Monday, April 30, 2012

तूफानों से आंख मलिाओं
सैलाबों को पार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ों
तैर के दरिया पार करो
लाल आतंक को जड़ से उखाड़ फेंकने के अनगिनत वादों, ढेंरों रणनीतियों और भारी-भरकम रकम खर्च करने के बावजूद नतीजा सिफर है। केन्द्र और राज्य सरकार ने माओवादियों के खिलाफ मोर्च पर सुरक्षा बलों के करीब 30 हजार से अधिक जवानों को झोंक रखा है, बीते चार साल में लाल आतंक पर लगाम कसने के लिये 3975 करोड़ रूपये भी फूंके जा चुके है लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खौफ के कारोबार में लगातार इजाफा हो रहा है। उनकी ताकत में बढ़ोत्तरी हो रही है।
छत्तीसगढ़ राज्य में एक विधानसभा क्षेत्र को सुकमा जिला का दर्जा दिया गया और नक्सलियों ने सुराज अभियान के दौरान ही 2006 बैच के आईएएस तथा तमिलनाडू के मूल निवासी 32 वर्षीय कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण कर लिया। एलेक्स को खतरे का अंदाजा था उन्हें एलर्ट भी किया गया था फिर भी 2 सुरक्षा कर्मी के साथ वे सुराज अभियान में निकले थे, उन्हें मोटर सायकल में बैठकर नहीं जाना था। कलेक्टर की सुरक्षा की जिम्मेदारी वहां के पुलिस कप्तान की थी। ये जुमले नक्सलियों की ताकत को कम नहीं करते है वहीं युवा कलेक्टर के अपहरम की घटना को भी झूठला नहीं सकते हैं। सवाल यह उठ रहा है कि जब किसी जिले का कलेक्टर ही सुरक्षित नहीं है तो आम जन की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
पुलिस मुख्यालय से लगातार बयान आते रहे है कि नक्सलियों को सुरक्षा बल का दबाव है, उनकी जमीन खिसक रही है और वे पलायन करने मजबूर है। कलेक्टर का अपहरण मुख्यालय के सतही बयान की हकीकत बयान करता है। छत्तीसगढ़ में डीजीपी के रूप में स्व. ओपी राठौर ने कार्य किया, पंजाब में आतंकवाद निपटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले के पी एस गिल की भी बतौर सलाहकार नियुक्ति की गई, इंटेलीजेन्स ब्यूरो के अनुभवी अधिकारी विश्वरंजन की भी डीजीपी के पद पर नियुकक्ति की गई और उन्हें हटाकर डीजीपी के पद पर अनिल एम नवानी को पदसस्थ किया गया है। हालात तो जस केतस भी नहीं है। नक्सली लगातार अपना क्षेत्र विस्तार कर है। माओवादी की लेन्ही (जबरिया वसूली) तो अब 200 करोड़ सालाना हो गई है। 1968 में पश्चिम बस्तर में माओवादियों ने 15 लड़ाकों के साथ बीजापुर क्षेत्र में मद्देड़दलम का गठन किा था सूत्र कहते है कि आज बस्तर में ही माओवादियों की 7 डिवीजनल कमेटी, लड़ाकों की 2 बटालियन, 11 कंपनियां और 30 प्लाटून हैं। जानकार कहते हैं कि अपनी लगातार आर्थिक स्थिति सुधारते हुए माओवादी अब सुरक्षाबलों से लंबी लड़ाई के लिये तैयार हैं। सुरक्षा बल के पास यूबीजीएल (अंडर, बैरल ग्रेनेड लांचर) के जवाब में माओवादियों के पास अमरीका एम 16 सीरीज के घातक हथियार  है। अब तो माओवादियों के पास सैटेलाईट फोन होने का भी खुलासा हो चुका है। बीजापुर के रानीबोदली क्षेत्र में किसी कमांडर से आदेश लेने का पता चला था।
छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिला छोड़कर अधिकांश जिले नक्सली आंतक से प्रभावित है। बस्तर, राजनांदगांव, सरगुजा क्षेत्र में तो उनकी सक्रियता है ही। वहीं अब गरियाबंद, राजहरा, कोरबा, सारंगढ़, महासमुंद जिले में भी नक्सली आहट सुनाइ दे रही है। राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा में युवा पुलिस कप्तान विनोद चौबे की शहादत से हमने सबक नहीं सीखा, गरियाबंद क्षेत्र के एएसपी की शहादत हो गई, एक साथ 76 सुरक्षाबल के जवान की शहादत भी हो गई, दंतेवाड़ा में जेलब्रेक से 299 कैदी बंदी नक्सलियों के साथ भाग गये, बस्तर में बारूद की एक ट्रक लूट ली गई, बस्तर में सुरक्षाबल के जवानों सहित आम ग्रामीण की नक्सलियों द्वारा हत्या की खबर आम हो गई है। आपरेशन ग्रीन हण्ट, सलवा जुडूम जनजागरण अभियान, एसपीओ की भर्ती फर्जी मुठभेड़ आदि की खबर आम है। सुरक्षा बल और माओवादियों के बीच आम आदिवासी पिस रहा है , एस्सार जैसे औद्योगिक संस्थान द्वारा नक्सलियों को 15 लाख की आर्थिक मदद के मामले का खुलासा हुआ है। मामला थाने में दफन हो गया और अब तो नक्सलियों ने एक युवा कलेक्टर का अपहरण कर अपनी शर्त रखकर हद ही कर दी है। अपने साथियों और शहरी नक्सल सूत्रों की रिहाई की शर्त रखकर सरकार को ब्लेकमेल करने का माहौल बना लिया है।
सरकार ने मप्र की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच छग के पूर्व मुख्य सचिव सयोग्य कुमार मिश्रा को कलेक्टर की रिहाई के लिये मध्यस्थ बनाया है वहीं नक्सलियों ने पूर्व कलेक्टर ब्रम्हदेव शर्मा और हैदराबाद विवि के पूर्व प्रो. हरगोविंद को मध्यस्थ बनाया है। वहीं पूर्व विधायक मनीष कुंजाम की पहल पर बीमार कलेक्टर को दवाई सुलभ हो सकी। सवाल यह है कि आखिर छग की पुलिस यहां का मुख्यालय क्यों किसी की दया पर निर्भर है। यदि नक्सलियों की बस्तर में समानांतर सरकार है तो बयानबाजी कर पुलिस मुख्यालय झूठे दावे क्यों करता है। कुल मिलाकर इन नक्सलियों के गुरुर को तोडऩा होगा उनका खौफ कम करना होगा, ठोस रणनीति बनानी होगी, नक्सली क्षेत्र की पर्याप्त जानकारी नहीं होने वाले अफसरों के जिम्मे नक्सली उन्मूलन की बात करना ख्याली पुलाव ही साबित होगा। नक्सल आपरेशन के लिये किसी जानकार पुलिस अधिकारी को नक्सली डीजी बनाकर भी कुछ ठोस कार्यवाही की जा सकती है जैसा अविभाजित मप्र के समय नक्सल आईजी का पद सृजित किया गया था।
दूषित पानी:आप स्वयं जिम्मेदार
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नगर निगम का महापौर कांग्रेस की बनी है, और प्रदेश में मंत्री भी नगर निगम क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं फिर भी छत्तीसगढ़ की राजधानी के निवासी स्वयं को अब छला हुआ महसूस कर रहे है।
प्रदेश की राजधानी रायपुर में वायु प्रदूषण तो किसी से छिपा नहीं है। शहर के हृदय स्थल जयस्तंभ चौक पर वायु प्रदूषण की स्थिति सबसे अधिक खतरनाक है, मालवीय रोड़ महात्मागांधी मार्ग की हालत भी कमोवेश वही है वहीं प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था जिस डी के एस भवन से चलती है उस भवन के सामने स्थिति शास्त्री चौक में वायु प्रदूषण की हालत चिंता जनक है। राजधानी की पेयल व्यवस्था की हालत भी किसी से छिपी नहीं है।
हाल ही में राजधानी में पेयजल दर में वृद्धि भी हुई है। महापौर किरणमयी नायक पेयजल दर वृद्धि के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। वैसे यह तय है कि राजधानी की सफाई, प्रकाश व्यवस्था की हालत भी कम चिंता जनक नहीं है। निगम में जिस तरह कांग्रेसी-भाजपाई पार्षद आपस में उलझते रहते है, आम बजट पास नहीं होने का रिकार्ड भी बन चुका है उससे नगरवासी कम चिंतित नहीं है।
इधर हाल ही में की निस्तारी समस्या दूर करनेवाले बूढ़ातालाब, कंकाली तालाब, तेली बांधा तालाब, महाराजाबंध तालाब तथा नरहैया तालाब का पानी भी जहरीला होने की रिपोर्ट निगम मुख्यालय पहुंची है। सूत्र कहते है कि इन तालाबों का पानी नहाने के लिए भी अनुपयोगी माना गया है इसका उपयोग करने पर चर्म बीमारियां भी होने की संभावना प्रबल है। बताया जाता है कि जब निगम में महापौर सहित आला अफसरों को यह जानकारी मिली तो एक हल निकाला गया कि इन पांचों तालाबों के पास चेतावनी नूमा बोर्ड लगाया जाएगा कि इस तालाब का पानी जहरीला हो गया है इसका उपयोग हानिकारक हो सकता है और इसका उपयोग करने पर आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
सवाल यह उठ रहा है कि चेतावनी बोर्ड लगाकर निगम प्रशासन अपनी जिम्मेदारी पूरा करने की बात करेगा पर इन तालाबों का पानी उपयोग नहीं करने पर नागरिको के पास इसका विकल्प क्या होगा?
मनमानी शुरू
रायपुर से दिल्ली और मुंबई जानेवाले विमान यात्रियों को अब एयर लाइंस कंपनियों की मनमानी को बर्दाश्त करना पड़ रहा है। तत्काल यात्रा करनेवालों को 30 से 32 हजार रुपए खर्च करना पड़ रहा है। जबकि इतनी कीमतों में यात्री सिंगापुर, श्रीलंका, बैकांक, दुबई से आना-जाना हो सकता है।
छत्तीसगढ़ के एक मात्र विवेकानंद एयरपोर्ट को जल्द ही अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का दर्जा दिए जाने की तैयारी चल रही है। पर यहां के विमान यात्रियों को सुविधा के नाम पर ठगा ही जा रहा है। रायपुर से दिल्ली, मुंबई के लिए एयर इंडिया, जेट तथा इंडिगो की ही फ्लाईट है। हाल ही में केन्द्र सरकार ने एक अप्रैल से एयर लाइंस कंपनियों पर सर्विस टेक्स बढ़ाया है और उसी के बाद कंपनियों ने अपने यात्री किराए पर 100 से 4000 रुपए तक की बढ़ोत्तरी की है। इस टेक्स का सबसे अधिक असर तो तत्काल टिकट लेनेवालों पर ही परिलक्षित हो रहा है। रायपुर से दिल्ली और मुंबई के लिए सफर करनेवाले यात्रियों को अब एक तरफ की उड़ान के लिए इतना अधिक खर्च करना पड़ रहा है। जितने किराए पर तो वे विदेश जाकर वापस लौट सकते है। वैसे एयर लाइंस कंपनी मनमानी किराया यात्रियों से तत्काल टिकट के नाम पर वसूल रही है, राज्य सरकार का तो इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। पर राज्य सरकार के आला अफसर भी एयर लाइंस कंपनियों की मनमानी से हैरान है और इस की शिकायत डीजीसीए से करने पर भी विचार कर रही है।
और अब बस
छत्तीसगढ़ के पहले नेता प्रतिपक्ष पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राज्य सभा संासद नंदकुमार साय को उनकी वाहन लाक करने पर गुस्सा गया असल में पुलिस से उनका गुस्सा काफी पुराना है। एक टिप्पणी ... देर से आया पर गुस्सा तो आया आखिर!
आइना ए छत्तीसगढ़
अल्लाह किसका नाम है, मल्लाह किसका नाम
तूफान किसका नाम है, कश्ती में आकर देख

छत्तीसगढ़ का आदिवासी अंचल बस्तर अपनी प्राकृतिक छटा, औषधीय पौधे, नयनाभिराम झरने, पहाड़ों के लिये विख्यात है तो आदिम मानवों की सभ्यता का पुट अभी भी कहीं-कहीं दिखाई देने के लिये चर्चित है  पर आजकल बस्तर में नक्सलियों द्वारा किये जा रहे विस्फोटकों की बारुदी गंध, लाल होती धरती, गोलियों की आवाजें, खाकी और हरी वर्दीधारियों के बूटों की धमक के लिये भी चर्चित है। बस्तर को समझना है तो बस्तर के ग्रामीण अंचलों में जाकर ही समझा जा सकता है।
नैसर्गिक सौंदर्य से ओत-प्रोत बस्तर, केरल राज्य से भी बड़ा है। उत्तर से दक्षिण तक 275 किलोमीटर की लम्बाई और पश्चिम से पूर्व तक 182 किलोमीटर की लम्बाई तक फैले इस विशाल भूभाग का क्षेत्रफल 39 हजार 114 वर्ग किलोमीटर है। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर बस्तर में वनों से आंच्छादित पहाडिय़ां तथा उनसे मुक्त रूप से विचरण करते वन्यप्राणी, मनोहारी जलप्रतापों के साथ कलकल बहती नदियां तथा जंगलों में पांरपरिक नृत्यों से सीधा संबंध स्थापित करते हैं।
अपनी संस्कृति, पुरातात्विक एवं भौगोलिक विशिष्ठताओं के कारण यह क्षेत्र अपना विशिष्ठ महत्व रखता है। इस क्षेत्र यानी बस्तर संभाग में 72 फीसदी अनुसूचित जनजातियां तथा अनुसूचित जातियां निवास करती हैं। बस्तर में मानव विकास की ऐतिहासिक मंजिलों में बस्तर का अबूझमाड़, शिकारी युग, उत्तर और मध्यबस्तर का क्षेत्र कृषि युग तथा बैलाडिला की औद्योगिक युग का प्रतिनिधित्व करती है। कोयल नहीं बोलती
सजा नहीं मजा!
पालतू मवेशी
साल की कोमल पत्तियां
खा जाते हैं
बीजा, हर्रा, सागवान
सिहरती है पत्तियां तेंदू की
जब, हरी वर्दी में
 कोई कुल्हाड़ी लेकर आता है
जीवन का चक्का घूमता है
अंतहीन नैराश्य के अंधेरे में
सलफी पीकर चुपचाप
दिन काट रहा है बस्तर में                 

आदिवासी अंचल बस्तर में कतिपय व्यापारियों तथा कुछ बाहरी लोगों द्वारा सीधे-सादे गरीब, निश्चल तथा प्रकृति प्रेमी आदिवासयिों के शोषण का सिलसिला काफी समय से चल रहा है। बस्तर को राष्ट्र की मुख्य धरा में सम्मिलित करने और इस क्षेत्र के समूचित विकास में योगदान के लिये सक्षम बनाने की चुनौती आजादी के पहले और बाद में सभी के सामने है। बस्तर पहले एक जिला था फिर उसे कांकेर और दंतेवाड़ा जिलों में बांटा गया और अभी हाल ही में प्रदेश सरकार ने कुछ और नये जिलों में विभक्त कर दिया है। इसमें क्षेत्र छोटे हो गये हैं। आलम तो यह है कि एक जिला एक विधानसभा क्षेत्र में सीमित है। वहां प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कलेक्टर, पुलिस कप्तान तथा जनप्रतिनिधि के रूप में एक मात्र विधायक है जाहिर है कि यदि तीनों प्रमुखों के बीच किसी योजना, विचार को लेकर मतभेद हो जाएगा तो जिले का विकास निश्चित तौर पर ही प्रभावित होगा। वैसे बस्तर में एक कमिश्नर तथा एक पुलिस महानिरीक्षक की तैनाती है वहीं कांकेर में नक्सली उपमहानिरीक्षक का पद भी स्थापित किया गया है। बस्तर में जिस तरह नक्सली आतंक का दौर जारी है वह सिमटने की जगह फैलता ही जा रहा है। पुलिस दल पर हमला, मुखबिर के नाम पर ग्रामीणों का अपहरण, हत्या, अवैध वसूली, रंगदारी टैक्स वसूलने में नक्सली लगे हैं तो ग्रामीण भी अब एक चक्की के दो पाटों के बीच किसी तरह जीवन यापन करने मजबूर हैं। 'सलवा जुडूमÓ स्वस्र्फूत आंदोलन था या प्रायोजित आंदोलन था यह बहस का मुद्दा हो सकता है। परंतु यह आंदोलन अब दम तोड़ चुका है। इस आंंदोलन की अगुवाई करने वालों को नक्सली चुन-चुन कर मार रहे हैं। अब बस्तर में सलवा जुडूम आंदोलन के समर्थक, विरोधी का अलग-अलग समूह बन गया है। नक्सलियों और सुरक्षाबल के बीच आम आदिवासी पिस रहा है। किसका समर्थन करें किसका विरोध! बस्तर में पहले पदस्थापना को 'काला पानीÓ की संज्ञा दी जाती थी। सरकारी अफसर या कर्मचारी वहां पदस्थापना को 'सजाÓ मानते थे पर अब ऐसा नहीं है। बस्तर में पदस्थ अफसर अब वहां से हटना नहीं चाहते हैं। सूत्र कहते हैं कि जब से बस्तर में नक्सली आतंक बढ़ा है औद्योगिकीकरण का दौर चला है तब से वहां पैसों की फसल उगना शुरू हो गया है। जाहिर है कि फसल काटने में कोई पीछे नहीं है। जिस तरह बस्तर में सीआईएसएफ, सीएफ, बीएसएफ की पैरा मिलेटरी फोर्स तैनात हो गई है। बड़ी संख्या में बल की मौजूदगी से अब बस्तर में 'नक्सलीराजÓ पूरी तरह नहीं रहा है। इसलिये अब बस्तर जाकर 'मरनेÓ का भ्रम टूट गया है। बस्तर से एक उपनिरीक्षक प्रकाश सोनी का अपहरण हुआ फिर नाटकीय तरीके से उसकी वापसी भी हो गई, कभी कभार एक दो पुलिस के जवानों या एसपीओ के अपहरण की खबर मिलती रहती है। कुछ की हत्या तथा कुछ की रिहाई भी हो जाती है पर प्रशासनिक बड़े अधिकारियों सहित वन, पीडब्ल्यूडी, पीएचई, अफसरों से लेकर ठेकेदार सभी महफूज हैं तो अब बस्तर जाने की परिभाषा बदल रही है। जिस तरह हाल ही में छापे में बस्तर के छोटे कर्मचारी से लेकर अधिकारियों के पास करोड़ों की संपत्ति का खुलासा हुआ है उससे तो यही साबित हो रहा है कि बस्तर में पैसों की फसल उग रही है और उसे काटने जनप्रतिनिधियों से अधिकारियों, कर्मचारियों तक सभी सक्रिय हैं।
बस्तर के जिलाधीश और चर्चा
सीपी एण्ड बरार के समय ही बस्तर पृथक जिला था और वहां के पहले कलेक्टर एस पी मुश्रान रहे वहीं 16 जनवरी 1949 से 21 जनवरी 55 तक अर्थात 6 साल का लम्बा समय गुजारकर रिकार्ड बनाने का श्रेय आर सी व्ही पी नरोन्हा के नाम है। वही मात्र 24 दिन ही बस्तर में कलेक्टर रहे हर्ष मंदर ने भी रिकार्ड बनाया है। हर्ष मंदर ने 25 वें कलेक्टर के रूप में अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1 मार्च 93 को कलेक्टर बस्तर का कार्यभार सम्हाला और 25 मार्च 93 को अर्थात मात्र 24 दिन में ही वे कार्यमुक्त हो गये। वैसे बस्तर में पदस्थ कलेक्टरों का कार्यकाल कुछ मामलों को लेकर चर्चित भी है। आर सी व्ही पी नरोन्हा ने 25 दिन तक अबूझमाड़ को सबसे पहली बार बूझने का प्रयास किया तथा बस्तर के विकास के लिये बहुत काम भी किया तभी तो उनकी स्मृति में 'नरोन्हा गांवÓ भी बसाया गया है। भानुप्रतापपुर के पास आज भी उनके नाम पर एक गांव स्थापित है।
बस्तर के 7वें कलेक्टर मो. अकबर ने 62 से 66 यानी 4 साल तक वहां पदस्थ रहे। 1 मई 62 से 1 जून 66 तक उनकी बस्तर में तैनाती रही और उनके कार्यकाल में ही 'बस्तर के मसीहाÓ के नाम से चर्चित और आदिवासी अंचल में आज भी पूज्य माने जाने वाले बस्तर नरेश प्रवीरचंद भंजदेव की संदिग्ध परिस्थिति में पुलिस की गोली से हत्या का मामला चर्चित रहा।  डी पी मिश्र के मुख्य मंत्रित्व काल में घटित इस हत्याकांड की गूंज विधानसभा ही नहीं संसद में भी गंूजी। कहा जाता है कि मो. अकबर अपनी आयु के अंतिम पड़ाव में कुछ विक्षिप्त हो गये थे और लोग उसका कारण प्रवीरचंद भंजदेव के हत्याकांड से भी जोड़ते हैं।
गैर सरकार संगठन या एनजीओ से जुड़े तथा आजकल समाजसेवी के रूप में नक्सलियों और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले ब्रम्हदेव शर्मा भी कलेक्टर बस्तर का दायित्व सम्हाल चुके हैं। बस्तर जिले में 11वें कलेक्टर के रूप में ब्रम्हदेव शर्मा ने 24 अगस्तर 69 को कार्यभार सम्हाला और 3 नवम्बर 71 को वे बस्तर से कार्यमुक्त हुए। बी डी शर्मा ने अपने कार्यकाल में दैहिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी तथा विकास कार्यों पर जोर दिया था। ब्रम्हदेव शर्मा आजकल उड़ीसा राज्य में एक इटली के नागरिक तथा विधायक के अपहरण में नक्सलियों और राज्य सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं।
10 अक्टूबर 1977 से 1 अगस्त 80 तक बस्तर के कलेक्टर रहे नन्हें सिंह का भी कार्यकाल अच्छा खासा चर्चित रहा है। इन्हीं के कार्यकाल में बहुचर्चित यशोदा कांड और बैलाडीला गोलीकांड हुआ था जिसमें कुछ श्रमिकों, आदिवासियों की मौत हो गई थी यह मामला भी काफी गर्माया था तथा इसकी चर्चा भी विधानसभा में गूंजी थी। बस्तर में 28 वें कलेक्टर के रूप में 25 फरवरी 97 को प्रवीरकृष्ण ने कलेक्टर का कार्यभार सम्हाला था वे 'इमली आंदोलनÓ के लिये चर्चित हैं। इमली का सही मूल्य दिलाने में उनकी विशेष भूमिका थी।
1988 में बस्तर को संभाग का दर्जा मिला था। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि उस समय बस्तर के कलेक्टर नारायण सिंह थे। 3 जून 88 से 17 माच्र 89 तक वे कलेक्टर रहे तथा वहां के दर्जा मिलने के बाद नारायण सिंह ही वहां के पहले कमिश्नर बने। इसी तरह छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद गणेश शंकर मिश्रा जगदलपुर के कलेक्टर बने और उनके कार्यकाल में औद्योगिकीकरण का प्रयास तेज हुआ। कलेक्टर कार्यालय में गांधी प्रार्थना से काम की शुरूआत कर उन्होंने भी एक नया रिकार्ड बनाया। बाद में उन्हें ही बस्तर संभाग के कलेक्टर का भी पदभार दिया गया। नारायण सिंह के बाद गणेश शंकर मिश्रा ऐसेे कलेक्टर रहे जो बाद में संभाग के कमिश्नर भी बने।
और अब बस
(1)
विश्व में धान की 12500 प्रजातियां पाई जाती है उसमें में 10,000 प्रजातियां केवल छत्तीसगढ़ में पाई जाती है इसलिये इसे 'धान का कटोराÓ कहा जाता है।
(2)
दंतेश्वरी मंदिर के विषय में किदंवती है कि यहा दक्षपुत्री सति के दांत गिरे थे इसलिये पहले एक छोटी से टेकरी पर स्थित इस शक्तिपीइ को दंतावाला देवी भी कहा जाता था बाद मे ंयह दंतेश्वरी मां के रूप में चर्चित हुआ। आज भी मंदिर के गर्भगृह में भक्तगण धोती पहनकर ही प्रवेश कर सकते हैं।
(3)
बस्तर के प्रथम राजा जिस मार्ग से बस्तर पहुंचे थे कालांतर में उसी मार्ग से बस्तर में रेल पहुंची। किरंदुल-विशाखापट््नम का रेलमार्ग पुरातन मार्ग से ही स्थापित है।
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आइना ए छत्तीसगढ़
झूठों ने झूठों से कहा कि सच बोलो
सरकारी एलान हुआ कि सच बोलो
घर के अंदर है झूठों की मंडी
दरवाजे पर लिखा है कि सच बोलो
भारतीय जनता पार्टी 32 साल की हो गई, इन सालों में भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा काफी बदल गया है। भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे अनुभवी नेताओं की जगह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पहल पर बागडोर युवा नेताओं के हाथ आ गई पर संघ जिस बदलाव की उम्मीद कर रहा था वैसे कुछ हुआ नहीं। लिहाजा फिर भाजपा को अपनी पुरानी विरासत का आइना दिखाकर रास्ते में लाने की पहल शुरू हो गई है।
आदर्श, भयमुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, शासन, चाल, चरित्र और चेहरा की बात करने वाली, भाजपा का सत्ता पाते ही कुछ राज्यों में जिस तरह चाल, चरित्र और चेहरा बदला है वह चिंता का विषय है। जनता ने आदर्श और सिद्धांतवादी, हिन्दुओं का ही हिन्दुस्थान आदि कुछ बातें जेहन में लाकर भाजपा को 2 सांसदों से प्रधानमंत्री तक का सफर पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अटल बिहारी वाजपेयी ने जनता का भरोसा तोड़ा भी नहीं था। गठबंधन सरकार होने के बावजूद उन्होंने कुछ आदर्श राजनीतिक उदाहरण भी प्रस्तुत किये थे। भाजपा देश में गठबंधन सरकार के समय श्रीराम मंदिर का मुद्दा कहीं खो गया था और अब आगामी लोस, कुछ राज्यों में विस चुनावों को देखते हुए यह मुद्दा फिर उछाला गया है।
संघ ने बुजुर्ग नेताओं के स्थान पर नीतिन गडकरी जैसे युवा नेता को संगठन की जिम्मेदारी दी तो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में सुषमा स्वराज को आगे किया। युवा नेतृत्व से जैसी उम्मीद लगाई गई थी वैसे परिणाम अभी तक तो सामने नहीं आ पाया है। बल्कि बुजुर्ग और युवा नेताओं को बीच केन्द्र स्तर पर नहीं राज्य स्तर पर भी मतभेद सामने आ रहे हैं। पार्टी के एक आला नेता की मानें तो भाजपा में शामिल नये कार्यकर्ता ऐसी कई बातें नहीं जानते जो उनके लिये जानना जरूरी है भाजपा की स्थापना कैसे हुई, पार्टी की नीति क्या है? किन लोगों के प्रयास से यह पार्टी बनी, पार्टी का सिद्धांत क्या है? यह जानना जरूरी है। उस नेता का यह भी कहना है कि पार्टी में पहले जो बड़े बूढ़ों की प्रतिष्ठा थी आंखों की शरम थी, पार्टी का अनुशासन था वह सत्ता प्राप्त करने के बाद खत्म होता दिखाई दे रहा है। अब पार्टी, विकास के स्थान पर व्यक्तिगत स्वार्थ की बात सामने आ गई है। वहीं सत्ता के कारण पार्टी से जुड़े इधर-उधर के नेताओं की फौज एकत्रित हो गई है और कई राज्यों में इसीलिये कुछ भी हो रहा है। पार्टी तथा सत्ता में बैठे कुछ नेताओं की आम कार्यकर्ताओं से दूरी बढ़ रही है। आयातित नेता भारी पड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी जिस तरह उपेक्षा का दौर शुरू हुआ है उसी से वर्षों से पार्टी से जुड़े नेता परेशान हैं और पार्टी तथा नेताओं के खिलाफ जो पर्चेबाजी हो रही है वह इसी का परिणाम है। पर्चे की भाषा देखकर ही लगता है कि पार्टी के तपे-तपाये किसी नेता या गुट का इस पर्चेबाजी में बड़ा रोल है।                                                                                                                   
सीएजी रिपोर्ट पर बवाल!
महालेखाकार (सीएजी) की रिपोर्ट को लेकर फिलहाल छत्तीसगढ़ की राजनीति गर्म है। महालेखाकार की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ सरकार के कई विभागों में आर्थिक गड़बड़ी का खुलासा हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने ऊर्जा (बिजली) विभाग सहित खनिज विभाग में 7 हजार 89 करोड़ के नुकसान का मामला रिपोर्ट में उभरा है तो कुल 1052 करोड़ का नुकसान सरकारी विभाग की अनियमितता को एजी की रिपोर्ट में सामने आई है। सीएजी की रिपोर्ट पर राजनेता तो टिप्पणी करते हैं यह आम बात है पर छत्तीसगढ़ में तो नौकरशाह ने भी टिप्पणी कर दी है। यह संवैधानिक संस्था के औचित्य पर सवाल खड़ा किया जा रहा है। वैसे छत्तीसगढ़ में यह कोई नई बात नहीं है। चुनाव आयोग पर टिप्पणी करने के कारण तत्कालीन डीजीपी विश्वरंजन को चुनाव तक अवकाश में भेजा गया था फिर उन्हें चुनाव के बाद पुन: कई सालों तक डीजीपी बनाये रखा गया।
हाल ही में कैग की रिपोर्ट के बाद विपक्ष तो सीबीआई जांच की मांग कर रहा है। सरकार को कटघरे में खड़ा करने प्रयास कर रहा है। खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने तो बाकायदा पत्रकार वार्ता लेकर महालेखाकार की रिपोर्ट को काल्पनिक कह दिया है। साथ ही साथ सरकार की तरफदारी की, छत्तीसगढ़ के लाभ और नियम प्रक्रिया का हवाला भी दिया वहीं एक वरिष्ठ आईएएस अफसर सुबोध सिंह ने जिस तरह महालेखाकार की रिपोर्ट की टिप्पणी की वह जरूर आश्चर्य जनक है। क्योंकि प्रशासनिक अधिकारी इस तरह के बयान देता नहीं है। खैर देश के वरिष्ठ भाजपा सांसद तथा लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक रमेश बैस ने भी महालेखाकार की रिपोर्ट पर टिप्पणी... करने को घोर आपत्तिजनक माना है। उनका कहना है कि इस संवैधानिक संस्था का सम्मान करना सभी का कतव्र्य है। खैर बाद में श्री बैस ने बयान ही बदल दिया। वैसे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ सांसद तथा प्रथम नेता प्रतिपक्ष नंद कुमार साय, वरिष्ठ सांसद दिलिप सिंह जूदेव तथा पूर्व सांसद करुणा शुक्ला ने भी कुछ इसी तरह के बयान दिये हैं।
सीएजी की रिपोर्ट के बाद उस पर पार्टी के नेताओं पर सरकार के अधिकारी की टिप्पणी से पार्टी के कुछ सांसदों ने नाराजगी व्यक्त की है और 11-12 को पार्टी की कार्य समिति की बैठक में भी यह मामला उठेगा ऐसा लगता है। कोई तैयार नहीं!
छत्तीसगढ़ में आखिर यह हो क्या रहा है? छत्तीसगढ़ में लगातार नक्सली वारदात में वृद्धि हो रही है, अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है। अपने वरिष्ठ अधिकारी की प्रताडऩा से एक पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा को आत्महत्या करने मजबूर होना पड़ा, काम के अधिक बोझ के चलते एक आदिवासी समाज के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बोधन सिंह मरावी की मौत हो जाती है। फिर भी सब ठीक है यही कहा जाता है।
दिलिप सिंह जूदेव के 'प्रशासनिक आतंकवादÓ की टिप्पणी के बाद बिलासपुर के तत्कालीन आईजीएडी गौतम तथा एस पी यादव को हटाकर उनके स्थान पर जी पी सिंह और राहुल शर्मा की नियुक्ति की जाती है। राहुल शर्मा खुद की सरकारी पिस्तौल से 'सुसाइड नोटÓ लिखकर आत्महत्या करते हैं। आईजी जीपी सिंह को सरकार हटाकर वहां पूरी तरह स्वस्थ नहीं होने पर भी बी एस मरावी को आईजी बनाया जाता है, काम के बोझ के चलते उनकी हार्टअटैक से मौत हो जाती है। फिर सरकार उनके स्थान पर दिसम्बर में सेवानिवृत्त होने वाले पी एन तिवारी की आईजी पद पर अस्थायी नियुक्ति करती है। उनके पास सी आई डी शाखा, मानव अधिकार प्रकोष्ठ का काम भी पूर्ववत रहेगा। न्यायधानी बिलासपुर के साथ आखिर यह क्या हो रहा है?
गृहमंत्री ननकी राम कंवर को गृहमंत्री पद से हटाने की चर्चा पिछले 2 साल से है, वे स्वयं भी गृहमंत्री बने रहना  नहीं चाहते, वे तो राज्य की राजनीति से तंग आकर अगली बार लोकसभा चुनाव लडऩे की भी बात सार्वजनिक तौर पर कर चुके हैं। पर सरकार की मजबूरी है कि गृहमंत्री बनने कोई तैयार नहीं है? प्रमुख सचिव गृह के पद पर एन के असवाल पदस्थ हैं। पिछले फेरबदल में उनको भी हटाने की चर्चा थी। गृह, जेल, परिवहन के साथ उनके पास जलसंसाधन विभाग भी है। पर यहां भी सरकार की मजबूरी है। प्रमुख सचिव गृह मंत्री बनने कोई अधिकारी तैयार नहीं है। बस्तर में लगभग 12-13 सालों से पदोन्नति पाते-पाते टी जे लॉगकुमेर आई जी बन गये हंै, वे छत्तीसगढ़ कैडर के भी नहीं हैं। पर यहां भी मजबूरी है कि कोई अधिकारी वहां जाने तैयार नहीं है। हाल फिलहाल बिलासपुर आई जी पद को लेकर भी है। सूत्र कहते हैं कि वहां के हालात, शराब माफिया के दबाव के चलते वहां भी कोई आईपीएस अफसर जाने तैयार नहीं है। ऐसे हालात में पी एन तिवारी को भार साधक आईजी बनाया गया है। क्या करें सरकार के पास दृढ़इच्छा शक्ति का अभाव देखा जा रहा है।
और अब बस
(1)
भाजपा और कांगे्रस के कुछ नेताओं ने सीमेंट की कीमत कम करने आंदोलन किया, आंदोलन की सफलता या असफलता इसी से आंकी जा सकती है कि सीमेंट का दाम कम होने की जगह बढ़ गया। अब एक विधायक और पूर्व मंत्री की चुप्पी भी चर्चा में है।
(2)
सतनामी समाज के गुरु गद्दीनसीन विजय कुमार गुरु को भाजपा सरकार ने पुन: निगम का अध्यक्ष बना दिया। बेटा रुद्र कुमार गुरु कांगे्रस के विधायक है। अगला विस चुनाव दोनों के बीच होता है तो मजा जरूर आएगा।
(3)
महापौर किरणमयी नायक विदेश यात्रा पर हैं निगम का बजट सामान्य सभा में पारित नहीं हो सका है फिर भी निगम का कामकाज तो चल ही रहा है।
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