Saturday, March 23, 2013

जागते रहिए की आवाज लगाने वाला
लूटनेवालों को होशियार भी कर सकता है

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सत्ताधारी भाजपा और प्रमुख विपक्षीदल कांग्रेस की अपनी अपनी रणनीति बन रही है। भाजपा के अपने सर्वे सहित आईबी के सर्वे में भाजपा की हालत पतली बताई जा रही है, इससे भाजपा के कर्णधार कुछ मायूस है तो कांग्रेसी काफी खुश है।
भाजपा के अपने सर्वे, वरिष्ठ नेताओं को मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान 50 फीसदी विधायकों में 27 की अगले चुनाव में वापसी फिलहाल नहीं दिखाई दे रही है यानि 50 से प्रतिशत अधिक विधायकों की वापसी खतरे में है। ऐसे में 27 वर्तमान विधायकों की टिकट कटने के संकेत मिल रहे है। वैसे 2008 के विस चुनाव में भी भाजपा में 18 विधायकों के टिकट काटे थे और उसका लाभ भी हुआ था दूसरी बार लगातार भाजपा सत्तासीन हुई थी सूत्र कहते हैं कि बस्तर प्रदेश के करीब 7 मंत्रियों की वापसी पर भी सर्वे रिपोर्ट से सवाल लग गये हैं। बस्तर सहित सरकार बनाने का प्रमुख द्वार है इस बार वहां बलीराम कश्यप के बिना ही चुनाव होना है। वैसे तो उनके पुत्र केदार कश्यप तथा एकमात्र महिला मंत्री सुश्री लता उसेडी, वनमंत्री विक्रम उसेण्डी मंत्रिमंडल के सदस्य है पर चर्चा है कि ये लोग अपनी अपनी सीट बचा लें यही काफी है। सरगुजा, रायपुर संभाग के भी 3-4 मंत्रियों की हालत ठीक नहीं है। इधर रायपुर ग्रामीण, बालौद, डौंडीलोहारा, गुंडरदेही, कांकेर, चित्रकूट, कोण्डागांव, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर, तखतपुर, बेमेतरा, मस्तूरी, बेलतरा, भटगांव, प्रेम नगर आदि में वर्तमान विधायकों की हालत ठीक नहीं है यह सर्वे रिपोर्ट में सामने आया है।
इधर कांग्रेस की हालत भी ठीक नहीं है पर भाजपा के प्रति आदिवासियों , सतनामियों, पिछड़ों, शिक्षाकर्मियों, सरकारी कर्मचारियों आदि के असंतोष का लाभ मिलने की संभावना से कांग्रेस उत्साहित है। वैसे आगामी चुनाव में टिकट वितरण में सागौन बंगला की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, नंदकुमार पटेल, डा. चरणदास महंत आदि भी अपने कुछ खास समर्थकों को टिकट दिला सकते है पर अजीत जोगी लगता है कि सभी पर भारी पडेंगे। राहुल गांधी ने 40 फीसदी चुनावों को टिकट देने की बात की है ऐसे में अजीत जोगी के पास तो युवक कांग्रेस, भाराछंस की भारी भरकम टीम है वहीं 15-20 विधायक तो जोगी खेमे में आज भी है यह माना जाता है। वैसे बस्तर, सरगुजा सहित दुर्ग जिले से कांग्रेस को काफी सीटें जीतने का भरोसा है।
विधायकों का वेतन 25 से 75 हजार!
छत्तीसगढ़ में महंगाई इतनी अधिक बढ़ गई है कि आम जनता, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी तो बेहाल है वहीं विधायक भी कम परेशान नहीं है। हाल ही में बसपा के विधायक द्ध्जिराम बौद्ध ने विधायक को मिलनेवाले वेतन, भत्ते में परिवार चलाने में मुश्किल पडऩे की गुहार लगाते हुए गरीबी रेखा का राशनकार्ड मुहैय्या कराने की मांग खाद्यमंत्री से कर दी। उसका कहना था कि विधायक बनने के पहले वे कारपेंटर थे और उनका राशनकार्ड से 35 किलो चांवल आदि मिलता था पर विधायक बनने के बाद उनसे वह सुविधा वापस ले ली गई। अब बसपा विधायक दल का नेता होने के कारण उन्हें दौरा करना पड़ता है और वेतन तो डीजल में ही चला जाता है ऐसे में 6 बच्चों सहित पत्नी का गुजारा करना मुश्किल है। खाद्य मंत्री पुन्नुलाल मोहिले का कहना है कि विधायक जी आयकर दाता है ऐसे  में उन्हें गरीबी रेखा का राशनकार्ड नहीं दिया जा सकता है।
इधर प्रदेश के करीब 2 लाख शिक्षाकर्मी कम वेतन, वर्षों तक सेवा करने के नाम पर अपना वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर सप्रे शाला के मैदान में परिवार सहित आंदोलन पर रहे थे, भूखहड़ताल भी किया, बूढ़ा तालाब में घुसकर धरना भी दिया, कुछ युवाओं ने अर्धनग्न प्रदर्शन भी किया पर निलंबन, बर्खास्तगी का डर दिखाकर आंदोलन को जबरिया समाप्त करा दिया गया। प्रदेश के लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मी भी लम्बे समय तक आंदोलन पर रहे पर सरकार ने उनकी भी नहीं सुनी। महंगाई बढऩे पर वेतन भत्ता वृद्धि की मांग राज्य सरकार ने ठुकरा दी।
पर प्रदेश सरकार का लगता है कि अपने मंत्रियों, विधायकों की महंगाई से होने वाली दिक्कतों पर जरूर ध्यान गया। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 12 साल पूरे हो चुके हैं और 12 सालों के भीतर सरकार ने मंत्रियों, विधायकों के वेतन भत्ते आदि में 8 बार बढ़ोत्तरी की है। इस हिसाब से हर डेढ़ साल में जनप्रतिनिधियों के वेतन में वृद्धि हो रही है। जब मध्यप्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हुआ था उस समय विधायकों का वेतन 25 हजार रुपये मासिक था। भाजपा की सरकार बनने के बाद 9 सालों के भीतर विधायकों का वेतन करीब 75 हजार के आस पास हो गया है यानि छत्तीसगढ़ में 9 सालों में विधायकों के वेतन तीन गुना हो गया है। छत्तीसगढ़ राज्य बनते समय विधायकों को 50 हजार का प्रतिवर्ष यात्रा कूपन मिलता था वह यात्रा कूपन अब 3 लाख का हो गया है यानि यात्रा कूपन राशि में 6 गुना वृद्धि कर दी गई है। वैसे इतिहास बताता है कि जब भी अविभाजित म.प्र. या छत्तीसगढ़ में गैर कांग्रेसी सरकार बनती रही है तब तब विधायकों, मंत्रियों का वेतन में वृद्धि होती रही है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी के अनुसार अगले चुनाव में वापसी की उम्मीद नहीं होने के कारण ही गैर कांग्रेसी सरकार वेतन वृद्धि करती है। बहरहाल महंगाई के लिए केन्द्र सरकार पर राज्य सरकार आरोप मढ़ती है और केन्द्र सरकार महंगाई बढऩे राज्य सरकार को दोषी ठहराती है। ऐसे में विधायकों का वेतन तो राज्य सरकार बढ़ा रही है पर आमजनता को तो कोई राहत नहीं मिल रही है न तो खाना पकाने की गैस और न ही पेट्रोल, डीजल आदि पर राज्य सरकार कोई कर कम कर रही है।
रक्तचाप बढ़ रहा है आईएएस अफसरों का
छत्तीसगढ़ विधानसभा का सत्र जल्दी समाप्त होगा या पहले ही सत्रावसान हो जाएगा इसको लेकर कांग्रेस-भाजपा के विधायक चिंतित नहीं है बल्कि प्रदेश के कई आईएएस अफसरों का रक्तचाप बढ़ गया है। काफी समय से यह संभावना प्रकट की जा रही है कि प्रदेश में जल्दी ही एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी होनी है जिसमें 27 जिलों में कम से कम 15 जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं वही प्रमुख सचिव से सचिव स्तर पर भी कुछ लोग प्रभावित हो सकते हैं। आगामी विस चुनाव को देखते हुए इस सरकार की यह आखरी प्रशासनिक सर्जरी होगी। पिछले विधानसभा चुनाव के पूर्व सन 2008 में तत्कालीन मुख्य सचिव शिवराज सिंह ने कुछ अनुभवी आईएएस अफसरों को जिलों का कमान सौंपी थी और उसका लाभ भी सरकार को मिला था। भाजपा की सरकार दूसरी बार सत्ता में आ गई थी। इधर इस बार मुख्य सचिव के रूप में सुनील कुमार जैसे सख्त अफसर तैनात हैं। अन्य मुख्य सचिवों की तरह इनकी कोई कोटरी नहीं है। काम से काम रखने वाले सुनील कुमार के आसपास चापलूस अफसर फटकते भी नहीं हैं ऐसे में कुछ अच्छे छवि के आईएएस अफसरों को जिलों की कमान मिलने की उम्मीद है तो कुछ दागी अफसर पदस्थापना के लिए राजनेताओं की शरण में हैं। खैर नई पदस्थापना को लेकर कई आईएएस अफसरों के रक्तचाप बढ़ गये हैं। सूत्र कहते हैं कि होली के आसपास नई प्रशासनिक सर्जरी होना लगभग तय है।
एलेक्स पॉल फिर चर्चा में
सुकमा के जिलाधीश बतौर नक्सलियों द्वारा पहले अपहरण और बाद में रिहा किये गये आईएएस एलेक्स पॉल मेमन फिर चर्चा में है। हाल ही में रायपुर विकास प्राधिकरण में साज सज्जा, कीमती मोबाइल, लेपटाप आदि खरीदी को लेकर चर्चा में थे। वहीं हाल ही में धमतरी जिले में बतौर मुख्य कार्यपालन अधिकारी उन्होंने बारहवें वित्त आयोग से प्राप्त ब्याज की राशि से 4 लाख 97 हजार 667 रुपये से नई एम्बेसडर कार खरीदने और उसकी साज-सज्जा में करीब 91 हजार खर्च करने का मामला सूचना के अधिकार के तहत मिले दस्तावेजों से सामने आया है। नियमानुसार यह राशि केवल पंचायत विकास के ही खर्च होना था। वैसे जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक में भी आईएएस एलेक्स पॉल मेमन ने अनुमति लेना उचित नहीं समझा। वैसे यह मामला पूरी तरह वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है। हालांकि धमतरी के कलेक्टर नवल सिंह मंडावी जांच कराने की बात कह रहे हैं। पर एक आईएएस अफसर की जांच कैसे होती है यह किसी से छिपा नहीं है।
और अब बस
(1)
मनरेगा के तहत कागजों की जगह सही में तालाब खुदाई होती तो छग में तेल का भंडार मिल गया होता...दूसरी टिप्पणी...यदि वृक्षारोपण सही में होता तो हम अभी हम जंगलों के बीच बैठे होते।
(2)
महात्मा गांधी को ब्रांड एम्बेसडर बनाने वाले रेडियस वाटर मामले से जुड़े एक बड़े अफसर को अचानक हटाया गया...पहले पी. जॉय उम्मेन और विश्वरंजन को भी तो अचानक ही हटाया गया था...।
(3)
आईपीएल के लिये सुरक्षा के नाम पर पुलिस विभाग ने 5 करोड़ मांगा...पर बजट में तो केवल 50 लाख का ही प्रावधान रखा गया है।
(4)
गिरौधपुरी में कुतुबमीनार के समान जैतखाम के लोकार्पण को लेकर सतनामी समाज के गुरु विजयकुमार भाजपा सरकार से दूर हो रहे हैं तो कांग्रेस से तो बहुत ही दूर हो चुके हैं।
(5)
एक समारोह में विभागीय संचालक तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री के बगल में मंच में बैठे रहे तो विभागीय प्रमुख सचिव दर्शकदीर्घा में। यही नहीं दर्शकदीर्घा से बुलवाकर प्रमुख सचिव से अतिथियों का स्वागत करवाया गया और फिर उन्हें जाकर दर्शकदीर्घा में ही बैठना पड़ा। वहां भी दो कुर्सियों में तीन अधिकारियों को एडजेस्ट करना पड़ा।
 वेतन एक नजर में
मुख्यमंत्री 93 हजार मासिक (करीब)
विस अध्यक्ष 91 हजार
उपाध्यक्ष 89 हजार
कबीना मंत्री 90 हजार
राज्यमंत्री 88 हजार
संसदीय सचिव 83 हजार
विधायक 75 हजार

Tuesday, March 19, 2013

अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियां छोड के जाने को कहा जाता है
पत्तियां रोज गिरा जाती हैं जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है

छत्तीसगढ़ में भाजपा की राज्य सरकार आगामी विधानसभा और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये आरक्षण को लेकर परेशान है तो कांग्रेस इन वर्ग के असंतोष को लेकर हवाई किला बनाकर अपनी सरकार निश्चित बनने का भ्रम पाल बैठी है। एक बार जरूर है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो कांग्रेस की जीत नहीं भाजपा की हार कारण होगा।
बहरहाल छत्तीसगढ़ में जाति वर्ग की राजनीति अपने पूरे शबाब में है। आदिवासी, सतनामी तथा पिछड़ा वर्ग के लोग सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग ने चारामा से राजधानी तक पदयात्रा निकालकर सरकारी नौकरी में 14 की जगह 27 फीसदी आरक्षण की मांग की वही अपनी आबादी 51 फीसदी होने का दावा करते हुये 51 फीसदी  विधानसभा, लोकसभा की सीट की मांग कर डाली है। वही सरकार के करीब 6 माह पूर्व ही एससी वर्ग के आरक्षण 16 फीसदी के स्थान पर कटौती करके 12 प्रतिशत कर दिया है इससे सतनामी समाज आक्रोशित है। इधर आदिवासियों का आरक्षण 28 फीसदी के स्थान पर 32 फीसदी तक दिया है पर इससे आदिवासी समाज भी खुश नहीं है क्योंकि न्यायालय से क्रियान्वयन पर फिलहाल रोक लगा दी है। सतनामी, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग की नाराजगी करने मे प्रदेश की भाजपा सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के एक बड़े नेता रमेश बैस भाजपा के प्रमुख आधार स्तंभ है। छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ सांसद होने के साथ केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, चन्द्रशेखर साहू भी पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है पर हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। रमेश बैस और डा. रमन सिंह के बीच का तनाव जगजाहिर है।
इधर सतनामी समाज को मनाने के लिये भाजपा के पास सतनामी समाज के गुरू गद्दीनशीन विजय गुरू है तो पुन्नुलाल मोहिले जैसे पुराने नेता भी है पर सतनामी समाज इनके समझाने से और भी बिगड़ रहा है, राज्य सरकार ने राज्यसभा में भी भूषण लाल जांगड़े को भेजा है पर असर नहीं हो रहा है वैसे भाजपा के एक नेता कहते है कि हमे सतनामी समाज का मत मिलता ही कहा था। सवाल यह उठ रहा है कि सतनामी समाज का मत भाजपा को मिलता था या नहीं यह बात और है पर सतनामी समाज खुलकर सरकार का विरोध तो नहीं करता था इस बार तो सतनामी समाज का बड़ा हिस्सा आरक्षण में कटौती पर सरकार से नाखुश है।
बात आदिवासी समाज की है तो वह भी सरकार से कम से कम खुश तो नहीं है। आरक्षण का प्रतिशत तो बढ़ा पर सलवा जुडुम अभियान, नक्सली हिंसा में बढ़ोत्तरी, कई गांव खाली करने, उद्योगों के लिये आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण आदि कई मुद्दे ऐसे है जिससे आदिवासी वर्ग भी नाखुश है। भाजपा के पास नंदकुमार साय, ननकीराम कंवर, शिवप्रताप सिंह जैसे वरिष्ठ नेता है पर इनकी सरकार के प्रति नाराजगी भी कभी कभी दिखाई दे जाती है बस्तर में बलीराम कश्यप के निधन के बाद उनका स्थान रिक्त है। छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, सांसद दिनेश कश्यप भी मिलकर बलीदादा की जगह नहीं भर सकते है। वैसे कांग्रेस असंतोष से खुश है और नाराजगी को कांग्रेस की तरफ मतों में तब्दील करने प्रयासरत है।
मनमोहन के मुंह में छग डाला
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जनसंपर्क विभाग में प्रयोग दर प्रयोग किया जा रहा है। किसी भी आईएएस को जनसंपर्क संचालनालय का मुखिया बना दिया जाता है और उसे अन्य कामों की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है और वह अफसर जनसंपर्क को (पार्ट-टाईम) की तरह ही समझता है। वर्तमान में पदस्थ संचालक जनसंपर्क सोनमणी बोरा  जमीन, मकान के काम में इतने उलझे है कि उन्हें जनसंपर्क विभाग के लिये समय निकालना कठिन हो जाता है। राज्य के मुखिया जब नये जिलों की स्थापना के समारोह में जा रहे थे तब संचालक को जनसंपर्क कार्यालय जाने का समय नहीं मिला था। प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकारों को डा. रमन सिंह ने सम्मानित किया पर संचालक ने वहां जाना मुनासिब नहीं समझा, एक बड़े समाचार पत्र के विमोचन समारोह में जाने का समय संचालक को नहीं मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि जनसंपर्क कार्यालय जाने वाले पत्रकारों को छोड़कर वे अन्य पत्रकारों को ठीक से पहचानते भी नहीं है। उनके कार्यालय में नियमित नहीं आने से वहां की व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है यह तय है। वैसे तो सूत्र कहते हैं कि वे जनसंपर्क में रहने में रूचि नहीं रखते है यह भी चर्चा है कि राज्य सरकार उन्हें जनसंपर्क में रखने भी अब तैयार नहीं है बहरहाल किसी पड़ोसी जिले का कलेक्टर बनाने की भी चर्चा है। वैसे प्रजातंत्र के चौथे पाये से संबंधित विभाग में सरकार कब तक नये-नये प्रयोग करेगी यह समझ से परे है। वैसे प्रदेश की संवेदनशील सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह जनसंपर्क विभाग के मुखिया है और उन्हें अब निर्णय लेना है।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ का नाम भी नहीं लिया और राज्य के मीडिया में खबर आई कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य है-प्रधानमंत्री
केन्द्र सरकार के कुछ मंत्री जरूर आकर छत्तीसगढ़ की तारीफ करते थे। लेकिन ताजा मामला प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग ने 8 मार्च को एक विज्ञप्ति जारी करते हुये आंकड़ों के साथ दावा किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ की तारीफ करते हुये उसे देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य बताया है जबकि हकीकत तो यह है कि प्रधानमंत्री ने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम नहीं लिया।
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि- देश के नक्शे पर 26 वें राज्य के रूप में सिर्फ 12 साल पहले अस्तित्व में आये छत्तीसगढ़ के विकास की राह पर जिस तेजी से कदम बढ़ाये है आज प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी उसकी प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण में धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के जवाब में कहा कि देश के बिमारू कहे जाने वाले राज्यों ने हाल के वर्षों में अच्छी प्रगति की है। उन्होंने लिखित भाषण में कहा है कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाले राज्य के रूप में पहचाना जा रहा है।
हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में अपने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम ही नहीं लिया है। राज्यसभा की वेबसाईट पर मौजूद प्रधानमंत्री के भाषण में जब छत्तीसगढ़ को तलाशने की कोशिश की गई तो इस खबर की सच्चाई सामने आई।
चंपू से भोंदू भारी!
छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री सांसद चंद्रशेखर साहू ने गृह विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर थाने में दर्ज- गैर जमानती (एफआईआर) को रद्द कराने पत्र भेजा है। आरोपी सरपंच ईश्वरी बाई साहू पर बलवा और आगजनी जैसे संगीन मामले है। 6 अक्टूबर 12 को भेजे गए पत्र पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। वही भाजपा के एक नेता अब्दुल अजीम भोंदू के खिलाफ जेल में बंद होने के दौरान ही धारा 307 हटा दी गई और वह जेल से जमानत पर रिहा हो गया।
निरीक्षक स्तर के दो अफसरों ने वारंट तामिली के दौरान हुई हमले पर खुद रिपोर्ट लिखाई थी कि उन पर जानलेवा हमला हुआ था। थाना निरीक्षक उमेश मिश्रा और थाना निरीक्षक आर.के. दुबे की रिपोर्ट पर थाने में हमलावारों के खिलाफ 147,148,149,186, 353,332, 307, 209 तथा 506 वी के तहत जुर्म कायम हुआ था। इसी के बाद कुछ भाजपा नेताओं सहित समाज ने दबाव बनाया था और उसके बाद अफसर कर्मियों से मारपीट के मामले में धारा 307 हटा दी गई। सूत्र कहते हैं कि अधिकारियों के डाक्टरी मुलाहिजा में गंभीर चोट नहीं पाई गई इसलिये धारा 307 हटाई गई है। सवाल यह है कि रिपोर्ट लिखने वाले और गलत धारा लगाने वाले के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई? खैर चम्पू भैय्या से तो भोंदू भाई ही भारी निकले है।
और अब बस...
0 बस्तर के तोकापाल तहसील में एक अरब 22 करोड़ 62 लाख का वृक्षारोपण एनजीओ, वन,कृषि उद्यान विभाग द्वारा कराया गया। मनरेगा के तहत वृक्षारोपण वास्तविक क्षेत्र से अधिक भूमि में कैसे कराया गया है यह जांच का विषय है
0 राज्य सरकार के मुखिया के करीब दिखाई देने वाले एक सेवानिवृत्त अफसर आजकल मिलने-जुलनेवालों से जल्दी दिल्ली में स्थायी तौर पर जाने की बात करने लगे है।
0 बसपा विधायक दूजराम बौद्ध ने वेतनभत्ता कम होने पर बीपीएल कार्ड की मांग सदन में कर डाली। डा. रमन सिंह ने कैबिनेट की बैठक लेकर  सभी मंत्रियों, विधायकों के वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर लिया। इसे कहते है संवेदनशील मुख्यमंत्री।

Wednesday, March 13, 2013

अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियां छोड के जाने को कहा जाता है
पत्तियां रोज गिरा जाती हैं जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है

छत्तीसगढ़ में भाजपा की राज्य सरकार आगामी विधानसभा और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये आरक्षण को लेकर परेशान है तो कांग्रेस इन वर्ग के असंतोष को लेकर हवाई किला बनाकर अपनी सरकार निश्चित बनने का भ्रम पाल बैठी है। एक बार जरूर है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो कांग्रेस की जीत नहीं भाजपा की हार कारण होगा।
बहरहाल छत्तीसगढ़ में जाति वर्ग की राजनीति अपने पूरे शबाब में है। आदिवासी, सतनामी तथा पिछड़ा वर्ग के लोग सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग ने चारामा से राजधानी तक पदयात्रा निकालकर सरकारी नौकरी में 14 की जगह 27 फीसदी आरक्षण की मांग की वही अपनी आबादी 51 फीसदी होने का दावा करते हुये 51 फीसदी  विधानसभा, लोकसभा की सीट की मांग कर डाली है। वही सरकार के करीब 6 माह पूर्व ही एससी वर्ग के आरक्षण 16 फीसदी के स्थान पर कटौती करके 12 प्रतिशत कर दिया है इससे सतनामी समाज आक्रोशित है। इधर आदिवासियों का आरक्षण 28 फीसदी के स्थान पर 32 फीसदी तक दिया है पर इससे आदिवासी समाज भी खुश नहीं है क्योंकि न्यायालय से क्रियान्वयन पर फिलहाल रोक लगा दी है। सतनामी, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग की नाराजगी करने मे प्रदेश की भाजपा सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के एक बड़े नेता रमेश बैस भाजपा के प्रमुख आधार स्तंभ है। छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ सांसद होने के साथ केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, चन्द्रशेखर साहू भी पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है पर हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। रमेश बैस और डा. रमन सिंह के बीच का तनाव जगजाहिर है।
इधर सतनामी समाज को मनाने के लिये भाजपा के पास सतनामी समाज के गुरू गद्दीनशीन विजय गुरू है तो पुन्नुलाल मोहिले जैसे पुराने नेता भी है पर सतनामी समाज इनके समझाने से और भी बिगड़ रहा है, राज्य सरकार ने राज्यसभा में भी भूषण लाल जांगड़े को भेजा है पर असर नहीं हो रहा है वैसे भाजपा के एक नेता कहते है कि हमे सतनामी समाज का मत मिलता ही कहा था। सवाल यह उठ रहा है कि सतनामी समाज का मत भाजपा को मिलता था या नहीं यह बात और है पर सतनामी समाज खुलकर सरकार का विरोध तो नहीं करता था इस बार तो सतनामी समाज का बड़ा हिस्सा आरक्षण में कटौती पर सरकार से नाखुश है।
बात आदिवासी समाज की है तो वह भी सरकार से कम से कम खुश तो नहीं है। आरक्षण का प्रतिशत तो बढ़ा पर सलवा जुडुम अभियान, नक्सली हिंसा में बढ़ोत्तरी, कई गांव खाली करने, उद्योगों के लिये आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण आदि कई मुद्दे ऐसे है जिससे आदिवासी वर्ग भी नाखुश है। भाजपा के पास नंदकुमार साय, ननकीराम कंवर, शिवप्रताप सिंह जैसे वरिष्ठ नेता है पर इनकी सरकार के प्रति नाराजगी भी कभी कभी दिखाई दे जाती है बस्तर में बलीराम कश्यप के निधन के बाद उनका स्थान रिक्त है। छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, सांसद दिनेश कश्यप भी मिलकर बलीदादा की जगह नहीं भर सकते है। वैसे कांग्रेस असंतोष से खुश है और नाराजगी को कांग्रेस की तरफ मतों में तब्दील करने प्रयासरत है।
मनमोहन के मुंह में छग डाला
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जनसंपर्क विभाग में प्रयोग दर प्रयोग किया जा रहा है। किसी भी आईएएस को जनसंपर्क संचालनालय का मुखिया बना दिया जाता है और उसे अन्य कामों की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है और वह अफसर जनसंपर्क को (पार्ट-टाईम) की तरह ही समझता है। वर्तमान में पदस्थ संचालक जनसंपर्क सोनमणी बोरा  जमीन, मकान के काम में इतने उलझे है कि उन्हें जनसंपर्क विभाग के लिये समय निकालना कठिन हो जाता है। राज्य के मुखिया जब नये जिलों की स्थापना के समारोह में जा रहे थे तब संचालक को जनसंपर्क कार्यालय जाने का समय नहीं मिला था। प्रेस क्लब में वरिष्ठ पत्रकारों को डा. रमन सिंह ने सम्मानित किया पर संचालक ने वहां जाना मुनासिब नहीं समझा, एक बड़े समाचार पत्र के विमोचन समारोह में जाने का समय संचालक को नहीं मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि जनसंपर्क कार्यालय जाने वाले पत्रकारों को छोड़कर वे अन्य पत्रकारों को ठीक से पहचानते भी नहीं है। उनके कार्यालय में नियमित नहीं आने से वहां की व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है यह तय है। वैसे तो सूत्र कहते हैं कि वे जनसंपर्क में रहने में रूचि नहीं रखते है यह भी चर्चा है कि राज्य सरकार उन्हें जनसंपर्क में रखने भी अब तैयार नहीं है बहरहाल किसी पड़ोसी जिले का कलेक्टर बनाने की भी चर्चा है। वैसे प्रजातंत्र के चौथे पाये से संबंधित विभाग में सरकार कब तक नये-नये प्रयोग करेगी यह समझ से परे है। वैसे प्रदेश की संवेदनशील सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह जनसंपर्क विभाग के मुखिया है और उन्हें अब निर्णय लेना है।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ का नाम भी नहीं लिया और राज्य के मीडिया में खबर आई कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य है-प्रधानमंत्री
केन्द्र सरकार के कुछ मंत्री जरूर आकर छत्तीसगढ़ की तारीफ करते थे। लेकिन ताजा मामला प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग ने 8 मार्च को एक विज्ञप्ति जारी करते हुये आंकड़ों के साथ दावा किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ की तारीफ करते हुये उसे देश का दूसरा सबसे तेज विकास वाला राज्य बताया है जबकि हकीकत तो यह है कि प्रधानमंत्री ने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम नहीं लिया।
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि- देश के नक्शे पर 26 वें राज्य के रूप में सिर्फ 12 साल पहले अस्तित्व में आये छत्तीसगढ़ के विकास की राह पर जिस तेजी से कदम बढ़ाये है आज प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी उसकी प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण में धन्यवाद प्रस्ताव में हुई चर्चा के जवाब में कहा कि देश के बिमारू कहे जाने वाले राज्यों ने हाल के वर्षों में अच्छी प्रगति की है। उन्होंने लिखित भाषण में कहा है कि छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाले राज्य के रूप में पहचाना जा रहा है।
हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में अपने भाषण में छत्तीसगढ़ का नाम ही नहीं लिया है। राज्यसभा की वेबसाईट पर मौजूद प्रधानमंत्री के भाषण में जब छत्तीसगढ़ को तलाशने की कोशिश की गई तो इस खबर की सच्चाई सामने आई।
चंपू से भोंदू भारी!
छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री सांसद चंद्रशेखर साहू ने गृह विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर थाने में दर्ज- गैर जमानती (एफआईआर) को रद्द कराने पत्र भेजा है। आरोपी सरपंच ईश्वरी बाई साहू पर बलवा और आगजनी जैसे संगीन मामले है। 6 अक्टूबर 12 को भेजे गए पत्र पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। वही भाजपा के एक नेता अब्दुल अजीम भोंदू के खिलाफ जेल में बंद होने के दौरान ही धारा 307 हटा दी गई और वह जेल से जमानत पर रिहा हो गया।
निरीक्षक स्तर के दो अफसरों ने वारंट तामिली के दौरान हुई हमले पर खुद रिपोर्ट लिखाई थी कि उन पर जानलेवा हमला हुआ था। थाना निरीक्षक उमेश मिश्रा और थाना निरीक्षक आर.के. दुबे की रिपोर्ट पर थाने में हमलावारों के खिलाफ 147,148,149,186, 353,332, 307, 209 तथा 506 वी के तहत जुर्म कायम हुआ था। इसी के बाद कुछ भाजपा नेताओं सहित समाज ने दबाव बनाया था और उसके बाद अफसर कर्मियों से मारपीट के मामले में धारा 307 हटा दी गई। सूत्र कहते हैं कि अधिकारियों के डाक्टरी मुलाहिजा में गंभीर चोट नहीं पाई गई इसलिये धारा 307 हटाई गई है। सवाल यह है कि रिपोर्ट लिखने वाले और गलत धारा लगाने वाले के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई? खैर चम्पू भैय्या से तो भोंदू भाई ही भारी निकले है।
और अब बस...
0 बस्तर के तोकापाल तहसील में एक अरब 22 करोड़ 62 लाख का वृक्षारोपण एनजीओ, वन,कृषि उद्यान विभाग द्वारा कराया गया। मनरेगा के तहत वृक्षारोपण वास्तविक क्षेत्र से अधिक भूमि में कैसे कराया गया है यह जांच का विषय है
0 राज्य सरकार के मुखिया के करीब दिखाई देने वाले एक सेवानिवृत्त अफसर आजकल मिलने-जुलनेवालों से जल्दी दिल्ली में स्थायी तौर पर जाने की बात करने लगे है।
0 बसपा विधायक दूजराम बौद्ध ने वेतनभत्ता कम होने पर बीपीएल कार्ड की मांग सदन में कर डाली। डा. रमन सिंह ने कैबिनेट की बैठक लेकर  सभी मंत्रियों, विधायकों के वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर लिया। इसे कहते है संवेदनशील मुख्यमंत्री।

Tuesday, March 5, 2013

ये इश्क नहीं आसां, हमने जो ये जाना है
काजल की लकीरों को, आंखों से चुराना है

छत्तीसगढ़ में राजनीति में युवा वर्ग तो सक्रिय है ही साथ ही उम्र दराज नेता भी अभी सक्रिय है। कांग्रेस में वयोवृद्ध  नेता अभी भी लम्बी राजनीतिक पारी खेलने उत्सुक है तो भाजपा में वयोवृद्ध नेताओं की जरूर कमी परिलक्षित हो रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उम्रदराज नेता अभी भी बड़ी जिम्मेदारी लेने तत्पर दिखाई दे रहे है।
कांग्रेस में सबसे वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा माने जाते है। 20 दिसम्बर 28 को जन्में वोरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष है तथा अविभाविजत म.प्र. के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री,उ.प्र. के राज्यपाल की जिम्मेदारी निभा चुके हैं अभी भी मुख्यमंत्री बनने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। दूसरे क्रम में बरसों तक केन्द्रीय मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल की गिनती होती है। 2 अगस्त 29 को जन्मे शुक्ल जी अभी भी दौड़ में शामिल है। पूर्व विधायक लक्ष्मण सतपथी (17 अगस्त 37) प्रोटेम स्पीकर बने ,वृद्ध महेन्द्र बहादुर सिंह (31 दिसम्बर 25) अभी भी स्वयं को युवा मानकर कोई भी जिम्मेदारी सम्हालने तैयार है।
कांग्रेस में दूसरी पंक्ति के नेताओं में पवन दीवान, (एक जनवरी 1945), अजीत जोगी (29 अप्रेल 46), सत्यनारायण शर्मा (17 जनवरी 44),महेन्द्र कर्मा (5 अगस्त 50), डा. रेणु जोगी (27 अक्टूबर 50), नंदकुमार पटेल ( 8 नवम्बर 53), डा. चरणदास महंत (31 दिसम्बर 54), रविन्द्र चौबे ( 28 मार्च 57) आदि नई जिम्मेदारी के लिये तैयार है।
भारतीय जनता पार्टी में वयोवृद्ध नेताओं की सक्रियता भी देखते ही बन रही है। विधानसभा में वरिष्ठ विधायक बद्रीधर दीवान 22 नवम्बर 29 को जन्मे हैं। वे पिछली विधानसभा में उपाध्यक्ष थे। इस बार अध्यक्ष बनने उत्सुक थे बाद में उन्हें सीआईडीसी का अध्यक्ष बनाकर संतुष्ट कराया गया है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के साथ लगातार सक्रिय लीलाराम भोजवानी (24 जनवरी 41), गृहमंत्री ननकीराम कंवर (21 जुलाई 43) भी वरिष्ठ नेता हैं। वही इसके बाद राज्यसभा सदस्य तथा छग के पहले नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय (1 जनवरी 46), वरिष्ठ सांसद रमेश बैस (2 अगस्त 48) का नंबर आता है।
वही भाजपा की दूसरी पंक्ति में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह (5 अक्टूबर 52), बृजमोहन अग्रवाल (1 मई 59), अमर अग्रवाल( 22 सितम्बर 63), चन्द्रशेखर साहू (2 जुलाई 56), सरोज पांडे (22 जून 68) आदि का नंबर आता है।
बस्तर फिर छला गया!
छत्तीसगढ़ के बस्तरवासियों को फिर रेल बजट में छला गया है। इस बार एक यात्री रेल की उम्मीद बस्तरवासी कर रहे थे पर बरसों की प्रतीक्षा, प्रतीक्षा ही साबित हुई। रेल लाईन के लिये सर्वे का झुनझुना ही उनके हाथों आया।
बस्तर के लिये दुर्ग से एक यात्री रेल चलाने का क्रम कुछ माह पूर्व हुआ था पर यह ट्रेन दुर्ग से रायपुर के बीच 7 घंटे के सफर को 16 घंटे में पूरा करती है। इस रेल का रास्ता उड़ीसा होकर ऐसे रास्तों से घुमा-फिराकर बनाया गया है कि कोई मजबूर या सैलानी ही इसमें यात्रा करना पसंद करता है, हां, किराया कम है यह प्रचारित करके बस्तरवासियों के छाव में मरहम लगाने का प्रयास किया जाता है। 1962 में बस्तर मुख्यालय जगदलपुर रेल्वे स्टेशन बनकर तैयार हुआ था। 1976 में बस्तर से किरंदुल से विशाखापट्नम तक रेल की सौगात मिली थी। यह दुनिया सबसे खूबसूरत रेलमार्ग माना जाता है। 471 किलोमीटर लम्बे इस रास्ते में 46 सुरंगे भी है। प्राकृतिक सौंदर्ययुक्त यह मार्ग काफी आकर्षक है पर अक्सर सुरक्षा के नाम पर बस्तर की इस एकमात्र रेल को रद्द भी किया जाता रहा है। बहरहाल नए रेल बजट में बस्तर को फिर छला गया है।
कहां गए एग्लो इंडियन
जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी तपन मुखर्जी के अनुसार सत्तर के दशक के आसपास तक बिलासपुर के रेलवे कालोनी के फैले हुए इलाके में बड़ी संख्या में एग्लो इंडियन परिवार निवास करते थे. इस समुदाय के लोग जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि मिली-जुली नस्ल के थे। उनकी त्वचा गोरी थी और आंखें ज्यादातर नीली। ये यहां रेलवे के अधिकारी कर्मचारी थे। ये रेलवे कालोनी के बंगलों में आबाद थे। अक्सर रेलवे के इलाके में घूमते-फिरते नजर आते थे। पूरी तरह से अंग्रेजीदां रहन-सहन भी अंग्रेजों के माफिक इसाई धर्म को मानते थे. इनकी मातृभाषा अंग्रेजी हुआ करती थी। और चर्च में आया जाया करते थे. अंग्रेजों की तरह इनका अपना क्लब था जहां नाच-गानों के साथ अंग्रेजों की तरह आमोद-प्रमोद करते थे। इनके बच्चे रेलवे के अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ते थे. बाद की पीढ़ी के कई लड़के-लड़कियां हमारे साथ कालेज में थे। इस पीढ़ी में बहुत कुछ भारतीयता थी इनमें बहुत ेतेजी से बदलाव आया. अंग्रेजी रीति-रिवाज रहन-सहन कमजोर पड़ते गए। एक तरह से बिखराव आया. कुछ से कलकत्ता से मुलाकात हुई. कईयों ने भारतीयों से शादी कर ली है और यहां रच-बस गये हैं अच्छी हिन्दी और बंगला बोलते है कुल मिलाकर भारतीय समाज में घुल-मिल गए है. पहले की तरह अलग पहचान काफी कम हो गई है. अंग्रेजों को भारत से गए 65 साल हो गये हैं जाते समय वे अपनी निशांनियां छोड़ गए. आजादी के बाद नस्ल की आबादी 3 लाख थी. अंग्रेज इन्हें अपनी पैत्रिक भूमि नहीं ले गए. ये भी भारत नहीं छोड़ना चाहते थे. मानसिक पेशोपेश में रहे और भारत में ही रह गये. ब्रिटेन ने भी इन्हें वापस बुलाने की कोई पहल नहीं की. फिर 1941 के बाद की जनगणना में इनकी गिनती नहीं की गई. 50 से 60 की दशक के बीच इन्होंने भारत से बाहर निकलना शुरू किया. ये यहां से कनाड़ा, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में बस गये. बहुत से अपने पैत्रिक देश ब्रिटेन चले गए. कुल मिलाकर यह कुनबा छितर-बितर हो गया. पश्चिम लंदन का साउथ इलाका इनसे आबाद है. जहां भारतीयों की मिली-जुली संस्कृति है. यहां अपना रूपया भी चलता है. भारत की ही तरह सड़क किनारे खोमचे है और भारतीय  भोजन के ढाबा-रेस्तरां भी. एक तरह से यह समुदाय समाप्ति की ओर है. तथा समाज निरंतर धूमिल पड़ता जा रहा है. बहरहाल एंग्लो इंडियन लोग सिमट गए है. अब वे स्थानीयता भी स्वीकार कर चुके हैं. भारतीयों में लगभग घुल-मिल चुके हैं. भारतीयों की अनेकता में एकता के वे महत्वपूर्ण सूत्र है.
खेती का रकबा घटा!
छत्तीसगढ़ को (धान का कटोरा) कहा जाता था पर अब यह उद्योग के उबलते कड़ाह के रूप में ख्याति प्राप्त कर रहा है। सबसे आश्चर्य तो यह है कि औद्योगिकीकरण, खनिज उत्खनन, सड़क चौड़ीकरण, रहवासी क्षेत्र में वृद्धि के चलते कृषि का रकबा लगातार कम होता जा रहा है पर हर साल धान खरीदी बढ़ती जा रही है यह विरोधाभाष ही है।
सूत्र कहते हैं कि पिछले पांच सालों के भीतर प्रदेश में एक लाख 26 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि औद्योगिकरण और खनिज उत्खनन की भेंट चढ़ गई है। यहां खेतों की जोत का रकबा छोटा होकर औसतन 1.36 हेक्टेयर रह गया है। देश की नवी कृषि गणना रिपोर्ट के अनुसार 2005-2006 में प्रदेश में कृषि रकबा 52 लाख  10 हजार हेक्टेयर था जो नई गणना में यह रकबा घटकर 50 लाख 84 हजार हेक्टेयर रह गया है। पिछले 5 सालों में कृषि का रकबा कम हो गया है। आज की स्थिति में छत्तीसगढ़ में कृषि रकबा 8.26 प्रतिशत है जबकि इससे लगे मध्यप्रदेश में यह रकबा 12.19 फीसदी है। यह धान के कटोरे के लिये चिंता का विषय ही है।
और अब बस
एक वरिष्ठ आईएएस अफसर और एक वरिष्ठ मंत्री के बीच बढ़ती दूरी किसी से छिपा नहीं है। वरिष्ठ आईएएस अफसर का तो वे कुछ नहीं कर सके पर उनके बंगले की दीवार गिराकर ही खुश हो गये है।
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पार्टी से बगावत करनेवालों के लिये वापसी का रास्ता बंद है राहुल गांधी ने कहा है। कि एक टिप्पणी.. ऐसे में नोबेल वर्मा का क्या होगा !
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भाजपा का एक बड़ी नेत्री का बेमेतरा में सक्रिय होना चर्चा में है।