91-92 का मामला और अब लोक आयोग में मामला दर्ज
रायपुर । सेंट्रल जेल में सन 1991 से 92 तक कर्मचारियों से की गई करीब 25-30 लाख की वसूली कर उसे जमा नहीं करने में बरती गई। अनियमितता के मामले में छग लोक आयोग में प्रकरण क्रमांक 31/06 दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी गई है। इस प्रकरण में जांच में नौकरशाहों की भूमिका तथा जांच में किस तरह लीपापोती होती रही है उसका काफी लंबा इतिहास सामने आया है। दिलचस्प तो यह है कि जिसके कार्यकाल की जांच होनी ती उसी के अपने हस्ताक्षर से जांच टीम का गठन किया था।सेंट्रल जेल रायपुर के आसपास बने 40 जेल स्टाफ के भवनों को कंडम घोषित करने पर उसकी बिजली काट दी गई थी तब सेंट्रल जेल के अधीक्षक पी.डी. वर्मा थे। तब सभी का कनेक्शन जेल के मुख्य भवन से जोड़कर बिजली आपूर्ति होती रही और उसके एवज में कर्मचारियों से निश्चित रकम ली जाती रही। जबकि जेल का बिल तो सरकारी मद से ही पटाया जाता रहा। बाद में रकम ली जाती रही और उसे जमा नहीं कर आर्थिक अनियमितता का आरोप लगा तो कई अधिकारियों के पास से फाईल गुजरकर लोक आयोग के पास पहुंची और प्रकरण कायम कर जांच प्रारंभ कर दी गई।23 मार्च 2002 को जब जेल महानिदेशक के पद पर अशोक दरबारी पदस्थ थे तब उनके पास बिजली बिलों में अनियमितता की शिकायत पहुंची तो उन्होंने प्रकरण की गंभीरता को देखकर पूरे प्रकरण की जांच सतर्कता विभाग से करवाने की अनुशंसा कर दी। दरअसल टी.के. शोरी जो मुख्यालय में बिल अधिकारी के पद पर है उन्होंने इस प्रकरण पर वित्तीय अनियमितता की टीप लिखी थी कि अवैधानिक विद्युत कनेक्शन पर उपभोक्ताओं (जेल स्टाफ) से राशि वसूली तो की गई पर उसे जमा नहीं कराना भूल ठहराना शासन को भ्रमित करना तथा ऐसे अनुचित कार्य को उचित ठहराने की कोशिश करना है। तत्कालीन जेल अधीक्षक पी.डी. वर्मा ( वर्तमान में डीआईजी) ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं कर व्यवस्थाओं के संबंध में अपने दायित्वों का निर्वहन सतर्कतापूर्वक नहीं करने शासन को हानि पहुंचाई। इसी रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन डीजी जेल अशोक दरबारी ने प्रकरण को गंभीर मानकर इसकी जांच सतर्कता विभाग से कराने की अनुशंसा कर शासन को प्रस्ताव भेजा ता। तब तत्कालीन प्रमुख सचिव (जेल) ए.के. विजयवर्गीय ने भी इस प्रकरण की दंडाधिकारी जांच का आदेश दिया तथा रायपुर जिले के तत्कालीन अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी अशोक अग्रवाल (वर्तमान में कलेक्टर कोरबा) को जांच अधिकारी बनाया था। तत्कालीन एडीएम अशोक अग्रवाल ने अपनी जांच पूरी कर 29 जुलाई 2005 को अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि उचित होगा कि विद्युत देयकों की वसूली के संबंध में शासन स्तर से एक विशेष आडिट दल का गठनकर पूरी जांच कराई जाए जिससे स्पष्ट हो सके कि विद्युत बिलों की वसूली में कितने रुपये का गबन हुआ है। अनियमितता के लिए कौन-कौन दोषी है, उत्तरदायी कौन अफसर/कर्मचारी है अथवा पुलिस महानिदेशक जेल के अभिमत के अनुसार प्रकरण सतर्कता विभाग को सौंपा जा सकता है।जांच रिपोर्ट शासन तक पहुंची तब तक अशोक दरबारी के स्थान पर वासुदेव दुबे डी.जी. जेल बन चुके थे तथा प्रमुख सचिव जेल के पद पर आर.पी. बगई की पदस्थापना हो चुकी थी। दंडाधिकारी जांच की रिपोर्ट के आधार पर बगई साहब ने आदेश किया कि जांच रिपोर्ट तथा डीजी जेल के अभिमत के आधार पर यह उचित होगा कि डीजी जेल के प्रशासकीय नियंत्रण में एक, दो या तीन अधिकारियों का दल बनाया जाए और उन्हें जांच का जिम्मा दिया जाए कि किन-किन अधिकारियों/कर्मचारियों से कितनी वसूली की जानी चाहिए और इसके अतिरिक्त कोई दंड दिया जाना हो तो उसका प्रस्ताव भी दिया जाए। जब यह सरकारी फरमान जेल तक पहुंचा तब तक वासुदेव दुबे जेल डीजी बन चुके थे। उन्होंने तो कमाल ही कर दिया जिस जेल अधीक्षक पीडी वर्मा के कार्यकाल में बिजली बिलों की अनियमितता हुई थी उसी के हस्ताक्षर से एक जांच कमेटी की घोषणा करवा दी। जांच समिति में टी.के. शोरी वित्त अधिकारी, अजय मिश्रा उद्योग अधीक्षक जेल मुख्यालय तथा श्यामराज सिंह तत्कालीन जेल अधीक्षक सेंट्रल जेल रायपुर को शामिल किया गया। इसमें टी.के. शोरी तो वहीं अधिकारी थे जिनकी शिकायत पर ही अनियमितता की जांच शुरू हुई थी वहीं 2 अन्य अधिकारी जेल डीआईजी पीडी वर्मा के अधीन अधिकारी थे। यानी डीआईजी के समय के प्रकरण की जांच उनके मातहत अधिकारियों को करनी थी और जिसके कार्यकाल की जांच होनी थी उसी अफसर ने अपने हस्ताक्षर से जांच टीम की घोषणा की थी।जाहिर है जांच रिपोर्ट आई कि मानवीय कारण से तत्कालीन व्यवस्था में निर्धारित शुल्क वसूल कर समय-समय पर जमा कराने से यह स्पष्ट है कि वसूली को जमा नहीं कराने में बदनियति से गबन नहीं है। वसूली गई राशि समय-समय पर जमा नहीं कराना या बीच में वसूल नहीं किया जाना प्रशासनिक त्रुटि मानी जा सकती है। शिकायत निराधार पाई गई। इसके बाद प्रकरण लोक आयोग को भेजा गया और वहां प्रकरण को प्रथम दृष्टया ही 31/06 क्रमांक में प्रकरण दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी गई है।
Thursday, September 10, 2009
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aisa hee hota hai.narayan narayan
ReplyDeleteBahut Barhia...aapka swagat hai... isi tarah likhte rahiye...
ReplyDeletePlease Visit:-
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ReplyDeletekhoob sari shubh kamnayen
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