Tuesday, December 20, 2011

बादलों ने फिर शरारत की
धरती के नाम विरासत की
नदियों का जल इक_ïा हो गया
तब समुंदर ने बगावत की

छत्तीसगढ़ की राजनीति तथा प्रशासन में ए,आर, और एस अक्षर से शुरू होने वाले नामधारी लोगों का बड़ा दबाव है। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त (एस) मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह (आर) पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी (ए) पुलिस प्रमुख अनिल एम नवानी (ए) जेल प्रमुख संतकुमार पासवान(एस) प्रदेश के वरिष्ठï आईएएस सुनील कुमार (एस) भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर पैकरा (आर) महिला कांगे्रस अध्यक्ष अंबिका मरकाम (ए) इस श्रेणी में शामिल हैं तो एन नाम धारियों में विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल, प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, प्रमुख आईएएस नारायण सिंह शामिल हैं। विधानसभा अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक (डी) मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन (पी) तथा डीजी होमगार्ड विश्वरंजन (व्ही) के प्रथम अक्षरवाले लोगों की संख्या जरूर कम है।
छत्तीसगढ़ राज्य में 'एÓ, 'आरÓ तथा 'एसÓ नाम की शुरूवात वाले व्यक्ति पूरे फार्म में हैं। प्रदेश की भाजपा सरकार सहित प्रमुख विपक्षी दल कांगे्रस की बात करें तो इन नाम वाले चर्चा में हैं। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त 'एसÓ नाम वाले हैं तो प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी 'एÓ तथा पिछले 8 सालों से भाजपा सरकार के मुखिया बने डॉ. रमन सिंह 'आरÓ नाम वाले हैं। डॉ. रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का विवाह 'एÓ नाम वाली 'एश्वर्याÓ से हुआ है तो अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी 'आरÓ नाम वाली है। वहीं जोगी दंपत्ति के पुत्र अमित का विवाह भी 'आरÓ नाम वाली ऋचा से 2 दिन पूर्व ही संपन्न हुआ है। अजीत और अमित 'एÓ नाम वाले हैं तो रेणु और ऋचा 'आरÓ नाम वाली है। वैसे डॉ. रमन सिंह की पत्नी वीणा सिंह डी जी विश्वरंजन विक्रम सिसोदिया 'व्हीÓ नाम वाले होकर भी चर्चा में हैं तो विधानसभा अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक 'डीÓ उपाध्यक्ष नारायण चंदेल, गृहमंत्री ननकीराम कंवर, वरिष्ठ सांसद नंदकुमार साय तथा मुख्यसचिव की दौड़ में शामिल नारायण सिंह, कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार 'एनÓ नामधारी है तो 'पीÓ नाम धारी जॉय उम्मेन भी कम चर्चा में नहीं है। पी नामधारी बृजमोहन अग्रवाल, बद्रीधर दीवान भी चर्चा में रहते हैं।
'एÓ नामधारियों में अपने बयानों के लिये चर्चा में स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल, पुलिस महानिदेशक अनिल एम नवानी, छत्तीसगढ़ प्रेम में अपनी अखिल भारतीय सेवा को त्यागने वाले अमन सिंह, एडीजी तथा ओएसडी ए एन उपाध्याय, हस्तशिल्प बोर्ड के अध्यक्ष मेजर अनिल सिंह, पापुनि के अध्यक्ष अशोक शर्मा, पिछला विस चुनाव हारकर वित्त आयोग के अध्यक्ष बने अजय चंद्राकर, बिलासपुर के पुलिस महानिदेशक ए डी गौतम, आईपी एस अफसर आनंद तिवारी भी चर्चा में हैं।
'आरÓ नाम वालों की चर्चा
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री राजेश मूणत, राम विचार नेताम, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस, भाजपा के संगठन प्रमुख रामप्रताप सिंह, बर्खास्त कर्मचारी से उसी विभाग के सर्वेसर्वा बने राधाकृष्ण गुप्ता, आईएएस आर पी मंडल रायपुर, दुर्ग में पुलिस कप्तान रह चुके तथा वर्तमान में आईजी दुर्ग के पुलिस महानिरीक्षक होमगार्ड आर सी पटेल, डीआईजी रविन्द्र भेडिय़ा, कप्तान आर एल डांगी भी कम चर्चा में नहीं हैं।
एस नाम वाले भी
'एसÓ शब्द से नाम शुरू होने वालों में सबसे बड़ा नाम है। राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त का। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय रायपुर संभाग के आयुक्त भी शेखर दत्त रह चुके हैं। वहीं नौकरशाहों में मुख्य सचिव बनने में सशस्त्र दावेदारी करने वाले सुनील कुमार का नाम भी इस श्रेणी में शामिल है। बस्तर के आदिवासी अंचल से अपनी नौकरी की शुरूआत करने वाले सुनील कुमार भी रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। कभी रायपुर में अपर कलेक्टर निगम प्रशासक रहने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव बनकर सेवा निवृत्त होकर आजकल सत्ताधारी दल के करीबी शिवराज सिंह भी एक बड़ा नाम है। दुर्ग में महापौर फिर विधायक और सांसद बनकर रिकार्ड बनाने वाली सुश्री सरोज पांडेय भी 'एसÓ श्रेणीधारियों का नेतृत्व करती हैं। जेल महानिदेशक संतकुमार पासवान भी पहले पुलिस कप्तान रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, आईजी बस्तर, रायपुर रह चुके हैं। मुख्यमंत्री के काफी करीबी सुबोध सिंह, संजीव बख्शी, क्रेडा के एस के शुक्ला भी एस नामधारी ही हैं।
भाजपा सरकार के प्रमुख संगठन प्रभारी सौदान सिंह भी छत्तीसगढ़ में जाना पहचाना तथा चर्चित नाम है। इनके अलावा शिवप्रताप सिंह, सुभाष राव, शिवरतन शर्मा, सच्चिदानंद उपासने, श्याम बैस, सुनील सोनी, संतोष पांडे, आईएएस सुब्रत साहू, एस एस बजाज भी कम चर्चा में नहीं है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने शरद जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी, रविवि के कुलपति एस के पांडे भी 'एसÓ नामधारी हंै। कवि पदमश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे की चर्चा तो और भी जरूरी है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 11 सालों से वे ओएसडी बने हुए हैं। अजीत जोगी के समय भी थे और डॉ. रमन सिंह के समय भी हैं। एक और नाम की भी चर्चा जरूरी है। जनसंपर्क विभाग के स्वराज कुमार दास भी राज्य बनने के बाद से अभी तक मुख्यमंत्री का जनसंपर्क सम्हाल रहे हैं।
एक तिहाई विधायक भी
छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा में करीब एक तिहाई से अधिक विधायक 'एÓ, 'आरÓ और 'एसÓ से शुरू वाले नामधारी हैं। यह भी एक रिकार्ड ही है। वैसे ये सभी विधायक भाजपा, कांगे्रस और बसपा के हैं।
सुश्री रेणुका सिंह (प्रेमनगर) राम विचार नेताम (रामानुजगंज), सिद्धनाथ पैकरा (सामरी), रामदेव राम (लुण्ड्रा), अमरजीत भगत(सीतापुर), रामपुकार सिंह (पत्थल गांव), डॉ. शक्राजीत नायक (रायगढ़), ओमप्रकाश राठिया (धरमजयगढ़) राम दयाल उइके (पाली-तानाखार) अजीत जोगी (मरवाही) डॉ. रेणु जोगी (कोटा) राजूसिंह ठाकुर (तखतपुर), अमर अग्रवाल (बिलासपुर), सौरभ सिंह (अकलतरा), श्रीमती सरोजा मनहरण राठौर (सक्ती), महंत राम सुंदरदास (जैजैपुर), अग्निचंद्राकर (महासमुंद), डॉ. शिव डहरिया (बिलाईगढ़), राजकमल सिंघानिया (कसडोल), राजेश मूणत (रायपुर पश्चिम), रुद्र कुमार गुरु (आरंग), अभिषेक शुक्ला (राजिम), श्रीमती अंबिका मरकाम (सिहावा), रविंद्र चौबे (साजा), मो. अकबर (पंडरिया), सियाराम साहू (कवर्धा), रामजी भारती (डोंगरगढ़), डॉ. रमन सिंह (राजनांदगांव), शिवराज सिंह उसारे (मोहला-मानपुर), श्रीमती सुमित्रा मारकोले (कांकेर), सुभाऊ कश्यप (बस्तर), संतोष बाफना (जगदलपुर), शामिल हैं। वहीं प्रमुख पूर्व विधायकों में रामचंद्र सिंहदेव, स्वरूपचंद जैन, सत्यनारायण शर्मा, शंकर सोढ़ी, रमेश वल्र्यानी आदि के नाम प्रमुख हैं।
मीडिया प्रमुख
राजधानी से निकलने वाले समाचार पत्र तथा इलेक्ट्रानिक्स मीडिया में भी संपादकों और ब्यूरोचीफ में ए आर और एस नाम वालों की प्रमुखता है। प्रिंट मीडिया में सर्वश्री श्याम वेताल, राजीव सिंह, रवि भोई, राजेंद्र शर्मा, शंकर पांडे, राम अवतार तिवारी, अनिरुद्ध दुबे, सुनील कुमार, राजीव रंजन, अशोक भटनागर, अशोक साहू, (वार्ता) राजेंद्र शुक्ला (आरएनएस), एजाज केसर, आर कृष्णादास, शेष करण जैन, अरविंद अवस्थी आदि के नाम शामिल हैं तो इलेक्ट्रानिक मीडिया में सर्वश्री रुचिर गर्ग, शिरीष मिश्रा, सुनील नामदेव, शैलेष पांडे, संजय शेखर, संदीप ठाकुर के नाम प्रमुख हैं। जहां तक जनसंपर्क संचालनालय की बात है तो आयुक्त अशोक अग्रवाल, सहायक संचालक एस आर कुरैटी, स्पराज कुमार दास, संतोष सिंह, संजय नैय्यर, राजेश श्रीवास के नाम इस श्रेणी में शामिल किये जा सकते हैं।
और अब बस
(1)
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र के विवाह समारोह में पहुंचे वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से कुछ लोगों ने वहां आटोग्राफ लिया और साथ में फोटो भी खिंचवाया। एक टिप्पणी... कांगे्रसी उनका महत्व समझते हैं पर भाजपा का राष्ट्रीय संगठन क्यों समझने तैयार नहीं है?
(2)
अमित के विवाह समारोह में उन्हें आशीर्वाद देने गृहमंत्री ननकीराम कंवर को भी भारी भीड़ के चलते इंतजार करना पड़ा एक टिप्पणी... उनकी ही पार्टी वालों ने अपनी छवि खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
(3)
पिछले विधानसभा चुनाव में शुरूआती परिणामों पर ही पूर्व मुख्यमंत्री को बधाई देने पहुंचने वाले एक आईएएस अफसर की विवाह समारोह में सक्रियता चर्चा में रही, वैसे वे दिल्ली जाने की मानसिकता बना चुके हैं।
खुले आम सजा कौन दे रहा है
निर्दोष का पता कौन दे रहा है
बाजार में हो रही है सरेआम हत्या
सल्फी का मजा कौन ले रहा है

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरनारायण सिंह की शहादत दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर आदिवासी समाज की 32 फीसदी आरक्षण एवं संवैधानिक अधिकारों को लागू करने के नाम पर आयोजित रैली ने सरकार के कान खड़ेे कर दिये हैं। हालांकि राज्य मंत्रिमंडल ने आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण देने की सैद्धांंतिक सहमति बना ली है पर प्रदेश में इससे कुल आरक्षण 58 प्रतिशत हो जाएगा जबकि सर्वोच्च न्यायालय 50 प्रतिशत आरक्षण देने के संबंध में पूर्व में फैसला दे चुका है। एक-दो राज्यों में जरूर आरक्षण का प्रतिशत 50 से ऊपर है पर वहा बकायदा आयोग बनाकर, परीक्षण कर लागू किया गया है।
'एक वीर एक कमान सभी आदिवासी एक समानÓ इस नारे के साथ आदिवासी समाज के 34 संगठनों ने छत्तीसगढ़ के 10 स्थानों पर रैली और सभा लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप मढ़ा है। रैली, सभा में जारी पर्चे में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या का एक तिहाई 66.19 लाख आदिवासी जनसंख्या है, हमारी बदौलत ही सरकार बनती है फिर भी शासन-प्रशासन को सबसे अधिक अपमान और पीड़ा आदिवासी समाज को झेलनी पड़ती है। सवाल उठाया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (4), 16(4) (क) (ख), 46, 47, 48(क), 49,225, 243(घ,ड़), 243 (य, ग), 244(1), 275, 330, 332, 335, 338, 339, 342 तथा 5 बी अनुसूची में अनुसूचित जातियों के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक विकास के पर्याप्त प्रावधान के बावजूद आदिवासी समाज का अपेक्षित विकास क्यों नहीं हो रहा है। आरोप तो यह भी लगाया गया है कि राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के क्रियान्वयन की बजाय आदिवासी समाज को 1-2 रुपए किलो चावल में खरीदने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य सरकार से मांग की जा रही है कि 32 प्रतिशत आरक्षण शासकीय नौकरियेां सहित शिक्षण संस्थाओं में भी लागू किया जाए।
छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 धारा 165(6) के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों द्वारा क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध है पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बस्तर में टाटा एस्सार, रायगढ़ एवं जशपुर जिले में जिंदल, कोरबा जिले में बालको और वेदांता तथा सरगुजा जिले में भारी उद्योग लगाने भूमि अधिग्रहित कर आबंटित की जा रही है जिससे आदिवासी भूमि स्वामी दर-दर की ठोकर खाने मजबूर हैं। भू अर्जन अधिनियम 1884 यथा संशेधित 1994 में शासकीय प्रयोजनों जैसे तालाब, सड़क, रेल पटरी आदि के निर्माण हेतु भूअर्जन का प्रावधान था पर सरकार लगातार, संशोधन कर निजी कंपनियों के लिये भूमि अधिग्रहित कर माटीपुत्र आदिवासियों को बेदखल कर रही है। इसके अलावा यह भी आरोप लगाया गया है कि अनुसूचित क्षेत्रों के नगरीय निकायों में असंवैधानिक चुनाव कराकर 3 नगर निगम, 7 नगर पालिका तथा 264 पार्षदों के पद छीनकर गैर आदिवासियों को दे दिया गया है। इसके अलावा फर्जी प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी करने वालों के खिलाफ कठोर कार्यवाही नहीं करने, आदिवासियों को नक्सली समर्थक मानकर प्रताडि़त करने, फर्जी मुठभेड़ में हत्या कराने, जेल में बंद करने का भी आरोप सरकार पर लगाया है।
वीसी-बैस की हालत
एक जैसी!
छत्तीसगढ़ में सबसे वरिष्ठ सांसद बनने का गौरव पाने वाले विद्याचरणश्ुाक्ल तथा रमेश बैस की हालत कुछ एक जैसी ही है। विद्याचरण शुक्ल फिलहाल सांसद नहीं है पर रमेश बैस सांसद हैं पर क्रमश: केन्द्र की सरकार और राज्य की सरकार में दोनों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।
विद्याचरण शुक्ल कांगे्रस के वरिष्ठ नेताओं में से एक है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के साथ उन्हें काम करने का अनुभव है। 1957 बलौदाबाजार लोस से अपनी राजनीतिक पारी बतौर सांसद उन्होंने शुरू की थी और 1966 में पहली बार संसदीय कार्य तथा संचार मंत्रालय में उपमंत्री बने थे। उसके बाद गृह, वित्त, रक्षा योजना, सूचना एवं प्रसारण, नागरिक आपूर्ति सहकारिता, विदेश, जल संसाधन तथा संसदीय कार्य जैसे कई मंत्रालय का कार्य सम्हाला। हालांकि कांगे्रस छोड़कर विद्याचरण शुक्ल जनमोर्चा, राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी सहित भाजपा का भी चक्कर लगा चुके हैं। बतौर भाजपा प्रत्याशी वे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी महासमुंद से पराजित भी हुए थे। उन्हें प्रदेश में अजीत जोगी की सरकार नहीं देने में सहयोग देने के नाम पर भाजपा नेतृत्व ने उपकृत किया था पर बतौर भाजपा प्रत्याशी पराजय के बाद वे कांगे्रस में लौट आए हैं। कांगे्रस में वापसी के बाद उनकी स्थिति किसी से छिपी नहीं है। पिछले लोस चुनाव ें वे महासमुंद से कांगे्रस की टिकट चाहते थे पर वहीं से अजीत जोगी ने भी टिकट के लिये दबाव बनाया था और दोनों को टिकट नहीं मिली। हां पिछले विधानसभा चुनाव में उनके एकमात्र समर्थक संतोष अग्रवाल को जरूर रायपुर की एक विधानसभा से प्रत्याशी बनाया गया था पर वे भी पराजित रहे। ऐसा लगता है कि अपनी ही पार्टी में पहचान बनाने के लिए संघर्षरत हैं।
छत्तीसगढ़ में पार्षद विधायक होकर लोकसभा का सफर तय करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश बैस वरिष्ठ सांसद है। ब्राह्मणपारा से वे पिछले 78-83 पार्षद चुने गये फिर 1980 में वे मंदिर हसौद से विधायक बने। 1989, 96, 98, 99, 2004, 2009 में वे रायपुर लोकसभा से चुने गये। पूर्व मुख्यमंत्री पं.श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने का भी श्रेय उनके खाते में दर्ज है। यही नहीं इस्पात एवं खनन रसायन एवं उर्वरक, सूचना एवं प्रसारण, पर्यावरण एवं वन, मंत्री भी वे केन्द्र में रहे। भाजपा और आरएसएस के वे स्थापित नाम हैं।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर केन्द्र में राज्यमंत्री पद छोड़कर प्रदेश में पहले विस चुनाव की बागडोर उन्हें सौंपने की पहल हुई थी पर उनके स्थान पर डॉ. रमन सिंह ने वह चुनौती स्वीकार कर ली और पिछले 8 साल से लगातार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड पूरा कर रहे हैं। रमेश बैस और प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया के बीच मनभेद कई बार सार्वजनिक हो चुके हैं। पार्टी मंचों सहित कुछ अन्य मंचों पर सरकार की कार्यप्रणाली पर रमेश बैस प्रहार भी कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने मुख्यमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने की बात की है तो सीमेंट के बढ़ते दामों पर चिंता प्रकट करते हुए आंदोलन तक की धमकी दे डाली है। वही तीरदांजी संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। उनकी नाराजगी खेल संघ के संचालक आईपीएस अफसर से है। वैसे ये वही अफसर हैं जिन पर फर्जी नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने का आरोप पहले भी लग चुका है। रमेश बैस ही हालत तो यह है कि प्रदेश सरकार के अफसर उनकी सिफारिशों को तवज्जो नहीं देते हैं कुद मंत्री तक उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। बहरहाल कांगे्रस तथा भाजपा के दोनों वरिष्ठ नेताओं की हालत कुछ एक जैसी ही है।
हम साथ-साथ हैं!
छत्तीसगढ़ के आला पुलिस अफसर एक साथ तभी दिखाई देते हैं जब मुख्यमंत्री या केन्द्रीय गृह मंत्री आकर कोई बैठक लेते हैं इसमें भी केवल मुख्यालय में पदस्थ अफसर शामिल होते हैं या जिला मुख्यालयों में तैनात अफसर शामिल होते हैं पर प्रतिनियुक्ति में गये पुलिस अफसर, साथ-साथ कभी-कभी ही दिखाई देते हैं। पर हाल ही में एक समारोह में पुलिस के कई आला अफसरों को साथ-साथ देखकर सुखद अनुभूति ही हुई। छत्तीसगढ़ होमगार्ड के खेल समापन समारोह में गवर्नर शेखर दत्त, गृहमंत्री ननकीराम कंवर पहुंचे थे और उन्हीं के साथ जेल महानिरीक्षक संतकुमार पासवान, एडीसी उपाध्याय, आईजी पी एन तिवारी, संजय पिल्ले, आनंद तिवारी, बी एस मरावी, देवांगन पहुंचे थे। प्रदेश के मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन सार्वजनिक समारोह में कम ही दिखाई देते हैं पर वे भी वहां पहुंचे थे। कार्यक्रम में डीजी होमगार्ड विश्वरंजन तथा आर सी पटेल तो बतौर आयोजक वहां पहुंचे थे। कहा जाता है कि आईजी होमगार्ड आर सी पटेल के अनुरोध पर सभी अधिकारी वहां गये थे। चलो प्रयास किसी का भी हो सभी पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी अच्छा संकेत है। हां होमगार्ड में कभी डीजी रहे तथा अब पुलिस डीजी बने अनिल नवानी की अनुपस्थिति जरूर चर्चा में रही।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ सरकार के करीबी एक चिकित्सक ने बाल आश्रम में कब्जा करने काफी मेहनत की यह बात और है कि उन्हें सफलता नहीं मिली।
(2)
छत्तीसगढ़ में चल रहे पर्चा विवाद पर कुछ आर एस एस, भाजपा नेता चिंतित हैं। चर्चा है कि एक बड़े नेता के इर्द-गिर्द रहने वाले ही एक नेता पर शक क सुई पहुंच रही है पर आरएसएस का करीबी होने के कारण उन्हें दण्ड भी तो नहीं दिया जा सकता है।
(3)
मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने डॉ. रमन सिंह पर कोई आरोप नहीं लगाया है। इसका खुलासा भी आनन-फानन में कर दिया एक टिप्पणी... हम सभी ठाकुर साथ-साथ हैं।

Saturday, December 10, 2011

मैं बोलता गया हूं वो सुनता रहा खामोश
ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी-कभी

छत्तीसगढ़ को ऊंची पर्वतीय चोटियों और इन पर उगे प्राकृतिक खजाने साल, सागौन, बीजा तथा बांस के सदाबहार वन, जंगली औषधियों और इन क्षेत्रों में आश्रय पाने वाले विविध वन्य प्राणियों, रंग-बिरंगी चिडिय़ों के स्वप्निल संसार ने देशी-विदेशी लेखकों, सैलानियों को सदा अपनी ओर आकर्षित किया है। छत्तीसगढ़ के वन्यप्राणियों की विविधता की प्रचूर संया थी पर शानदार प्रजातियां लगातार कम होती जा रही है। पहले वन विभाग के अमले को ग्रामीणों की सहायता मिलती थी और वनों तथा वन्यप्राणियों के
संरक्षण में उनकी महती भूमिका होती थी पर आजकल तो ग्रामीण जन ही वन्यप्राणियों के दुश्मन बन गये हैं और इसका कारण है वन विभाग का असहयोगात्मक रवैया। हाल ही में 3 शेर मारे गये, कुछ हाथियों की भी संदिग्ध मौत हो गई, दरअसल छत्तीसगढ़ जैसे शांत प्रदेश में वन्यप्राणियों और मानव के बीच सीधे संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गई है और इसके लिये कुछ कड़े कदम उठाने होंगे।
पंडित मुकुटधर पांडे ने जिस 'कुर्रीÓ की पीड़ा को देखकर छायावाद की धारा का प्रवाह शुरू किया था वह 'कुर्रीÓ अब छत्तीसगढ़ से गायब है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रायपुर और बस्तर संभाग में वन भैसा को राजकीय पशु घोषित किया है उसकी भी संया घटती जा रही है। इसके लिये अभी से वन भैसा संरक्षण परियोजना प्रारंभ किया जाना जरूरी है। छत्तीसगढ़ में कभी विशाल बारहसिंगा पर्याप्त संया में थे इनके अलावा काला हिरण (ब्लैक बक) भी पाये जाते थे पर आजकल यह समाप्त प्राय है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय की बात
करें तो दुनिया का सबसे तेज धावक माने जाने वाला चीता भी छत्तीसगढ़ में पाया जाता था पर बैकुंठपुर (कोरिया) में एक रात में ही 3 चीतों को मार डाला गया और देश में दु्रतगामी इस जीव का अंत हो गया। उडऩे वाली गिलहरी भी बस्तर में इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान सहित बादलखोल अयारण्य में गिनी चुनी ही बची है ऐसा कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में कभी भेडिय़े, सोन कुत्ते, अचानकमार के जंगलों में खरगोश के आकार का माऊस डियर भी अब दिखाई नहीं देता है। साल के वनों में पाई जाने वाली फरदार सुंदर बड़ी गिलहरी की
उछल-कूद भी अब नहीं दिखाई देती है। बस्तर की मैना भी दुर्लभ हो चली है। मधुरस्वर में गाने वाली पक्षियों में काले रंग के भृंगराज तथा अमराइयों में पंचम स्वर में गाने वाली कोयल के स्वर भी मंद होते जा रहे हैं। प्रवासी पक्षियों में फेमिंगो (राजहंस), पेलिकान के अलावा भी कई पक्षी छत्तीसगढ़ में बड़ी संंया में आते थे लेकिन अब यदाकदा ही दिखाई देते हैं।
बसंत के समय टेसू के फूलों पर चहचहाने वाला टिनिफर स्टॉलिंग अब दिखाई नहीं देता है। भारतीय सर्पों के विषय में सर्वमान्य पुस्तक 'स्नेकऑफ इंडियाÓ में डॉ. पी जे देवरस ने लिखा है कि अजगर की सबसे बड़ी प्रजाति 'पाइथन एरिव्कुलसÓ सन 1030 में रतनपुर में अंतिम बार दिखाई दी थी। यह विशाल अजगर 30 फीट लबा होता था लेकिन यह प्रजाति भारत में ही समाप्त हो गई है। जशपुर, फरसाबहार आदि के क्षेत्र को आज भी 'नागलोकÓ कहा जाता है। यहां हर साल सैकड़ों ग्रामीण की सांप काटने से मौत हो जाती है। यहां करैत जैसा
जहरीला सांप भी पाया जाता है। राज्य सरकार ने इस क्षेत्र में 'स्नेक पार्कÓ बनाने का प्रस्ताव केन्द्र को भेजा है पर यह लंबित है। राज्य सरकार को ठोस पहल करना चाहिए ताकि 'स्नेक पार्कÓ बनने से वहां के लोगों की जान तो बचेगी वहीं सांप के जहर से बन रही दवाइयों के लिये भी छत्तीसगढ़ राज्य का योगदान रहेगा।
जांजगीर जिले में 'मगरमच्छ पार्कÓ को पिछली राज्य सरकार ने प्रस्तावित किया था कुछ कार्य भी किया था उसे भी संरक्षण की जरूरत है। पता चला है कि क्रोकोडाइल पार्क के कुछ किलोमीटर के पास ही एक उद्योग स्थापित हो रहा है निश्चित ही इससे इस पार्क तथा मगरमच्छ के संरक्षण पर असर पड़ेगा। कुल मिलाकर राज्य सरकार को कुछ कड़े निर्णय लेने ही होंगे।
आजकल 'अपने छत्तीसगढ़Ó में जिस तरह वनों का विनाश जारी है, शेर और हाथियों को मारने का सिलसिला चल रहा है उससे तो लगता है कि 'वन्यजीवÓ अब दुर्लभ हो जाएंगे। वैसे वन अमला वनों की सुरक्षा और वनप्राणियों की रक्षा को छोड़कर बाकी सभी काम कर रहा है जो उसे करना ही नहीं था।
छत्तीसगढ़ में हाल-फिलहाल ही 3 बाघों की मौत हो चुकी है और वन अमला मामले की लीपापोती में ही लगा है। पहले पंडरिया विकासखंड के अमनिया गांव में एक बाघ की सड़ी-गली लाश मिली थी उसे वन अमला 'लकड़बग्घाÓ मारने की रट लगा रहा था। बाद में कुछ वन्य प्राणी विशेषज्ञों के हस्तक्षेप के बाद उसे बाघ मानने तैयार हुआ। बिलासपुर में भी बाघिन के दांत मिले थे पर पत्रकारों के सामने ही एक वन अधिकारी इसे 'पगोलिनÓ का दांत होना ठहरा रहा था और अपने तर्क भी दे रहा था पर वहां उपस्थित डाक्टर ने उसे बहस से
रोका और बताया कि पैंगोलिन के तो दांत ही नहीं होते हैं।
इधर कवर्धा क्षेत्र में कुछ ग्रामीणों ने एक वनराज को पीट-पीट कर मार डाला। जांच हो रही है और जांच कैसे होती है रिपोर्ट में क्या होता है यह किसी से छिपा नहीं है। हाल ही में भोरमदेव के पास जामनीपाली गांव के निकट भी एक बाघिन का शव मिला है। उसकी मौत मृत गाय की लाश में जहर मिलाने और उसे खाने से हुई है ऐसा वन विभाग के लोगों का कहना है वैसे एक बाघिन अपने दो शावकों के साथ क्षेत्र में धूम रही थी यह खबर वन अधिकारियों के पास पहुंची थी पर वन विभाग को तो कोई मतलब ही नहीं
था। खैर बाद में यह कहा गया कि यह बाघिन वही है और इसके शावक बड़े होने के कारण आसपास के जंगलों में चले गये होंगे। जहां बाघिन की लाश मिली है उसी के 400 मीटर दूर एक गाय की लाश मिली है और उसके शव पर जहर मिलाया गया और उसे खाकर बाघिन की मौत हुई। इधर इसके पहले वन संरक्षक वन्यप्राणी का यह बयान भी आया था कि जहां बाघिन का शव मिला था उसके आसपास दो किलोमीटर का क्षेत्र छान मारा गया है। तब तो गाय का शव क्यों नहीं मिला? खैर बाद में वन तथा पुलिस अमले ने वीरसिंह और उसके
साथियों को पकड़ा, एक रेस्ट हाऊस में अच्छी मारपीट की गई। 19 नग शेर के नाखून भी जब्त किये। अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि शेर के एक पंजे में 4 नाखून होते हैं इस हिसाब से 16 नाखून होने चाहिए फिर 19 नाखून आये कहां से! खैर वीर सिंह और साथियों ने तो शेर को मारना भी स्वीकार कर लिया है चलो बला तो छूटी।
हाथी भी संकट में
आदिवासी अंचल सरगुजा में भी हाथियों के मरने का सिलसिला चल रहा है। करंट से एक हाथी मरा, एक हाथी हाल ही में जहर के सेवन से मरा है यह कहा जा रहा है वहीं हाथी दल से बिछुड़ा एक बच्चा छाल के जंगल से मिलने पर बिलासपुर लाया गया था पर वह भी चल बसा। दरअसल सरगुजा, कोरबा, रायगढ़ आदि क्षेत्र में कई गांव जंगली हाथियों के दल हमले से परेशान है। अभी तक 18 लोगों की मौत हाथियों के हमले से हो चुकी है। कई घर, कई एकड़ खेतों की फसलें बर्बाद हो चुकी है। कुछ गांवों में रतजगा हो रहा है। इसीलिये
अब प्रतिशोध की भावना ग्रामीणों में घर कर रही है। वन अमला अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह बना हुआ है और जंगली जानवरों और ग्रामीण जनता के बीच आना नहीं चाह रहा है।
बिलासपुर गजेटियर की मानें तो भूतपूर्व मातिन और उपरोरा जमींदारी के जंगलों में 1868 में करीब 300 हाथी थे। पर धीरे-धीरे इनकी संया कम होती गई। हाथी दांत की देश विदेशों में बढ़ती मांग भी प्रमुख कारण रहा। वैसे सीमा से लगे पलामू क्षेत्र के हाथी अभी भी सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा व प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में झुंड के रूप में आकर कहर बरपा जाते हैं। छत्तीसगढ़ में बिहार से आकर हाथी अपना कहर बरपाते हैं। झारखंड से भी हाथी आते हैं। वन अमला कभी हाथी अयारण्य बनाने की बात करता है तो
कभी ग्रामीणों को मशाल जलाकर, फटाका फोड़कर हाथी के दल से मुकाबला करने की समझाइश देता है। प्रदेश के हाथियों सहित बाहरी प्रदेश के हाथियों के लिये 'एलीफेण्ट प्रोजेक्टÓ की स्थापना की जरूरत है और इस के लिये केन्द्र सरकार पर भी दबाव बनाया जाना चाहिए क्योंकि जनहित पहले जरूरी है।
और अब बस
(1)
प्रेमिका (प्रेमी से) सामने की खिड़की में जो तोता-मैना बैठे हैं, दोनों रोज यहां आते हैं, साथ-साथ बैठते हैं, गुतगू करते हैं और एक हम हैं जो हमेशा लड़ते रहते हैं। प्रेमी-तुमने एक चीज नोट नहीं की है, यहां रोजाना बैठने वाले जोड़ेे में तोता तो वही होता है पर मैना हमेशा एक नहीं होती है।
(2)
राजधानी सहित 13 जिलों में एक भी गधा नहीं है, पशुधन विभाग की रिपोर्ट कहती है। एक टिप्पणी: घोड़ों को नहीं मिलती घास देखो, गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो!

chhattisgarh ka Aaina

छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार के 12 दिसंबर को पूरे 8 साल होने जा रहे हैं। इन आठ सालों में लगातार मुख्यमंत्री रहकर डॉ. रमन सिंह ने भाजपाई मुख्यमंत्रियों का एक रिकार्ड बनाया है। नरेंद्र मोदी के बाद वे दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो एक पारी पूरी करने दूसरी पारी के भी 3 साल पूरे कर रहे हैं। यही नहीं पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में पिछले 8 सालों में उमा भारती, बाबूलाल गौर के बाद शिवराज सिंह यानि 3 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। भाजपा शासित झारखंड की भी कुछ ऐसी ही हालत है जहां तक गुजरात की बात है तो यहां के हालात कुछ अलग हैं वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तो प्रधानमंत्री बनने की राह पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। हालांकि पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने पर लगातार एक भी कार्यकाल उन्होंने पूरा नहीं किया। इधर कांगे्रस के दिग्विजय सिंह ने जरूर मध्यप्रदेश में 10 साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहकर एक रिकार्ड बनाया है और उन्हीं का रिकार्ड डॉ. रमन सिंह तोडऩे की राह में है। कांगे्रस में तो शीला दीक्षित ने भी रिकार्ड बनाया है। बहरहाल अपने 8 साल के सफर में डॉ. रमन सिंह ने बिना किसी चुनौती के अपना सफर पूरा किया है। हालांकि इस दौरान उन्हें 'आदिवासी एक्सपे्रेसÓ के नाम पर कुछ आदिवासी नेताओं की चुनौती मिली थी पर भाजपा हाईकमान के वरदहस्त होने के कारण उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका। पर हाल ही में जो भाजपा में रंग-बिरंगे पर्चे जारी करने का दौर है उससे जरूर उनके सामने कुछ चुनौती सामने दिख रही है। हाल ही में पीले पर्चे के बाद केसरिया पर्चा भी जारी किया गया है। हालांकि पर्चा जारी किसने किया यह तो नहीं कहा जा सकता है पर उसकी भाषा देखकर यह कहा जा रहा है कि यह किसी जानकार के दिमाग की ही उपज है। इस पर्चे में डॉ. रमन सिंह को चापलूस नेताओं और ऐसे अफसरों से बचने की हिदायत दी गई है साथ ही 'समय रहते सुधर जाओÓ नहीं तो उत्तराखंड, झारखंड और कर्नाटक जैसा हाल होने की भी बात की गई है। ज्ञात रहे कि इन राज्यों में मुख्यमंत्री बदले गये है। पत्र में सीधा आरोप लगाया गया है कि चापलूस और पराजित नेताओं को पद बांटकर वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की गई है। पत्र में उल्लेख है कि अशोक शर्मा, अशोक बजाज, अजय चंद्राकर, लीलाराम भोजवानी आदि को पद दिया गया है। 7 पन्नों का यह पर्चा काफी चर्चा में है। इधर डॉ. रमन सिंह की परेशानी भाजपा के वरिष्ठ नेता भी बढ़ा रहे हैं। वरिष्ठ सांसद रमेश बैस ने प्रदेश में लोकपाल की जोरदार पैरवी करते हुए मुख्यमंत्री को भी दायरे में लाने की मांग की। वहीं सीमेंट के भाव बढऩे पर भी सरकार को आड़े हाथ लिया है तो सांसद दीलिप सिंह जूदेव ने प्रदेश में 'प्रशासनिक आतंकवादÓ संबंधी पत्र तो लिखा साथ ही 'अगला मुख्यमंत्री जशपुर से हो सकता हैÓ कहकर अपनी बात से डॉ. रमन सिंह को भी कुछ संकेत देने का प्रयास किया है। इधर नौकरशाही सरकार के नियंत्रण में नहीं है। जिस तरह प्रदेश के खनिज, जंगल यहां तक की बांध, पानी बेचा जा रहा है वह भी प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि मुख्यसचिव की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने रोगदाबांध का सौदा बिना मुख्यमंत्री तथा विभागीय मंत्री की जानकारी के कर लिया गया। बहरहाल डॉ. रमन सिंह को पार्टी असंतोष तो दूर करना होगा वहीं नौकरशाही को नियंत्रण में करना है इसके लिये वे क्या करते हैं इसका पता तो कुछ दिनों बाद ही चल सकेगा।
कांगे्रस की खेमेबाजी!
छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल भाजपा में तो असंतुष्ट खेमा पर्चेबाजी कर रहा है पर कांगे्रस में तो अब बहुत छोटे नेता भी खुलकर एक-दूसरे के विरोध में सामने आ रहे हैं। कांगे्रस की निर्वाचित महापौर किरणमयी नायक चुनाव जीतने के बाद चर्चा में है कभी आर.एस.एस के जुलूस का स्वागत करके चर्चा में आती है तो कभी प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के फरमान के बावजूद राज्योत्सव के कार्यक्रम में शिरकत करने के कारण चर्चा में रहती हंै। कभी मानसरोवर यात्रा में जाने पर ठगे जाने के नाम पर अखबार में सुर्खियां बंटोरती है पर हाल ही में तो कांगे्रस के महासचिव (हालांकि कांगे्रस भवन के सूचना फलक में प्रभारी महासचिव दर्ज हैं) सुभाष शर्मा के सुंदरनगर स्थित स्कूल में तालाबंदी के लिये चर्चा में है। स्कूलों में नगर निगम एक्ट के तहत 'करÓ नहीं लगता है पर भी स्कूल का उपयोग विवाह या अन्य सार्वजनिक समारोह किराये में देकर किया जाता है तो कर वसूली हो सकती है। इसी तारतम्य में 14 लाख की वसूली बकाया होने पर निगम के वार्डपार्षद भाई मृत्युजंय दुबे की पहल पर तालाबंदी कर दी गई। कांगे्रस के महासचिव सुभाष शर्मा को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने अपनी ही पार्टी की महापौर के खिलाफ धरना, प्रदर्शन शुरू करवा दिया है। बात कांगे्रस आलाकमान तक पहुंच गई है। महापौर डॉ. किरणमयी नायक को एक बात समझ में नहीं आ रही है कि नियमानुसार वसूली क्या गलत है? वैसे फिर नोटिस भी जारी हो गया है। कभी पार्षद पद के प्रत्याशियों के टिकट वितरण, कभी तिरंगा वाला केक काटने, कभी किसी मयखाने में हंगामा करने वाले तथा अपने ही वार्ड में कांगे्रस का पार्षद बनाने में सफल नहीं होने वाले नेता क्या निर्वाचित महापौर के खिलाफ खड़े हो सकते हैं? खैर देखे आगे क्या होता है?
अमर की बयानबाजी!
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल के बयान आजकल चर्चा में है। स्वास्थ्य मंत्री को संवेदनशील होना चाहिए पर उनके बयान से हाल ही में उनकी असंवेदनशील छवि सामने आ रही है। बालोद में सरकारी अस्पताल में करीब 45-50 लोगों की मोतियाबिंद आपरेशन के तहत नेत्र ज्योति चली गई। प्रभावित मरीजों की जांच हो गई है। चेन्नई के शंकरा नेत्र चिकित्सालय में भी इलाज हेतु कुछ मरीजों को भेजने की खबर है। इस मामले में अमर का बयान चर्चा में रहा। पहले तो उन्होंने कहा कि कुछ लोग 'मुआवजाÓ के कारण गलत जानकारी दे रहे हैं। फिर उन्होंने स्वीकार किया कि आपरेशन थियेटर के कारण कुछ मरीजों को समस्याएं हुई है फिर बालोद नेत्र शिविर कांड में प्रभावित कुछ मरीजों से वे मिलने सेक्टर, अस्पताल में पहुंचे वहां भी उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मैं बालोद चला जाता तो क्या मरीज ठीक हो जाते? बहरहाल अमर अग्रवाल ने हाल ही में बिलासपुर के निजी अस्पताल के उद््घाटन में उस अस्पताल की प्रशंसा से भी वे चर्चा में आ गये हैं। छत्तीसगढ़ के सरकार अस्पतालों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों की कमी किसी से छिपी नहीं है कई बार विधानसभा में भी उन्होंने डाक्टरों की कमी की बात स्वीकार की है, रायगढ़ में काफी पहले से मेडिकल कालेज की स्थापना का प्रयास जारी है, जगदलपुर में शुरू किये गये मेडिकल कालेज को एमसीआई की मान्यता को लेकर तलवार लटकी रहती है, प्रदेश के एक मात्र सबसे बड़े अस्पताल 'मेकाहाराÓ में डाक्टर नहीं है, विशेषज्ञ नहीं, दवाई नहीं, चिकित्सा उपकरण खराब आदि के समाचार आते रहते हैं ऐसे में हाल ही में दुर्ग प्रवास पर दुर्ग के मेडिकल कालेज की स्थापना संबंधी अमर अग्रवाल का बयान भी कम चर्चा में नहीं है।
न आरोपी, न आरोप मुक्त
छत्तीसगढ़ में पारदर्शी परीक्षा प्रणाली लागू कर करीब 62 परीक्षाएं आयोजित कर करीब ढाई लाख बेरोजगारों के लिये रोजगार मुहैया कराने में विशेष भूमिका निभाने वाले व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. भानु त्रिपाठी फिर साइंस कालेज पहुंचे गये हंै। मानसिक यातना के अलावा वे पुलिसिया पूछताछ से भी गुजर चुके हैं। इतना समय गुजरने के बाद जांच अधिकारी इसी राय में पहुंचे हैं कि पीएमटी का पर्चा प्रकाशन कंपनी से ही पार होकर बाजार में पहुंचा था। वैसे डॉ. त्रिपाठी के समय शिक्षा कर्मी, महिला एवं बाल विकास पर्यवेक्षक, लोक अभियोजक वेयर हाऊसिंग बोर्ड, सहकारिता अंकेक्षक, खाद्य निरीक्षक परिवहन आरक्षक आदि की परीक्षाएं हुई थीं। करीब 8-9 लाख शिक्षा कर्मियों की परीक्षा लेकर एक माह के भीतर परिणाम भी घोषित करने का एक नया रिकार्ड अभी भी प्रदेश में स्थापित है।
डॉ. त्रिपाठी ने उत्तरपुस्तिका की कार्बन कापी परीक्षार्थियों को उपलब्ध कराने की नई परंपरा स्थापित की माडल आंसर भी इंटरनेट में अपलोड कराया, इंटरनेट के माध्यम से दावा-आपत्तियां भी मंगवाई और उनका भी निराकरण कराया, व्यापम के खिलाफ कुछ लोग उच्च न्यायालय भी गये पर किसी भी मामले में व्यापम के खिलाफ फैसला नहीं आया, हालात तो यह है कि व्यापम की परीक्षा प्रणाली को अब प्रदेश के लोकसेवा आयोग भी अपनाने जा रहा है। बहरहाल डॉ. त्रिपाठी की हालत तो यह है कि न तो आरोपी हंै और न ही आरोप मुक्त। बदनामी जो मढी गई वह अलग।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ का अगला मुख्य सचिव कौन? सुनील कुमार, नारायण सिंह या कोई और? एक टिप्पणी... पहले रोगदा बांध की जांच रिपोर्ट तो विस में पेश हो फिर देखा जाएगा।
(2)
एक मंत्री के निजी सचिव को लम्बी छुट्टी में भेजा गया है... मीडिया को 'सेटÓ करने का दावा खरा नहीं उतरा ऐसा कहा जा रहा है।
(3) मुख्यमंत्री ने पुलिस के आला अफसरों को नक्सली क्षेत्र में रात्रि विश्राम का आदेश दिया था। एक टिप्पणी... अभी तो रात्रि विश्राम का मुहूर्त नहीं निकला है।
(4)
विधायक तथा शराब निगम के अध्यक्ष देवजी पटेल ने अपनी ही सरकार को पत्रकारवार्ता लेकर सीमेंट की बढ़ती कीमतों पर चुनौती दे दी है... शराब की कीमत भी तो दिनों दिन बढ़ रही है...?