Saturday, November 24, 2012

सरहदों पर तनाव है क्या
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या!

देश में मध्यावधि चुनाव होने की अटकल के बीच उसी के साथ कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने की चर्चा आम है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में अगले साल चुनाव होना है। सत्ताधारी दल भाजपा सहित प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की सक्रियता शुरू हो गई है। आम जनता को भी अब अपने बढ़ते महत्व का एहसास हो रहा है।
छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार का ध्यान अब आदिवासी क्षेत्रों सहित शहरी मतदाताओं पर अधिक है। युवाओं को भी लुभाने अब राज्य सरकार लोक लुभावन योजनाएं शुरू करने का दावा कर रही है। छत्तीसगढ़ की कुल 90 विधानसभा क्षेत्रों में 29 आदिवासी बाहुल्य है और उसमें से भी 21 सीटों पर भाजपा के विधायक काबिज हैं। आदिवासी अंचल बस्तर की 11 विधानसभा सीटों में 10 भाजपा के पास है। केवल एक सीट पर कांग्रेस के विधायक चुने गये थे। हाल ही में आरक्षण के मामले में राज्य सरकार की घोषणा के बाद सतनामी समाज सहित आदिवासी समाज भी कुछ नाराज है। सलवा जुडूम के बाद बढ़ती नक्सली गतिविधियां नक्सलियों के आतंक के चलते गांव छोडऩे वाले आदिवासी अब सलवा जुडूम कैम्प लगभग बंद होने से बेघर वार है वही आदिवासी क्षेत्रों की जमीन उद्योगपतियों को जबरिया देने से भी समाज नाखुश है। बस्तर में सभी जिलों में कांग्रेस प्रदर्शन, गिरफ्तारी की स्थिति के चलते सरकार कुछ चितिंत है। सरकार आदिवासियों को चावल योजना के बाद चना वितरण, कूप कटाई का लाभांस 15 से 20 प्रतिशत करने की घोषणा की वही बांस कटाई का पूरा लाभांष आदिवासियों को देने की घोषणा कर चुकी है। वही किसानों को नया पृथक कृषि बजट, एक प्रतिशत ब्याज पर किसानों को ऋण पांच हार्स विद्युत पर छह से सात हजार यूनिट बिजली नि:शुल्क देकर साधने का प्रयास कर रही है वहां धान के एक-एक दाना खरीदने की बात भी कर रही है।
भाजपा युवाओं को भी जोडऩे का प्रयास कर रही है। उद्योग पतियों को राज्योत्सव में आमंत्रित करके एमओयू करके प्रदेश के हजारों नौकरियों का सपना तो दिखा रही है वही हाल ही में युवाओं को उनके रूझान के चलते टेबलेट देने की घोषणा कर भी रिझाने का प्रयास कर रही है। कम्प्यूटर शिक्षा के बढ़ते के्रज के चलते यह योजना युवाओं को निश्चित ही आकर्षित करेगी।
आज से ही राज्य सरकार ने शहरी मतदाताओं को रिझाने शहरी क्षेत्रों में सुराज अभियान शुरूकर चुकी है। गांव के चलाने वाले सुराज अभियान और शहरी क्षेत्रों में शुरू सुराज अभियान में बड़ा फर्क है। एक तो शहरी मतदाता शिक्षित एवं जागरुक होते है दूसरा शहरी मतदाता सफाई, सड़क, पेयजल और बिजली की समस्या को लेकर परेशान है। वैसे डा. रमन सिंह का यह अभियान कितना सफल होकर शहरी मतदाताओं को रिझाता है इसका पता तो बाद में ही चलेगा पर एक बात जरूर है कि शहरी क्षेत्र के विधायक, मंत्री 4 साल पूरा होने के बाद अपने मतदाताओं से रूबरू होंगे जाहिर है उन्हें मतदाताओं की समस्या और आक्रोश से रूबरू होना पड़ेगा।
कांग्रेस की तैयारी
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मात्र डेढ़ फीसदी अधिक मत लेकर प्राप्त कर सत्ता का सुख हासिल कर लिया था। मात्र डेढ़ फीसदी के अंतर के कारण भाजपा इस चुनाव में कुछ चिंतित है तो कांग्रेस यह गड्डा आसानी से पाटने की कवायद शुरू कर चुकी है। यह ठीक है कि नंद कुमार पटेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में उत्साह तो जागा ही है, उनके नेतृत्व में जिस तरह प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन, धरना, आंदोलन तथा रैलियां हुई है उसने कांग्रेस में जान फंूक दी है। कांग्रेस ने लगातार भटगांव कोल ब्लाक के गलत आबंटन का मुद्दा उठाया और केन्द्र सरकार ने वह आबंटन निरस्त करने की सिफारिश कर दी यह कोल खदान भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय संचेती को आबंटित की गई थी। कांग्रेस का तो सीधा आरोप था कि यह खान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के दबाव में दी गई थी खैर कांग्रेस ने भाजपा का विरोध तो किया पर जनहित के मुद्दे पर उसे और भी जमकर संघर्ष करना होगा। सरप्लस बिजली वाले प्रदेश में आम उपभोक्ता को महंगी बिजली दी जा रही है, नगरीय निकायो में नलों से दिया जाने वाला पानी महंगा हो गया है, राजधानी में ही सड़कों की हालत खस्ता है, धान खरीदी में अनियमितता, खाद का संकट, कालाबाजारी , मिलावट आदि कुछ आम जनता से जुड़ी बातें है, कांग्रेस ने आंदोलन तो किया पर रस्म अदायगी की,
कांग्रेस के पास पुराने समर्पित कांग्रेसी नेताओं, कार्यकर्ताओं की फौज है पर नंदकुमार पटेल ने उन्हें जोडऩे भी कुछ खास मेहनत नही की। पवन दीवान का छग में अच्छा जनाधार है पर उनसे मिलने का भी समय नहीं निकाल पाये, यह तो एक उदाहरण है ऐसे कई नेता और कार्यकर्ता जिनसे क्षेत्र में कांग्रेस को पहचाना जाता था वे उपेक्षित हैं। हां, कुछ जनाधार विहीन और अखबारी नेता जरूर उनके आसपास सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस अध्यक्ष यदि पुराने उपेक्षित कांग्रेसियों को ही सक्रिय कर लेंगे तो डेढ़ प्रतिशत मतो का गड्डा पाटना कठिन नहीं होगा?
कांग्रेस आलाकमान मध्यावधि चुनाव का संकेत दे चुका है। कांग्रेसी पर्यवेक्षक उसेण्डी प्रदेश का दौरा करके प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र से 3-3 युवाओं की पैनल बनाने टोह ले रहे हैं। सूत्र कहते है कि मप्र, छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों मे ंलोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने की भी चर्चा है। छत्तीसगढ़ मे ंकांग्रेस के विधायक अधिक चुने जाते हैं पर पिछले  दो लोकसभा चुनावों में केवल एक सांसद ही बन रहा है। जबकि विधायकों की संख्या के आधार पर कम से कम 4-5 सांसद बनने चाहिये थे। सूत्र कहते है कि यदि लोस-चुनाव एक साथ होंगे तो कांग्रेस को लाभ हो सकता है।
तीसरे मोर्चे को झटका
छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के संस्थापक , 4 बार सांसद तथा 2 बार विधायक रह चुके ताराचंद साहू के आकस्मिक निधन से प्रदेश में तीसरा मोर्चा बनाने के अभियान को झटका लगा है। साहू समाज में अपना अहम स्थान रखने वाले ताराचंद साहू के प्रयास से ही अरविंद नेताम, पुरूषोत्तम कौशिक, पूर्व विधायक मनीष कुंजाम, एनसीपी के अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक नोबल वर्मा, पूर्व मंत्री डीपी धृतलहरे, बसपा के पूर्व अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक दाऊराम रत्नाकर, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक हीरा सिंह मरकाम आदि का एक मंच पर एकत्रित होकर कांग्रेस-भाजपा के खिलाफ एक तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद शुरू की थी और उसके सूत्रधार थे स्व ताराचंद साहू। सूत्र कहते है कि तीसरे मोर्चे की तैयारी, प्रदेश की लगभग सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की थी। बहरहाल ताराचंद साहू के आकस्मिक निधन के बाद तीसरे मोर्चे के गठन पर कुछ गतिरोध आया है। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने हालांकि पिछले विस चुनाव में खाता तो नहीं खोला था पर अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराई थी। वैसे भी कांग्रेस-भाजपा पर राष्ट्रीय स्तर पर जो आरोप लग रहे है ऐसे भी तीसरे मोर्चे की आवश्यकता से राजनीति सूत्र भी इंकार नहीं कर रहे हैं।
अजीत जोगी और चर्चा
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी हमेशा मीडिया में छाये रहते हैं। कभी उनके कांग्रेस छोडऩे की चर्चा उछलती है तो कभी उनके कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के महासचिव तथा पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले राहुल गांधी से बढ़ती दूरियां की खबर उछलती है कभी उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाने की चर्च गर्म होती है, कभी वे प्रदेश के प्रभारी सचिव बी.के. हरिप्रसाद पर नाराजगी जाहिर करते हुए चर्चा में रहते हैं। चर्चा और खबरों में रहने की कला अजीत जोगी अच्छे से जानते हैं। कभी कहा जाता है कि अजीत जोगी के प्रदेश में रहते छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती है कभी कहा जाता है कि अजीत जोगी जैसा जनाधार वाला कांग्रेसी नेता छत्तीसगढ़ मे ंदूसरा नहीं है। कभी अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी के प्रदेश दौरे से प्रदेश के कुछ बड़े कांग्रेसी नेताओं के परेशान होने की भी खबर मिलती है। वैसे हाल ही में कांग्रेस आलाकमान द्वारा चुनाव घोषणा पत्र संबंधी उप समिति में अजीत जोगी को शामिल किये जाने की घोषणा के बाद उनके समर्थक उत्साहित है तो विरोधी नेता नाखुश। देश की जनता की नब्ज पहचानकर चुनाव घोषणा पत्र बनाने वाली कमेटी में अजीत जोगी को शामिल करने का मतलब साफ है कि वे कम से कम छत्तीसगढ़ की जनता की नब्ज तो पहचानते ही है। पिछले विस चुनाव में मात्र डेढ़ प्रतिशत कम मत हासिल करने के कारण कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा था। कई प्रमुख नेता पराजित हो गये थे। नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, प्रदेश कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, उप नेता  भूपेश बघेल, मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा, अरविंद नेताम की पुत्री सभी पराजित हो गये थे। क्या सभी प्रमुख लोगों को अजीत जोगी ने टिकट दिलवाई थी खैर चुनाव घोषणा पत्र उप समिति में शामिल करने पर जोगी समर्थक उत्साहित है तो विरोधी यह कह रहे है कि उप समिति में शामिल करके जोगी को प्रदेश की राजनीति से दूर करने की रणनीति हैं। सवाल फिर उठ रहा है कि यदि प्रदेश की राजनीति से अजीत जोगी को मान लो दूर भी किया जाता है तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी मोतीलाल वोरा, विद्याचरण शुक्ल, डा. चरण दास महंत, नंदकुमार पटेल, रविन्द्र चौबे या किसी अन्य के?
सुनील कुमार और दिल्ली
छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव, अपनी इमानदार छवि और सख्त अफसर के रूप में चर्चित सुनील कुमार को देश के 30 अच्छे सीआर वाले अफसरों की सूची में शामिल करके केन्द्रीय सचिव के रूप में इन्पैनलमेंट किया है। हालांकि स्वास्थ्य अधिकारी इसका खंडन कर रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव सुनील कुमार मार्च 2014 तक मुख्य सचिव की जिम्मेदारी सम्हालेंगे। वैसे वे चाहे तो 17-18 माह का सेवा काल बचे होने के कारण केन्द्रीय सचिव पद पर जा सकते है क्योंकि केन्द्रीय सचिव पद के लिये कम से कम एक साल का समय अनिवार्य होता है। वैसे केन्द्रीय सचिव के पास प्रदेश की कुछ सरकारों से 8-10 गुना बजट अधिक होता है पर सुनील कुमार को तो बजट से कोई मतलब नही होता है। उनके छत्तीसगढ़ में मुख्य सचिव बनने के बाद कुछ राजनेताओं सहित कुछ आला अफसरों का बजट ही विबगड़ रहा है। वैसे पंजाब के राज्यपाल तथा केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री स्व. अर्जून सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, कलेक्टर अजीत जोगी, पूर्व मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल आदि के साथ कार्य करने वाले सुनील कुमार डा. रमन सिंह के साथ छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक प्रमुख का कार्यभार सम्हाल रहे हैं। वैसे अपनी नौकरी की शुरूवात बस्तर-अबूझमाड़ से करने वाले सुनील कुमार ने अपने कैरियर का प्रारंभ-विज्ञापन एजेन्सी और मीडिया के कार्य से किया था। जब अपनी आईएएस की नौकरी की शुरूवात उन्होंने बस्तर से की थी तब वहां बिजली भी नहीं थी और लालटैन की रोशनी में रात में काम होता था। अबूझमाड़ को उस दौरान कुछ दिन वहां जाकर उन्होंने बूझने का प्रयास भी किया था।
और अब बस
0 सुराज अभियान में आपत्ति के बाद महापौर किरण मयी नायक की होडिंग्स में फोटो हाटकर निगम का लोगों चस्पा किया जा रहा है...एक टिप्पणी...ऐसे में अगला विधानसभा चुनाव के दावे का क्या होगा? फोटो होने से आम जन कम से कम पहचानना तो शुरू ही कर देते।
0 नगर निगम को मच्छड़ मारने 95 लाख मिले थे और खर्च हुए सिर्फ एक लाख... सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी चौकाने वाली है। लगता है कि निगम के जनप्रतिनिधि और अधिकारी जीव हत्या के खिलाफ है तभी तो मच्छड़ों की आबादी बढ़ती ही जा रही है।
0 अगला पुलिस महानिदेशक कौन होगा राम या संत, वैसे भाजपा को संतों से अधिक राम से प्यार है इसलिये राम की संभावनाएं अधिक दिखाई दे रही हैं।


Wednesday, November 7, 2012

ये मैं ही था बचाके ले आया किनारे तक
समंदर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का

अमीर धरती गरीब लोग यह जुमला छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले से चल रहा है। छत्तीसगढ़ की इस बहुमूल्य धरा है जहां 44 फीसदी क्षेत्र वनों से परिपूर्ण है। वन क्षेत्र फल के हिसाब से हमारे राज्य की गिनती देश के तीसरे राज्य के रूप में होती है। खनिज की दृष्टि से छत्तीसगढ़ देश में दूसरा राज्य है। प्रकृति ने इसे बड़ी फुरसत से गढ़ा है। देश का 16.86 प्रतिशत कोयला, 18.67 प्रतिशत लौह अयस्क, 5.15 प्रतिशत चूना पत्थर, 11. 24 प्रतिशत डोलोमाईट, 4.50 प्रतिशत बाक्साईड, 37.69 प्रतिशत टिन अयस्क, 28.26 प्रतिशत हीरा, 1.06 प्रतिशत कोरंडम, 13 प्रतिशत  ग्रेनाईट लाख  मार्बल मिलियन, 4.63 प्रतिशत है तो प्रायमरी तौर पर 0.23 स्वर्ण अयस्क और 0.55 स्वर्ण धातू हमारी धरती के भीतर होने का अनुमान है।
हीरा और!
छत्तीसगढ़ में हीरा की किम्बर लाईट पाईप होने की पुष्टि हो चुकी है। रायपुर जिले के मैनपुर क्षेत्र में हीरा खनिज की मातृशिला किम्बर लाईट के 6 पाईप बेहराडीह, पायलीखंड, जांगड़ा, कोरोमाली, कोसमबुड़ा एवं बेहराडीह टेम्पल क्षेत्रों में होने की संभावना है तो बेहराडीह और पायलीखंड में किम्बर लाईट पाईप में हीरे होने की पुष्टि भी हो चुकी है। इसके अतिरिक्त रायगढ़ और महासमुंद जिले में किम्बर लाईट पाईप उपस्थित होने की पुष्टि भी कर दी गई है सर्वेक्षण निजी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। वैसे राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने हीरे के पूर्वेक्षण खनन लायसेंस को निरस्त कर दिया था और उसके बाद इस काम में लगी एक निजी कंपनी उच्च न्यायालय बिलासपुर चली गई थी और उच्च न्यायालय को पेशी दर पेशी ही सालों से चल रही है राज्य सरकार के आला अफसर इस मामले को न्यायालय से निपटाने में क्यों रूचि नहीं ले रहे है? जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के पास ही खनिज मंत्रालय है। जब राज्य बना था तो करमुक्त राज्य की बात जोर शोर से चली थी पर 12 साल बाद आम आदमी पर करों का बोझ है। राज्य सरकार को सभी बंदिशों हटाकर हीरा उत्खनन करना ही होगा तभी प्रदेश के आर्थिक हालात सुधरेंगे।
सपना और सौदागर
छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया रहे पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी ने तो कहा था कि वे सपनों के सौदागर हैं। सपना देखेंगे तभी तो पूरा होने की दिशा में कदम उठाया जाएगा। वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी प्रदेशवासियों के सपनों को पूरा करने देश की अत्याधुनिक राजधानी नया रायपुर को महत्व दे रहे है। पुराने रायपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर नई राजधानी आकार ले रही है। नई राजधानी इस क्षेत्र में बने यह निर्णय मंत्रिमंडल की बैठक में केवल 15 मिनट में ही अजीत जोगी ने लिया था और थोड़ा बहुत फेरबदल करके नई राजधानी को अंजाम तक पहुंचाने का जिम्मा डा. रमन सिंह ने लिया है। छग में कोयला लोहा की लूट, प्राकृतिक नदियों, नालों के पानी की बिक्री की खबरें चर्चा में रही है इसी बीच डा. रमन सिंह ने राज्य बनने के 12 सालों बाद पहली बार ग्लोबल इंवेस्टर मीट कराकर निश्चित ही औद्योगिक विकास में मील का पत्थर साबित किया है। पहली बार सरकार ने बेरोजगारों को भी अपने लक्ष्य में रखकर रोजगार मूलक उद्योगों की स्थापना पर बल दिया है और इसको अच्छा प्रतिसाद मिला है। निश्चित ही उद्योगों की स्थापना से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा पर इसके लिये सख्त कानून भी बनाने होंगे। छत्तीसगढ़ में कृषि भूमि सिकुडती जा रही है और धान कटोरा के नाम से चर्चित छत्तीसगढ़ अब उद्योग का खौलता कड़ाह बनने की दिशा में अग्रसर हो गया है खेती किसानी कम होने से बेरोजगारी बढ़ी है और गांव से शहरों तथा महानगरों की ओर पलायन शुरू हो गया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ की युवा पीढ़ी के लिये डा. रमन सिंह की सोच अच्छी है पर सरकार को कानून बनाना होगा कि छत्तीसगढ़ में स्थापित किसी भी उद्योग में इतने प्रतिशत छत्तीसगढिय़ों को रोजगार देना अनिवार्य होगा और सतत् मानिटरिंग की भी जरूरत है। ग्लोबल इनवेस्टर मीट मे ंकरीब एक लाख 22 हजार 449 करोड़ के औद्योगिक निवेश का एमओयू हुआ है इसका स्वागत किया जाना चाहिये पर उद्योगों की स्थपाना के साथ ही छत्तीसगढ़ में प्रदूषण नियंत्रण पर भी गंभीरता से विचार करना होगा।
रावघाट परियोजना और कवर्धा
छत्तीसगढ़ के भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये जीवन दायिनी रावघाट परियोजना पर नक्सली खौफ का ग्रहण लग रहा है। सेल के चेयरमेन ने ग्लोबल इंवेस्टर मीट में कवर्धा की लौह अयस्क खान के लिये राज्य सरकार से एमओयू का लिया है। दल्लीराजहरा से 3-4 सालों तक के लिये ही लौह अयस्क बचा है और रावघाट परियोजना इतने समय में अंजाम ले पाएगी ऐसा लग नहीं रहा है
केन्द्रीय इस्पात मंत्रालय एवं सेल (स्टील एथारिटी आफ इंडिया) को रावघाट परियोजना पूरी होकर लौह उत्खनन की उम्मीद थी पर नक्सली खौफ के चलते रेल लाईन सर्वे आदि का काम भी प्रभावित हो रहा है। केन्द्रीय गृहमंत्रालय, राज्य शासन और रेल मंत्रालय द्वारा हाल ही में पहल कर राजहरा से रावघाट खदान तक रेल्वे ट्रेक बनने का कार्य प्रारंभ किया गया है। इस ट्रेक की लम्बाई 90 किलोमीटर होगी, पहले चरण में दल्ली राजहरा से केयोटी तक 42 किलोमीटर ट्रेक बिछाने का कार्य अक्टूबर में शुरू किया गया पर नक्सली खौफ और धमकी के चलते यह कार्य प्रभावित हो रहा है। यह रेल्वे लाईन चूंकि बालौद, कांकेर, नारायणपुर, कोण्डागांव, जगदलपुर जिलों से गुजरना है और बड़ा क्षेत्र नक्सली प्रभावित है इसलिये रावघाट परियोजना के शीघ्र प्रारंभ होने में संदेह है। इसीलिये सेल के चेयरमेन ने छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम से कवर्धा की एक आयरन ओर खदान के लिये एमओयू करके वैकल्पिक रास्ता खोजने का प्रयास किया है। इससे भिलाई इस्पात संयंत्र की धड़कन तो चलती ही रहेगी।
तब गुस्सा क्यों नहीं आता
छत्तीसगढ़ की प्रथम महापौर डा. किरणमयी नायक को गुस्सा बहुत आता है। अभी तक तो गुस्से में कुछ भी कह देती थी पर अब तो गुस्सा दिखाना भी शुरू कर चुकी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पथ संचलन में पुष्प वर्षा करके चर्चा में रही महापौर ने हाल ही में सिटी बस लोकापर्ण कार्यक्रम में अतिथियों के लिये लाये गये पुष्प गुच्छ, हारों को जमीन में फेंककर एक नया रूप दिखाया है। वैसे कांग्रेसी नेताओं की उपेक्षा, आमंत्रण पत्र में बड़े कांग्रेसी नेताओं के नाम नहीं होने को लेकर महापौर को गुस्सा आया था। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के दिन एक नवम्बर को तीन मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल और राजेश मूणत को भारी विरोध के चलते बिना मंच पर चढ़े औपचारिक लोकापर्ण करना पड़ा। बाद में महापौर किरणमयी नायक ने अतिथियों के लिये लाये गये हार पुष्प गुच्छ को जमीन में फेंककर अपना विरोध दर्ज कराया। लोग अब कहने लगे है कि जब राज्य सरकार ने निगम क्षेत्र में पेयजल की दर बढ़ाई थी तब महापौर को गुस्सा क्यों नहीं आया, रायपुर की कई सड़कें इस बार की बारिश से गड्ढों में तब्दील हो गई है तब महापौर को गुस्सा क्यों नहीं आया, सम्पत्ति कर बढ़ाया जा रहा है तब महापौर नाराज क्यों नहीं हुई। कई लोगों को बिना व्यवस्थापन के हटा दिया गया, सुभाष धुप्पड़ के पुराने पेट्रोलपंप (अब व्यवसायिक परिसर निर्माणाधीन) से डंगनिया तक वर्षों पुराने कब्जं को हटाया गया तब महापौर कहां थी? और कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के पुस्तैनी मकान का पाटा तोड़ा गया और निगम ने अपने खर्चे पर पुन: पाटा बना दिया गया तब महापौर को शहर के विकास और चौड़ीकरण के लिये हटाये गये कब्जाधारियों की याद नहीं आई। आमापारा से तात्यापारा चौक तक तो चौड़ीकरण के नाम पर कब्जा हटाया गया पर तात्यापारा से जयस्तंभ तक कब्जा नहीं हटाने पर महापौर को गुस्सा क्यों नहीं आया। शहर की सफाई व्यवस्था, सड़कों की हालत चिंता जनक है पर महापौर को गुस्सा नहीं आता है।
जोगी की चर्चा
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी हमेशा सुर्खियों में रहते है। कभी प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के रायपुर प्रवास पर नारेबाजी कराकर चर्चा में रहते है तो कभी बुजुर्ग नेता मोतीलाल वोरा को माना विमानतल में समझाने का प्रयास करते अखबार की सुर्खिया बनते है। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी तथा कांग्रेस के महासचिव बीके हरिप्रसाद को बिल्हा के मंच पर समझाने और दुर्ग के मंच पर सोनिया गांधी जिंदाबाद के नारे लगवाकर सोनिया गांधी को बताने की बात मंच से सार्वजनिक रूप से हरिप्रसाद से कहने पर चर्चा में है। सूत्र कहते है कि अजीत जोगी चतुर सुजान नेता है उन्हें कहां क्या करना है यह आता है। दुर्ग के कांग्रेसी मंच पर अजीत जोगी द्वारा पव्वा के बदले बम्फर लेने, 500 से बदले एक हजार का नोट भाजपाईयों से लेकर पर कांग्रेस को वोट देने की अपील की। वैसे यह अपील कई सार्वजनिक मंच से जोगी कर चुके है पर पता नहीं क्यों विद्या भैय्या को यह बुरा लग और उन्होंने इस बयान की ही निंदा कर दी बस फिर क्या था उद्योगपति और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य नवीन जिंदल को शोषक तथा सच्चा कांग्रेसी नहीं मानने तथा रायगढ़ जाकर विरोध करने वाले विद्या भैय्या जोगी के निशाने में आ गये। सूत्र कहते है कि नवीन जिंदल के पास खबर गई और नवीन जिंदल ग्लोबल इंवेस्टर मीटर में पहुंचे और अजीत जोगी के निवास पर जाकर उनके एक घंटे गुफ्तगु की। जाहिर है कि विद्या भैय्या के विषय में भी बातचीत तो हुई ही होगी। वैसे कांग्रेस के दिल्ली में बैठे कई आला नेता मानते हैं कि जोगी की मदद के बिना छग में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती वही कुछ लोग कहते है कि जोगी के छग में रहते कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती? बहरहाल अजीत जोगी को दिल्ली में कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रवक्ता पुन: बनाने की चर्चा चल रही है। जोगी भी अपनी कुछ शर्तों पर छग से बाहर जाने तैयार हो सकते है इससे भाजपा सरकार सहित नंदकुमार पटेल, रविन्द्र चौबे, विद्याचरण शुक्ल, डा. चरणदास महंत कुछ फ्री तो हो ही जाएंगे?
और अब बस
0 छत्तीसगढ़ राज्योत्सव में हमेशा मुख्यमंत्री के अगल-बगल दिखने वाले एक अधिकारी की इस बार सक्रियता नजर नहीं आई...एक टिप्पणी कुछेक और अधिकारियों को अगल-बगल से हटा देंगे तो अगली सरकार बनने की संभावना बढ़ सकती है।
0 नये मंत्रालय भवन में सबसे बड़े कक्ष में प्रमुख सचिव बृजेन्द्र कुमार बैठेंगे मुख्यमंत्री के लिये बने कक्ष पर अब ये बैठेंगे वही इनके नाम पर बने कक्ष में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह