Tuesday, December 4, 2012

जंग तो सबके लिये एक जैसी होती है,
हारते हैं वही जो हौसला नहीं रखते

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव अगले साल होना है और अभी से कयास लगाने का दौर शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री डा.  रमन सिंह के साथ उनकी पत्नी श्रीमती वीणा सिंह या पुत्र अभिषेक सिंह भी अगले चुनाव में उतर सकते हैं। सूत्र कहते हैं कि राजनांदगांव, डोगरगांव, कवर्धा, बेमेतरा आदि विधानसभा क्षेत्र पसंदीदा हो सकते हैं। कोई कहता है कि गुप्त सर्वे से अच्छी रिपोर्ट आई है, कुछ कहते है कि मकान आदि खरीदने की योजना बन रही है। हालांकि भाजपा के सूत्र कहते है केवल डा. रमन सिंह ही चुुनाव समर में उतरेंगे, चूंकि उन्हें तीसरी बार सरकार बनाना है इसलिये वे परिवार में से किसी और को भी प्रत्याशी बनाना पसंद नहीं करेंगे। बहरहाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा छग के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी अभी मरवाही से विधायक है पत्नी डा. रेणुका जोगी कोटा से विधायक है और इस बार चुनाव समर में अमित जोगी भी उतरेंगे यह तय है। सूत्र कहते है कि एक ही परिवार के तीन लोगों को विधानसभा प्रत्याशी बनाना मुश्किल होगा पर अजीत जोगी तो अजीत जोगी है। विधायक पत्नी को बिलासपुर लोकसभा से आखिर प्रत्याशी बनवा दिया था, डा. शिव डहरिया को विधायक रहते लोस की टिकट दिलवा दी थी। खैर सोनिया, राहुल गांधी से अजीत जोगी बहुत दूर हो गये है यह अफवाह फैलाने वालों के कलेजे में तब सांप लोट गया था जब राहुल गांधी ने अपनी एक टीम में अजीत जोगी को शामिल कर लिया। इधर चर्चा यह भी है कि अजीत जोगी महासमुंद से लोस चुनाव लड़ सकते है, चर्चा यह भी है कि डा. रेणुका जोगी बिलासपुर लोकसभा से चुनाव लड़कर कोटा विधानसभा सीट अमित के लिये खाली कर सकती है वैसे यह चर्चा गर्म है कि अमित जोगी, डा. रमन सिंह सरकार के मंत्री अमर अग्रवाल के खिलाफ बिलासपुर से चुनाव समर में उतर सकते हैं। वैसे यह तय है कि अमित जोगी किसी सामान्य सीट से ही चुनाव लडेंगे। इधर शहर विधायक बृजमोहन अग्रवाल, देवजी भाई पटेल आदि के भी वर्तमान विस सीट बदलने की चर्चा है। इधर एक पूर्व महापौर तथा चेम्बर आफ कामर्स के 2 पदाधिकारियों की भी विस चुनाव में उतरने की चर्चा गर्म है। राजधानी की महापौर डा. किरणमयी नायक लोकसभा तो नहीं पर शहर की 4 विधानसभा में एक से लडऩे की तैयारी कर रही हैं।
सस्ता कोयला महंगी बिजली
कोल मंत्रालय ने आईएमजी की अनुशंसा पर भटगांव एक्सटेशन 2 कोल ब्लाक का आबंटन रद्द कर दिया है बैंक गारंटी 1.59 करोड़ राजसात कर लिया है इधर छग खनिज निगम इस फैसले के खिलाफ न्यायालय जाने पर विचार कर रहा है। छत्तीसगढ़ में सरगुजा, कोरबा और रायगढ़ के रूप में चर्चित कोयला निकाला जा रहा है। सूत्र कहते है कि अंग्रेजों के जमाने से ही कोल खनन का कार्य चल रहा है। आजादी के बाद भी खनन बस्तूर जारी रहा, जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर कोयला खनन होता रहा है। आजादी के बाद कई वर्षों तक कोयला के उत्खनन का कोई लेखा जोखा ही नहीं रखा गया। करीब 2030 साल पूर्व ही केन्द्रीय सरकार से अनुमति लेने की शुरूवात हुई। अविभाजित मप्र तथा छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनने के बाद भी कोयले का अवैध उत्खनन जारी है।
प्रदेश में प्रकाश इंडस्ट्रीज सबसे बड़े भू-भाग में कोल उत्खनन कर रही है। रायगढ़ जिले के चोटिया , मदनपुर नार्थ और फतेहपूर ब्लाक के कई हिस्सों मे ंप्रकाश इंडस्ट्रीज कोल खनन में लगी है। यह इंडस्ट्रीज 2003 से उत्खनन कर रही है हालांकि इसे 4037.534 हेक्टेयर में खनन का अधिकार है पर अत्याधिक खनन, निर्धारित क्षेत्र से भी बाहर खनन, सरकार को गलत जानकारी देने आदि का आरोप लगातार लगाया जाता है, नोटिस दिया जाता है पर अभी भी उत्खनन जारी है।
राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल की रायगढ़ स्थित जिंदल इस्पात एक पावर लिमिटेड ने तो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1996 से खनन कर रही है। उसे रायगढ़ जिले का गोरेपेलमा ब्लाक आबंटित हुआ था और 2051.626 हेक्टयर के बड़े भू-भाग में कोल उत्खनन कर रही है।
जिंदल पावर की सबसे बड़ी चर्चा इस बात को लेकर है कि वह सरकार से कोयला तो सस्ता खरीदा है पर बिजली महंगी बेचता है।
रायगढ़ स्थित जिंदल का कोयला आधारित पावर जेएसपीएल देश का पहला पावर प्रोजेक्ट है जो मर्चेंट पावर के आधार पर संचालित हो रहा है। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार के साथ कोई समझौता नहीं है कि वह सरकार को उत्पादित बिजली देगा साथ ही वह बाजार में किसी को भी बिजली बेच सकता है। जेएसपीएल यानि जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड ने 1000 मेगावाट के प्रोजेक्ट को 2008 में शुरू किया था करीब एक साल तक इसने 6 रूपये प्रति यूनिट पर बिजली बेची थी। उसे केवल दो साल में ही इतना लाभ हुआ कि 2010 तक अपना सभी ऋण चुकता कर दिया और उसे इस दौरान 4338 करोड़ का लाभ हुआ। सूत्र कहते है कि जिंदल को कोयला 300-400 रूपये प्रति रू. पड़ा था तो सरकारी कंपनी एनटीपीसी को 1200 रूपये, लेंको अमरकटंक को 1020 रूपये प्रति टन कोयला उपलब्ध कराया गया था।
सस्ता कोयला मिलने पर भी जिंदल पावर ने बाद में 3.85 पैसे प्रति यूनिट की दर पर 2011-12 में बिजली बेची जबकि एनटीपीसी ने 2.20 पैसे लैको ने 6.67 पैसे प्रति यूनिट की दर में बिजली बेची थी। इसीलिये जिंदल को 1765 करोड़ का मुनाफा हुआ तो लैको अमरकंटक को सिर्फ 155 करोड़।
नवीन जिंदल है क्या?
खैर जिंदल ग्रुप के मालिक तथा कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल को पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल कांग्रेसी नहीं मानते हैं तो अजीत जोगी उन्हें कांग्रेसी ही मानते हैं। डा. चरणदास महंत सीधे आरोप लगाने से बचने है तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल कोई भी टिप्पणी करने से परहेज करते हैं।
वैसे रायगढ़ में जिंदल के संयंत्र की स्थापना में शुक्ल बंधुओं की अहय भूमिका रहीहै। यह संयंत्र तब स्थापित हुआ जब व्हीपी सिंह प्रधानमंत्री थे और सुंदरलाल पटवा अविभाजित मप्र के मुख्यमंत्री थे।
शुरूवाती दौर में नवीन के पिता ओ.पी. जिंदल और विद्याचरण शुक्ल में गहरी दोस्ती थी पर न जाने क्यों नवीन से विद्याचरण शुक्ल काफी नाराज है और रायगढ़ जाकर प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
वैसे जिंदल की ही सिस्टर कंसर्न मोनेट भी कोल उत्खनन में पीछे नहीं है। कंपनी का कब्जा रायगढ़ जिले के राजगामार दीपसाईड ब्लाक है। अधिकारिक तौर पर इस कंपनी को 1455 हेक्टेयर जमीन पर उत्खनन करने का अनुबंध है पर वह कितने क्षेत्र में उत्खनन कर रही है इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है।
40 साल की राजनीति
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के प्रमुख नेताओं में एक तथा छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने 1972 में पहली बार परपाली विधानसभा से चुनाव लड़ा था यह बात और है कि वे पहला चुनाव जनसंघ से लड़कर पराजित हो गये थे पर 1977 में जनता पार्टी प्रत्याशी बतौर उन्होंने बिजयश्री प्राप्त की थी और वे उस समय संसंदीय सचिव बने थे। उन्हीं के साथ ही आदिवासी नेता नंदकुमार साय भी संसदीय सचिव बने थे। खैर 1972 से यदि ननकीराम कंवर की सक्रिय राजनीति में प्रवेश माना जाए तो 2012 में इस साल उन्हें सक्रिय राजनीति के 40 साल पूरे होने चुके है। अविभाजित मप्र में पटवा मंत्रिमंडल में कृषि, वन, जन शक्ति नियोजन मंत्री रहे, छत्तीसगढ़ में पहले कृषि मंत्री भी रहे पर डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में 2004 में उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। कारण जो भी हो उनकी फिर 13 माह बाद ही मंत्रिमंडल में वापसी हो सकी थी। वैसे वे गृहमंत्री, सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। प्रोटोकाल के हिसाब से गृहमंत्री का ओहदा मुख्यमंत्री के बाद होता है यानि वे मंत्रियों में वरिष्ठ है, प्रोटोकाल तथा अनुभव के मुकाबले। फिर भी उन्हें वह तवज्जों नहीं मिल रही है। आलम यह है कि न तो उन्हें पुलिस मुख्यालय तवज्जों देता है और न ही सहकारिता मुख्यालय। उनके आदेशों पर कार्यवाही करने की बात तो दूर तबादला, पदोन्नति आदि की भी जानकारी उन्हें मीडिया से ही मिलती है। वैसे दूसरी बार मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उनकी आक्रमक क्षमता भी मंद पड़ती जा रही है।
और अब बस
0 नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने नरेन्द्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री पद का योग्य प्रत्याशी बताया है। मप्र के एक मंत्री विजयवर्गीय ने भी तो डा. रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री बनने की क्षमता रखने वाले नेता बताया है।
0 पुलिस मुख्यालय सहित फील्ड में पदस्थ कुछ महानिरीक्षक, पुलिस कप्तानों के बदलने की चर्चा है। एक टिप्पणी...गृहमंत्री को छोड़कर सभी की राय को अहमियत दी जाएगी।
0 एक पूर्व मंत्री एक बड़ी कंपनी के पीछे पड़ गये है चर्चा है कि कंपनी प्रबंधन ने उक्त कांग्रेसी नेता की जमीन खरीदने से इंकार कर दिया है यही है नाराजगी का कारण।


No comments:

Post a Comment