Tuesday, June 18, 2013

ये हमने किसके कहने पर बहाई खून की नदियां
ये हम एक-दूसरे को
क्यों अकेला छोड़ आये हैं...

स्तर की जीरम घाटी में ताजा माओवादी हमले के बाद देश के भीतर चिंतन और विचारों की लहर उफान पर हैं। नक्सली हमले में विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित 31 लोगों की मौत के बाद छत्तीसगढ़ की सरकार की सुरक्षा चूक और राजनीतिक साजिश की चर्चा के बीच कई अनकही और अनसूलझी कहानियां चर्चा में है। एक बात तो तय है कि इस बड़े हमले को राजनीति पार्टियां भुनाने की कोशिश में है। प्रदेश के सत्ताधारी दल द्वारा इस हमले में कांग्रेसियों का ही हाथ होने की बात करते हुए एनआईए को भी लपेटने में भी गुरेज नहीं किया वहीं कांग्रेस स्वयं को बेसहारा होने की बात करते हुए हमदर्दी करने में पीछे नहीं है। पूरे घटनाक्रम के बाद भी पुलिस की तरफ से या शासन की तरफ से अधिकृत बयान नहीं आने के चलते प्रत्यक्षदर्शियों के विरोधाभाषी बयान भी आ रहे है। वैसे महेन्द्र कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे विद्याचरण शुक्ल तथा उदय मुदलियार तो सामूहिक गोलीबारी के अनजाने में ही शिकार बन गये पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेेटे दिनेश पटेल को अलग ले जाकर नक्सलियों ने क्यों हत्या कर दी यह अभी भी अनसूलझा हुआ है। सवाल यह उठ रहा है कि सुकमा जिले से निकली परिवर्तन यात्रा में तो सुरक्षा इंतजाम था पर जगदलपुर जिले में सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम क्यों नहीं थे।
बहरहाल छत्तीसगढ़ सरकार की मद्द से सलवा जुडूम अभियान चलाया गया था। इस अभियान के चलते सलवा जुडूम कैंप की स्थापना हुई, कई गांव खाली हो गये अप्रशिक्षित विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की नियुक्ति की गई और आम आदिवासी नक्सली-एसपीओ तथा सुरक्षाबल के बीच फंस गये थे। इसी के बाद केंद्र सरकार की ओर से आपरेशन ग्रीन हण्ट अभियान भी शुरू किया गया। कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों द्वारा ज्यादती की भी शिकायत मिली वैसे छत्तीसगढ़ के बस्तर का करीब एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद एक तरह से घमासान की चपेट में रहा। सलवा जुडूम और आपरेशन ग्रीन हण्ट तो समाप्त हो चुका है पर अभी भी 'असरÓ बाकी है।
केंद्र सरकार भी लगातार छत्तीसगढ़ सरकार की मांग पर सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ा रही है। आज की स्थिति में केवल बस्तर में ही 15 हजार से अर्धसुरक्षा बल तैनात है पर सुरक्षाबल की मौजूदगी के बाद भी बस्तर का एक आम आदिवासी स्वयं को नक्सलियों से सुरक्षित महसूस कर रहा है? क्या नक्सली हमले कम हुए है? क्या सरकार की विकास नीतियां बस्तर में जोड़ पकड़ पाई है। नक्सलवाद क्या कागजों पर ही लड़ा जाएगा या सिर्फ जवानों को मौत के मुह में धकेल कर लड़ा जाएगा। केवल शहादत पर बयानबाजी करने से काम नहीं चलेगा। सवाल यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला बस्तर की किसी गली -कूचे में नहीं राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे) में हुआ और जहां हमला किया गया वहां से 10 किलोमीटर के दायरे में दो थाने थे फिर भी विद्याचरण शुक्ल जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री गोली लगने के बाद करीब 4 घंटे घटनास्थल पर ही पड़े रहे क्या यह नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई की नियत पर सवाल नहीं खड़ा करता है। बस्तर में टाईगर के नाम से चर्चित स्व. महेन्द्र कर्मा ने नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने प्राण भी निछावर कर दिया। अब उनके परिवार को नक्सली गृहग्राम में नहीं रहने की धमकी दे रहा है और उनके परिवार जन दिल्ली जाकर अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे है।
इधर छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में दरभा घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा से लौट रहे नेताओं पर नक्सली हमले के मामले में 200 नक्सलियों के खिलाफ दरभा थाने में मामला दर्ज किया इसमें गणेश उइके, गुडसा उसेण्डी, रमन्ना, सुमित्रा और पांडू सहित लगभग 60 नक्सली महिला भी शामिल थी।
वैसे खुफिया जांच से पता चला है कि सुकमा की इस हृदय विदारक घटना का मास्टर माईंड सेण्ट्रल कमेटी का मुखिया मुपुला लक्ष्मण राव उफ गणपति ही था। एशिया का सबसे बड़ी गुरिल्ला आर्मी के इसी नेता के मातहत 10 हजार हथियारबंद है जो छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा और विहार तक फैले हजारों किलोमीटर के दायरे में सक्रिय है। 1979 में नक्सलवादी आंदोलन से जुडने वाला गणपति लाल आतंक का सबसे बड़ा चेहरा है।
एसएमएस की चर्चा
बस्तर की जीरम घाटी में परिवर्तन यात्रा पर किये गये नक्सली हमले को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमाने लगी है। कभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और विधायक कवासी लखमा को निशाना बनाया गया था। तो भाजपा की प्रदेश सरकार तथा कुछ अफसरों पर राजनीतिक साजिश का आरोप भी उछला था इसी के बाद एनआईए की जांच में 4 कांग्रेसी नेताओं की संलिप्ता की चर्चा उठी हालांकि एनआईए ने खंडन भी कर दिया। हाल फिलहाल नक्सली हमले का शिकार बने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के पुत्र दिनेश पटेल के एसएमएस से दरभा हमले का रहस्य गरमा गया है। कांग्रेस के एक नेता को 23 मई यानि नक्सली हमले के दो दिन पहले दिनेश पटेल का एसएमएस मिला था जिसके अनुसार प्रदेश कांग्रेस कमेटी 15 जून को डा. रमनसिंह को लेकर एक बड़ा खुलासा करेगी और इसके बाद डा. रमनसिंह का इस्तीफा निश्चित है। वैसे एनआईए को यह एसएमएस फारवड किया जा चूका है और जांच में इसे भी शामिल करने का अनुरोध किया गया है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर वह खुलासा क्या था। कांग्रेस के एक नेता के अनुसार माओवादी से सबसे अधिक क्रूरता महेन्द्र कर्मा और दिनेश पटेल के साथ की थी। कर्मा तो नक्सलियों के निशाने पर थे पर दिनेश पटेल की हत्या को लेकर लगातार सवाल उठ रहे है। क्या खुलासे और दिनेश पटेल की हत्या के बीच कोई संबंध है। खैर 23 मई के एसएमएस को 15 जून तक कांग्रेस ने खुलासा क्यों नहीं किया यह भी एक बड़ा सवाल है?
सरकार की इच्छा शक्ति
छत्तीसगढ़ की सरकार क्या इमानदारी से नक्सलियों का उन्मूलन करने प्रयासरत है? केवल अर्धसैनिक बलों का जमावड़ा करके ही नक्सलियों से निपटा जा सकता है, छत्तीसगढ़ में केपीएस गिल के नक्सली मामले का सलाहकार बनया जा सकता है पर नक्सल मामलों के जानकार तथा छत्तीसगढ़ कैडर से सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर संतकुमार पासवान से सलाह लेना भी सरकार उचित नहीं समझती है। डीजीपी राम निवास के बाद प्रदेश पुलिस की कमान सम्हालने वाले गिरधारी नायक भी आईजी बस्तर, नक्सल आपरेशन, प्रशिक्षण आदि का काम सम्हाल चुके है पर उन्हें पिछले 2 साल से पुलिस मुख्यालय से बाहर जेल में रखा गया था हालांकि अब वे कार्यवाहक महानिदेशक बन चुके है। सरगुजा में करीब 3 साल तथा बस्तर में दो साल पुलिस महानिरीक्षक का बखूबी काम सम्हालने वाले एडीजी एएन उपाध्याय को 5 सालों से मंत्रालय में ओएसडी  बनाकर एक कमरे तक सीमित कर दिया गया है। काफी समय तक खुफिया विभाग सम्हालने वाले तथा गंभीर संजीदा तथा इमानदार अधिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले संजय पिल्ले को आर्थिक अपराध शाखा में पद स्थापना कर पुलिस मुख्यालय से बाहर रखा गया है। वैसे कभी भाजपा की सरकार की नाक कान और आँख समझे जाने वाले डी एम अवस्थी भी पुलिस आवास निगम के प्रमुख बनाकर मुख्य धारा से अलग कर दिये गये है। बस्तर में सुरक्षा चूक के लिये जिम्मेदार मानकर एक आईजी को हटाया गया तो दूसरे ऐसे आईजी की पदस्थापना कर दी गई जिन पर भाजपा के ही एक सांसद ने प्रशासनिक आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया था।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा के आयुक्त सेवानिवृत्त होने वाले है और नक्सली प्रभावित इस क्षेत्र में नये कमिश्नर की तलाश की जा रही है इधर बिलासपुर में आयुक्त पद पर आईएएस के डीपी राव की नियुक्ति की गई है पर वे वहां जाना नहीं चा रहे है और जबलपुर कैट से स्थगन ले चुके है, न्यायालय का मामले होने के चलते लम्बा वक्त लगेगा और सरकार उसे ही आयुक्त बनाने की जिद पकड़ बैठी है। अभी बिलासपुर आयुक्त का पद करीब डेढ माह से रिक्त है। बिलासपुर संभाग में भी नक्सलियों की दस्तक सुनाई दे रही है।
और अब बस
ठ्ठ छत्तीसगढृ के पूर्व गृह सचिव, तथा सेवानिवृत्त आईएएस रार्बर हरंगडोला के खिलाफ जाति छिपाकर जमीन बेचने के मामले में जांच शुरू हो गई है।
ठ्ठ आर्ट आफ लिविंग सीखने वालों को बाद में पता चला कि 'आर्ट आफ घपलाÓ साथ में 'फ्रीÓ सिखाया जाता है।

Monday, June 17, 2013

मुहाजिरों यही तारीख है मकानों की
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा

चाल, चरित्र और चेहराÓ के साथ राजनीतिक सुचिता को लेकर चर्चा में रही भारतीय जनता पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाला 84 वर्षीय बुजुर्ग लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के विभिन्न पदों से इस्तीफा देकर यह संकेत तो दे ही दिया है कि भाजपा के भीतर क्या चल रहा है। लगभग 2 वर्षों से गुजरात से निकलकर राष्ट्रीय चेहरा बनने की राह पर निकले नरेन्द्र मोदी को भाजपा की लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाने के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भेजे गये पत्र में 'भाजपाÓ की हालत का ही खुलासा किया है। उन्होंने पत्र में कहा गया है कि पिछले कुछ समय से पार्टी (भाजपा) में जो चल रहा है या जो हो रहा है, वह पार्टी की विचारधारा के विपरीत है। भाजपा अब पहले जैसी विचारधारा वाली पार्टी नहीं रही है। ज्यादातर नेता अपने 'निजी एजेन्डाÓ को पुरा करने में लगे है। इसी पत्र को मेरा इस्तीफा माना जाए।
सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा में यह पीढ़ी का बदलाव है या नई विचारधारा करवट ले रही है। भाजपा में 2 सांसदों से पहली गैर कांग्रेसी सरकार अटल जी के नेतृत्व में बनाने के पीछे अटल-आडवाणी की मेहनत किसी से छिपी नहीं है। जनसंघ से भाजपा के सफर में करीब 60 साल के सार्वजनिक जीवन गुजारने वाले आडवाणी को आखिर इस्तीफा देने क्यों मजबूर होना पड़ा?
गोवा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने समुद्र मंथन करके नरेन्द्र मोदी को निकालकर उन्हें भाजपा लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष घोषित किया बस यही से भाजपा में दरार की शुरूवात हुई। आडवाणी सहित कुछ नेता इसके विरोधी थे। सूत्र कहते है कि इन नेताओं का सुझाव था कि लोकसभा चुनाव प्रचार समिति के लिये अलग अध्यक्ष बनाया जाए वहीं राज्यों के लिये अलग-अलग प्रभारी बनाया जाए पर न जाने क्यों इस राय को महत्व नहीं दिया गया। सवाल यह भी उठ रहा है कि गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में अटल-आडवाणी की फोटो तक से परहेज किया गया बाद में हडबड़ी में कटआऊट लगाये गये। मोदी ने अपने भाषण में आडवाणी के नाम का जिक्र करना भी मुनासिब नहीं समझा? बहरहाल अटल बिहारी वाजपेयी अस्वस्थ है और लौह पुरूष के नाम से चर्चित आडवाणी इस्तीफा दे चुके है जाहिर है कि भाजपा दो फाड़ होने की स्थिति में है। वैसे डेमेज कंट्रोल करने भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता आडवाणी को मनाने में लगे है पर सवाल उठ रहा है कि आडवाणी की उपेक्षा में पीछे राजनाथ-मोदी गुट का हाथ है या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हाथ है या दोनों का हाथ है यह स्पष्ट नहीं हो सका है।
छग : आडवाणी-मोदी
लौह पुरूष लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे तथा नरेन्द्र मोदी के लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने से छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में भी असर से इंकार नहीं किया जा सकता है। छग ही नहीं देश मे 'सिंधी समाजÓ के मतदाता भाजपा से नाराज होंगे यह तय है क्योंकि सिंधी समाज के ही लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी के इस्तीफा दे दिया है तो एक दूसरे बड़े नेता राम जेठमलानी को हाल ही में भाजपा के वर्तमान नेतृत्व ने पार्टी से निस्कासित कर दिया है। छग में सिंधी समाज के मतदाताओं की अच्छी संख्या है। इधर भाजपा में पहले से उपेक्षित चल रहे अल्प संख्यक समुदाय के मतदाता भी नरेन्द्र मोदी को हाल ही में दी गई जिम्मेदारी के बाद कुछ नाखुश है। यदि यह वर्ग एकजूट हो जाएगा तो भाजपा को नुकसान राज्य में भी हो सकता है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा वरिष्ठ सांसद नेता रमेश बैस, राज्यसभा सदस्य नंदकुमार साय, सांसद दिलीप सिंह जूदेव, भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती करूणा शुक्ल आदि आडवाणी समर्थक है। साथ ही भाजपा की वर्तमान प्रदेश सरकार के मुखिया डा.रमनसिंह से इनके मतभेद जाहिर हो चुके है यही नहीं अपनी ही पार्टी की सरकार में अपनी ही उपेक्षा से नाराज चल रहे है। इधर भाजपा सरकार के प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से भी नरेन्द्र मोदी से 'संबंधÓ किसी से छिपे नहीं है। छग के पहले नेता प्रतिपक्ष के चुनाव में पर्यवेक्षक बनकर आये नरेन्द्र मोदी के सामने जो विरोध हुआ था उसी के बाद बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडे, अजय चंद्राकर और देवजी पटेल पर निलंबन की गाज गिरी थी। जाहिर है कि मोदी-आडवाणी एपीसोड से बृजमोहन खेमा भी खुश नहीं होगा। हां एक बात जरूर है कि राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने, मोदी के पार्टी में और मजबूत बनकर उभरने से डा.रमनसिंह खेमा जरूर उत्साहित है। क्योंकि उनको विरोधी खेमा पार्टी में कुछ कमजोर हो रहा है। बहरहाल 'अप एण्ड डाऊनÓ ही का नाम ही तो राजनीति है।
प्रदेश कांग्रेस में क्या!
प्रदेश कांगे्रस में भी क्या चल रहा है यह आम कार्यकर्ता की समझ के बाहर है पर वह महसूस तो कर रहा है कि कुछ न कुछ तो चल रहा ही है। पं. श्यामाचरण शुक्ल की मूर्ति की राजिम में स्थापना के कार्यक्रम में अजीत जोगी को आमंत्रण नहीं मिलने के बावजूद दिग्विजय सिंह के साथ डा. रेणु जोगी, अमित जोगी का विमान से रायपुर आना, अमितेष शुक्ल के घरभोज में भी रेणु-अमित का शामिल होना कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अजीत जोगी के जन्मदिन पर अमितेष शुक्ल द्वारा सागौन बंगले में जाकर जोगी को बधाई देना तथा पिता की मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम में नहीं बुलवाना भी समझ के बाहर है।
हाल ही में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की मौजूदगी में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी प्रतापगढ़, नजफगढ़ आदि का उल्लेख कर बाहरी लोगों से छत्तीसगढ़ का लाभ नहीं होने संबंधी संबोधन और प्रतिउत्तर में दिग्विजय सिंह द्वारा नक्सली हिंसा में शहीद उदय मुदलियार को कर्नाटक का होने की बात करना चर्चा में रहा। रात में अमित जोगी की दिग्विजय सिंह से 'गुप्तगूÓ भी चर्चा में रही। बाद में कार्यकारिणी अध्यक्ष डा. चरणदास महंत का अजीत जोगी के बयान पर सफाई देना कि  यह दिग्विजय सिंह के नहीं 'डा. रमनसिंह आदि के खिलाफ थाÓ यह भी आम कार्यकर्ता को हजम नहीं हो रहा है।
राजनीति के जानकार कहते है कि भीतर ही भीतर कोई 'राजनीतिक खिचड़ीÓ जरूर पक रही है। सूत्र तो कहते है कि दिग्विजय सिंह को किसी ने छत्तीसगढ़ से अगला लोकसभा चुनाव लडऩे की भी सलाह दे दी है हालांकि दिग्गी राजा ने हंसकर टाल दिया है। वैसे दिग्गी राजा की हाल फिलहाल छत्तीसगढ़ में सक्रियता से नये राजनीतिक समीकरण बन रहे है।
नक्सली ङ्क्षहसा औार बस्तर
छत्तीसगढ़ के बस्तर में हाल ही में नक्सली हिंसा से नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित 30 लोगों की मौत हो गई है वहीं विद्याचरण शुक्ल अभी भी दिल्ली में जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं। बस्तर की इस हिंसक नक्सली वारदात से भाजपा सरकार की नीव हिल गई हैं। कांग्रेसियों के प्रति हमदर्दी उभर रही है तो भाजपा की सरकार के प्रति आक्रोश भी उभर रहा है सुरक्षा चूक के लिये वैसे सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और सरकार ने चूक स्वीकार भी कर ली है।
यह तो तय है कि पिछले विस चुनाव की तरह कांग्रेस को इस बार एक सीट से संतोष नहीं करना पड़ेगा कांग्रेसी सीट निश्चित ही बढ़ेगी वहीं तीसरा मोर्चा में एनपीसी कम्युनिस्ट पार्टी, भंजदेव परिवार के लोग भी वहां के परिणाम प्रभावित करने की स्थिति में तो है वही विधानसभा में अपना खाता भी खोल सकते है।
जाहिर है ऐसे में भाजपा को ही नुकसान होगा। इस बार बस्तर चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता बलीराम कश्यम नहीं होंगे तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र से ही अगली सरकार के भाग्य का फैसला होगा यह इस बार भी तय माना जा रहा है। इधर कांग्रेस अपनी परिवर्तन यात्रा 16 जून से बस्तर के उसी स्थान से शुरू करने जा रही है जहां नक्सली वारदात में 30 लोगों की मौत हुई थी। केशलूर से शुरू होने वाली इस परिवर्तन यात्रा में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के आने के संकेत मिल रहे हे तो समापन पर श्रीमती सोनिया गांधी के आने की चर्चा अभी से हैं। दिल्ली की बैठक में परिवर्तन यात्रा शुरू करने पर सहमति भी बन चुकी है।
और अब बस
0 लालकृष्ण आडवाणी की उपेक्षा तो छग में पहले भी दे चुकी है। सिंधी समाज के कार्यक्रम में आडवाणी को छोड़कर पहले भाषण देकर प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता राजनांदगांव चले गये थे।
0 अजीत जोगी कहते है कि भाजपा अब राम (राम जेठमलानी) और कृष्ण (लालकृष्ण आडवाणी) से भी अब दूर हो रही है।

आग से दोस्ती उसकी थी जला घर मेरा

दी गई किसको सजा और खता किसकी थी

बस्तर सदियों से अपनी संस्कृति, सभ्यता के लिये अपनी पहचान पूरी दुनिया में बनाये रखा था। यहां इंद्रावती का जल आज भी इस बात की गवाही देता है कि कितनी सहज प्रवृत्तियों से यह अंचल जी रहा है। राग-द्वेष का नाम यहां नहीं है लोक शब्द और संस्कृति का महत्व अंचल के लिये  सनातन और शाश्वत है। यहां के लोक गीतों, लोक संगीतों और नृत्यों में बस्तर का जनजीवन मुखर हो उठता है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि बस्तर इस धरती पर अपना अनूठापन लिये हुए है। बस्तर ने अगर करवट नहीं बदली तो केवल यही कारण है कि यहां के लोग नितांत सहज और भोले हैं। यहां के लोगों के भोलेपन का एक उदाहरण हमेशा चर्चा का विषय रहता है। किसी आदिवासी को किसी छोटे-मोटे अपराध में पुलिस जवान गिरफ्तार करके रस्सी से बांधकर अपने साथ थाने ले जा रहा था। राह में जंगल में अधिक शराब पीकर वह वेसुध हो गया तब बस्तर का वह आदिवासी उस वेसुध पुलिस वाले को कंधे में डालकर थाने लेकर पहुंच गया और स्वयं को भी थाने के हवाले कर दिया।
बहरहाल सुरम्य और सदाबहार और निस्तब्ध वनों की खुशबू, सरल और सारा जीवन बिताकर अपनी संस्कृति और सभ्यता में रचे बसे संसार में एक खौफनाक जहर नक्सलियों ने घोल दिया है। सदाबहार वनों में अब बारूद की गंध और मानव खून की गंध फैल रही है। कभी ग्रामीणों के 'दादाÓ कहे जाने वाला नक्सलियों ने जन विरोधी कार्य शुरू कर दिया है। सुरक्षा, ग्रामीण तथा राजनेताओं को निशाने पर अब नक्सलियों ने ले लिया है। आईबी के संचालक छत्तीसगढ़ में राज्यपाल बनने के बाद अब आंधप्रदेश में राज्यपाल की जिम्मेदारी सम्हाल रहे नरसिम्हन साहब ने छत्तीसगढ़ की विदाई के समय साक्षात्कार में मुझसे कहा था कि आखिर नक्सली चाहते क्या हैं यही स्पष्ट नहीं है? यह ठीक है कि सलवा जुडूम आपरेशन ग्रीन हण्ट के बाद नक्सली कुछ अधिक हिंसक हो गये है। छत्तीसगढ़ में नक्सली वारदात बढ़ी है पर हाल ही में दरभा घाट में जिस तरह निरपराध लोगों को नक्सलियों ने निशाना बनाया इससे यह तो स्पष्ट  हो ही गया कि अब नक्सलियों की कोई आई दिया ेलाजी ही नहीं रह गई है। वैसे नक्सलियों ने कहा है कि वे तो महेन्द्र कर्मा को ही मारना चाहते थे।
 बयानबाजी और मायने
आदिवासी अंचल बस्तर के दरभा की जीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन को उड़ाने का प्रयास किया, महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, उदय मुदलियार जैसे लोकप्रिय नेताओं सहित करीब 30 लोगों की हत्या कर दी। पर बस्तर से नक्सलवाद के खात्में की जगह अब कांग्रेस-भाजपा की निगाह अगले चुनाव पर है। नक्सली वारदात से लाभ-हानि का आकलन किया जा रहा है। कांग्रेस और प्रदेश की भाजपा सरकार में शामिल लोग जिस तरह की बयानबाजी रक रहे है, जिस स्तर पर बयानबाजी कर रहे है, वह निश्चित ही दूख के इस समय में उचित प्रतीत नहीं हो रही है। सियासत की राजनीति निश्चित ही आमजन को रास नहीं आ रही है। अभी तो मृतक लोगों की तेरहवी भी नहीं हो सकी है। नक्सली हमले में नक्सलियों का हाथ था यह तो तय हो चुका हे पर उसके पीछे कौन था इसको लेकर सियासत शुरू है। कांग्रेस के एक मात्र लोकसभा सदस्य और केंद्र सरकार में मंत्री चरणदास महंत ने आरोप लगाया है कि इस वारदात के पीछे भाजपा और मुख्यमंत्री का हाथ है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तो घटना के समय मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स सार्वजनिक करने की मांग ही कर डाली है।
वैसे भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं है। पड़ोसी राज्य म.प्र. के भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने तो इस नक्सली वारदात में अजीत जोगी का हाथ होने की आशंका ही जाहिर कर दी है। इधर भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुश्री मीनाक्षी लेखी ने एक इलेक्ट्रानिक चैनल में वारदात में आये नक्सलियों द्वारा तेलगू में बातचीत करने पर उन्हें आंध्र्रप्रदेश का होने का हवाला देकर वहां कांग्रेस की सरकार होने की बात करके एक नई चर्चा को जन्म दिया है। इधर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता तथा पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में चर्चा में रहे अजय चंद्राकर ने वारदात के पीछे एक कांग्रेस नेता के होने का शक जाहिर करते हुए बस्तर के एक मात्र कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा के नार्काे टेस्ट की मांग कर डाली है। भाई अजय चंद्राकर पिछले विस चुनाव में पराजय के बाद लगता है कि बहुत कुछ भूल चुके है। राजनांदगांव जिले के मानपुर क्षेत्र में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौब की नक्सलियों ने हत्या की थी तब भी कई तरह की चर्चा शुरू हुई थी। तब शक के दायरे में आने वालों के नार्को टेस्ट की याद नहीं आई थी, दंतेवाड़ा जेल ब्रेक देश का सबसे बड़ा नक्सली जेल ब्रेक था तब तत्कालीन जेलर के नार्को टेस्ट कराने की सलाह भाई अजय ने सरकार को नहीं दी थी। सीआरपीएफ के 76 जवान एक साथ शहीद हो गये थे और सभी आरोपी न्यायालय से रिहा हो गये तब जांच अधिकारी के नार्को टेस्ट की याद नहीं आई। बिलासपुर में पुलिस करतान ने आत्महत्या कर ली या संदिग्ध परिस्थितियों में उकनी मौत हुई तब उनके मृत्युपूर्व लिखे पत्र के आधार पर दोषियों की नार्को टेस्ट कराने की जरूरत उनकी सरकार ने नहीं समझी तब अजय चंद्राकर कहां थे...।
 जान बचाना गलत था क्या!
एक गांव में रहने वाला विधायक कवासी लखमा ने यदि नक्सली हमले के बाद गोड़ी में नक्सलियों से बातचीत की एक  मोटर सायकल में सवार होकर घटनास्थल में अपनी जान बचाने निकल भागे तो क्या वह शक के घेरे में है। उन्हें क्या अपनी जान बचाने की जगह नक्सलियों के सामने निहत्थे खड़े होकर अपनी जान भी दे देना था। हर व्यक्ति को अपनी जान बचाने का अधिकार है। अजीत जोगी को भाजपा के कुछ नेता निशाना बना रहे हैं, उन्हें साजिश में शामिल होने का आरोप मढ़ रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि क्या उनके कहने से क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर जिन्हें चूक के कारण भाजपा की प्रदेश सरकार ने हटा दिया है। श्री अजीत जोगी के आदेश पर सुरक्षा दस्ता तैनात करने में कोताही की थी? यदि ऐसा था तो फिर तो यही कहा जा सकता है कि अघोषित तौर पर सरकार के मुखिया अजीत जोगी ही है। सरकार किस पार्टी की है छत्तीसगढ़ में? जांच का जिम्मा एक आई ए को है, राज्य सरकार भी न्यायिक जांच करा रही है, परिणाम आने के बाद इस वारदात का खुलासा हो सकेगा, इसके पहले बिना सिर पैर की बयानबाजी व्यक्तिगत लांछन लगाना उचित भी नहीं है फिर अभी तो मृतकों की चिताओं के अंगारे भी दहक ही रहे हैं। उनके परिजन अभी भी शोकाकुल है ऐसे में भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य लोगों को अनर्गल बयानबाजी से बचना चाहिए।
गिल और बयान
पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ आपरेशन ब्लूस्टार के हीरो तथा सन 2006 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बतौर सुरक्षा सलाहकार के.पी.एस. गिल ने हाल ही में दरभा की जीरम घाटी में हमले के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पर की गई टिप्पणी चर्चा में है। गिल का कहना है जब उन्होंने छत्तीसगढ़ में बतौर सुरक्षा सलाहकार नक्सली उन्मूलन की योजना बनाई थी तब डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि वेतन लो, मौज करो। उन्होंने एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया कि जब नक्सली क्षेत्र में पदस्थ पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया कि बस्तर में उनके जिले में केवल 5 प्रतिशत क्षेत्र में उनका जोर है 95 प्रतिशत क्षेत्र में नक्सलियों का आदेश चलता है और इसकी लिखित जानकारी उपर भेजी गई तो उपरी लोगों ने उन्हें फटकार लगाई थी। बहरहाल न जाने किस सरकारी अधिकारी या राजनेता की सलाह पर डॉ. रमन सिंह ने केपीएस गिल को सुरक्षा सलाहकार बनाया था। गिल को वैसे फील्ड का विशेष अनुभव नहीं था फिर बस्तर के जंगल और नक्सलियों के गोरिल्ला वार की भी विशेष जानकारी नहीं थी। खैर छत्तीसगढ़ में केपीएस गिल को उस समय मुख्यसचिव ने लगभग बराबर वेतन तथा सुविधाएं मुहैया कराई गई थी।
वैसे गिल के छग आगमन के साथ ही 60 लाख का खर्च हुआ था। करीब 60 हजार मासिक वेतन तया था 16 लाख की बुलेटप्रुफ एम्वेसडर कार खरीदी गई थी, उनकी सुरक्षा के लिये चार वाहन लगाये गये थे, पुलिस आफिसर मेस में उनकी सुरक्षा के लिये एक इंस्पेक्टर, 2 सब इंस्पेक्टर , 8 हथियारबंद जवान तैनात रहते थे वहीं जब से प्रवास पर जाते थे तो एक-पांच आगे तथा एक-पांच सुरक्षा गार्ड पीछे तैनात रहता था। वाहन चालक मिलाकर दो दर्जन स्टाफ साथ रहता था जिसका मासिक खर्च डेढ़ लाख के करीब आता था। केवल दिल्ली आने जाने का उनका हवाई बिल भी लाखों का हो गया था। एक बार जगदलपुर और एक बार सरगुजा जाकर उन्होंने वहां के पर्यटन क्षेत्रों का दौरा किया, कुछ ही बैठकों में वे शामिल हुए और छत्तीसगढ़ के खाते में नक्सली उन्मूलन का रिजल्ट आया शुन्य! अब वे कुछ भी आरोप डॉ. रमन सिंह पर लगाये और जवाब में डॉ. रमन सिंह कुछ भी कहे, छत्तीसगढ़ को आर्थिक क्षति ही पहुंची केपीएस गिल के सुरक्षा सलाहकार बनने से?
और अब बस
ठ्ठ माओवादी विचारधारा से प्रेरित होकर जनता की सेवा में उतरे महेन्द्र कर्मा की उसी विचार धारा से जुड़े कुछ लोगों ने हत्या कर दी।
ठ्ठ भाजपा ने शिवरतन शर्मा, अजय चंद्राकर, सच्चिदानंद उपासने ओर संजय श्रीवास्तव, श्रीचंद सुदरानी को प्रदेश प्रवक्ता बनाया है। सूत्र कहते हैं कि तीनों विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं... क्या प्रवक्ताओं को प्रत्याशी बनाया जाता है...!
ठ्ठ डॉ. चरणदास महंत और रविन्द्र चौबे परिवर्तन यात्रा में शामिल क्यों नहीं हुए... भाजपा का आरोप। वैसे गरियाबंद के पास पटेल के काफिले पर जब पहली बार नक्सली हमला हुआ था तब भी तो रविन्द्र चौबे नहीं गये थे।
कोई खुशियों की चाह में रोया
कोई दुखों की पनाह में रोया
अजीब सिलसिला है ये जिंदगी का
कोई भरोसे के लिये, तो कोई भरोसा करके रोया

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने एक राजनीतिक पार्टी कुछ नेताओं को घेरकर अधाधुंध गोलियां चलकार लहूलुहान कर दिया। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला किसी राजीतिक पार्टी ने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है बस्तर में सलवा जुडूम की शुरूवात करने वाले महेन्द्र कर्मा और नक्सलियों के बीच कुछ वर्षों से —— की लड़ाई चल रही थी। अवसर देखकर नक्सलियों ने उन्हें गोली मारकर छलनी कर दिया पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल से नक्सलियों की क्या दुश्मनी थी यह समझ से परे है। अविभाजित म.प्र. और छत्तीसगढ़ पृथक राज्य में करीब 7-8 साल गृहमंत्री की जिम्मेदारी सम्हाल चुके पटेल तो कभी भी नक्सलियों की हिट लिस्ट में नहीं रहे। गरियाबंद से किसान सम्मेलन से लौटते समय उनके काफिले पर हमला हुआ था। तब नक्सलियों ने घायल लोगों का इलाज भी किया था। फिर यदि हाल-फिलहाल नक्सलियों से कुछ अरावत हुई भी होगी तो उनके बेटे दीपक का हत्या नक्सलियों ने क्यों की। 84 वर्षीय विद्याचरण शुक्ल तो नक्सलवाद पर कम ही टिप्पणी करते थे वे तो वैसे भी कुछ वर्षों से सत्ता से दूर है, वृद्ध नेता को नक्सलियों द्वारा गोली मारना भी समझ के परे है। राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार की भी हत्या का नक्सलियों के पास कोई उद्देश्य रहा होगा ऐसा लगता नहीं है।
नक्सलियों ने पहले परिवर्तन यात्रा को एक ट्रक उड़ाकर रोका फिर एक विस्फोट किया इसके पहले सड़क पर एक पेड़ काटकर रास्ता बंद कर दिया था। पहला वाहन तो विस्फोट का शिकार हो गया पर नक्सलियों ने दूसरे वाहन से सबसे आखरी वाहन जिस पर विद्याचरण शुक्ल सवार थे सभी वाहनों पनर एके 47, जैस अत्याधुनिक हथियार से अधाधुंध फायर किया जाहिर है कि उनका उद्देश्य परिवर्तन यात्रा में शामिल सभी लोगों की हत्या करना था पर कुछ लोगों को तो उन्होंने छोड़ दिया जिसमें विधायक कवासी लखमा प्रमुख है। 9 साल से सत्ता से दूर कांग्रेसियों से आखिर नक्सली नाराज क्यों थे?
वैसे इतनी अधिक संध्या में नक्सलियों के जमावड़े की सूचना भी गुप्तचर शाखा को नहीं मिलना भी कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है। पूर्व कें्रदीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल को 3 गोली लगने के बाद भी करीब 3-4 घंटे तक पुलिस प्रशासन का नहीं पहुंचना, 108 एंबुलेंस का काफी देर से पहुंचना, घटना स्थल से ही आधे किलोमीटर दूर नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र की लाश पड़ी होने की सूचना मीडिया कर्मी की खबर के बाद प्रशासन का सक्रिय होना भी गंभीर मामला है। वैस सूत्र रहते है सरकार की विकास यात्रा जब बस्तर में निकली तो करीब 4 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात थे पर जब कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकली तो वहां सुरक्षा बल का अता-पता नहीं था। केवल नेताओं के सुरक्षा कर्मियों ने ही नक्सलियों का मुकाबला किया और गोली खत्म होने के कारण खुद शहीद हो गये और अपने नेताओं की सुरक्षा करने में भी असमर्थ रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के गनमैन, नंदकुमार पटेल के गनमैन और जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त महेन्द्र कर्मा के सुरक्षा कर्मी आखिर कितनी देर घात लगाकर तैयारी से आये नक्सलियों का कितनी देर मुकाबला करते।
सुकमा में परिवर्तन यात्रा के लौट रहे कांग्रेसी काफिले पर घात लगाकर दरभा-जीरम घाटी पर नक्सलियों द्वारा की गई गोलबारी से आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा, राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार , प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा म.प्र. और छत्तीसगढ़ के करीब 8 वर्षों तक गृहमंत्री रहे नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र दीपक पटेल सहित लोगों की हत्या तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल पर जानलेवा हमा करके नक्सलियों पर कुठाराघात किया है वहीं यह भी जाहिर करने का प्रयास किया है कि बस्तर क्षेत्र में उनकी समानांतर सरकार है। राज्य सरकार का अस्तित्व केवल कागजों पर ही सीमित है।
नक्सलियों ने पहले ही भाजपा की विकास यात्रा और कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को लेकर धमकी दी थी लेकिन फिर भी सुरक्षा बल की सक्रियता नहीं होगा भी आश्चर्य जनक ही है।
वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब से प्रदेश में भाजपा की सरकार गठित हुई है उसके बाद से नक्सली वारदातों में वृद्धि हुई है। कुछ ऐसी बड़ी वारदात हुई है जिससे छत्तीसगढ़ की चर्चा भारत ही नहीं विश्व में भी हुई है। 6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में 76 सीआरपीएफ के जवानों की हत्या कर दी। यह भी विश्व में सबसे बड़ी नक्सली वारदात थी। पुलिस ने कुछ नक्सलियों को गिरफ्तार कर प्रकरण भी बनाया पर न्यायालय में पुलिस अपना पक्ष सही तरह से नहीं रख सकी और सभी आरोपी नक्सली न्यायालय से बरी हो गये क्या इस पर सही विवेचना नहीं करने वालों के खिलाफ सरकार ने कार्यवाही की नहीं...।
16 अप्रैल 2007 को रानीबोरली में नक्सली हमल से 49 लोगों की मौत हुई, 17 जुलाई 07 को दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों ने 25 लोगों की हत्या कर दी।
दंतेवाड़ा क जेल में नक्सलियों ने 299 कैदी बंदी को जेल से भगाने का कमा किया यह भी देश में जेलब्रेक की सबसे बड़ी नक्सली वारदात रही पर कार्यवाही केवल तत्कालीन जेल प्रभारी के खिलाफ की गई उस पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया पर वह न्यायालय से बरी हो गया क्योंकि राजद्रोह का मुकदमा चलाने के पूर्व सरकार से विधिवत अनुमति ही नहीं ली गई थी इस मामले में भी सरकार की बड़ी किरकिरी हुई थी।
राजनांदगांव के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे सहित कुछ जवानों की हत्या मानपुर क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा की गई उसके बाद भी सरकार ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं कि जबकि उस समय तरह-तरहकी चर्चा आम थी।  सुकमा कलेक्टर एलेक्स पाल मेमन तो रिहा हो गये पर अपहरण किन परिस्थितियों में हुआ इसकी समीक्षा अभी तक नहीं हो सका है।
बस्तर के राहीगर नाम से चर्चित तथा सलवा जुडूम आंदोलन के प्रणेता महेन्द्र कर्मा सहित उनके रिश्तेदारों पर नक्सलियों ने कई बार हमला किया उनको कहा रिश्तेदार भी शहीद हो गया, पूर्व सांसद वलीराम कश्यप के पुत्र की भी नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। ग्रामीणों तथा सुरक्षाबल के लोगों की हत्या तो अब बस्तर में आम हो गई है। पर कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने एक बार पुलिस मुख्यालय में बैठक लेकर नक्सली क्षेत्र में पुलिस के आला अफसरों को रात गुजारने का आदेश दिया था पर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ अफसर रात नहीं कितने दिन नक्सली क्षेत्र में गुजारे यह पता आसानी से लगाया जा सकता है।
कभी छत्तीसगढ़ में विशेष सलाहकार बनाकर केजीएस गिल को लाकर प्रयोग किया गया तो कभी भी छत्तीसगढ़ में पदस्थ नहीं रहने वाले स्व.ओपी राठौर को पुलिस महानिदेर्शक बनाकर 'सलवा जुडूमÓ अभियान चलाया गया, कभी आईबी में कई साल गुजारने वाले विश्वरंजन को डीजीपी बनाकर भी नया प्रयोग किया गया। वहीं नक्सली मामलों के जानकार तथा बस्तर में पहली बार मतदान कराकर केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा सम्मानित संत कुमार पासवान नक्सली फील की जगह होमगार्ड, जेल आदि में पदस्थापना कर भी सरकार ने प्रयोग किया। सवाल यह उठ रहा है कि पुलिस मुख्यालय सहित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में तैनात कितने अफसरों में नक्सलवाद या नक्सल अभियान की जानकारी है। कितने अफसर नक्सली क्षेत्र में पदस्थ रहें है।
और अब बस
० सलवा जुडूम आंदोलन के कारण महेन्द्र कर्मा की जान चली गई, हजारों आदिवासी अपने घर-बार प्रदेश से वंचित हो गये, एक टिप्पणी तो सलवा जुडूम का लाभ किसे मिला...।
० भाजपा के लोग आरोप लगाते है कि नक्सलियों को कांग्रेस का समर्थन है। हाल फिलहाल की घटना ने साबित कर दिया है कि नक्सली किसी के नहीं है।