सरपरस्ती वक्त के हाकिम की है मुझको नसीब
अपनी खामी को भी इक खूबी गिना सकता हूं मैं
छत्तीसगढ़ को कभी 'धान का कटोराÓ कहा जाता था फिर नया राज्य बनने के बाद 'औद्योगिकीकरण का कड़ाहÓ कहना कुछ लोगों ने शुरू कर दिया था पर अब तो छत्तीसगढ़ को 'खून का उबलता कड़ाहÓ कहा जाने लगा है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल बस्तर में डॉ. रमन सिंह सरकार ने आदिवासियों द्वारा स्वस्फूर्त आंदोलन 'सलवा जुडूमÓ को सहयोग किया गया था पर जब केन्द्रीय सुरक्षा बलों के सहयोग से 'आपरेशन ग्रीन हण्टÓ की शुरूआत की गई तो क्या आदिवासियों को विश्वास में लिया गया! उन्हीं की सुरक्षा के लिये चलाये जा रहे ग्रीनहण्ट के लिये उन्हें न तो पर्याप्त जानकारी दी गई न ही उन्हें इस आपरेशन से जोडऩे कोई प्रयास किये गये। यही नहीं इस आपरेशन में सलवा जुडूम आंदोलन में भागीदारी करने वाले राहत शिविरों में रहने वाले ग्रामीणों सहित एसपीओ को भी अलग रखा गया। एक बात तो तय है कि बस्तर के आदिवासी किसी भी बाहरी को पसंद नहीं करते हैं। नक्सलियों ने भी पहले ग्रामीणों के दुखदर्द में भागीदार बनकर उनका विश्वास जीता यह बात और है कि बस्तर के आदिवासी उन्हें अपना दुश्मन मान रहे हैं। विभिन्न राज्यों के केन्द्रीय सुरक्षाबल में शामिल जवानों की बस्तर में आमद बढ़ी और ग्रामीण नक्सलियों-सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष की बनती स्थिति देखकर अपने प्राणों की रक्षा के लिये और भी भीतरी क्षेत्रों में पलायन करने लगे। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में बस्तर की भौगोलिक स्थिति से पूर्णरूपेण परिचित अफसरों को भी कमान देनी थी। बस्तर में पहले रह चुके कुछ आलाअफसरों को वहां तैनात करना था पर पुलिस मुख्यालय तो गुटबाजी में फंसा है। अब तो यही माना जाता है कि बस्तर में तैनाती यानि सजा है। बस्तर में कोई भी घटना होती है तो बयानबाजी का दौर शुरू हो जाता है, नक्सलियों पर कायरतापूर्ण हमले का आरोप लगाया जाता है, चूक की बात स्वीकार की जाती है, एक-दो दिन के लिये पुलिस के डीजी जिला मुख्यालय जाकर बैठक लेकर लौट जाते हैं और फिर वारदात के कारणों पर टीका टिप्पणी का दौर शुरू हो जाता है।
पहले आदिवासियों द्वारा या उनके समर्थन से बस्तर में नक्सिलयों के खिलाफ 'सलवा जुडूमÓ अभियान की शुरूआत की गई, तब नक्सलियों की हिंसा बढ़ी, रानीबोदली, एर्राबोर जैसे नरसंहार हुए तो राज्य सरकार तथा पुलिस प्रशासन का यही जवाब था कि नक्सलियों की जमीन खिसकती जा रही है इसलिये नक्सली हिंसक हो गये हैं और ग्रामीणों को निशाना बनाना शुरू कर चुके हैं। सलवा जुडूम अभियान, एसपीओ की भूमिका पर सवाल उठे, मामला न्यायालय तक पहुंचा और सुरक्षाबलों पर फर्जी मुठभेड़ का भी आरोप लगा। इसी के बाद केन्द्र सरकार के गृहमंत्रालय के मुखिया पी चिंदबरम द्वारा 'आपेरशन ग्रीन हण्टÓ का नाम देकर नक्सली प्रभावित राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बल मुहैया कराया गया हालांकि केन्द्र सरकार के गृहमंत्रालय का कहना है कि 'आरपेशन ग्रीन हण्टÓ से हमारा कोई लेना-देना नहीं है यह विशुद्घ रूप से राज्य सरकार की मुहिम है हम तो केवल सुरक्षाबल मुहैया करा रहे हैं। फिर नक्सली आरपेशन के नाम पर केन्द्र सरकार ने सीआरपीएफ के स्पेशल डीजी विजय रमन की तैनाती क्यों की गई? उन्होंने छत्तीसगढ़ में ही अपना मुख्यालय क्यों बनाया?
खैर हाल ही नक्सली प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के तालमेटला में नक्सलियों द्वारा 75 सीआरपीएफ तथा एक प्रदेश पुलिस के जवानों की शहादत ले ली। उसके बाद केन्द्र के आदेश पर सीआफपीएफ के एक रिटायर्ड डीजी राममोहन आये उन्होंने अपनी रिपोर्ट भी केन्द्र सरकार को सोंप दी है। केन्द्रीय एवं राज्य के बल के बीच तालमेल का अभाव ही ताड़मेटला की घटना का प्रमुख कारण माना जा रहा है। केन्द्र सरकार सहित राज्य सरकार के प्रमुख यही कर रहे थे कि 'चूकÓ के कारण देश की सबसे बड़ी नक्सली वारदात हुई। अभी ताड़मेटला की शहादत के कारणों की समीक्षा ही चल रही थी कि शनिवार को शाम 5 बजे नक्सलियों ने सीआरपीएफ के एक वाहन को बारूदी विस्फोट से उड़ाकर 8 जवानों की फिर शहादत ले ली है। सवाल फिर उठ रहा है कि जब वह मार्ग अति संवेदनशील था तो एहतियात क्यों नहीं बरती गई और फिर डीजीपी विश्वरंजन ने चूक स्वीकार कर ली। आखिर कब तक चूक स्वीकार की जाती रहेगी और कब तक जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी, घर में घुसकर नक्सलियों को मारेगें यही राग राजधानी से अलापा जाएगा।
कुछ सवाल डीजीपी से!
छत्तीसगढ़ की पुलिस तथा केन्द्रीय बलों के बीच बेहतर तालमेल की बात कितनी भी की जाए पर सच्चाई सभी को पता है। प्रदेश के गृहमंत्री ननकीराम कंवर और पुलिस प्रमुख विश्वरंजन के बीच ही बेहतर तालमेल नहीं है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और गृहमंत्री ननकीराम कंवर को गुटबाजी के चलते पुलिस मुख्यालय तक जाना पड़ा फिर भी स्थिति वही है। बीजापुर के कोड़ेपाल में कल ही नक्सली हमले में 8 जवानों के शहीद होने पर गृहमंत्री ननकीराम कंवर का कहना था कि अब नक्सल आपरेशन की कमान सेना को सम्हालनी चाहिए, नक्सलियों का सूचना तंत्र मजबूत है और हमें दुश्मन को कमजोर नहीं समझना चाहिए। वे महसूस करते हैं कि नक्सलियों से लडऩे अब सेना को मैदान में लाना चाहिए पर डीजीपी विश्वरंजन ने गृहमंत्री के बयान को खारिज करते हुए कहा कि सेना की जरूरत नहीं है। वे सूचनातंत्र की विफलता को पहले भी खारिज कर चुके हैं तथा 'चूकÓ ही मानते हैं।
वैसे डीजीपी से कुछ सवाल तो पूछे ही जा सकते हैं। एक ही अफसर जो गुप्तचर शाखा का प्रमुख है यह वह राज्य बनने के बाद में राजधानी में ही है उसकी आजतक नक्सली क्षेत्र में पदस्थापना क्यों नहीं की गई? नक्सली मामले के राज्य में सबसे अधिक जानकार तथा फील्ड में पदस्थ रहने के अनुभवी अफसर संतकुमार पासवान से क्या कभी नक्सल आपरेशन में चर्चा की गई? सीारपीएफ के विशेष डीजी तथा नक्सली आपरेशन के लिए राजधानी में ही तैनात विजय रमन से कितनी बार अधिकृत चर्चा नक्सली आपरेशन पर की गई। पुलिस मुख्यालय में एडीजीपी गुप्तवार्ता और डीआईजी (गुप्तवार्ता) आईजी (प्रशासन) और डीआईजी (प्रशासन) एडीजीपी फायनेंस प्लानिंग और प्रोवीजन का पद क्यों रिक्त है?
दुर्ग आईजी रेंज का पद केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत नहीं किये जाने पर भी दुर्ग आईजी की नियुक्ति, केवल रायपुर जिले के लिए एक आईजी की नियुक्ति, केन्द्र द्वारा एडीजी एसआईबी का पद स्वीकृत नहीं है फिर भी उस पद पर नियुक्ति, केन्द्र द्वारा डीआईजी दंतेवाड़ा के पद की ही स्वीकृति दी है फिर डीआईजी कांकेर/राजनांदगांव पर नियुक्ति कैसे की गई है।
गृहमंत्री ननकीराम कंवर को आज तक बुलेटप्रुफ कार उनके अनुरोध के बाद भी मुहैया क्यों नहीं कराई गई है? डीजीपी साहब आप, पुलिस मुख्यालय में पदस्थ गुप्तचर शाखा के प्रमुख, एडीजीपी ने कितनीरात बस्तर मुख्यालय में गुजारी है? आपरेशन ग्रीन हंट चलने के पहले क्या आदिवासियों को विश्वास में लिया गया? क्या आदिवासियों को आपरेशन ग्रीनहण्ट के विषय में कुछ बताना जरूरी नहीं समझा गया? ताड़मेटला में मारे गये 75 सीआरपीएफ जवानों के साथ केवल एक ही राज्य पुलिस के सिपाही को क्यों भेजा गया था। बस्तर के आईजी लांगकुमेर ने पत्रकारों से कहा था कि शहीद सीआरपीएफ के जवान आपरेशन ग्रीनहण्ट के तहत गये ही नहीं थे? तो क्या सर्चिंग या आपरेशन में जाने के पहले रिकार्ड रखा जाता है?
गृहमंत्री पी चिदंबरम ने जेएनयूके एक कार्यक्रम में ताडमेटला नक्सली वारदात के लिए एक आईजी, 2 डीआईजी और एक एसपी को चूक के लिए जिम्मेदार माना था तो वे लोग कौन है? गृहमंत्री को अपना पुलिस दस्ता बनाकर जुआ सट्टा प्रदेश में पकड़वाने की जरूरत क्यों पड़ी? बहरहाल दंतेवाड़ा जिले में सबसे बड़ा जेलब्रेक होने और राज्यद्रोह का आरोप लगाने पर राज्य सरकार से अनुमति नहीं लेने पर उप जेलर मानकर न्यायालय से रिहा हो गया, उसका नार्को टेस्ट नहीं कराया गया उसके लिए कौन दोषी है? दुर्ग जेल में एक नक्सली समर्थक से मुलाकात के बाद उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं करने के कारण उसकी जमानत हो गई तो किसके खिलाफ कार्यवाही की गई? आपके अनुसार सेफजोन मदनवाडा में विनोद चौबे जैसे युवा अफसर की नक्सलियों द्वारा हत्या की गई, ताड़मेटला में 76 जवान मारे गये और एक माह के भीतर ही 8 सीआरपीएफ के जवानों को नक्सलियों नें स्फिोट कर उड़ा दिया। खैर छत्तीसगढ़ को कभी धान का कटोरा कहा जाता था अब वह लहु का खोलता कड़ाह बनते जा रहा है साहब, केवल राजधानी में कुछ चापलूसों के साथ बैठकर बयानबाजी से बचें और फील्ड में जाकर जवानों के साथ अधिक समय गुजारे तभी तो उनका मनोबल बढ़ेगा।
साय का भविष्य
अविभाजित म.प्र. तथा छत्तीसगढ़ के वरिष्ठï आदिवासी नेता नंदकुमार साय के भविष्य पर अब सवाल उठ रहे हैं। प्रथम नेता प्रतिपक्ष साय को प्रदेश के पहले विस चुनाव में अजीत जोगी के खिलाफ विस चुनाव लड़वाकर 'शहीदÓ करने का प्रयास शुरू हुआ, फिर उन्हें उनके पुराने रायगढ़ संसदीय क्षेत्र की जगह सरगुजा से लोस टिकट दी गई उनका तो भाग्य था कि वे वहां से भी चुनाव जीत गये। दूसरे चुनाव में उनकी टिकट काटकर मुरारी सिंह को सरगुजा से प्रत्याशी बनाया गया। बाद में नंदकुमार साय को कुछ माह के लिए राज्यसभा सदस्य बना दिया गया। अब रिक्त हो रही राज्यसभा के लिए धर्मेन्द्र प्रधान करुणा शुक्ला के नाम की चर्चा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के लिए रामसेवक पैकरा का नाम करीब करीब फायनल कर लिया गया है। ऐसे में हाल ही में विधायक रविशंकर त्रिपाठी के निधन से रिक्त हुई भटगांव विधानसभा का ही सहारा बचा है। यदि नंदकुमार साय को भटगांव से विस प्रत्याशी बनाया जाता है तो उनकी जीत के बाद उन्हें 'मंत्रीÓ बनाने का भी मजबूरी रहेगी वहीं उनके विधायक बनने से आदिवासी एक्सप्रेस फिर से शुरू होने की भी संभावना है, वहीं उनके मंत्री बनने से एक आदिवासी मंत्री कम करना पड़ेगा ऐसे में ननकीराम कंवर/ रामविचार नेताम के लिए खतरे की घंटी है। वैसे एक बड़े भाजपा नेता ने तो यहां तक कहा है कि नंदकुमार साय को यदि गृहमंत्री बना दिया जाए तो पुलिस तो कम से कम सुधर ही जाएगी। बहरहाल छत्तीसगढ़ में भाजपा के शह और मात के खेल में ऊंट किस करवट बैठेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है।
और अब बस
(1)
एक सांसद से लोस में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज की निकटता है, राज्य के एक मंत्री की भाजपा अध्यक्ष नीति गड़करी से दोस्ताना है यह चर्चा थी पर 'प्रतिफलÓ तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।
(2)
छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अफसर आजकल स्फटिक की माला पहनकर सुधरने की बात कर रहे है पर लोग कहते है कि कुत्ते की पूंछ सीधी हो सकती है पर वे नहीं सुधर सकते हैं।
(3)
कभी टिकरापारा में लाखों का एक कार्यालय किराये पर लेने पर भाजपा ने विधानसभा में 3 दर्जन से अधिक सवाल पूछकर सरकार को कटघरे में कड़ा किया था। पर भाजपा की सरकार बनने पर एक अफसर ने 2 लाख रुपया महीने पर भवन किराये में लिया है तो भाजपा के लोग चुप क्यों है?
Tuesday, May 11, 2010
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छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अफसर आजकल स्फटिक की माला पहनकर सुधरने की बात कर रहे है पर लोग कहते है कि कुत्ते की पूंछ सीधी हो सकती है पर वे नहीं सुधर सकते हैं।
ReplyDeleteध्रुव सत्य है भाई, काले कारनामें छिपाने का यह ढोंग धतुरा बहुत पुराना है लेकिन आज तक कारगर है