ये हमने किसके कहने पर बहाई खून की नदियां
ये हम एक-दूसरे को
क्यों अकेला छोड़ आये हैं...
स्तर की जीरम घाटी में ताजा माओवादी हमले के बाद देश के भीतर चिंतन और विचारों की लहर उफान पर हैं। नक्सली हमले में विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित 31 लोगों की मौत के बाद छत्तीसगढ़ की सरकार की सुरक्षा चूक और राजनीतिक साजिश की चर्चा के बीच कई अनकही और अनसूलझी कहानियां चर्चा में है। एक बात तो तय है कि इस बड़े हमले को राजनीति पार्टियां भुनाने की कोशिश में है। प्रदेश के सत्ताधारी दल द्वारा इस हमले में कांग्रेसियों का ही हाथ होने की बात करते हुए एनआईए को भी लपेटने में भी गुरेज नहीं किया वहीं कांग्रेस स्वयं को बेसहारा होने की बात करते हुए हमदर्दी करने में पीछे नहीं है। पूरे घटनाक्रम के बाद भी पुलिस की तरफ से या शासन की तरफ से अधिकृत बयान नहीं आने के चलते प्रत्यक्षदर्शियों के विरोधाभाषी बयान भी आ रहे है। वैसे महेन्द्र कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे विद्याचरण शुक्ल तथा उदय मुदलियार तो सामूहिक गोलीबारी के अनजाने में ही शिकार बन गये पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेेटे दिनेश पटेल को अलग ले जाकर नक्सलियों ने क्यों हत्या कर दी यह अभी भी अनसूलझा हुआ है। सवाल यह उठ रहा है कि सुकमा जिले से निकली परिवर्तन यात्रा में तो सुरक्षा इंतजाम था पर जगदलपुर जिले में सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम क्यों नहीं थे।
बहरहाल छत्तीसगढ़ सरकार की मद्द से सलवा जुडूम अभियान चलाया गया था। इस अभियान के चलते सलवा जुडूम कैंप की स्थापना हुई, कई गांव खाली हो गये अप्रशिक्षित विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की नियुक्ति की गई और आम आदिवासी नक्सली-एसपीओ तथा सुरक्षाबल के बीच फंस गये थे। इसी के बाद केंद्र सरकार की ओर से आपरेशन ग्रीन हण्ट अभियान भी शुरू किया गया। कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों द्वारा ज्यादती की भी शिकायत मिली वैसे छत्तीसगढ़ के बस्तर का करीब एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद एक तरह से घमासान की चपेट में रहा। सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट तो समाप्त हो चुका है पर अभी भी 'असरÓ बाकी है।
केंद्र सरकार भी लगातार छत्तीसगढ़ सरकार की मांग पर सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ा रही है। आज की स्थिति में केवल बस्तर में ही 15 हजार से अर्धसुरक्षा बल तैनात है पर सुरक्षाबल की मौजूदगी के बाद भी बस्तर का एक आम आदिवासी स्वयं को नक्सलियों से सुरक्षित महसूस कर रहा है? क्या नक्सली हमले कम हुए है? क्या सरकार की विकास नीतियां बस्तर में जोड़ पकड़ पाई है। नक्सलवाद क्या कागजों पर ही लड़ा जाएगा या सिर्फ जवानों को मौत के मुह में धकेल कर लड़ा जाएगा। केवल शहादत पर बयानबाजी करने से काम नहीं चलेगा। सवाल यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला बस्तर की किसी गली -कूचे में नहीं राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे) में हुआ और जहां हमला किया गया वहां से 10 किलोमीटर के दायरे में दो थाने थे फिर भी विद्याचरण शुक्ल जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री गोली लगने के बाद करीब 4 घंटे घटनास्थल पर ही पड़े रहे क्या यह नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई की नियत पर सवाल नहीं खड़ा करता है। बस्तर में टाईगर के नाम से चर्चित स्व. महेन्द्र कर्मा ने नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने प्राण भी निछावर कर दिया। अब उनके परिवार को नक्सली गृहग्राम में नहीं रहने की धमकी दे रहा है और उनके परिवार जन दिल्ली जाकर अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे है।
इधर छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में दरभा घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा से लौट रहे नेताओं पर नक्सली हमले के मामले में 200 नक्सलियों के खिलाफ दरभा थाने में मामला दर्ज किया इसमें गणेश उइके, गुडसा उसेण्डी, रमन्ना, सुमित्रा और पांडू सहित लगभग 60 नक्सली महिला भी शामिल थी।
वैसे खुफिया जांच से पता चला है कि सुकमा की इस हृदय विदारक घटना का मास्टर माईंड सेण्ट्रल कमेटी का मुखिया मुपुला लक्ष्मण राव उफ गणपति ही था। एशिया का सबसे बड़ी गुरिल्ला आर्मी के इसी नेता के मातहत 10 हजार हथियारबंद है जो छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा और विहार तक फैले हजारों किलोमीटर के दायरे में सक्रिय है। 1979 में नक्सलवादी आंदोलन से जुडने वाला गणपति लाल आतंक का सबसे बड़ा चेहरा है।
एसएमएस की चर्चा
बस्तर की जीरम घाटी में परिवर्तन यात्रा पर किये गये नक्सली हमले को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमाने लगी है। कभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और विधायक कवासी लखमा को निशाना बनाया गया था। तो भाजपा की प्रदेश सरकार तथा कुछ अफसरों पर राजनीतिक साजिश का आरोप भी उछला था इसी के बाद एनआईए की जांच में 4 कांग्रेसी नेताओं की संलिप्ता की चर्चा उठी हालांकि एनआईए ने खंडन भी कर दिया। हाल फिलहाल नक्सली हमले का शिकार बने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के पुत्र दिनेश पटेल के एसएमएस से दरभा हमले का रहस्य गरमा गया है। कांग्रेस के एक नेता को 23 मई यानि नक्सली हमले के दो दिन पहले दिनेश पटेल का एसएमएस मिला था जिसके अनुसार प्रदेश कांग्रेस कमेटी 15 जून को डा. रमनसिंह को लेकर एक बड़ा खुलासा करेगी और इसके बाद डा. रमनसिंह का इस्तीफा निश्चित है। वैसे एनआईए को यह एसएमएस फारवड किया जा चूका है और जांच में इसे भी शामिल करने का अनुरोध किया गया है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर वह खुलासा क्या था। कांग्रेस के एक नेता के अनुसार माओवादी से सबसे अधिक क्रूरता महेन्द्र कर्मा और दिनेश पटेल के साथ की थी। कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे पर दिनेश पटेल की हत्या को लेकर लगातार सवाल उठ रहे है। क्या खुलासे और दिनेश पटेल की हत्या के बीच कोई संबंध है। खैर 23 मई के एसएमएस को 15 जून तक कांग्रेस ने खुलासा क्यों नहीं किया यह भी एक बड़ा सवाल है?
सरकार की इच्छा शक्ति
छत्तीसगढ़ की सरकार क्या इमानदारी से नक्सलियों का उन्मूलन करने प्रयासरत है? केवल अर्धसैनिक बलों का जमावड़ा करके ही नक्सलियों से निपटा जा सकता है, छत्तीसगढ़ में केपीएस गिल के नक्सली मामले का सलाहकार बनया जा सकता है पर नक्सल मामलों के जानकार तथा छत्तीसगढ़ कैडर से सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर संतकुमार पासवान से सलाह लेना भी सरकार उचित नहीं समझती है। डीजीपी राम निवास के बाद प्रदेश पुलिस की कमान सम्हालने वाले गिरधारी नायक भी आईजी बस्तर, नक्सल आपरेशन, प्रशिक्षण आदि का काम सम्हाल चुके है पर उन्हें पिछले 2 साल से पुलिस मुख्यालय से बाहर जेल में रखा गया था हालांकि अब वे कार्यवाहक महानिदेशक बन चुके है। सरगुजा में करीब 3 साल तथा बस्तर में दो साल पुलिस महानिरीक्षक का बखूबी काम सम्हालने वाले एडीजी एएन उपाध्याय को 5 सालों से मंत्रालय में ओएसडी बनाकर एक कमरे तक सीमित कर दिया गया है। काफी समय तक खुफिया विभाग सम्हालने वाले तथा गंभीर संजीदा तथा इमानदार अधिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले संजय पिल्ले को आर्थिक अपराध शाखा में पद स्थापना कर पुलिस मुख्यालय से बाहर रखा गया है। वैसे कभी भाजपा की सरकार की नाक कान और आँख समझे जाने वाले डी एम अवस्थी भी पुलिस आवास निगम के प्रमुख बनाकर मुख्य धारा से अलग कर दिये गये है। बस्तर में सुरक्षा चूक के लिये जिम्मेदार मानकर एक आईजी को हटाया गया तो दूसरे ऐसे आईजी की पदस्थापना कर दी गई जिन पर भाजपा के ही एक सांसद ने प्रशासनिक आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया था।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा के आयुक्त सेवानिवृत्त होने वाले है और नक्सली प्रभावित इस क्षेत्र में नये कमिश्नर की तलाश की जा रही है इधर बिलासपुर में आयुक्त पद पर आईएएस के डीपी राव की नियुक्ति की गई है पर वे वहां जाना नहीं चा रहे है और जबलपुर कैट से स्थगन ले चुके है, न्यायालय का मामले होने के चलते लम्बा वक्त लगेगा और सरकार उसे ही आयुक्त बनाने की जिद पकड़ बैठी है। अभी बिलासपुर आयुक्त का पद करीब डेढ माह से रिक्त है। बिलासपुर संभाग में भी नक्सलियों की दस्तक सुनाई दे रही है।
और अब बस
ठ्ठ छत्तीसगढृ के पूर्व गृह सचिव, तथा सेवानिवृत्त आईएएस रार्बर हरंगडोला के खिलाफ जाति छिपाकर जमीन बेचने के मामले में जांच शुरू हो गई है।
ठ्ठ आर्ट आफ लिविंग सीखने वालों को बाद में पता चला कि 'आर्ट आफ घपलाÓ साथ में 'फ्रीÓ सिखाया जाता है।
ये हम एक-दूसरे को
क्यों अकेला छोड़ आये हैं...
स्तर की जीरम घाटी में ताजा माओवादी हमले के बाद देश के भीतर चिंतन और विचारों की लहर उफान पर हैं। नक्सली हमले में विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित 31 लोगों की मौत के बाद छत्तीसगढ़ की सरकार की सुरक्षा चूक और राजनीतिक साजिश की चर्चा के बीच कई अनकही और अनसूलझी कहानियां चर्चा में है। एक बात तो तय है कि इस बड़े हमले को राजनीति पार्टियां भुनाने की कोशिश में है। प्रदेश के सत्ताधारी दल द्वारा इस हमले में कांग्रेसियों का ही हाथ होने की बात करते हुए एनआईए को भी लपेटने में भी गुरेज नहीं किया वहीं कांग्रेस स्वयं को बेसहारा होने की बात करते हुए हमदर्दी करने में पीछे नहीं है। पूरे घटनाक्रम के बाद भी पुलिस की तरफ से या शासन की तरफ से अधिकृत बयान नहीं आने के चलते प्रत्यक्षदर्शियों के विरोधाभाषी बयान भी आ रहे है। वैसे महेन्द्र कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे विद्याचरण शुक्ल तथा उदय मुदलियार तो सामूहिक गोलीबारी के अनजाने में ही शिकार बन गये पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेेटे दिनेश पटेल को अलग ले जाकर नक्सलियों ने क्यों हत्या कर दी यह अभी भी अनसूलझा हुआ है। सवाल यह उठ रहा है कि सुकमा जिले से निकली परिवर्तन यात्रा में तो सुरक्षा इंतजाम था पर जगदलपुर जिले में सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम क्यों नहीं थे।
बहरहाल छत्तीसगढ़ सरकार की मद्द से सलवा जुडूम अभियान चलाया गया था। इस अभियान के चलते सलवा जुडूम कैंप की स्थापना हुई, कई गांव खाली हो गये अप्रशिक्षित विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की नियुक्ति की गई और आम आदिवासी नक्सली-एसपीओ तथा सुरक्षाबल के बीच फंस गये थे। इसी के बाद केंद्र सरकार की ओर से आपरेशन ग्रीन हण्ट अभियान भी शुरू किया गया। कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों द्वारा ज्यादती की भी शिकायत मिली वैसे छत्तीसगढ़ के बस्तर का करीब एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद एक तरह से घमासान की चपेट में रहा। सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट तो समाप्त हो चुका है पर अभी भी 'असरÓ बाकी है।
केंद्र सरकार भी लगातार छत्तीसगढ़ सरकार की मांग पर सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ा रही है। आज की स्थिति में केवल बस्तर में ही 15 हजार से अर्धसुरक्षा बल तैनात है पर सुरक्षाबल की मौजूदगी के बाद भी बस्तर का एक आम आदिवासी स्वयं को नक्सलियों से सुरक्षित महसूस कर रहा है? क्या नक्सली हमले कम हुए है? क्या सरकार की विकास नीतियां बस्तर में जोड़ पकड़ पाई है। नक्सलवाद क्या कागजों पर ही लड़ा जाएगा या सिर्फ जवानों को मौत के मुह में धकेल कर लड़ा जाएगा। केवल शहादत पर बयानबाजी करने से काम नहीं चलेगा। सवाल यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला बस्तर की किसी गली -कूचे में नहीं राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे) में हुआ और जहां हमला किया गया वहां से 10 किलोमीटर के दायरे में दो थाने थे फिर भी विद्याचरण शुक्ल जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री गोली लगने के बाद करीब 4 घंटे घटनास्थल पर ही पड़े रहे क्या यह नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई की नियत पर सवाल नहीं खड़ा करता है। बस्तर में टाईगर के नाम से चर्चित स्व. महेन्द्र कर्मा ने नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने प्राण भी निछावर कर दिया। अब उनके परिवार को नक्सली गृहग्राम में नहीं रहने की धमकी दे रहा है और उनके परिवार जन दिल्ली जाकर अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे है।
इधर छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में दरभा घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा से लौट रहे नेताओं पर नक्सली हमले के मामले में 200 नक्सलियों के खिलाफ दरभा थाने में मामला दर्ज किया इसमें गणेश उइके, गुडसा उसेण्डी, रमन्ना, सुमित्रा और पांडू सहित लगभग 60 नक्सली महिला भी शामिल थी।
वैसे खुफिया जांच से पता चला है कि सुकमा की इस हृदय विदारक घटना का मास्टर माईंड सेण्ट्रल कमेटी का मुखिया मुपुला लक्ष्मण राव उफ गणपति ही था। एशिया का सबसे बड़ी गुरिल्ला आर्मी के इसी नेता के मातहत 10 हजार हथियारबंद है जो छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा और विहार तक फैले हजारों किलोमीटर के दायरे में सक्रिय है। 1979 में नक्सलवादी आंदोलन से जुडने वाला गणपति लाल आतंक का सबसे बड़ा चेहरा है।
एसएमएस की चर्चा
बस्तर की जीरम घाटी में परिवर्तन यात्रा पर किये गये नक्सली हमले को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमाने लगी है। कभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और विधायक कवासी लखमा को निशाना बनाया गया था। तो भाजपा की प्रदेश सरकार तथा कुछ अफसरों पर राजनीतिक साजिश का आरोप भी उछला था इसी के बाद एनआईए की जांच में 4 कांग्रेसी नेताओं की संलिप्ता की चर्चा उठी हालांकि एनआईए ने खंडन भी कर दिया। हाल फिलहाल नक्सली हमले का शिकार बने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के पुत्र दिनेश पटेल के एसएमएस से दरभा हमले का रहस्य गरमा गया है। कांग्रेस के एक नेता को 23 मई यानि नक्सली हमले के दो दिन पहले दिनेश पटेल का एसएमएस मिला था जिसके अनुसार प्रदेश कांग्रेस कमेटी 15 जून को डा. रमनसिंह को लेकर एक बड़ा खुलासा करेगी और इसके बाद डा. रमनसिंह का इस्तीफा निश्चित है। वैसे एनआईए को यह एसएमएस फारवड किया जा चूका है और जांच में इसे भी शामिल करने का अनुरोध किया गया है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर वह खुलासा क्या था। कांग्रेस के एक नेता के अनुसार माओवादी से सबसे अधिक क्रूरता महेन्द्र कर्मा और दिनेश पटेल के साथ की थी। कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे पर दिनेश पटेल की हत्या को लेकर लगातार सवाल उठ रहे है। क्या खुलासे और दिनेश पटेल की हत्या के बीच कोई संबंध है। खैर 23 मई के एसएमएस को 15 जून तक कांग्रेस ने खुलासा क्यों नहीं किया यह भी एक बड़ा सवाल है?
सरकार की इच्छा शक्ति
छत्तीसगढ़ की सरकार क्या इमानदारी से नक्सलियों का उन्मूलन करने प्रयासरत है? केवल अर्धसैनिक बलों का जमावड़ा करके ही नक्सलियों से निपटा जा सकता है, छत्तीसगढ़ में केपीएस गिल के नक्सली मामले का सलाहकार बनया जा सकता है पर नक्सल मामलों के जानकार तथा छत्तीसगढ़ कैडर से सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर संतकुमार पासवान से सलाह लेना भी सरकार उचित नहीं समझती है। डीजीपी राम निवास के बाद प्रदेश पुलिस की कमान सम्हालने वाले गिरधारी नायक भी आईजी बस्तर, नक्सल आपरेशन, प्रशिक्षण आदि का काम सम्हाल चुके है पर उन्हें पिछले 2 साल से पुलिस मुख्यालय से बाहर जेल में रखा गया था हालांकि अब वे कार्यवाहक महानिदेशक बन चुके है। सरगुजा में करीब 3 साल तथा बस्तर में दो साल पुलिस महानिरीक्षक का बखूबी काम सम्हालने वाले एडीजी एएन उपाध्याय को 5 सालों से मंत्रालय में ओएसडी बनाकर एक कमरे तक सीमित कर दिया गया है। काफी समय तक खुफिया विभाग सम्हालने वाले तथा गंभीर संजीदा तथा इमानदार अधिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले संजय पिल्ले को आर्थिक अपराध शाखा में पद स्थापना कर पुलिस मुख्यालय से बाहर रखा गया है। वैसे कभी भाजपा की सरकार की नाक कान और आँख समझे जाने वाले डी एम अवस्थी भी पुलिस आवास निगम के प्रमुख बनाकर मुख्य धारा से अलग कर दिये गये है। बस्तर में सुरक्षा चूक के लिये जिम्मेदार मानकर एक आईजी को हटाया गया तो दूसरे ऐसे आईजी की पदस्थापना कर दी गई जिन पर भाजपा के ही एक सांसद ने प्रशासनिक आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया था।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा के आयुक्त सेवानिवृत्त होने वाले है और नक्सली प्रभावित इस क्षेत्र में नये कमिश्नर की तलाश की जा रही है इधर बिलासपुर में आयुक्त पद पर आईएएस के डीपी राव की नियुक्ति की गई है पर वे वहां जाना नहीं चा रहे है और जबलपुर कैट से स्थगन ले चुके है, न्यायालय का मामले होने के चलते लम्बा वक्त लगेगा और सरकार उसे ही आयुक्त बनाने की जिद पकड़ बैठी है। अभी बिलासपुर आयुक्त का पद करीब डेढ माह से रिक्त है। बिलासपुर संभाग में भी नक्सलियों की दस्तक सुनाई दे रही है।
और अब बस
ठ्ठ छत्तीसगढृ के पूर्व गृह सचिव, तथा सेवानिवृत्त आईएएस रार्बर हरंगडोला के खिलाफ जाति छिपाकर जमीन बेचने के मामले में जांच शुरू हो गई है।
ठ्ठ आर्ट आफ लिविंग सीखने वालों को बाद में पता चला कि 'आर्ट आफ घपलाÓ साथ में 'फ्रीÓ सिखाया जाता है।