Tuesday, March 20, 2012

आइना छत्तीसगढ़
फूल था मैं मुझको कांटा बना के छोड़ दिया
अब कांटे से कहते हैं कि चुभना छोड़ दें
छत्तीसगढ़ में अपने वरिष्ठ अफसर की प्रताडऩा से एक युवा आईपीएस अफसर द्वारा अपनी ही सर्विस रिवाल्वर से आत्महत्या करने का मामला चर्चा में है। हालांकि प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने इस मामले में सीबीआई जांच कराने की घोषणा कर दी है पर इस मामले को लेकर पुलिस की भूमिका पर कई सवाल उठ रहे हैं। अभी तक बिलासपुर के पुलिस कप्तान राहुल शर्मा की आत्महत्या के मामले मेें साधारण मर्ग सिविल लाइन थाने में दर्ज किया गया है। जबकि 'सुसाइड नोटÓ के बाद भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के तहत जुर्म कायम अभी तक हो जाना था। सवाल जांच का नहीं है सवाल पुलिस की प्रक्रिया का है। मृतक पुलिस कप्तान के सुसाइड नोट, उनके परिजनों के आरोप-प्रत्यारोप के बाद अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ भी पुलिस जुर्म कायम कर सकती थी पर लगता है कि पुलिस मुख्यालय कुछ करना ही नहीं चाहता है।
सवाल यह उठ रहा है कि जब राहुल शर्मा ने आत्महत्या कर ली है और कोई अपराध बिलासपुर शहर की पुलिस ने कायम ही नहीं किया है तो फिर सीबीआई जांच कराने की क्या जरूरत है? वैसे भी सीबीआई किसी मामले की जांच करती है और यहां तो पुलिस ने कोई मामला ही दर्ज नहीं किया है। फिर सीबीआई को उन कारणों का भी खुलासा करना होगा कि क्यों स्थानीय पुलिस इस मामले में जांच नहीं कर रही है।
कई सवाल?
इधर राहुल शर्मा आत्महत्या मामले में कई पेंच हैं और कई सवाल अभी भी अनुतरित ही हैं।
* घटना दिनांक अर्थात 11 मार्च को करीब एक बजकर 15 मिनट दोपहर को राहुल शर्मा को लहुलुहान हालत में देखकर शहर कप्तान वेदव्रत सिरमौर को घटना की जानकारी दी थी। शहर कप्तान मौके पर तत्काल पहुंच गये थे पर एम्स में राहुल शर्मा को 3 बजकर 40 मिनट पर ले जाया गया और 3 बजकर 50 मिनट पर डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। सवाल यह है कि राहुल शर्मा को एम्स तक पहुंचाने में एक घंटा 55 मिनट क्यों लगा?
* शहर कप्तान सिरमौर ने घटना की जानकारी रायपुर में बैठे तत्कालीन आईजी जीपी सिंह को तो दे दी पर उसी शहर में रह रही राहुल की पत्नी श्रीमती गायत्री शर्मा को शाम 3 बजे सूचना क्यों दी?
* शहर कप्तान बेदव्रत सिरमौर आखिर घटनास्थल पर 2 घंटे क्या करते रहे? उन्होंने बिलासपुर के जिला कलेक्टर रामसिंह ठाकुर को भी देर से जानकारी क्यों दी? जबकि उसी जिले के कप्तान ने आत्महत्या कर ली थी।
* तत्कालीन आईजी जी पी सिंह ने बताया कि घटना के दिन सुबह सवा 9 बजे राहुल शर्मा ने घर से कामकाज ठीक नहीं होने के नाम पर पुलिस अफसर मैस जाने की जानकारी दी थी।
* पुलिस कप्तान राहुल शर्मा अवकाश पर थे और आई जी जी पी सिंह रायपुर में थे। पहला सवाल तो यह है कि स्वीकृत अवकाश के एक दिन पहले ही राहुल काम पर कैसे लौट आये? दूसरा सवाल यह है कि जब एस पी अवकाश पर थे तो ऐसा क्या काम आ गया था कि आईजी को भी 3-4 दिनों के लिए रायपुर जाना पड़ा? क्या आईजी ने पुलिस मुख्यालय से बिलासपुर छोडऩे की विधिवत अनुमति ली थी? यदि ली थी तो वे किस काम से रायपुर आये थे?
* घटना दिनांक को एक सरकारी बैठक से लौटकर पुलिस कप्तान राहुल शर्मा ने लंच के बाद कार्यालय चलने की बात की थी। बाद में वे लम्बी देर तक किसी से मोबाइल पर चर्चा करते रहे। सवाल यह उठ रहा है कि उनकी आखरी बातचीत किससे हुई थी संभवत: इसी बातचीत के बाद उन्होंने आत्महत्या करने जैसे खतरनाक कदम उठाया?
* राहुल शर्मा के साथ रहने वाले दंतेवाड़ा, रायगढ़ के कुछ अफसर कहते हैं कि उन्हें डेली डायरी लिखने की आदत थी तो वह डायरी कहां है? जब वह डायरी घर में नहीं है तो जाहिर है कि घटनास्थल पर होगी। मृतक हमेशा अपने साथ लेपटॉप भी रखते थे पर उनकी आत्महत्या के बाद उनका लेपटॉप भी कहां है इसकी भी किसी को खबर नहीं है।

राहुल की महानता!

राहुल शर्मा खुशमिजाज व्यक्ति थे। दंतेवाड़ा में नक्सली अभियान में कई बार उन्होंने अगुवाई की, ताड़मेटला या दंतेवाड़ा जेलबे्रक के समय की उन पर आरोप उछाले गये पर वे विचलित नहीं हुए, रायगढ़ में उनका अच्छा कार्यकाल रहा उन्हें जाबांज अफसर माना जाता था। कोल माफिया के खिलाफ या भूमाफिया के खिलाफ उन्होंने सख्त कार्यवाही की वहीं रायगढ़ की बाढ़ में ग्रामीणों-शहरी लोगों का जीवन बचाने उनके द्वारा किये गये अदम्य साहस की अभी भी लोग प्रशंसा करते हैं। सवाल यह उठ रहा है कि उसने बिलासपुर जिलें में महज कुछ दिनों की पुलिस कप्तानी के बाद आत्महत्या जैसा कायरतापूर्ण कदम क्यों उठाया? वैसे वे एक अच्छे अफसर होने के साथ ही अच्छे इंसान थे। छोटे-बड़े पुलिस अफसरों की बैठक में एक अधिकारी द्वारा 'हमें कप्तान की कोई जरूरत नहीं हैÓ यह सुनकर भी वे स्वयं को शांत बनाये रखा, रोजाना के हस्तक्षेप के बाद भी उन्होंने जितना बर्दाश्त करना था उतना किया भी पर वे अच्छे इंसान थे इसलिये भी साबित होता है कि उन्होंने सुसाइड नोट लिखा पर हस्तक्षेप करने वाले पुलिस अफसर और उस न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक नहीं किया यह उस राहुल शर्मा की ही महानता थी।
केवल पुलिस महानिरीक्षक को बिलासपुर से हटाकर पुलिस मुख्यालय में अटैच करने से काम नहीं होगा इस मामले में राहुल शर्मा और आइजी जी बी सिंह के पुराने इतिहास पर भी नजर डालनी होगी? एक आईजी अंसारी (अब एडीशन डीजी) के सरकारी बंगले बस्तर में एक आरक्षक के पास से डकैती की रकम की बरामदगी, डॉ. रमन सिंह और तत्कालीन डीजीपी स्व. ओ पी राठौर के सामने पुलिस मुख्यालय रायपुर में तथा कथित नक्सलियों को आत्मसमर्पण और बाद में अधिकांश फर्जी नक्सली साबित होना, खेल संचालक के पद पर कार्यरत होने के दौरान छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ सांसद और भाजपा नेता रमेश बैस से तकरार सहित राजनांदगांव और बस्तर में बतौर पुलिस कप्तान के कार्यकाल की ही यदि किसी से निष्पक्ष जांच कराई जाए तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। बहरहाल राहुल शर्मा सिस्टम की भेंट चढ़ गये। राहुल शर्मा और कोई कदम नहीं उठाए इसके लिए सरकार को कुछ सोचना ही होगा?

कहां है जूदेव

छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता तथा बिलासपुर से निर्वाचित सांसद दिलिप सिंह जूदेव कहां है यह अब चर्चा का विषय है। सांसद जूदेव के एक प्रतिनिधि से बिलासपुर पुलिस के लोगों ने दुव्र्यवहार किया तो जूदेव ने जमीन आसमान सिर पर उठा लिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार पर गंभीर आरोप लगाकर बिलासपुर में 'प्रशासनिक आतंकवादÓ होने की बात की थी। उनकी नाराजगी के चलते ही वहां के पुलिस कप्तान विजय यादव और पुलिस महानिरीक्षक ए डी गौतम को वहां से हटाकर ही क्रमश: राहुल शर्मा और जी बी सिंह की तैनाती की गई थी। तैनाती के कुछ दिनों बाद ही राहुल शर्मा सिस्टम की भेंट चढ़ गये। जाहिर है कि राहुल की मौत सिस्टम के कारण हुई या प्रशासनिक आतंकवाद के कारण हुई यह तो जांच में ही खुलासा हो सकेगा पर राहुल शर्मा के आत्महत्या मामले में अभी तक दिलिप सिंह जूदेव का कोई भी बयान नहीं आना कम चर्चा में नहीं है। आखिर इस मामले में जूदेव चुप क्यों हैं?

मरावी को एवार्ड क्यों नहीं!

छत्तीसगढ़ पुलिस में बोधन सिंह मरावी जाना पहचाना नाम है। बस्तर में उन्होंने ही नक्सलियों के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाने की शुरूआत की थी। बस्तर, राजनांदगांव, बिलासपुर सहित सरगुजा में वे विभिन्न पदों पर पदस्थ रहे। उन्हें सरगुजा में पुलिस महानिरीक्षक बनाकर भेजा गया था। वहां उन्होंने नक्सलियों से सीधा मोर्चा लिया और पुलिस दल का नेतृत्व भी किया था। सरगुजा में नक्सली मुठभेंड़ में उनके सिर पर गोली लगी थी और वे काफी दिनों तक अस्पताल में भी रहे। हाल ही में रायपुर में सहायक परिवहन आयुक्त के पद पर रहते हुए वे फिर अस्पताल में भर्ती हुए थे और उनके सिर से बुलेट के छर्रे भी निकाले गये थे। डाक्टरों की मानें तो उनके सिर पर कुछ गोली के टुकड़े अभी भी हैं। खैर बात यह है कि भारत में नक्सलियों से मुठभेंड़ में गोली खाने वाले वे पहले आईजी थे पर उन्हें पुलिस मुख्यालय की गुटबाजी के चलते गैलेण्ट्री एवार्ड नहीं मिल सका। कहा जा रहा है कि उनके नाम की अनुशंसा ही देर से की गई। वहीं गैर नक्सली क्षेत्र में एक ग्रामीण की हत्या करने वाले एक अफसर को गैलेण्ट्री एवार्ड मिल गया क्यों? बिलासपुर में आईजी जी बी सिंह को हटाने के बाद मरावी की वहां नियुक्ति पर भी सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि एक अफसर ने इसके लिए प्रमुख भूमिका निभाई है। सवाल यह उठा रहा है कि पुलिस मुख्यालय सहित रायपुर शहर में प्रतिनियुक्ति पर कई युवा अफसर तैनात हैं फिर उनकी नियुक्ति बिलासपुर में क्यों नहीं की गई यह भी चर्चा में है जबकि कई अफसर फील्ड में तैनात होने तैयार है।
सवाल तो यह भी उठा रहा है कि एक अफसर जो गैलेण्ट्री एवार्ड लेने का हकदार है उसे किन कारणों से यह एवार्ड नहीं मिला, पुलिस मुख्यालय से देर से उनके नाम की अनुशंसा करने के पीछे दोषी कौन हैं, क्या इसकी भी जांच कराई जाएगी। खैर बी एस मरावी ने बिलासपुर में आईजी का पदभार सम्हाल लिया है पर देखना यह है कि हकदार अफसरों के हक पर कौन कुठाराघात कर रहा है और वह कब तक सफल होता रहेगा।
और अब बस
(1)
गृहमंत्री बनने कोई तैयार नहीं है, गृह सचिव बनने की कोई अफसर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है ऐसे में छत्तीसगढ़ में यह सब तो चलता ही रहेगा।
(2)
विनोद चौबे नक्सलियों से लोहा लेते शहीद हो गये, राहुल शर्मा सिस्टम की भेंट चढ़ गये, गरियाबंद में एएसपी की मौत पर अभी पुलिस मुख्यालय कोई नया शब्द नहीं ढूंढ पाया है।
(3)
छत्तीसगढ़ में लालटेन सस्ती होगी, यह खबर मिलने पर एक टिप्पणी...सरप्लस बिजली स्टेट में महंगी होती बिजली के चलते लालटेन ही सहारा बनेगी उसे तो सस्ता करना ही था।

Wednesday, March 14, 2012

आइना ए छत्तीसगढ़
समय ने जब भी अंधेरों से दोस्ती की है
जला कर अपना घर हमने रौशनी की है
सुबूत हैं मेरे घर में धुएं के धब्बे
अभी यहा उजालों ने खुदकुशी की है

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद छत्तीसगढ़ की सत्तारुढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी पार्टी कांगे्रस के बयानबाज नेता अपनी झेंप मिटाने प्रयत्नशील हैं। वैसे इन पांच राज्यों सहित इसके पहले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम कांगे्रस भाजपा के लिये सोचनीय जरूर है। दरअसल गैर कांगे्रसी, गैर भाजपाई परिणाम कुछ राज्यों में आये हैं। इससे भारत में दो दलीय प्रणाली की वकालत करने वालों पर कुठाराघात हुआ है। वहीं जाति-पाती, की राजनीति भी अब खतरे में दिखाई दे रही है। यह ठीक है कि छत्तीसगढ़ राज्य में अभी तक दो राजनीतिक दल, कांगे्रस और भाजपा के बीच ही सत्ता का हस्तांतरण होता आया है और कोई स्थानीय दल उभर नहीं सका है पर इस बार हो सकता है कि निर्दलीय अधिक चुनकर आएं जो सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं?
पूर्व में हुए विधानसभा चुनावों में तमिलनाडु से सुश्री जयललिता, पश्चिम बंगाल में सुश्री ममता बेनर्जी तथा बिहार में नीतीश कुमार ने अपने बल पर अपने समर्थकों को चुनाव में विजयी बनाकर प्रदेश की सत्ता की बागडोर सम्हाल ली है। वहीं हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम भी कांगे्रस-भाजपा के लिये अच्छे तो नहीं कहे जा सकते हैं। देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। पंजाब में अकाली दल की पुन: सरकार में वापसी हुई है यह बात और है कि अकाली दल को भाजपा का समर्थन था। उत्तराखंड में भी कांगे्रस बड़े दल के रूप में उभरा है वहां उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। यहां कांगे्रस-भाजपा अपनी सरकार बनाने प्रयत्नशील हैं तो मणिपुर में कांगे्रस की सरकार बन रही है। गोवा में इस बार कांगे्रस से भाजपा ने सत्ता छीन ली है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि पिछले एक साल के भीतर कुछ राज्यों में गैर कांगे्रसी, गैर भाजपा की सरकार ही बनी है।
भाजपा के छत्तीसगढ़ी नेता कहते हैं कि पंजाब में पुन: उनके समर्थक अकालीदल की सरकार बनी है। गोवा में कांगे्रस से हमारी पार्टी ने सत्ता छीन ली है तो कांगे्रसी नेताओं का भी अपना तर्क है। उनका कहना है कि मणिपुर में हमारी पार्टी की सरकार बनी है तो उत्तराखंड में हमारी सरकार बनना तय है। सवाल उत्तर प्रदेश का है तो वहां 22 से बढ़कर 27, पंजाब में 42 से बढ़कर 46, उत्तराखंड में 21से बढ़कर 31, और मणिपुर में विधायकों की संख्या 30 से बढ़कर 42 हुई है तो भाजपा की केवल गोवा में ही सीट बढ़ी है बाकी 4 राज्यों में पिछले विस चुनाव के मुकाबले उनकी संख्या कम ही हुई है। उत्तरप्रदेश में 54 से घटकर 47, पंजाब में 19 से घटकर 12, उत्तराखंड में 35 से कम होकर 31 सीटों पर पार्टी आ गई है। मणिपुर में जरूर उनकी संख्या यथावत है। इस तरह भाजपा का जनाधार कम ही हुआ है तो कांगे्रस की सीट संख्या बढ़ी है तो जाहिर है कि जनाधार भी बढ़ा है।
डॉ. रमन रेल (1)
छत्तीसगढ़ में रेल सुविधाओं के विस्तार के लिये मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की पहल पर मुख्यसचिव सुनील कुमार ने 45 किलोमीटर लम्बे औद्योगिक रेल गलियारे के लिये एमओयू किया है। 40 हजार करोड़ की लागत वाली इस योजना में पैसों का जुगाड़, साझेदारों के विषय में जल्दी निर्णय हो जाएगा वैसे रेल सुविधा के लिये तरसते प्रदेश के लिये यह योजना रामबाण साबित होगी। इसके लिये पूर्वीय गलियारे में भूपदेवपुर-घरघोड़ा-धर्मजयगढ़, कोरबा, उत्तर गलियारे में सूरजपुर, परसा, कटघोरा, पश्चिम गलियारे में गेवरारोड, पेण्ड्रारोड शामिल हैं, तेलाई पाली, रायगढ़ से घरघोड़ा भी प्रस्तावित है। इसके अलावा रायगढ़, माण्ड कोल फील्ड गलियारा के तहत खरसिया से घरघोड़ा होकर धर्मजयगढ़ तक लाइन का प्रस्ताव है। इस प्रस्तावित रेल लाइन को यदि कोरबा से जोड़ दिया जाए तो कोरबा से धर्मजयगढ़, पत्थल गांव, जशपुर होकर पड़ोसी राज्य झारखंड के लोहरदगा तक रेल यात्रियों को सुविधाएं मिल सकती है। अकलतरा-सुरजपुर, कारीडोर के अंतर्गत पहली रेल लाइन अकलतरा से मोरगा तक तथा दूसरी रेल लाइन परसा से सूरजपुर तक प्रस्तावित है जो कटघोरा तक जुड़ सकती है। इन दोनों रेल लाइनों का निर्माण होनेे से मुम्बई-हावड़ा लाइन और अनूपपुर-अम्बिकापुर रेल लाइन से जुड़ाव हो सकता है। इसी तरह जयराम नगर-चिल्हाटी रेल गलियारा बिलासपुर जिले के सीमेण्ट उद्योगों सहित यात्रियों के लिये भी उपयोगी हो सकता है।
फोटो चरणदास महंत
केन्द्र में कांगे्रसनीत सरकार है और डॉ. मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में एक मात्र सांसद तथा राज्यमंत्री के रूप में शामिल डॉ. चरणदास महंत छत्तीसगढ़ का नेतृत्व कर रहे हैं ऐसे में प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह द्वारा 'औद्योगिक रेल गलियाराÓ का एमओयू करना डॉ.चरणदास कैसे हजम कर लेते तो उन्होंने 2012-13 के रेल बजट में रायपुर, बलौदाबाजार-भटगांव-सारंगढ़-झारसुगड़ा रेल मार्ग को शामिल करने का आग्रह रेलमंत्री से कर ही दिया है। उनकी मांग के पीछे तर्क भी है। 1999-2000 में तब अविभाजित मध्यप्रदेश में उक्त रेल लाइन सर्वे पश्चात स्वीकृति भी प्रदान की गई थी। 2003 में 971. 96 करोड़ की सर्वे रिपोर्ट बनाई गई थी उसके बाद किसी तरह का बजट आबंटन प्राप्त नहीं हो सका था। 2011 के रेल बजट में तत्कालीन रेल मंत्री सुश्री ममता बेनर्जी द्वारा इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी उस समय इस रेल लाइन की लागत 2161.37 करोड़ हो गई थी। पर बजट में उल्लेख के बावजूद प्रशासकीय स्वीकृति और बजट आबंटन नहीं हो सका है। डॉ. चरणदास महंत के अनुसार सर्वे की रिपोर्ट 28 दिसंबर 2010 को प्रस्तुत की गई थी जिसमें रायपुर से झारसुगड़ा व्हाया खरोरा, पलारी, बलौदाबाजार, भटगांव होकर सारंगढ़ नई रेल लाइन का उल्लेख था। 310 किलोमीटर लम्बी यह रेल लाइन को आगामी रेल बजट में शामिल करने डॉ. महंत ने दबाव बनाया है। डॉ. महंत ने दिल्ली से कोरबा-अम्बिकापुर व्हाया अनूपपुर के मध्य कोयलांचल एक्सप्रेस प्रतिदिन चलाने, कोरबा, चांपा, मनेंद्रगढ़, चिरमिरी, रायगढ़ और राजनांदगांव को माडल स्टेशन के रूप में विकसित करने की मांग भी की है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का विस्तार बिलासपुर से गेवरारोड कोरबा तक करने, बिलासपुर-चेन्नई एक्सप्रेस का विस्तार रामेश्वरम तक करने, कोरबा-कानपुर व्हाया कटनी, इलाहाबाद सुपरफास्ट टे्रन प्रतिदिन चलाने सहित नीर प्लांट की स्थापना बिलासपुर में करने का भी अनुरोध किया है। देखना है कि छत्तीसगढ़ के एक मात्र कांगे्रसी सांसद और केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य की मांग को रेल मंत्री कितनी गंभीरता से लेते हैं।
विद्युत कटौती!
'सरप्लस बिजली राज्यÓ का ढिढ़ोरा पीटने वाली प्रदेश की सरकार अब बिजली की बढ़ती मांग और मांग के मुकाबले कम उत्पादन के चलते समयबद्ध बिजली की कटौती की मानसिकता बना चुकी है। हाल ही में विद्युत की दरों में वृद्धि के लिये नियामक आयोग की जनसुनवाई में जनआक्रोश का सामना करने के बाद भी विद्युत दर में 30 प्रतिशत की वृद्धि तय मानी जा रही है वहीं अब विद्युत कटौती की तैयारी शुरू हो गई है।
मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में उत्पादन कंपनी से 1914, केन्द्रीय कोटा 910, बायोमास 105, एनएसपीसीएल से 50, इस तरह 2979 मेगावाट बिजली प्रदेश के पास है वहीं मार्च के पहले सप्ताह की विद्युत की मांग 3000 मेगावाट के आसपास पहुंच गई है। मौसम के तेवर देखकर मांग और बढ़ेगी यह तय है। सूत्र कहते हैं कि बिजली अफसरों ने किसी भी हालत में 3200 मेगावाट से अधिक की आपूर्ति नहीं करने की मानसिकता बना ली है। इसके लिये मांग जिस दिन 3200 मेगावाट से उपर पहुंचेगी उसी दिन से शहर और ग्रामीण क्षेत्र में विद्युत की समयबद्ध कटौती शुरू कर दी जाएगी। वैसे यह भी योजना बनाई जा रही है आम उपभोक्ताओं की जगह उद्योगों को 'पीकआवरÓ में भार राहत लिया जाएगा। बहरहाल भीषण गर्मी में बिजली उपभोक्ताओं को अधिक दर बिजली की देनी होगी साथ ही कटौती का भी सामना करना ही होगा।
और अब बस
(1)
एक वन अफसर का एक एनजीओ से सम्मान कराने का सपना टूट गया है। उसने सम्मान करने मंत्रालय के एक बड़े अफसर को आवेदन किया था। अफसर ने गृहमंत्रालय से रिपोर्ट मंगवाई और वह एनजीओ फर्जी निकली। ज्ञात रहे कि वनमंत्री सहित कुछेक वन अफसरों के विदेश प्रवास स्थगित कराने भी उस वन अफसर ने अंतिम समय तक रुचि ली थी।
(2)
नगर पालिक अधिकारी स्तर से सीधे एक विश्वविद्यालय के कुलसचिव बनने का सपना एक मंत्री के निजी सचिव का टूट ही गया। उसके पूर्व मंत्री का दबाव भी काम नहीं आया।
(3)
अपै्रल में एक बड़े पुलिस फेरबदल की चर्चा अभी से चल रही है। पुलिस मुख्यालय के अधिकारी भी इससे प्रभावित हो सकते हैं।

Saturday, March 10, 2012

आइना ए छत्तीसगढ़
ये जो कुछ लोग हैं फरिश्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाएं तो इंसा हो जाएं

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के बाद 12 सालों में पहली बार ऐसा संजोग आया है जब छत्तीसगढ़ को अच्छे से पहचानने वाले नेतृत्वकर्ता मिले हैं। छत्तीसगढ़ में राज्यपाल शेखर दत्त, मुख्य सचिव सुनील कुमार कम से कम 'छत्तीसगढ़Ó को पहचानते तो हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री बने थे अजीत प्रमोद कुमार जोगी। छत्तीसगढ़ के पेण्ड्रारोड क्षेत्र के मूल निवासी अजीत जोगी ने रायपुर में शासकीय इंजीनियरिंग कालेज में बतौर अध्यापक नौकरी की फिर आईएएस बनने के बाद लम्बे समय तक रायपुर में कलेक्टरी भी की। वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी मूलत: छत्तीसगढ़िया है, रायपुर में आयुर्वेदिक कालेज में उनकी पढ़ाई हुई यह संयोग ही है दोनों मुख्यमंत्री आयुर्वेदिक कालेज और इंजीनियरिंग कालेज यानी आमने-सामने पढ़ चुके हैं, पढ़ा चुके हैं। वर्तमान में राज्यपाल शेखर दत्त भी अविभाजित मध्यप्रदेश के समय रायपुर में कमिश्नर रह चुके हैं। वहीं कुछ समय तक बस्तर संभाग का भी कार्यभार देख चुके हैं। वर्तमान में मुख्य सचिव सुनील कुमार ने तो अपनी नौकरी की शुरूआत ही आदिवासी अंचल बस्तर से की है। 1 मई 80 से जुलाई 81 तक जगदलपुर में सहायक कलेक्टर, 6 सितंबर 82 से दिसम्बर 82 तक रायपुर में ही बंदोबस्त अधिकारी रहे वहीं 3 फरवरी 87 को रायपुर के कलेक्टर का पदभार सम्हाला था। नया राज्य बनने के बाद भी वे कई पदों पर कार्य कर चुके हैं। वैसे सुनील कुमार को छोड़ दे तो अभी तक छत्तीसगढ़ में बतौर मुख्य सचिव बने कुछ अफसर तो छत्तीसगढ़ के लिए नये ही थे। शिवराज सिंह ने जरूर 12 जुलाई 78 से 20 अगस्त 80 तक बतौर सक्षम अधिकारी, प्रशासक नगर निगम रायपुर का दायित्व सम्हाला था। पहले मुख्य सचिव अरुण कुमार तो 6 जुलाई 66 से 6 मई 67 तक सहायक कलेक्टर बिलासपुर रहे थे। एक अन्य मुख्य सचिव सुयोग्य कुमार मिश्रा एक जून 72 से 2 जून 73 तक बिलासपुर में एडीशनल कलेक्टर रह चुके थे। मुख्य सचिव रहे ए के विजय वर्गीय 4 नवम्बर 80 से 24 दिसंबर 82 तक बिलासपुर में अतिरिक्त आदिवासी आयुक्त के पद पर ही कार्य कर चुके थे।
एक अन्य मुख्य सचिव आर पी बगई भी अविभाजित मध्यप्रदेश के समय रायपुर में आयुक्त पद पर कार्यरत रह चुके हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में लगातार पदस्थ रहे बी के एस रे को मुख्य सचिव के समकक्ष दर्जा दिया गया उन्हें मुख्य सचिव नहीं बनाया गया।
जहां तक पी जॉय उम्मेन की बात है तो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय वे छत्तीसगढ़ में कभी पदस्थ नहीं रहे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे पहली बार छत्तीसगढ़ आये। राज्य में पूर्व में कभी पदस्थ नहीं होने के कारण उन्हें राज्य के भूगोल, इतिहास, राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक स्थितियों की भी कोई विशेष जानकारी नहीं थी। मुख्य सचिव रहते हुए उन्होंने राज्य के उस समय मौजूद 18 जिलों के मुख्यालय भी कभी नहीं गये। प्रदेश के दूरस्थ अंचल में प्रवास की बात तो दूर है। खैर छत्तीसगढ़ की अच्छी खासी जानकारी रखने वाले वर्तमान मुख्य सचिव सुनील कुमार को अच्छा योजनाकर्ता, सख्त तथा अनुशासन प्रिय अधिकारी माना जाता है। उनके कार्यकाल में छत्तीसगढ़ का और अधिक विकास होगा यह तो सोचा जा सकता है।

पुलिस महानिदेशकों

का छत्तीसगढ़ से नाता!

छत्तीसगढ़ के पहले राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय आईपीएस थे, दूसरे राज्यपाल के एम सेठ सैन्य अधिकारी थे तो तीसरे राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन भी आईपीएस अफसर रह चुके थे वहीं वर्तमान राज्यपाल शेखर दत्त पूर्व सैन्य अधिकारी होने के साथ ही पूर्व आईएएस अफसर रह चुके हैं। केन्द्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ की नक्सली समस्या को देखकर ही संभवत: इन राज्यपालों की नियुक्ति की जाती रही है। सेना और पुलिस के अनुभवी अधिकारियों की बतौर राज्यपाल नियुक्ति के पीछे केन्द्र सरकार की नक्सलविरोधी अभियान को गति प्रदान करने की भावना ही हो सकती है पर राज्य गठन के पश्चात पुलिस महानिदेशकों की नियुक्ति के पीछे की राजनीति चर्चा में है। पहले डीजीपी प्रकाश शुक्ला बने उसके बाद पी के दास, आर एस एल यादव, अशोक दरबारी, ओ पी राठौर, विश्वरंजन और अब अनिल नवानी को डीजीपी बनाया गया है। इसमें आर एल एस यादव जरूर छत्तीसगढ़ के लिये जाना पहचाना नाम था वे राजनांदगांव में पुलिस कप्तान सहित डीआईजी, आईजी के रूप में पहले सेवाएं दे चुके थे। उनके लिये विश्वरंजन भी रायगढ़, बस्तर सहित राजधानी में कुछ समय तक पदस्थ रह चुके हैं तो बाकी पुलिस महानिदेशक मोहन शुक्ला, ओ पी राठौर, अनिल नवानी का तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद ही छत्तीसगढ़ से परिचय हुआ है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अनिल नवानी केवल बिलासपुर में कुछ समय के लिये पुलिस महानिरीक्षक के पद पर पदस्थ रह चुके हैं। छत्तीसगढ़ के लिये वैसे जेल महानिदेशक संतकुमार पासवान का नाम जरूर जाना पहचाना है। बिलासपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, रायपुर में अविभाजित मध्यप्रदेश के समय वे बतौर पुलिस कप्तान कार्य कर चुुके हैं तो भिलाई में ही सीआईएसएफ में डीआईजी, बस्तर में डीआईजी, आईजी तथा रायपुर में भी आईजी का दायित्व सम्हाल चुके हैं। वैसे बस्तर तथा राजनांदगांव के नक्सली क्षेत्र में वे लम्बे समय तक पदस्थ रहे हैं। नक्सली मामले के अच्छे जानकार तो हैं साथ ही बस्तर में विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण कराने उन्हें तत्कालीन चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त लिंगदोह ने प्रशंसा पत्र भी लिखा था। आजकल बतौर जेल महानिदेशक वे 'नक्सली समस्याÓ पर एक शोध ग्रंथ लिखने व्यस्त हैं। पुलिस महानिदेशक अनिल नवानी और संतकुमार पासवान (दोनों 78 बैच) को 1 मार्च 2012 को केन्द्र में पुलिस महानिदेशक के रूप में इमपेनलमेण्ट किया गया है। वरिष्ठता क्रम में इनके बाद 4 साल जूनियर 82 बैच के रामनिवास हैं जो छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ आये थे और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल में आईजी रायपुर रह चुके हैं। केन्द्र में ये अभी आईजी के रूप में 'इनपेनलमेण्टÓ है। इनके बाद 83 बैच के गिरधारी नायक का नंबर आता है ये भी छत्तीसगढ़ के लिये जाना पहचाना नाम है। वे अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर के एडीशनल एस पी के पद पर लम्बे समय तक कार्य कर चुके हैं। वर्तमान में डीजीपी के रूप में पदस्थ अनिल नवानी नवम्बर 12 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे तो डीजी होमगार्ड विश्वरंजन अपै्रल माह में रिटायर हो जाएंगे। अनिल नवानी के बाद वरिष्ठता क्रम में संतकुमार पासवान का नंबर आता है। वैसे पासवान कुछ समय तक छत्तीसगढ़ में कार्यवाहक डीजीपी का काम भी सम्हाल चुके हैं। वैसे अगला डीजीपी कौन बनेगा, कब बनेगा, इसको लेकर अभी से चर्चा का दौर शुरू हो गया है। पुलिस मुख्यालय स्तर पर अभी से शह और मात का खेल शुरू हो गया है।

और अब बस

(1)
वनमंत्री तथा कुछ अफसर विदेश प्रवास से लौट चुके हैं इनको विदेश प्रवास से रोकने एक 'अरण्ड अफसरÓ ने काफी प्रयास किया पर वह असफल रहा। अब उसके निपटने की बारी है।
(2)
अपने आक्रामक तेवर के कारण ही वकील से महापौर बनी किरणमयी नायक ने विद्युत नियामक आयोग को खुली चुनौती दे दी है कि यदि बिजली दर बढ़ी तो नगर निगम उसका भुगतान नहीं करेगा, हिम्मत हो तो शहर की बिजली काट कर दिखाये... एक टिप्पणी... आपने भी तो पेयजल की दर बढ़ा दी है उस समय गरीब जनता की याद नहीं आई क्या?
(3)
आईपीएस पारुल माथुर का विवाह रावतपुरा सरकार के भिंड-मुरैना आश्रम में संपन्न हुआ। सादगी से विवाह की जमकर चर्चा है। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के कुछ प्रमुख आईपीएस अफसर वहां पहुंचे पर छत्तीसगढ़ से लोग ही वहां पहुंच सके थे।

Saturday, March 3, 2012

छत्तीसगढ़ नया राज्य बनेगा तो 'कर मुक्तÓ होगा। हमारे प्रदेश की धरती के भीतर अरबों का खजाना है। प्रकृति ने प्रदेश को बड़ी नियामत दी है। हीरा, सेाना, लोहा सभी कुछ है, पानी की कमी नहीं है, कोयला के भंडार हैं, सरप्लस बिजली है पर छत्तीसगढ़ बनने के ग्यारह साल पूरे हो चुके हैं और हम कहां हैं? आज भी काम की तलाश में पलायन हो रहा है, सरगुजा-बस्तर की बेटियों की खरीदी-बिक्री की खबर आती रहती है, दूसरे प्रदेशों में काम की तलाश में गये मजदूर बंधक बनाये जाते हैं और प्रशासन उन्हें मुक्त कराने की कार्यवाही करता है। राज्य बनने के बाद कितने बेरोजगारों को सरकारी नौकरी मिली है? भय, भूख और अपराध से मुक्त छत्तीसगढ़ बनाने का सपना कब पूरा होगा ऐसे कुछ सवाल उठ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में हीरे की खदान है। मैनपुर के बेहराडीह में किम्बर लाइट पाइप चट्टानें होने की पुष्टि हो चुकी हैं। वहीं 8 स्थानों पर हीरा मिलने के संकेत मिले हैं।
दक्षिण अफ्रीका के बाद छत्तीसगढ़ में उच्च स्तर का हीरा होने की संभावना है। मैनपुर क्षेत्र के बेहराडीह में किम्बर लाइट चट्टानों में देश के अन्य हीरा खदानों की तुलना में प्रतिटन हीरे की मात्रा एप्लाइड जियोलाजी विषय में पेट्रोलाजिकल एण्ड जियोलाजिकल इंवेस्टीगेशन आफ बेहराडीह किम्बर लाइट पर शोध करने वाले दत्ता वाइनकर ने किया है।
उनके शोध में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में उच्च गुणवत्ता का हीरा होने की पूरी संभावना है। इधर भू-वैज्ञानिकों के अनुसार छत्तीसगढ़ के बस्तर, कोण्टा, दक्षिण दुर्ग, पूर्वी रायपुर के अतिरिक्त चांपा, रायगढ़ और जशपुर ऐसे क्षेत्र हैं जहां किम्बर लाइट की संभावना है। इधर हीराखदान के रूप में चर्चित मैनपुर के बेहराडीह के आधा दर्जन किम्बर लाइट में से चार में हीरा मिलने की पुष्टि हो चुकी है। छत्तीसगढ़ के प्रकाश में आई इस किम्बर लाइट पाईप में 1 प्रतिशत हीरा होने की संभावना है। करीब 3700 साल तक भारत हीरा उत्पादक देश के रूप में चर्चित था पर पिछले 300 सालों हीरा उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 0.04 प्रतिशत रह गई है। छत्तीसगढ़ के मैनपुर और मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में खोजे गये नये क्षेत्र से भारत फिर प्रमुख हीरा उत्पादक देश बन सकता है।
वैसे मैनपुर के बेहराडीह, तोकपाल, बस्तर, बीजापुर, नारायणपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा और रायगढ़ आदि 8 बैल्ट में हीरा मिलने की संभावना है और ये सभी क्षेत्र लगभग माओवादियों के गढ़ बन चुके हैं। 40 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र 1980 से लगातार बढ़ते-बढ़ते नक्सलियों का गढ़ बनता जा रहा है। 25000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तो माओवादी सुरंग बिछा चुके हैं ऐसा पता चला है। सवाल यह उठ रहा है कि बेहराडीह, पायलीखंड की हीरा खदानों की सुरक्षा के लिए हम आखिर कर क्या रहे हैं? वहां सुरक्षा कर्मियों के लिये आवास, पेयजल और बिजली नहीं है इसलिये वहां बल की तैनाती नहीं होती है क्या यह कह देना पर्याप्त है।
भारत के खनन विभाग की वार्षिक रिपोर्ट 2009 के अनुसार भारत के गर्भ में कुल 46 लाख कैरेट हीरा का भंडार होने का अनुमान है। वहीं केवल छत्तीसगढ़ में ही करीब 13 लाख कैरेट हीरा का भंडार है इसके मुताबिक देश के कुल हीरे के भंडार में छत्तीसगढ़ की भागीदारी 28.26 प्रतिशत अनुमानित है।
प्रदेश की पहली अजीत जोगी की सरकार बनने पर बी विजय कुमार छत्तीसगढ़ एक्सप्लोरेेशन लिमिटेड (बीव्हीसीई) को सन 2000 में पूर्वेक्षण लायसेंस दिया गया था पर सन 2001 में यह राज्य सरकार के इस निर्णय के खिलाफ बीव्हीसीई ने बिलासपुर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और उसके बाद पिछले 10 सालों में पेशी दर पेशी ही चल रही है। इस मामले में राज्य सरकार की भी रुचि नहीं दिखती है। अन्यथा प्रदेश की भावी पीढ़ी का भविष्य तय करने वाले हीरा खदान का मामला इतना लंबा नहीं चलता। यह ठीक है कि न्यायालयीन प्रक्रिया लम्बी चलती है पर इस मामले को सरकार ने उच्च न्यायालय में गंभीरता से नहीं लिया है। सरकार की तरफ से तैनात अफसर और सरकार के वकील बस पेशी में उपस्थिति ही दर्ज कराते हैं।
निज सचिव और कुलसचिव
का एक मात्र दावेदार
50 हजार प्राइवेट छात्र-छात्राओं के भविष्य से खिलवाड़ की खबरों के बीच बिलासपुर में नये विश्वविद्यालय की स्थापना की अधिसूचना जारी होने के बाद कुलसचिव चयन प्रकिया ही विवादों में आ गई है। पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री हेमचंद यादव ने तो अपने ही निज सहायक दिलीप अग्रवाल के नाम की अनुशंसा कर दी है। कुलसचिव चयन प्रक्रिया में नोडल रहे व्यक्ति द्वारा स्वयं के नाम का अनुमोदन कराना भी चर्चा में है।
बिलासपुर में स्थापित होने वाले नये विश्वविद्यालय की अधिसूचना जारी होने के पश्चात कुलपति तथा कुलसचिव की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। कुलपति के चयन हेतु उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 6 नामों का पेनल मुख्यमंत्री के अनुमोदन हेतु भेजा जा रहा है। ज्ञात हो कि नये विश्वविद्यालय की स्थापना पर प्रथम कुलपति व कुलसचिव की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार का होता है तथा बाद में यह अधिकार माननीय राज्यपाल को चला जाता है।
बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलसचिस की नियुक्ति की प्रक्रिया विवादों में आ गई है। जानकार सूत्रों के अुनसार मंत्री के निज सहायक व नगर पालिका अधिकारी हंै तथा इस चयन प्रक्रिया के नोडल अधिकारी रहे हैं ने स्वयं का नाम कुल सचिव के लिये प्रस्तावित कर दिया है जो इस पद के अनुरुप योग्यता भी नहीं रखते हैं। कुल सचिव के पद का वेतनमान37,400-67,000, रुपए हैं। जबकि उक्त अधिकारी का वेतनमान इससे काफी कम है। बताया यह जा रहा है कि उक्त अधिकारी को कुल सचिव के पद में नियुक्त कराने हेतु पूर्व के पेनल को निरस्त करते हुए सिंगल नाम अनुमोदन हेतु भेजा जा रहा है। मंत्रालय में पदस्थ उक्त अधिकारी के सहकर्मियों का यह मानना है कि जो कुलसचिव की नियुक्ति की प्रक्रिया से जुड़ा हो, वह स्वयं का नाम प्रस्तावित करवाये तो राज्य सरकार की छवि पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता है। गौरतलब है कि नवनियुक्त उच्च शिक्षा मंत्री रामविचार नेताम जो इस पूरी प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं वे 26 फरवरी को नई दिल्ली प्रवास से वापस लौट रहे हैं। तभी इस विवाद के हल होने की उम्मीद की जा रही है। उच्च शिक्षा से जुड़े लोगों का यह मानना है कि नये विश्वविद्यालय में अनुभवी कुल सचिव या शिक्षाविद को ही यह महत्वपूर्ण जवाबदारी दी जानी चाहिए। यहां यह भी बताना जरूरी है कि पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के कार्यकाल में बतौर निज सहायक दिलीप अग्रवाल काफी चर्चा में रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में 14 वरिष्ठ प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को एक माह के भीतर आईएएस अवार्ड मिलना तय माना जा रहा है। सुखद बात यह है कि लगभग सभी अफसर छत्तीसगढ़ के ही मूल निवासी हैं तथा छत्तीसगढ़ की ही धरा में जन्म भी लिया है। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव सुनील कुमार के कार्यकाल में पहली डीपीसी में एक साथ 14 छत्तीसगढ़ियों को आईएएस का अवार्ड मिलना उपलब्धि ही कहा जा सकता है।
विभागीय पदोन्नति समिति ने राज्य प्रशासनिक सेवा के 14 अफसरों के नाम आईएएस अवार्ड के लिये लिफाफे में बंद कर दिये हैं। समझा जा रहा है कि मार्च माह में अवार्ड की घोषणा हो जाएगी। संघ लोकसेवा आयोग के केन्द्रीय मुख्यालय दिल्ली में शुक्रवार को आयोग के सदस्य खान और राज्य समिति के सदस्य सुनील कुमार (मुख्यसचिव) डीएम मिश्रा (प्रमुख सचिव) और केन्द्रीय कार्मिक विभाग के 2 संयुक्त सचिव शामिल हुए। छत्तीसगढ़ के राप्रसे के 37 अफसरों की विगत 5 सालों की गोपनीय चरित्रावलियों का अवलोकन कर उसमें से 14 अफसरों को आईएएस अवार्ड देने सहमति बन गई है। सूत्र कहते हैं कि वर्ष 1987 से 1990 तक के 14 अफसरों को पदोन्नति मिलना तय है। सूत्रों की मानें तो ए के टोप्पो, अनिल टुटेजा, नरेंद्र शुक्ला, निरंजन दास, इमिल लकड़ा, जी आर चुरेंद्र, भरत बंजारे, सुधाकर खलखो, उमेश अग्रवाल, धनंजय देवांगन, एच कुजूर आदि को आईएएस अवार्ड मिलने की संभावना है।
और अब बस
(1)
फिर किसी ने अपवाह उड़ा दी कि कांगे्रस के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी, राज्यपाल बनाये जा सकते हैं। इस पर एक जोगी समर्थक की टिप्पणी... साहब राज्यपाल नहीं उपराष्ट्रपति बनाए जाएंगे।
(2)
कांगे्रस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल पर एक वरिष्ठ कांगे्रसी की टिप्पणी... नंदू भैया अच्छे आदमी हंै बस माइक देकर बोलना कुछ चाहते हैं और बोल कुछ देते हैं।
(3)
डी के एस मंत्रालय में एक बड़े साहब के आते ही सभी साहब, कर्मचारी पूरे समय कार्यालय में मौजूद रहते हैं। एक अफसर यह कहते पाये गये: पिछले 11 दिनों में जितनी नौकरी की है उतनी तो राज्य बनने के बाद 11 सालों में नहीं थी।