Tuesday, June 26, 2012

जल जहरीला हो गया पी-पीकर तेजाब
ऐ विकास! तू धन्य है, मांगे कौन जवाब

राष्ट्रपति चुनाव के पहले कांग्रेस नीत गठबंधन यूपीए और भाजपा नीत एनडीए की हालत का नजारा सभी को हो रहा है। यह विडम्बना ही है कि पिछले आम चुनाव में कोई भी राष्ट्रीय दल एक तिहाई मत भी हासिल नहीं कर सका और आगामी आमचुनाव को अधिक समय नहीं बचा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में मतदाताओं द्वारा डाले गये कुल मत का 28.55 प्रतिशत मत कांग्रेस तो 18.80 प्रतिशत मत भाजपा को मिल सका। उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि देश में कुल पंजीकृत मतदाताओं में महत 16.94 प्रतिशत मत लेकर केन्द्र में कांग्रेस की सरकार का राज है तो पंजीकृत मतदाताओं का महत 10.94 प्रतिशत मत ही भाजपा को मिल सका है। भाजपा और कांग्रेस दोनों मिलकर भी पंजीकृत मतदाताओं का 50 प्रतिशत मत प्राप्त नहीं कर सकी है। सत्ता का मद, भ्रष्टाचार और जनता से कटाव से ही इन दलों की नीव खोखली होती जा रही है देश में अनेक राज्य ऐसे है जहां कांग्रेस-भाजपा अपने अस्तित्व बचाने प्रयासरत है। देश में सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी तथा आजादी के बाद से सक्रिय भाजपा की अपनी साख गिरने के कारण ही। क्षेत्रीय दल कुछ राज्यों में लगातार अपनी पकड़ बना रहे है। तमिलनाडु से शुरू हुआ सिलसिला आजकल कई राज्यों में विस्तारित हो चुका है। देश के सबसे बड़े उत्तर-प्रदेश में कांग्रेस तथा भाजपा की हालत इस विधानसभा चुनाव में सामने आ गई है। जबकि कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और पीएम इन वेंटिंग राहुल गांधी यही से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह यही के है। यहां समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है। पश्चिम बंगाल में वर्षों से सक्रिय कम्युनिस्ट पार्टी को धरासायी करके तुणमूल कांग्रेस की सुश्री ममता बेनर्जी ने अपनी सरकार बनाई है तो बिहार में नीतिश कुमार ने दूसरी बार कमान संभाली है। यह बात और है कि भाजपा का उन्हें समर्थन है। कुल मिलाकर क्षेत्रीय दल अब कुछ राज्यों में राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस-भाजपा से भारी पड़ रहे है। उड़ीसा में तो वैसे भी नवीन पटनायक अपना परचम लहरा रहे है। गुजरात में भाजपा के नरेन्द्र मोदी लगातार अपनी सरकार बनाने में सफल रहे हो तो मप्र सहित छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार दूसरी बार बनी है।
छत्तीसगढ़ की हालत
छत्तीसगढ़ में भी आगामी विधानसभा चुनाव अगले साल के अंत तक होना है। यहां लगातार दो बार डा. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन चुकी है और डा. रमन सिंह तीसरी बार सरकार बनाने प्रयास रत है। कांग्रेस यहां आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी खोई प्रतिष्ठा हासिल करने की योजना बना रही है। कभी छत्तीसगढ़ से चुने गये कांग्रेसी विधायकों की संख्या तथा समर्थन से अविभाजित मप्र में कांग्रेस की सरकार बनती थी पर पृथक राज्य बनने के बाद कांग्रेस छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतकर सरकार बनाने में सफल रही।
2000 में छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बना तब अविभाजित मप्र के लिये 1998 में छत्तीसगढ़ से 62 कांग्रेस विधायक चुने गये थे और भाजपा विधायकों की संख्या 22 थी। संख्याबल के आधार पर कांग्रेस के अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने और नेता प्रतिशत बने आदिवासी नेता नंदकुमार साय। 2003 के विधानसभा चुनाव अर्थात छत्तीसगढ़ राज्य के लिये प्रथम विधानसभा चुनाव में भाजपा के विधायकों की संख्या 22 से बढ़कर 50 हो गई और कांग्रेस के विधायकों की संख्या 62 से 37 पहुंच गई। हालांकि भाजपा को 39.3 प्रतिशत मत हासिल हुए तो कांग्रेस को 36.7 प्रतिशत मत यानि 2.6 प्रतिशत अधिक मत प्राप्त करके भाजपा ने अपनी सरकार बना ली और कांग्रेस के मुकाबले 13 अधिक विधायक भी विजयी बनने में सफल रहे। डा.रमन सिंह मुख्यमंत्री बने तो नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी कांग्रेस के महेन्द्र कर्मा ने सम्हाली थी।
5 साल सरकार चलाने के बाद डा. रमन सिंह ने गरीबों को सस्ता चांवल वितरण की योजना शुरू की, आम चर्चा है कि 2008 में भाजपा की सरकार बनाने में चावल योजना कारगर साबित हुई पर चुनाव परिणाम से यह साबित नहीं होता है। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को फिर 50 सीटे ही मिली और एक प्रतिशत ही अधिक मत मिले। यानि 2003 में 39.3 प्रतिशत मत के स्थान पर भाजपा को 40.3 प्रतिशत मत हासिल हुए इसका मतलब है कि चावल वितरण योजना का कोई बना लाभ भाजपा को नहीं मिला। इधर कांग्रेस को 2008 के विस चुनव में 38 सीटे मिली यानि 2003 मुकाबले एक सीट अधिक मिली साथ ही कांग्रेस का मत भी 2 प्रतिशत बढ़ा 2003 में कांग्रेस को 36.7 प्रतिशत मत मिला था तो 2008 में कांग्रेस को 38.6 प्रतिशत मत मिला था तो 2 प्रतिशत अधिक मिला। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मात्र 2.6 प्रतिशत अधिक मत कांग्रेस से प्राप्त कर भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस विपक्ष में है।
वैसे 2008 के विस चुनाव में विधानसभा अध्यक्ष तथा भाजपा प्रत्याशी प्रेम प्रकाश पांडे, संससदीय कार्य एवं पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर, खाद्य मंत्री सत्यानंद राठिया, कृषि मंत्री मेघराम साहू, अजा जजा मंत्री गणेश राम भगत पराजित हो गये तो कांग्रेस के दिग्गज तथा नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू कार्यकारी अध्यक्ष सत्यानारायण शर्मा, उप नेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम की पूत्री की पराजय चर्चा में रही। वैसे यदि कांग्रेस गुटबाजी भाई-भतीजावाद छोड़कर अच्छे प्रत्याशी का चयन करती है तो आगामी विस चुनाव में बेहतर परिणाम ला सकती है इधर भाजपा ने भी मंथन शुरू कर दिया है। अस्पष्ट सूत्रों की माने तो आगामी विधानसभा का चुनाव में कुछेक वर्तमान विधायकों का भी टिकट कट सकता है उसमें 3-4 मंत्री भी शामिल हो सकते हैं। भाजपा के सर्वे में कुछेक के जीतने की संभावना नहीं बताई गई है।
बहरहाल अजा और अजजा के आरक्षण का मुद्रा सरकार के खिलाफ माहौल बना रहा है इसे डा. रमन सिंह मैनेज करने प्रयासरत तो कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने आगे है। औद्योगिकीकरण की आड़ में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी सरकार की परेशानी का कारण बना हुआ है और अब कांग्रेस कुछ भ्रष्टाचार और अनिमितता के मामलों को लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाने भी जा रही है।
और अब बस
0 वित्त आयोग के अध्यक्ष अजय चंद्राकर ने कबीना मंत्री का दर्जा वापस कर दिया है वह दर्जा भी वापस हो गया है। असल में मंत्री के दर्जा से उन्हें कम वेतन मिल रहा था, केवल अध्यक्ष के नाते अधिक वेतन मिलेगा...एक टिप्पणी...अजय की यह हालत है तो वाकी गरीब भाजपा नेताओं की हालत क्या होगी?
0 गृहमंत्री ननकीराम कंवर कहते है कि पुलिस में तबादले कौन करता है उन्हें भी पता नहीं है। उन्हें शायद यह भी पता होगा कि कुछ मंत्री भी अपने विभागीय सचिव से परेशान है पर वे अपनी व्यथा सार्वजनिक नहीं कर रहे है। नगर निगम, स्वस्थ्य, पर्यटन, तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा विभाग इसके उदाहरण है।

Tuesday, June 19, 2012

नदिया सींखे खेत को, तोता कुतरे आम ...
सूरज ठेकेदार सा,  सबको बांटे काम ...

स्वामी विवेकानंद के नाम पर माना विमानतल का नाम तो हो गया पर अपने जीवन के कुछ महीने स्वामी जी ने जिस मकान में गुजारे हैं उस ओर किसी ने रूचि नहीं दिखाई। बूढापारा में वह मकान और वह कमरा अभी भी जस का तस है। स्वामीजी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने प्रदेश सरकार को कोई सकारात्मक पहल करनी ही चाहिए रायपुर शहर ने ही बालक नरेन्द्र दत्त से स्वामी विवेकानंद बनने की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसलिए इस शहर में ही उनकी कालजयी स्मृति को अक्षुण्ण रखने  की दिशा में कुछ न कुछ करने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ की युवा पीढ़ी को शायद यह पता भी नहीं होगा कि स्वामी विवेकानंद ने अपने बचपन के करीब 2 वर्ष रायपुर शहर के बूढापारा स्थित दो मकानों में बिताए थे। जहां उन्होंने अपने माता-पिता के साथ 6 माह का समय बिताया था वह मकान और वह कमरा अभी भी जस का तस है। उस कमरे में अभी भी तालाबंद है और उस मकान के मालिक उसे विवेकानंद स्वामी की यादगार बनाने सहमत भी है पर सरकार का रूख अभी स्पष्ट नहीं है। इधर बाद के करीब डेढ साल जिस मकान में स्वामी विवेकानंद रह चुके है वह मकान तो ढह चुका है। कोई कहता है कि वहां स्कूल बन गया है कोई कहता है कि स्कूल भवन के बगल में वह मकान अभी भी मौजूद है।
सन 1877 में रायपुर के रायबहादुर भूतनाथ डे का वकालत में डंका बजता था। एक बड़े मुकदमे के सिलसिले में उन्हेें एक साथी वकील की जरूरत थी और उन्होंने कोलकाता (कलकत्ता) के सुप्रसिद्ध वकील विश्वनाथ दत्त को रायपुर आकर उस मुकदमें मेें सहयोग करने राजी कर लिया। तब कलकत्ता के उत्तरी भाग में स्थित सिमुलिया में विश्वनाथ जी का पैतृक निवास था। रायपुर आकर विश्वनाथजी को लगा कि मुकदमा अधिक लम्बा चल सकता है इसलिए उन्होंने अपने परिवार को भी रायपुर लाने का फैसला लिया। उन्हें अपने बेटे नरेन्द्र नाथ (बाद में स्वामी विवेकानंद) के स्वास्थ्य के लिए भी रायपुर की जलवायु अनुकूल लगी। तब विश्वनाथ दत्त, अपनी पत्नी भुवनेश्वरी देवी, बेटी जोगनबाला, पुत्र नरेन्द्र नाथ, महेन्द्रनाथ और भूतनाथ डे के परिजन उनकी धर्म पत्नी श्रीमती एलोकेशी डे, और छ माह का बच्चा हरिनाथ डे (जो बाद में दुनिया-देश के सुविख्यात भाषाविद बने) के साथ रेलमार्ग से कलकत्ता से जबलपुर पहुंचे उस समय रायपुर रेलमार्ग से नहीं जुड़ा था। जबलपुर से बैलगाड़ी द्वारा रायपुर पहुंचे। इस तरह कलकता से 15 दिनों की यात्रा के बाद रायपुर दोनों परिवार पहुंचा था। कहा तो यह भी जाता है कि राह में ही प्राकृतिक वातावरण देखकर बालक नरेन्द्रनाथ को पहली भाव समाधी का अनुभव हुआ।
    रायपुर आकर स्वामी विवेकानंद का परिवार कोतवाली में कालीबाड़ी जाने वाले मार्ग पर स्थित डे भवन में करीब 6 माह तक रहे। डे भवन में पहली मंजिल पर दो कमरे है उन्ही कमरों में स्वामीजी बतौर नरेन्द्रनाथ के रूप में रहे। 10 हजार वर्ग फिट में फैला यह डे भवन आज भी मौजूद है और उपरी मंजिल पर वह कमरा जहां स्वामीजी अपने माता-पिता, भाई, बहन के साथ रहते थे। वह जस का तस है। उस कमरे को छेड़ा  भी नहीं गया है। करीब 6 माह इस डे भवन में रहने के बाद स्वामीजी का परिवार बूढ़ापारा के भीतर मणिभूषण सेन का स्वतंत्र मकान किराए पर ले लिया था वहां एक बड़ा कुआं भी था। बूढ़ापारा स्थित नगर निगम की कन्याशाला के आस-पास  यह मकान था। बाद में यह मकान ढहाकर नया मकान बन गया है ऐसा कहा जाता है करीब डेढ़ साल उस मकान में रहने के बाद स्वामीजी का परिवार वापस कलकत्ता चला गया।
वैसे जहां स्वामी विवेकानंद अपने परिवारजनों के साथ 6 माह रह चुके है वह भवन और कमरा अभी भी सुरक्षित है। तत्कालीन मप्र शासन के समय भी स्वामीजी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने की पहल हुई थी। इस मकान के मालिक एआर बोस तथा आभा बोस (भूतनाथ डे की पोती) ने कहा था कि उनके पिता तथा प्रसिद्ध भाषाविद हरिनाथ डे के नाम पर एक एकेडमी शासन संचालित करे, डे की एक मूर्ति की स्थापना पं.रविशंकर विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित करे तथा उन्हें इस डे भवन की जगह कहीं रहने एक मकान भी उपलब्ध कराया जाए। पर तब भोपाल में मुख्यालय था तो नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई रूचि नहीं दिखाई थी हालांकि आभा डे जो शर्त रखी थी वह कोई बड़ी शर्त नहीं थी। बहारहाल स्वामी विवेकानंद का रायपुर में स्मृति को अक्षुण्या बनाए रखने यहां विवेकानंद आश्रम की काफी पूर्व में स्थापना की गई है। बूढापारा स्थित तालाब को स्वामी जी की विशालकाय प्रतिमा की स्थापना की गई है वहीं डा.रमन सिंह के सद प्रयास से ही माना विमानतल का नाम स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखा गया है। कितना अच्छा होता यदि डे भवन को सरकार वर्तमान मालिको से चर्चा करके अधिग्रहित कर स्वामीजी के बिताए गए 6 माह की स्मृति को बनाए रखने कोई ठोस पहल करती। स्वामीजी की 150वीं जयंती के इस समय राज्य सरकार एक बड़ा कदम उठाकर स्वामीजी की स्मृति को बनाए रखकर भावी पीढ़ी को एक धरोहर सौंप सकती है।
टाइटैनिक और छग
विश्व में उस समय का सबसे बड़ा जहाज टाइटैनिक जब डूबा तो उसमें छत्तीसगढ़ से जानेवाली एक महिला की भी जल समाधि हो गई थी यह बात और है कि डूबते जहाज से निकालने एक नाव पहुंची थी पर उस महिला ने स्वयं का जीवन बचाने के जगह एक दूधमुहे बच्चे और उसकी मां को बचाना ही मुनासिब समझा और जल समाधी लेना बेहतर समझा।
 टाइटैनिक जहाज के डूबने की जानकारी सभी को है। इस पर फिल्में भी बन चुकी है पर यह शायद काफी कम लोगों को पता होगा कि टाइटैनिक जहाज में सवार 1500 लोगों में एक महिला ऐसी भी जो छत्तीसगढ़ के चांपा-जांजगीर से अपनी बीमार मां को देखने अमरीका जा रही थी। छत्तीसगढ़ में चांपा-जांजगीर में मोनोलाईट मिशनरी का भवन उस महिला का आज भी गवाह है। उस महिला ने न केवल सामाजिक कार्यों में रूचि दिखाई, स्कूल खोला बल्कि गरीब लड़कियों की शिक्षा पर भी उस समय जोर दिया जब महिला शिक्षा केा महत्व नहीं मिलता था।
1906 में मोनोलाइट मिशनरी में काम करने एन्नी क्लेमर नामक एक युवा लड़की आई थी। वह कहां से आई थी यह तो पता नहीं चला है पर उसके पालक अमरीका मेें रहते थे उसकी पुष्टि हो चुकी है। चांपा-जांजगीर में मिशनरी के माध्यम से उसने काफी सेवा भी की। उसे अपनी मां के बीमार होने का समाचार मिला तो वह वापस आने  की अनुमति लेकर अमरीका रवाना हुई थी। वह छग से मुंबई पहुंची । संभवत: रेल से मुंबई पहुंची होगी। मुंबई से उस समय पानी जहाज से इंग्लैंड रवाना हुई थी। ब्रिटेन से उस अमरीका जाने के लिए एस.एस. हेवाफोर्ड में सवार होना था पर कोयला मजदूरों की हड़ताल से विमानसेवा प्रभावित हुई थी तब एन्नी को अमेरिका पहुंचने टाइटैनिक में अपना टिकट बुक कराना पड़ा था। टाइटैनिक सवार होकर वह अमेरिका जा रही थी पर जहाज डूबने लगा। कहा जाता है कि टाइटैनिक में सवार कई लेाग बचाए भी गए थे एक बचाव नाव जब वहां पहुंची तो जगह के अभाव में एन्नी ने एक दूधमुहे बच्चे और उसकी मां का जीवन बचाना बेहतर समझा और उन्हें नाव पर सवार कराकर स्वयं की जान देना ही उचित समझा। पता चला है कि एननी क्लेमर के जीवन पर अमेरिका में एक वृत्तचित्र भी तैयार किया गया है। उसका प्रदर्शन भी अमेरिका के पेनीसिल्वेनिया स्थित उनके पैतृक शहर में किया गया है।
बस्तर से मुख्य सचिव तक
आदिवासी अंचल बस्तर में आरसीबी नरोन्हा 49 से 52 तक सबसे अधिक समय तक कलेक्टर रहे बाद में वे अविभाजित मप्र के मुख्य सचिव बने।
आर परशुराम 86 से 88 तक बस्तर में कलेक्टर रहे और वर्तमान में वे मुख्य सचिव मप्र है। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव सुनील कुमार ने भी बीजापुर में बतौर एमडीएम के रूप में सेवा दी और वे उस समय 10 दिन का समय अबूझमाड़ को बूझने गऐ थे।
और अब बस...
* काफी पहले बस्तर की बैलाडिला खदान को हैदरबाद में मिलाने का प्रयास किया गया, वहीं समूचे बस्तर को उड़ीसा राज्य में शामिल कराने भी बड़ा प्रयास हो चुका है।
* बस्तर 1853 में अंग्रेजों के अधीन हो गया। डिप्टी कमिश्नर मेजर चार्ल्स इलियट पहला यूरोपियन शासन बने। 1882 तक अपर गोदाबरी के डिप्टी कमिश्नर के अधीन रहा जिसका मुख्यालय सिरोंचा (महाराष्ट्र) था। बस्तर कुछ समय के लिए कालाहाण्डी के भवानी पटना के सुप्रींटेडेंट के अधीन भी रहा।
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी है भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर संभल सको तो चलो


कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर भावी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल राहुल गांधी तक ने कांग्रेस की गुटबाजी पर सवाल उठाये है, गुटबाजी दूर करके एकजुट होने की अपील की है पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस की हालत जस की तस है। दिल्ली में सोनिया गांधी की गुटबाजी समाप्त करने की अपील के बाद ही रायपुर के कांग्रेस भवन में कांग्रेस के बुजुर्ग नेता विद्याचरण शुक्ल ने प्रदेश में सक्षम आदिवासी नेता नहीं होने की बात करके एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। अब यह भी तो सवाल उठ रहा है कि प्रदेश में ब्राह्मण नेता भी तो एक भी नहीं है जिसका जनाधार है। छत्तीसगढ़ में हालांकि नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, विधायक अमितेष शुक्ला विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते है पर उनके साथ कितना जनाधार है यह किसी से छिपा नहीं है।
हाल ही में राहुल गांधी ने राजधानी प्रवास पर वरिष्ठ कांग्रेसियों को गुटबाजी छोड़ने की हिदायत दी। राहुल छत्तीसगढ़ कांग्रेस की गुटबाजी से खफा है। छग में कौन वरिष्ठ नेता है इस पर कांग्रेस के नेता का कहना है कि प्रदेश में 7 वरिष्ठ नेता है। पूर्व मुख्यमंत्री तथा विधायक अजीत जोगी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा, केन्द्र में राज्य मंत्री डा. चरण दास महंत, राज्यसभा सदस्य मोहसिना किदवई, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम तथा पूर्व सांसद परसराम भारद्वाज सतनामी समाज का प्रतिनिधित्व करते है ऐसा माना जाता है। अरविंद नेताम आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वैसे कांग्रेस के सूबे तो 7 भागो में बटे है पर प्रदेश की राजनीति अजीत जोगी के इर्दगिर्द ही घूमती है। केन्द्रीय राज्य मंत्री बनने के बाद डा. चरणदास का भी एक गुट बनना शुरू हो गया है। विद्याचरण शुक्ल महासमुंद की अपनी परंपरागत लोस क्षेत्र महासमुंद से अजीत जोगी से हार चुके है तो अरविन्द नेताम स्वंय पराजित हो चुके है तो उनकी पुत्री पिछला विस चुनाव हार चुकी है। राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा तो पिछले 3 विस चुनाव में अपने पुत्र अरूण को ही नहीं जितवा सके हैं। परसराम भारद्वाज की हालत यह है कि उनका पुत्र भी विधानसभा चुनाव हार चुका है। छत्तीसगढ़ के एक मात्र सांसद डा. चरणदास महंत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला को पराजित किया है पर उनक गृह क्षेत्र चांपा की विधानसभा सीट भाजपा की झोली में चली गई थी। जहां तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और रविन्द्र चौबे की हालत है तो उन्हें अभी भी प्रदेश स्तर का नेता स्वीकार नहीं किया गया है। रविन्द्र चौबे की लो प्रोफाईल राजनीति और नंदकुमार पटेल की बयानबाजी कांग्रेस को भारी ही पड़ रही है।
वैसे 2003 और 2008 के विस चुनाव में टिकट वितरण के बाद भाजपा की सरकार बनी पर कांग्रेस के कई दिग्गज तथा दिग्गजों के रिश्तेदार चुनाव हार गये यह ठीक है कि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के मुकाबले छत्तीसगढ़ कांग्रेस के चुनाव परिणाम बेहतर रहे पर सरकार बनाने में कांग्रेस सफल नहीं हो सकी। बस्तर में जहां विपक्षी दल को उम्मीदवार नहीं मिलते थे वहां कांग्रेस की स्थिति सोचनीय ही रही। खैर 2013 के विस चुनावों में अजीत जोगी के साथ डा. चरणदास महंत की भी निश्चित ही चलेगी। मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल, रविन्द्र चौबे भी अपनी चलाने का प्रयास करेंगे। सवाल यह उठ रहा है कि 2003, 2008 के चुनाव परिणामों से कांग्रेस कुछ सबक लेगी या नहीं यही देखा जाना है।
भाजपा की हालत
भारतीय जनता पार्टी की हालत भी कुछ ठीक है ऐसा दावा तो भाजपा के नेता भी नहीं कर रहे है। कांग्रेस की तरह भाजपा की गुटबाजी भी चर्चा में है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह सबसे शक्तिशाली नेता है। विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा में प्रत्याशी चयन से लेकर उन्हें विजयी बनाने तक डा. रमन सिंह की भरपूर चली है। प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका फिलहाल रबर स्टेम्प की ही रही है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष ताराचंद साहू पार्टी से बाहर है तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार साय, शिव प्रताप सिंह, विष्णु देव साय हाशिये पर है। प्रदेश के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस से लेकर दीलिप सिंह जूदेव पूर्व सांसद, करूणा शुक्ला की उपेक्षा किसी से छिपी नहीं है। समय समय पर इन नेताओं की बयानबाजी असंतोष उभारती है। हाल ही में जिस तरह आरक्षण के नाम पर प्रदेश में आदिवासियों और सतनामियों के बीच की राजनीति चली उससे आदिवासियों सहित सतनामी समाज आक्रोशित है। हाल ही में सतनामियों को सेट करने उन्हीं के समाज के भूषण जांगड़े को राज्यसभा भेजा गया तथा समाज के गुरु विजय कुमार को लालबत्ती दी गई पर सतनामी समाज के बीच इनका कितना जनाधार है यह किसी से छिपा नहीं है। विजय कुमार तो स्वयं आरंग से विस चुनाव हार चुके है और उनका पुत्र रूद्र गुरू वर्तमान में कांग्रेस से विधायक है। जहां तक भाजपा सरकार में गुटबाजी का सवाल है तो वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत तथा रामविचार नेताम के बीच का तनाव किसी से छिपा नहीं है। विरोध का मामला कई बार सार्वजनिक भी हो चुका है। कमल विहार योजना में यह मतभेद खुलकर सामने आ चुका है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और वरिष्ठ मंत्री ननकीराम कंवर के बीच का तनाव कई बार सामने आ चुका है। गृहमंत्री होने के बाद भी गृह विभाग की कमान मुख्यमंत्री के करीबी लोगों द्वारा ही सम्हालने से ननकीराम काफी आहत हैं। मंत्रिमंडल के कुछके मंत्री उनके विभागों में सीधे सीएमओ के दखल से भी परेशान है। कहा जा रहा है कि हाल ही में अजजा और अजा के आरक्षण का प्रतिशत घटाने बढ़ाने को लेकर भी मंत्रिमंडल के सदस्यों को विश्वास में नहीं लिया गया है इसको लेकर भी कुछ नाराजगी है।
यह बात और है कि कांग्रेस के बड़े नेता मुंहफट है और कही भी टिप्पणी कर देते है पर भाजपा के नेता खुलकर टिप्पणी करने से जरूर बचते है पर असंतोष कभी कभी मुखर हो जाता है। सांसद दीलिप सिंह जूदेव द्वारा प्रशासनिक आतंकवाद का आरोप सरकार पर मढ़ा जा चुका है, रमेश बैस भी अपनी उपेक्षा की पीड़ा कभी -कभी सार्वजनिक कर ही देते है तो वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय आदिवासी एक्सप्रेस पहले चला चुके है आजकल आदिवासी राष्ट्रपति की मुहिम में लगे है। हाल ही में नेता प्रतिपक्ष (लोकसभा) सुषमा स्वराज से भी करूणा शुक्ला ने अकेले में बातचीत कर अपनी पीड़ा का बखाना कर चुकी है।
बसपा, माकपा, अन्य
छत्तीसगढ़ में कुछ क्षेत्रों में बसपा की अच्छी पकड़ है। वैसे तो अभी विधासनभा में बसपा का एक निर्वाचित विधायक है पर बिलासपुर,जांजगीर, रायगढ़ पट्टी में बसपा का अच्छा जनाधार है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। मप्र और छत्तीसगढ़ एक राज्य होने पर 1998 के विधानसभा चुनावों में सीपत, पामगढ़ से बसपा का विधायक चुना गया था तो 1990, 93 तथा 98 में बसपा के दाऊराम रत्नाकर लगातार पामगढ़ विधानसभा से विजयी होते रहे है। वहीं मालखरौदा में 1993 में बसपा प्रत्याशी करीब 2 हजार मतो से पराजित हुआ था। वही तानाखार विधानसभा 90,93 के चुनाव में गोडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर था इधर तो 96 के उपचुनाव तथा 98 के चुनाव में अपनी जीत दर्ज कर चुका है। बस्तरम ें भाकपा का अच्छा जनाधार है इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। कोटा में 85 विस चुनाव में भाकपा दूसरे नंबर पर रही तो 90,93 में भाकपा का विधायक बना, 98 के चुनाव में भी भाकपा दूसरे नंबर पर रही इधर 98 के विस चुनाव में मारो से भी एक निर्दलीय डेरहू प्रसाद धृतलहरे विजयी हो चुके है फिलहाल वे छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच में है। 90 के विस चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के जनकलाल ठाकुर दूसरे नंबर पर रहे थे 93 में विधायक बने और 98 में पुन: दूसरे स्थान पर रहे। इधर 90-93 में भाजपा से विधायक और 91,96, 98 तथा 99 में दुर्ग से ही सांसद बने ताराचंद साहू भाजपा से अलग होकर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के बेनर तले चुनाव लड़ा रहे है यह बात और है कि उनके मंच का अभी तक विधानसभा में खाता नहीं खुला है। बहरहाल कांग्रेस और भाजपा के असंतोष, टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर मैदान में उतरने वाले कुछ नेता तथा अन्य लोग यदि 2013 के चुनाव में मजबूत होकर उभरते है तो सरकार विस पार्टी की बनेगी यह तय करने की स्थिति में भी हो सकते हैं. वैसे आदिवासियों, सतनामियों के असंतोष का लाभ जो ले सकेगा वही सफल होगा।
और अब बस
0 पापा मैं ठेकेदारी करूंगा।
पापा...तू क्या खाकर ठेकेदारी करेगा?
बेटा, ठेकेदारी खाकर नहीं,
खिलाकर की जाती है।
0 राजधानी के कुछ क्षेत्रों में कई वर्षों से चर्चित नड्डा आजकल भाजपा सरकार और नेताओं के बीच प्रभावशाली हो गया है।

Monday, June 4, 2012

लोग बैठे है अंधेरे
को लपेटे देखिये
क्या पता सूरज अभी तक है कहां ठहरा हुआ

पेट्रोल की कीमत बढऩे से भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकार के युवा कार्यकर्ता काफी नाराज हैं। भाजपा की यूथविंग के कार्यकर्ता 7 रूपये 50 पैसे प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत बढ़ाने को लेकर कांग्रेस भवन में उग्र प्रदर्शन किया। संभवत: यह पहला मामला है जब किसी पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं ने विपक्षी पार्टी के दफ्तर के आसपास प्रदर्शन किया है। भाजयुमो के कार्यकर्ताओं ने ऐतिहासिक कांग्रेस भवन के पास अपनी ही बाईक पर पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी, पुलिस ने पानी की बौछार से बाईक में लगाई गई आग बुझाई तो युवाओं ने फिर आग लगा थी। इस बात को लेकर युवा कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच भी झूमाझटकी हुई। करीब घंटे भर के प्रदर्शन के बाद भाजयुमो और भाजपा के नेता वापस चले गये पर जिस तरह भाजपा के प्रदेश सरकार के युवा कर्णहारो ने पुलिस से धक्का मुक्की की, बेरीकेट्स तोड़ डाले और पुलिस कुछ करने की स्थिति में नहीं थी। वह चर्चा में है।
कांग्रेस समर्थित केन्द्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी, प्रदर्शन करने वाले भाजयुमो के नेताओं ने ेएक तरह से खुलकर प्रदर्शन किया अपनी ताकत का प्रदर्शन किया और पुलिस की असहाय छवि के भी दर्शन हुए सवाल यह है कि केन्द्र सरकार ने साढ़े सात रूपये प्रति लीटर पेट्रोल के दाम बढ़ाये, किन कारणों से बढ़ाना जरूरी समझा गया, कांग्रेस की केन्द्र सरकार में शामिल दल भी इस वृद्धि का विरोध कर रहे है यह सही है कि देश में यूपीए की सरकार बनने के बाद पेट्रोल, डीजल, खाना पकाने का गैस में वृद्धि होती रही है और इससे मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोगों को काफी तकलीफ हो रही है पर भाजयुमो के नेता प्रदेश सरकार को भी तो कर कम करने दबाव बना सकते थे। गोवा, झारखंड तथा दिल्ली में राज्य सरकारें अपना कर माफ कर प्रदेश के नागरिकों को राहत दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार पेट्रोल डीजल पर 25 प्रतिशत वैट लेती है यानि यदि 75.28 पैसे पेट्रोल प्रति लीटर उपभोक्ताओं को मिलता है तो उसका 25 प्रतिशत यानि 18.82 पैसा राज्य सरकार की जेब में जाता है। वैसे इसी तरह डीजल 51.04 पैसा लीटर है तो 12.21 पैसे सरकार वैट लेती है।
भाजयुमो के प्रदर्शनकारी यह शायद ही जानते होंगे कि छत्तीसगढ़ राज्य सरकार को पेट्रोल-डीजल से की राज्य में बिक्री से जितनी आय होती है उतनी आय शराब बिक्री से भी नहीं होती है इसलिये राज्य सरकार अपना कर कम करेगी ऐसा लगता तो नहीं है।
कहां थे भाजयुमो कार्यकर्ता
छत्तीसगढ़ राज्य का गठन होने के समय यहां पानी की अधिकता, धरती के भीतर मौजूद खनिज जंगलों की बहुतायत के कारण ही छत्तीसगढ़ राज्य को कर मुक्त करने का भी सपना दिखाया गया था। पानी कोयला, हीरा, लोहा, सोना एलेक्जेण्डर, यूरेनियम सभी तो छग में उपलब्ध है फिर भी हाल ही में शहरी निवासियों के लिये पानी का कर बढ़ाया गया। राज्य सरकार के आदेश पर निगम प्रशासन ने कर बढ़ाया यानि पानी की बहुतायत वाले क्षेत्र में राजधानी के निवासी महंगा पानी पीने को मजबूर है। निगम प्रशासन राज्य सरकार पर और राज्य सरकार निगम प्रशासन पर पानी की कीमत बढ़ाने का आरोप मठ रहा है तब भाजयुमो कार्यकर्ता कहां थे, पानी तो सभी पीते ही है, पेट्रोल का उपयोग तो कई लोग नहीं भी करते होंगे।
छत्तीसगढ़ की बिजली दूसरे राज्यों में बेची जाती है उससे आय भी होती है। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना था तो बिजली के मामले में छत्तीसगढ़ को सरप्लस राज्य कहा जाता था। पर सरप्लस राज्य में यहां के निवासियों को महंगी बिजली खरीदने मजबूर, होना पड़ा है। हाल ही में बिजली की दरों में वृद्धि हुई है। कहा जा रहा है कि बिजली उत्पादन वितरण कंपनियों जो सरकार ने बनाई है उसको घाटे से मुक्त कराने बिजली की कीमत बढ़ाना जरूरी है। गरीब से लेकर अमीर तक, गृह उद्योग से लेकर सार्वजनिक उद्योग के क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति की दरों में वृद्भि की गई है। सरकार का कहना है कि करना जरूरी था क्यों? जब राज्य सरकार द्वारा अपने संसाधनों से विद्युत उत्पादन करती है तो विद्युत दर बढ़ाने की क्या मजबूरी थी जबकि पेट्रोल-डीजल के लिए तो भारत को खाड़ी देशों पर निर्भर होना पड़ता है। खैर बिजली और पानी की दर में वृद्धि की गई तब भाजयुमो के नेता और कार्यकर्ता कहां थे। बहरहाल राजनीति करना तो ठीक है पर सही और गलत को एक ही पलड़े में रखकर राजनीति करना भी तो सही नहीं कहा जा सकता है।
बेचारे कंवर...
छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकीराम कंवर सीधे सादे आदिवासी नेता है। अपनी बात वे सीधे सीधे कहने से विश्वास रखते है और इसीलिये मिडिया कर्मी उनसे कुछ न कुछ बुलवाने में सफल हो जाते हैं। हाल ही में घूर नक्सली प्रभावित सुकमा में उन्होने रात गुजारी। वहां के कलेक्टर एलेक्स पॉल के नक्सलियों द्वारा अपहरण के बाद वे पहले राजनीतिज्ञ है जो रात में वही रहे। खैर बाद में पत्रकारों से उन्होंने कह ही दिया कि उन्हें फ्रीहेण्ड दिया जाए तो वे एक घंटे के भीतर सब ठीक कर लेंगे। उन्हें फ्री हेण्ड कौन नही दे रहा है यह किसी से छिपा नहीं है। उनसे जब किसी पत्रकार ने सवाल किया कि कोण्डागांव में मंत्री लता उसेण्डी के निवास पर हमले के बाद वहां के पुलिस कप्तान को हटा दिया गया तो गृहमंत्री ने कहा कि वहां के एसपी को हटाने की लिखित जानकारी उनसे पास नहीं है।
लगता है कि गृहमंत्री ननकी राम कंवर को सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पॉल के अपहरण और रिहाई के लिये चल रही गतिविधियों से अलग रखा गया था तभी तो कलेक्टर की रिहाई के लिये मध्यस्थ की भूमिका निभाने वालों को गृहमंत्री ने न केवल दलाल कहा बल्कि उन्हें नक्सलियों का सहयोगी, साथी कहने से भी गुरेज नहीं किया। बहरहाल देश के पहले गृहमंत्री ननकीराम कंवर ही होंगे जिनका आदेश गृहमंत्रालय के अफसर ही नहीं मानते हैं।
कांग्रेस से नई कपोल फूटी
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पिता-पुत्र भाई-भाई, पति-पत्नी राजनीति में है। सतनामी समाज के गुरूगद्दीनसीन विजय गुरु भाजपा में है तो बेटा रूद्रगुरू कांग्रेस का विधायक है। गुरूमुख सिंह कांग्रेस के विधायक है तो भाई दिलिप सिंह होरा भाजपा में है तथा अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं। इसके अलावा अजीत जोगी, सत्यनारायण शर्मा, गुरुमुख सिंह होरा, राधेश्याम शर्मा के बेटे भी सक्रिय राजनीति में है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में हाल ही में एक पदाधिकारी के पुत्र ने भी राजनीति में पर्दापण किया है। उस नेता के बंगले में बैठकर वह भी राजनीति करने लगे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है उसका कद इतना बढ़ चुका है कि उसकी मर्जी के बिना पापा से अब मुलाकात भी संभव नहीं है। बहरहाल कांग्रेस की यह कपोल कुछ कांग्रेसियों की ही नाराजगी का कारण बनी हुई है।
और अब बस
द्य वित्त आयोग का कार्यकाल 6 माह बढ़ाया जा सकता है। गुरु सदस्य और चेला अध्यक्ष होने के बावजूद रिपोर्ट बनना शुरू हो गई है यह उपलब्धि ही है।
द्य लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा पूर्व डीजीपी अशोक दरबारी के विरूद्ध शिकायत की जांच 5 दिनों के भीतर कर उन्हें आरोपी ठहरा दिया गया था। आयोग के दो सदस्यों के खिलाफ शिकायतों की जांच में 5 साल लग गये और मामला ही खत्म करने की तैयारी है।