अंधेरे चारों तरफ सांय-सांय करने लगे
चिराग हाथ उठाकर दुआएं करने लगे
तरक्की कर गये मौत के सौदागर
ये सब मरीज हैं जो दुआएं करने लगे
छत्तीसगढ़ में आखिर हो क्या रहा है? समाज में सबसे अधिक प्रतिष्ठित पेशा चिकित्सकों का समझा जाता है। चिकित्सक को एक तरह से भगवान का दर्जा दिया जाता है। उसे देवदूत भी समझा जाता है पर पिछले कुछ सालों से कम से कम छत्तीसगढ़ में तो कुछ चिकित्सक अपनी हरकतों से देवदूत का दर्जा स्वयं गंवा रहे हैं। सवाल प्रशासन या शासन की कार्यवाही का नहीं है सवाल इस संवेदनशील पेशे की इमानदारी का भी है।
छत्तीसगढ़ में कुछ माह पूर्व ही मोतियाबिन्द आपरेशन के नाम पर कुछ मरीजों की आँखों की रोशनी जाने का मामला प्रकाश में आया था। मोतियाबिन्द आपरेशन के नाम पर लक्ष्य पूरा करने के नाम पर कुछ सरकारी अस्पतालों में मरीजों का लापरवाही से मोतियाबिन्द आपरेशन किया गया। मरीजों की आँखों की रोशनी छिन गई, आपरेशन के पहले तो धुंधला-धुंधला दिखाई भी देता था, आपरेशन के बाद तो आंखों की रोशनी ही चली गई। जांच हुई, कुछ चिकित्सकों के खिलाफ कार्यवाही भी की गई और चिकित्सक फिर काम पर लौट गये और मरीजों की आँखों के सामने जीवन भर का अंधेरा छा गया।
हाल फिलहाल गरीब मासूम महिलाओं का गर्भाशय इसलिये निकाल दिया गया क्योंकि एक तो आपरेशन से मरीज से डाक्टरों को लाभ हो रहा था वही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत अलग से लाभ हो रहा था। आरएसबीवाय (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) की शुरूवात छत्तीसगढ़ में एक अक्टूबर 2009 से हुई थी। इसके तहत गरीबी रेखा के नीचे आने वाले परिवारों को स्मार्ट कार्ड के जरिये आपरेशन खर्च का भुगतान सरकार को करना था। सरकारी अस्पतालों के साथ ही कुछ निजी नर्सिंग होम को भी यह सुविधा दी गई थी। पता चला है कि पिछले ढाई वर्षों शासन के माध्यम से बीमा कंपनी ने 7 करोड़ 75 लाख का भुगतान किया है इसमें से 70 प्रतिशत केवल गर्भाशय की सर्जरी के नाम पर भुगतान हुआ है।
सूत्रों की माने तो कई ग्रामीण महिलाओं को गर्भाशय बड़ा होने या गर्भाशय का कैंसर होने सहित गर्भाशय की बीमारियों का भय दिखाकर उनका गर्भाशय निकाल लिया गया। गर्भाशय निकालने के बाद कोई भी महिला कभी मां नहीं बन सकती है। आरएसबीवाय की रकम हड़पने कुछ निजी नर्सिंग होम के संचालकों ने बिना किसी बीमारी के हजारों की संख्या में महिलाओं के गर्भाशय निकालकर असमय कुछ महिलाओं को बांझ और बीमार बनाने का काम किया है। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि ढाई साल में ही 3344 महिलाओं के गर्भाशय संबंधी आपरेशन किये गये हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी स्वीकार किया है कि प्रदेश के कतिपय डाक्टर आर्थिक हित के लिये स्मार्ट कार्ड का दुरूपयोग कर रहे हैं। आठ माह के भीतर ही डाक्टरों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत गरीब 2 करोड़ का भुगतान किया गया है। हालांकि प्रदेश में ऐसे मामलों की जांच शुरू कर दी गई है, कुछ डाक्टरों और उनके नर्सिंग होम को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया है पर प्रभावित महिलाओं से मातृत्व सुख छीनने वाले डाक्टरों के खिलाफ एफआईआर की बात क्यों नहीं उठ रही है। वैसे भी डाक्टर अब असंवेदनशील होते जा रहे हैं। बड़े बड़े निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में मरीज की मौत के बाद भुगतान के अभाव में लाश परिजनों नहीं सौंपने की बात यदा-कदा सामने आती रहती है। लापरवाही से इलाज की बात भी आती रहती है। सवाल यह उठ रहा है कि धरती का देवदूत क्यों असंवेदनशील होता जा रहा है।
कानून का डर भी नहीं!
सुंदर नगर में टोल प्लाजा बनाने पर प्रदेश के मुख्य सचिव सुनील कुमार ने नाराजगी जाहिर की थी फिर नगर निगम की तरफ से भी विरोध किया गया था। हाल ही प्रदेश के उच्च न्यायालय ने सुंदर नगर में टोल प्लाजा पर यथा स्थिति का आदेश दिया है फिर भी निर्माण कार्य चल रहा है । क्या टोल प्लाजा बनाने वाले कानून से बड़े हो गये है। आखिर इनको किसका संरक्षण प्राप्त है?
रायपुर के सुंदर नगर में बनाए जा रहे टोल प्लाजा पर हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने नेशनल हाईवे लोक निर्माण विभाग व राज्य शासन समेत 6 को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब देने के लिये कहा है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 अन्तर्गत रायपुर से आरंग के बीच दोहरे लेन को फोरलेन में बदलने निर्माण कार्य के लिए बीओटी से राज्य शासन ने अनुबंध किाय था। फोरलेन के लिए एक्सप्रेस वे में दो से ज्यादा टोल प्लाजा नहीं हो सकता। राज्य शासन ने बीटीओ अर्थात बनाओ चलाओ और लागत राशि वसूल हो जाए तो शासन को हस्तगत कर दो, कम्पनी से वर्ष 2006 में अनुबन्ध किया गया। अनुबंध में शर्त यह थी कि टोल प्लाजा शहर के बाहर रखा जाएगा। वर्ष 2006 में विभागीय मंत्री राजेश मूणत थे। अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करते हुए टोल प्लाजा का निर्माण 2010 में रायपुर के सुंदर नगर में शुरू किया गया जबकि टोल प्लाजा का शहर के अंदर होना जनता के लिए सुविधाजनक नहीं है। बीटीओ अन्तर्गत निर्माण कम्पनी ने अपने हित के लिए शहर के अंदर सुन्दर नगर में टोल प्लाजा बनाना शुरू कर दिया इससे कम्पनी को 25 वर्ष में 25 हजार करोड़ की अतिरिक्त आय होने का अनुमान है इसीलिए प्रदेश सरकार ने भी इसकी मंजूरी दे दी थी।
टोल प्लाजा राष्ट्रीय राजमार्ग 6 के अन्तर्गत आरंग और सरोना में बनाया जाना था। सरोना में टोल प्लाजा का कोई विकल्प नहीं था इसके बाद भी विभागीय मंत्री राजेश मूणत के विरोध में कारण नोटशीट चली और सुंदर नगर में टोल प्लाजा निर्माण की अनुमति दे दी। इसको लेकर कई शिकायतें भी आई। नगर निगम रायपुर की महापौर ने भी सुन्दर नगर का विरोध किया मगर प्रदेश सरकार की ओर से स्थल नहीं बदला गया जिस पर हाईकोर्ट में दो जनहित याचिकाएं दायर की गई।
रायपुर के जनमानस सेवा समिति नामक एक स्वयंसेवी संस्था व अन्य ने तथा एक और ने यह जनहित याचिकाएं दायर की और कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग एक्ट8ए तथा टोल प्लाजा नियम 2008 के तहत स्पष्ट है कि एक ही सड़क पर जगह-जगह टोल प्लाजा नहीं बनाया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति राजनांदगांव से आरंग जाता है और सुंदर नगर में टोल प्लाजा हो तो उसे 5 टोल प्लाजा का टेक्स लगेगा।
जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुनील सिंहा और जस्टिस आर एस शर्मा की युगलपीठ ने सुंदर नगर में निर्माणाधीन टोल प्लाजा पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देते हुए नेशनल हाईवे, लोक निर्माण विभाग राज्य शासन समेत 6 को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में जवाब देने को कहा है। इधर इस आदेश के बाद भी टोल प्लाजा का निर्माण चल रहा है। क्या प्रदेश में कानून का डर नहीं है? यह चर्चा अब आम है।
सरकारी गवाह
एस्सार-नक्सल नोट कांड को प्रकाश में लाने वाले पुलिस कप्तान को बदल दिया गया। एस्सार की तरफ से नक्सलियों को 15 लाख की बड़ी रकम देने के पहले एस्सार के ठेकेदार बी.के. लाला को रकम के साथ रंगे हांथों पकड़ा गया। नक्सलियों के सहयोगी के नाम पर गिरफ्तार लोग अभी भी जेल में हैं। 15 लाख की बड़ी रकम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की किरंदुल शाखा से निकाली गई थी रकम किसके खाते से निकली थी, कौन रकम निकालने गया था यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है, पर इसी बीच एस्सार नक्सल नोट कांड के प्रमुख हीरो बी.के. लाला ने सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगा दी है। पैसा एस्सार की तरफ से नक्सलियों को देना था, उस कंपनी के जीएम और पैसा पहुंचाने वाले ठेकेदार जमानत पर है। नक्सल सहयोगी के नाम पर गिरफ्तार सोढ़ी सोनी और लिंगाराम जेल में हैं। ऐसे में ठेकेदार लाला को सरकारी गवाह बनाने की चर्चा को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। एस्सार-नक्सल नोट कांड में एसआईटी ने 180 दिन पूरे होने पर आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल कर दिया है। मामले के मुख्य आरोपी ठेकेदार बीके लाला ने एडीजे के अदालत में सरकारी गवाह बनने अर्जी भी लगाई है।
आरोपी बीके लाला ने एडीजे श्रीमति अनिता डहरिया की अदालत में सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगाई है। इस अर्जी पर सुनवाई आज होगी। आरोपी लाला ने धारा 306 और 307 के तहत यह अर्जी लगाई है, इसमें उन्होंने अदालत से अपनी लिए माफी की मांग करते हुए अदालत को सरकारी गवाह के रूप में मामले की सभी जानकारी देने की बात कही है। मामले के अन्य दो आरोपी सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोडोपी अभी जेल में हैं, जबकि आरोपी बीके लाला और एस्सार के जीएम डीवीसीएस वर्मा को बेल मिल चुकी है।
उल्लेखनीय है कि पुलिस ने पिछले वर्ष 9 सितंबर को पालनार के बाजार से ठेकेदार बीके लाला को 15 लाख की रकम नक्सलियों तक पहुंचाते हुए लिंगाराम कोड़ोपी के साथ गिरफ्तार किया था। मामले की विवेचना के बाद समेली की पूर्व आश्रम अधिक्षिका सोनी सोढ़ी तथा एस्सार के जीएम श्री वर्मा की भी गिरफ्तारी हुई। मामले में सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोड़ोपी को अभी जमानत नहीं मिल पाई है। सोनी सोढ़ी ने पुलिस पर प्रताडऩा का आरोप लगाया है और सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी चल रहा है।
इधर मामले के मुख्य आरोपी बीके लाला के सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगाने से पूरे मामले में ही नया मोड़ आ गया है। कानून के जानकारों का मानना है कि आरोपी लाला के सरकारी गवाह बनने से मामले को सुलझाने में काफी मदद मिल सकती है, इसके साथ ही आरोपी लाला ने माफी मांगकर सरकारी गवाह बनने की जो अर्जी लगाई, इससे भी यह स्पष्ट हो गया है कि उसने स्वयं को कसूरवार मान लिया है। 17 जुलाई को ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि अदालत मामले के मुख्य आरोपी को सरकारी गवाह मानेगी या नहीं।
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और नेता प्रतिपक्ष राज्य सरकार की कुछ अनियमितताओं को लेकर न्यायालय जाने वाले थे पर क्यों नहीं गये...। अब यह सवाल का जवाब तो दोनों नेता ही अच्छे से दे सकते हैं।
0 माओवादी प्रभावित क्षेत्र के मंत्री और संसदीय सचिव के लिये बुलेट प्रूफ वाहनों का प्रावधान अनुपूरक बजट में किया गया है। परेशान है गृहमंत्री कंवर, उनकी मांग के बावजूद उन्हें बुलेट प्रुफ कार नहीं मिली है क्योंकि उनका विधानसभा क्षेत्र नक्सलियों से प्रभावित नहीं है।
0 कुछ कलेक्टरों के साथ कुछ पुलिस अधीक्षकों का भी तबादला तय है। इमानदार मुख्य सचिव के आने में कई लोग असहज महसूस कर रहे हैं।
चिराग हाथ उठाकर दुआएं करने लगे
तरक्की कर गये मौत के सौदागर
ये सब मरीज हैं जो दुआएं करने लगे
छत्तीसगढ़ में आखिर हो क्या रहा है? समाज में सबसे अधिक प्रतिष्ठित पेशा चिकित्सकों का समझा जाता है। चिकित्सक को एक तरह से भगवान का दर्जा दिया जाता है। उसे देवदूत भी समझा जाता है पर पिछले कुछ सालों से कम से कम छत्तीसगढ़ में तो कुछ चिकित्सक अपनी हरकतों से देवदूत का दर्जा स्वयं गंवा रहे हैं। सवाल प्रशासन या शासन की कार्यवाही का नहीं है सवाल इस संवेदनशील पेशे की इमानदारी का भी है।
छत्तीसगढ़ में कुछ माह पूर्व ही मोतियाबिन्द आपरेशन के नाम पर कुछ मरीजों की आँखों की रोशनी जाने का मामला प्रकाश में आया था। मोतियाबिन्द आपरेशन के नाम पर लक्ष्य पूरा करने के नाम पर कुछ सरकारी अस्पतालों में मरीजों का लापरवाही से मोतियाबिन्द आपरेशन किया गया। मरीजों की आँखों की रोशनी छिन गई, आपरेशन के पहले तो धुंधला-धुंधला दिखाई भी देता था, आपरेशन के बाद तो आंखों की रोशनी ही चली गई। जांच हुई, कुछ चिकित्सकों के खिलाफ कार्यवाही भी की गई और चिकित्सक फिर काम पर लौट गये और मरीजों की आँखों के सामने जीवन भर का अंधेरा छा गया।
हाल फिलहाल गरीब मासूम महिलाओं का गर्भाशय इसलिये निकाल दिया गया क्योंकि एक तो आपरेशन से मरीज से डाक्टरों को लाभ हो रहा था वही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत अलग से लाभ हो रहा था। आरएसबीवाय (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) की शुरूवात छत्तीसगढ़ में एक अक्टूबर 2009 से हुई थी। इसके तहत गरीबी रेखा के नीचे आने वाले परिवारों को स्मार्ट कार्ड के जरिये आपरेशन खर्च का भुगतान सरकार को करना था। सरकारी अस्पतालों के साथ ही कुछ निजी नर्सिंग होम को भी यह सुविधा दी गई थी। पता चला है कि पिछले ढाई वर्षों शासन के माध्यम से बीमा कंपनी ने 7 करोड़ 75 लाख का भुगतान किया है इसमें से 70 प्रतिशत केवल गर्भाशय की सर्जरी के नाम पर भुगतान हुआ है।
सूत्रों की माने तो कई ग्रामीण महिलाओं को गर्भाशय बड़ा होने या गर्भाशय का कैंसर होने सहित गर्भाशय की बीमारियों का भय दिखाकर उनका गर्भाशय निकाल लिया गया। गर्भाशय निकालने के बाद कोई भी महिला कभी मां नहीं बन सकती है। आरएसबीवाय की रकम हड़पने कुछ निजी नर्सिंग होम के संचालकों ने बिना किसी बीमारी के हजारों की संख्या में महिलाओं के गर्भाशय निकालकर असमय कुछ महिलाओं को बांझ और बीमार बनाने का काम किया है। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि ढाई साल में ही 3344 महिलाओं के गर्भाशय संबंधी आपरेशन किये गये हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी स्वीकार किया है कि प्रदेश के कतिपय डाक्टर आर्थिक हित के लिये स्मार्ट कार्ड का दुरूपयोग कर रहे हैं। आठ माह के भीतर ही डाक्टरों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत गरीब 2 करोड़ का भुगतान किया गया है। हालांकि प्रदेश में ऐसे मामलों की जांच शुरू कर दी गई है, कुछ डाक्टरों और उनके नर्सिंग होम को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया है पर प्रभावित महिलाओं से मातृत्व सुख छीनने वाले डाक्टरों के खिलाफ एफआईआर की बात क्यों नहीं उठ रही है। वैसे भी डाक्टर अब असंवेदनशील होते जा रहे हैं। बड़े बड़े निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में मरीज की मौत के बाद भुगतान के अभाव में लाश परिजनों नहीं सौंपने की बात यदा-कदा सामने आती रहती है। लापरवाही से इलाज की बात भी आती रहती है। सवाल यह उठ रहा है कि धरती का देवदूत क्यों असंवेदनशील होता जा रहा है।
कानून का डर भी नहीं!
सुंदर नगर में टोल प्लाजा बनाने पर प्रदेश के मुख्य सचिव सुनील कुमार ने नाराजगी जाहिर की थी फिर नगर निगम की तरफ से भी विरोध किया गया था। हाल ही प्रदेश के उच्च न्यायालय ने सुंदर नगर में टोल प्लाजा पर यथा स्थिति का आदेश दिया है फिर भी निर्माण कार्य चल रहा है । क्या टोल प्लाजा बनाने वाले कानून से बड़े हो गये है। आखिर इनको किसका संरक्षण प्राप्त है?
रायपुर के सुंदर नगर में बनाए जा रहे टोल प्लाजा पर हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने नेशनल हाईवे लोक निर्माण विभाग व राज्य शासन समेत 6 को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब देने के लिये कहा है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 अन्तर्गत रायपुर से आरंग के बीच दोहरे लेन को फोरलेन में बदलने निर्माण कार्य के लिए बीओटी से राज्य शासन ने अनुबंध किाय था। फोरलेन के लिए एक्सप्रेस वे में दो से ज्यादा टोल प्लाजा नहीं हो सकता। राज्य शासन ने बीटीओ अर्थात बनाओ चलाओ और लागत राशि वसूल हो जाए तो शासन को हस्तगत कर दो, कम्पनी से वर्ष 2006 में अनुबन्ध किया गया। अनुबंध में शर्त यह थी कि टोल प्लाजा शहर के बाहर रखा जाएगा। वर्ष 2006 में विभागीय मंत्री राजेश मूणत थे। अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करते हुए टोल प्लाजा का निर्माण 2010 में रायपुर के सुंदर नगर में शुरू किया गया जबकि टोल प्लाजा का शहर के अंदर होना जनता के लिए सुविधाजनक नहीं है। बीटीओ अन्तर्गत निर्माण कम्पनी ने अपने हित के लिए शहर के अंदर सुन्दर नगर में टोल प्लाजा बनाना शुरू कर दिया इससे कम्पनी को 25 वर्ष में 25 हजार करोड़ की अतिरिक्त आय होने का अनुमान है इसीलिए प्रदेश सरकार ने भी इसकी मंजूरी दे दी थी।
टोल प्लाजा राष्ट्रीय राजमार्ग 6 के अन्तर्गत आरंग और सरोना में बनाया जाना था। सरोना में टोल प्लाजा का कोई विकल्प नहीं था इसके बाद भी विभागीय मंत्री राजेश मूणत के विरोध में कारण नोटशीट चली और सुंदर नगर में टोल प्लाजा निर्माण की अनुमति दे दी। इसको लेकर कई शिकायतें भी आई। नगर निगम रायपुर की महापौर ने भी सुन्दर नगर का विरोध किया मगर प्रदेश सरकार की ओर से स्थल नहीं बदला गया जिस पर हाईकोर्ट में दो जनहित याचिकाएं दायर की गई।
रायपुर के जनमानस सेवा समिति नामक एक स्वयंसेवी संस्था व अन्य ने तथा एक और ने यह जनहित याचिकाएं दायर की और कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग एक्ट8ए तथा टोल प्लाजा नियम 2008 के तहत स्पष्ट है कि एक ही सड़क पर जगह-जगह टोल प्लाजा नहीं बनाया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति राजनांदगांव से आरंग जाता है और सुंदर नगर में टोल प्लाजा हो तो उसे 5 टोल प्लाजा का टेक्स लगेगा।
जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुनील सिंहा और जस्टिस आर एस शर्मा की युगलपीठ ने सुंदर नगर में निर्माणाधीन टोल प्लाजा पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देते हुए नेशनल हाईवे, लोक निर्माण विभाग राज्य शासन समेत 6 को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में जवाब देने को कहा है। इधर इस आदेश के बाद भी टोल प्लाजा का निर्माण चल रहा है। क्या प्रदेश में कानून का डर नहीं है? यह चर्चा अब आम है।
सरकारी गवाह
एस्सार-नक्सल नोट कांड को प्रकाश में लाने वाले पुलिस कप्तान को बदल दिया गया। एस्सार की तरफ से नक्सलियों को 15 लाख की बड़ी रकम देने के पहले एस्सार के ठेकेदार बी.के. लाला को रकम के साथ रंगे हांथों पकड़ा गया। नक्सलियों के सहयोगी के नाम पर गिरफ्तार लोग अभी भी जेल में हैं। 15 लाख की बड़ी रकम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की किरंदुल शाखा से निकाली गई थी रकम किसके खाते से निकली थी, कौन रकम निकालने गया था यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है, पर इसी बीच एस्सार नक्सल नोट कांड के प्रमुख हीरो बी.के. लाला ने सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगा दी है। पैसा एस्सार की तरफ से नक्सलियों को देना था, उस कंपनी के जीएम और पैसा पहुंचाने वाले ठेकेदार जमानत पर है। नक्सल सहयोगी के नाम पर गिरफ्तार सोढ़ी सोनी और लिंगाराम जेल में हैं। ऐसे में ठेकेदार लाला को सरकारी गवाह बनाने की चर्चा को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। एस्सार-नक्सल नोट कांड में एसआईटी ने 180 दिन पूरे होने पर आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल कर दिया है। मामले के मुख्य आरोपी ठेकेदार बीके लाला ने एडीजे के अदालत में सरकारी गवाह बनने अर्जी भी लगाई है।
आरोपी बीके लाला ने एडीजे श्रीमति अनिता डहरिया की अदालत में सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगाई है। इस अर्जी पर सुनवाई आज होगी। आरोपी लाला ने धारा 306 और 307 के तहत यह अर्जी लगाई है, इसमें उन्होंने अदालत से अपनी लिए माफी की मांग करते हुए अदालत को सरकारी गवाह के रूप में मामले की सभी जानकारी देने की बात कही है। मामले के अन्य दो आरोपी सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोडोपी अभी जेल में हैं, जबकि आरोपी बीके लाला और एस्सार के जीएम डीवीसीएस वर्मा को बेल मिल चुकी है।
उल्लेखनीय है कि पुलिस ने पिछले वर्ष 9 सितंबर को पालनार के बाजार से ठेकेदार बीके लाला को 15 लाख की रकम नक्सलियों तक पहुंचाते हुए लिंगाराम कोड़ोपी के साथ गिरफ्तार किया था। मामले की विवेचना के बाद समेली की पूर्व आश्रम अधिक्षिका सोनी सोढ़ी तथा एस्सार के जीएम श्री वर्मा की भी गिरफ्तारी हुई। मामले में सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोड़ोपी को अभी जमानत नहीं मिल पाई है। सोनी सोढ़ी ने पुलिस पर प्रताडऩा का आरोप लगाया है और सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी चल रहा है।
इधर मामले के मुख्य आरोपी बीके लाला के सरकारी गवाह बनने की अर्जी लगाने से पूरे मामले में ही नया मोड़ आ गया है। कानून के जानकारों का मानना है कि आरोपी लाला के सरकारी गवाह बनने से मामले को सुलझाने में काफी मदद मिल सकती है, इसके साथ ही आरोपी लाला ने माफी मांगकर सरकारी गवाह बनने की जो अर्जी लगाई, इससे भी यह स्पष्ट हो गया है कि उसने स्वयं को कसूरवार मान लिया है। 17 जुलाई को ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि अदालत मामले के मुख्य आरोपी को सरकारी गवाह मानेगी या नहीं।
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और नेता प्रतिपक्ष राज्य सरकार की कुछ अनियमितताओं को लेकर न्यायालय जाने वाले थे पर क्यों नहीं गये...। अब यह सवाल का जवाब तो दोनों नेता ही अच्छे से दे सकते हैं।
0 माओवादी प्रभावित क्षेत्र के मंत्री और संसदीय सचिव के लिये बुलेट प्रूफ वाहनों का प्रावधान अनुपूरक बजट में किया गया है। परेशान है गृहमंत्री कंवर, उनकी मांग के बावजूद उन्हें बुलेट प्रुफ कार नहीं मिली है क्योंकि उनका विधानसभा क्षेत्र नक्सलियों से प्रभावित नहीं है।
0 कुछ कलेक्टरों के साथ कुछ पुलिस अधीक्षकों का भी तबादला तय है। इमानदार मुख्य सचिव के आने में कई लोग असहज महसूस कर रहे हैं।
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