे्रट जैसा विस्फोट लूट (!) लिया है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने तालमेटला में नक्सली वारदात के बाद चूक के लिये राज्य सरकार के 2 आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की सिफारिश की है वहीं सीआरपीएफ के 3 अफसरों को हटा दिया गया है। पुलिस मुख्यालय में अफसरों में गुटबाजी का आलम है, एक बार जो नक्सली क्षेत्र में पदस्थ हुआ है उसे 'वहींÓ पदस्थ करने की सरकार की नीति है। राज्य में गुप्तचर शाखा की कमजोरी हर नक्सली हमले में सामने आ रही है पर एडीजी गुप्तचर का स्वीकृत पद रिक्त है। गुप्तचर शाखा का प्रभार आईजीडीएम अवस्थी के पास है तो नक्सली अभियान की जिम्मेदारी आईजी राजेश मिश्रा को सौंपी गई है। सबसे आश्चर्य तो इसी बात का है कि ये दोनों अफसर कभी भी नक्सली क्षेत्र में पदस्थ ही नहीं रहे हैं। बस्तर के पुलिस जिलों की कमान भी दूसरे प्रदेशों के नये-नये अफसरों के पास है। पुलिस के आलाअफसर हों या प्रशासन के वरिष्ठï अफसर वे बस्तर में रात्रिविश्राम करने से परहेज रखते हैं। कुल मिलाकर बस्तर के ग्रामीण अब कहने लगे हैं कि हम तो पहले ही ठीक थे अब तो 2 पाटन के बीच पिसने की मजबूरी है और मौत का एहसास पल-पल में होता है।
राज्य सरकार क्या करेगी?
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को सिफारिश भेजी है कि दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में 6 अपै्रल को नक्सलियों द्वारा 75 सीआरपीएफ और जिला पुलिस के एक जवान की हत्या के मामले में चूक के लिये बस्तर के आईजी लांगकुमेर (91बैच) और दंतेवाड़ा के पुलिस कप्तान अमरेश मिश्रा (2005 बैच) पर कार्यवाही की जाए। ज्ञात रहे कि रिटायर्ड डीजी (सीआरपीएफ) राममोहन की जांच रिपोर्ट में सीआरपीएफ और प्रदेश पुलिस के बीच बेहतर तालमेल नहीं होने की बात सामने आई है। इधर ताड़मेटला चूक के नाम पर सीआरपीएफ के डीआईजी नलिन प्रभात, कमांडेट विस्ट और एक निरीक्षक संजीव सिंह को पहले ही सीआरपीएफ ने हटा दिया है। गृहमंत्रालय की रिपोर्ट को हालांकि मानने के लिये राज्य सरकार मजबूर नहीं है पर यदि गृहमंत्रालय और डीजीपी की सलाह पर राज्य सरकार यदि केन्द्रीय गृहमंत्रालय की सिफारिश को नहीं मानती है तो उसका असर नक्सली अभियान पर पड़ सकता है। खैर राज्य सरकार का अभी तक जो रवैय्या रहा है वह केन्द्र से सहयोगात्मक ही रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने गृहमंत्री पी चिदंबरम से मुलाकात कर पत्रकारों के समक्ष स्पष्टï किया कि नक्सली उन्मूलन में उनके और चिंदबरम के बीच कोई मतभेद नहीं है ऐसे समय में केन्द्रीय गृहमंत्रालय की सिफारिश मानने उन पर पर दबाव भी है। वैसे जानकार कहते हैं कि यदि मुख्यमंत्री ने अपनी इच्छा पर निर्णय लिया तो दोनों आईपीएस अधिकारियों का हटना लगभग तय है। वैसे भी बस्तर के पुलिस महानिदेशक टी जे लांगकुमेर तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के समय से ही बस्तर में तैनात है वे पुलिस कप्तान से आईजी तक का सफर वहां तय कर चुके हैं, वहीं अमरेश मिश्रा तो 2005 बैच के आईपीएस हैं उन्हें हटाना भी कोई बड़ी समस्या सरकार के सामने नहीं है। वैसे दोनों अफसर मूलत: छत्तीसगढ़ के बाहर के निवासी हैं। पहले भी यह चर्चा चल रही थी कि नक्सली प्रभावित बस्तर के पुलिस जिलों में प्रदेश के बाहर के अफसरों की नियुक्ति ही क्यों की जा रही है जबकि इन अफसरों को बस्तर की भौगोलिक परिस्थिति, वहां के रहन-सहन और भाषा आदि की भी जानकारी नहीं है जबकि छत्तीसगढ़ में डीएसपी से लेकर कम से कम आईजी स्तर के छत्तीसगढ़ मूल के निवासी अफसर मौजूद हैं पर उन्हें 'लूपलाइनÓ में रखा जाता है। खैर सवाल यह है कि गृहमंत्रालय की सिफारिश पर राज्य सरकार क्या कदम उठाती है यही देखना है क्योंकि सिफारिश के बाद ही नक्सली अभियान का भविष्य निर्भर करेगा।
चूक पर कार्यवाही क्यों नहीं?
छत्तीसगढ़ में नक्सलप्रभावित क्षेत्रों में केन्द्रीय सुरक्षा बलों के राज्य पुलिस से तालमेल की कमी तो सामने आ ही रही है वहीं प्रदेश पुलिस मुख्यालय की गुटबाजी भी चर्चा में है। वैसे पुलिस महानिदेशक का पद भार विश्वरंजन द्वारा सम्हालने के बाद नक्सलियों ने कई रिकार्ड बनाये हैं और सुरक्षाबल केवल 'चूकÓ की ही बात करती है, नक्सलियों पर 'कायरना हमलाÓ का आरोप मढ़ा जाता है और फिर किसी बड़ी घटना का इंतजार होता है। बस्तर के धूर नक्सली प्रभावित दंतेवाड़ा जिले का नाम अब देश ही नहीं विदेश में भी चर्चा में है।यहां की जेल से 299 नक्सली तथा आम कैदी जेलबे्रक कर फरार हो जाते हैं। यह नक्सलियों का सबसे बड़ा 'जेल ब्रेकÓ था इसमें केवल एक प्रभारी जेलर को आरोपी बनाया जाता है, उसे भी 'राजद्रोहÓ के मामले में न्यायालय इसलिए बरी कर देता है क्योंकि पुलिस ने विधिवत राज्य सरकार से 'राजद्रोहÓ का प्रकरण चलाने अनुमति नहीं ली थी। जेल डीआईजी पीडी वर्मा को प्रथम दृष्टी निलंबित किया गया पर उन्हें आरोप पत्र देने के पहले ही बहाल कर दिया गया आखिर इस मामले में 'चूकÓ किसकी थी?'सेफजोनÓ समझे जाने वाले क्षेत्र में पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे सहित कई सुरक्षाबल के लोगों की नक्सलियों ने हत्या कर दी आखिर कहां किसकी 'चूकÓ थी? कांकेर जिले का एक हवलदार कुछ अन्य लोगों को गश्त के नाम पर पड़ोसी जिला धमतरी के रिसगांव में ले गया और वहां नक्सलियों ने बड़ी वारदात की आखिर इस चूक के लिए कौन जिम्मेदार था? ताड़मेटला में 75 सीआरपीएफ और एक प्रदेश पुलिस के जवान की नक्सलियों ने घेरकर हत्या कर दी, आखिर किस की सूचना पर सीआरपीएफ के जवान वहां गये थे, उनके साथ कितने स्थानीय पुलिस जवान गये थे क्या थाना प्रभारी या उपर के अफसरों को बिना जानकारी दिये सीआरपीएफ के 75 जवान चले गये थे, इस सबसे बड़ी नक्सली द्वारा की गई हत्या के लिये आखिर किसकी 'चूकÓ थी?राष्टï्रीय राज मार्ग 43 में पहले से (संभवत: डामरीकरण के पहले) नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट कर एक यात्री बस को उड़ा दिया जिसमें करीब 36 लोग मारे गये 15 से अधिक कोया कमांडो, एसपीओ शामिल थे। जब बस्तर में सुरक्षाबल को किसी यात्री बस में सवारी से प्रतिबंध हैं तो ये लोग बस में कैसे सवार हो गये। आम नागरिकों की मौत के लिए आखिर किसने चूक की? उक्त सड़क निर्माण करने वाले ठेकेदार या अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई?देश में नक्सलियों द्वारा सबसे बड़ 16 टन 'आमोनियम नाईट्रेटÓ की लूट के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है। एक ड्रायवर रूस से आया विस्फोटक लेकर विशाखापटनम से रायपुर/भिलाई के लिए ट्रक लेकर चलता है और उसी हाइवे में जहां कुछ दिन पूर्व ही यात्री बस को नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट से उड़ा दिया था उसी राष्टï्रीय राजमार्ग में 16 टन विस्फोटक 2 नक्सली लेकर चले जाते हैं, ड्रायवर को पावती भी देते हैं अब तो 2 लाख 77 हजार कुछ रुपये देने की पावती देने की भी चर्चा है और गुड़सा उसेण्डी के हस्ताक्षर भी पावती में है इसलिए पुलिस अब ट्रक ड्रायवर और ट्रांसपोर्ट कंपनी को मिली भगत कर नक्सलियों को विस्फोटक आपूर्ति की बात कर रही है? सवाल तो यह भी उठता है कि क्या विस्फोट की खेप गुड़सा उसेंडी ने ही ली थी? और यदि ट्रांसपोर्ट मालिक की मिली भगत थी तो ड्रायवर ने पावती पुलिस को क्यों दी? बहरहाल देश की सबसे बड़ी विस्फोट की लूट पर पुलिस अभी तक कुछ कहने की स्थिति में नहीं है, वैसे इस प्रकरण में लूट हो या आपूर्ति पर पुलिस और गोपनीय विभाग की कलई फिर खुल गई है।
राज्यपाल को बागडोर !
वैसे नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में अब केन्द्र राज्य सरकारों से बंधे बिना सीधे राज्यपाल के जरिये काम कराने पर भी गंभीरता से विचार कर रही है ऐसी स्थिति में नक्सली प्रभावित क्षेत्र की बागडोर किसी एक अफसर को सौंपकर नक्सली विरोधी मोर्चा चलाया जा सकता है। टाईम्स आफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार केन्द्र के महाधिवक्ता ने सलाह दी है कि नक्सली प्रभावित क्षेत्रों के लिए सरकार संविधान पांचवी अनुसूची के तहत आने वाले नक्सल प्रभावित 9 में से 6 राज्यों में राज्य सरकार से बंधे बिना सीधे राज्यपाल के जरिये काम कर सकती है। इस सुझाव के बाद केन्द्र सरकार ऐसी रणनीति बना सकती है जो इस धारणा को गलत साबित कर दे कि नक्सलवाद से लड़ाई में केवल राज्य सरकार की सलाह पर ही राज्यपाल काम कर सकते हैं। इसके साथ ही बरसों से अविकसित रह गये इलाकों का विकास भी कर सकते हैं। ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, म.प्र., आंध्र प्रदेश और महाराष्टï्र में संविधान की पांचवी अनुसूची के क्षेत्र अधिकतर जंगल और आदिवासी क्षेत्र हैं जहां विकास की धीमी गति से माओवाद ने अपने पैर जमा लिये हैं। उस अखबार के अनुसार प्रशासन की खामी के कारण फैलते जा रहे नक्सलवाद से चिंतित राष्ट्रपति, केन्द्र सरकार द्वारा इस मुद्दे पर अधिकारिक कानूनी सलाह लेने को कहा था कि क्या राज्यपाल संवैधानिक रूप से उन्हें मिली विवेकाधीन सत्ता का उपयोग करते हुए पांचवे अनुसूचित इलाकों में राज्य सरकारों की सलाह से बाध्य हुए बिना सक्रिय भूमिका निभा सकता है। गृहमंत्रालय के सूत्रों ने तो यहां तक कहा है कि केन्द्र के महाधिवक्ता ने सरकार को इसके समर्थन में सलाह देते हुए कहा है कि राज्यपाल, राज्य सरकारों के परामर्श के बिना अपनी विवेकाधीन सत्ता का उपयोग कर सकते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्टï किया है कि नक्सलवाद के साथ विकास को गति को तेज करने की दोहरी नीति को अमल में लाने के लिए राज्यपाल पांचवे अनुसूचित इलाकों में शांति और सुप्रशासन के लिए अधिनियम बनाने भी स्वतंत्र है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि छ.ग. में पांचवी अनुसूची के तहत सरगुजा, बस्तर, रायगढ़, रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, बिलासपुर और कांकेर क्षेत्र शामिल है।
संयुक्त राष्टï्रसंघ चिंतित
इधर संयुक्त राष्टï्रसंघ ने भारत में नक्सली संगठन द्वारा बच्चों की भर्ती पर चिंता प्रकट की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ बच्चे जबरदस्ती स्कूल से भर्ती कर लिये जाते हैं। सशस्त्र संघर्ष पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में संयुक्त राष्टï्र संघ ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में नक्सलियों द्वारा सशस्त्र संघर्ष में बच्चों का इस्तेमाल बहुत चिंता जनक है। इस अंतर्राष्टï्रीय संगठन ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अक्टूबर 2009 में नक्सलियों ने अपने सशस्त्र संघर्ष के लिए 5 लड़के लड़कियां देने हर गांववालों को मजबूर किया था। महासचिव वान -का मून द्वारा अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात की कई विश्वसनीय रिपोर्ट है कि स्कूलों से लाकर जबरदस्ती बच्चे माओवादी संगठन में भर्ती किये जाते हैं इधर छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन भी पहले ही स्वीकार कर चुके है कि बस्तर में नक्सलियों की पाठशाला चल रही है। खैर नक्सलियों पर अंकुश, दबाव की कितनी भी बाते की जाए पर यह तो स्पष्ट है कि नक्सलियों का जाल कम से कम बस्तर में तो फैल ही चुका है। जब जनगणना कर्मी कई गांवो में प्रवेश नहीं कर पा रहे है तब स्पष्टï है कि वहां के ग्रामीण किस तरह नक्सलियों के दबाव में जीवन जीने मजबूर है। और अब बस
(1)
कभी मुख्यालय में पुलिस के एक आला अफसर का बगलगीर रहने वाला एक आईपीएस अफसर आज-कल जगह-जगह कहने में पीछे नहीं है कि जब तक 'साहबÓ रहेंगे नक्सली समस्या का हल होना असंभव है। वैसे कुछ लोग इस दोनो अफसरों के बीच की मिली-जुली 'नूरा कुश्तीÓ भी कह रहे हैं।
(2)
यदि बस्तर के आईजी लांगकुमेर को हटाया जाता है तो प्रदेश में सबसे योग्य (?) पुलिस अफसर की वहां तैनाती की जा सकती है। सबसे योग्य पुलिस अफसर कौन है यह किसी से छिपा नहीं है।

2 comments:

  1. हमने मांगी थी, जरा सी रोशनी घर के लिये
    आपने जलती हुई बस्ती के नजराने दिये



    छत्तीसगढ़ में बस्तर जल रहा है।


    bhiya ji...... aap ke lekh me gajab ka dam hai

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