Wednesday, November 30, 2011

यूं लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है
मुमकिन हैै लिखने वाले को भी ये खबर नहीं
किस्से में जो नहीं है वही बात खास है

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार और संगठन के कुछ बड़े लोग पीले और सफेद पर्चों से परेशान है। इन पर्चों के माध्यम से पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष को उभारने का प्रयास किया गया है ऐसा लगता है। वैसे प्रदेश में पार्टी के सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी समय-समय पर अपना असंतोष जाहिर करते रहे हैं। डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि ये पर्चे किसने जारी किया है उसकी जांच होगी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा पार्टी के असंतुष्टï या कांगे्रस के लोगों पर यह पर्चा जारी करने का आरोप मढ़ रहे हैं। इधर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी चुटकी ली है कि सवाल यह नहीं है कि पर्चा किसने जारी किया है सवाल यह है कि पर्चे में जो असंतोष जाहिर किया गया है उस पर सरकार और संगठन को जांच करना चाहिए।
बहरहाल भाजपा में असंतोष कोई नई बात नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष के चुनाव से यह असंतोष परिलक्षित हो गया था। नेता प्रतिपक्ष बने नंदकुमार साय, पार्टी अध्यक्ष भी रहे, उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में नये क्षेत्र मरवाही से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ मैदान में उतार कर उन्हें शहीद करा दिया गया। वहां से पराजित होने के बाद वे स्वत: ही मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गये। बाद में प्रदेश अध्यक्ष बने शिवप्रताप सिंह को प्रदेश की राजनीति से अलग कर राज्य सभा भिजवा दिया गया उनका बेटा तो पार्टी से बगावत कर चुनााव मैदान में भी उतरा था। एक और अध्यक्ष ताराचंद साहू की हालत तो और भी खराब है। लगातार भाजपा की ओर से सांसद बनने वाले ताराचंद साहू छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाकर भाजपा की जड़ों में मठा डालने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमप्रकाश पांडे भी हासिये में है। हां, दुर्ग जिले में महापौर, विधायक और सांसद बनकर सुश्री सरोज पांडेय ने एक रिकार्ड बनाया है और वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की राष्टï्रीय पदाधिकारी है।
भारतीय जनता युवा मोर्चा में सक्रिय, जनता पार्टी की सरकार में बस्तर से एक मात्र गैर आदिवासी के रूप में विधानसभा चुनाव में विजयी होकर संसदीय सचिव बनने वीरेंद्र पांडे भी हासिये पर है तथा पार्टी से बाहर हैं। डॉ. रमन सिंह की पहली सरकार बनने पर विधायक खरीदी-बिक्री के मामले को प्रकाश में लाने वाले वीरेंद्र पांडे को उपहार स्वरूप राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था पर बाद में उन्हें विधानसभा की टिकट नहीं दी गई और वे पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावत कर चुनाव भी लड़कर पार्टी से बाहर हो गये वे आजकल भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद और विद्याचरण शुक्ल-श्यामाचरण शुक्ल को लोकसभा चुनावों में पराजित करने वाले रमेश बैसे भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद उपेक्षित ही है। वे कभी-कभी असंतोष जाहिर भी करते रहे हैं। इस सरकार द्वारा नियुक्त छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन द्वारा उन्हें सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने कहा था यह मामला काफी चर्चा में रहा फिर भी राजीव रंजन काफी समय तक अध्यक्ष पद पर काबिज रहे। कमल विहार योजना का भी उन्होंने विरोध किया था पर यह योजना शुरू कर ही दी गई पार्टी के एक सांसद दिलीप सिंह जूदेव भी प्रदेश सरकार से संतुष्ट नहीं है। हाल ही में उन्होंने पुलिसिया कार्यवाही से नाराज होकर 'प्रशासनिक आतंकवादÓ का जिक्र कर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है यही नहीं हाल ही में उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया है कि यदि भाजपा की सरकार तीसरी बार बनी तो मुख्यमंत्री जशपुर का होगा। बगीचा के एक सार्वजनिक समारोह में जब जूदेव ने यह कहा उस समय भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा सांसद विष्णुदेव साय भी मौजूद थे। डॉ. रमन सिंह द्वारा अमर अग्रवाल और ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल से बाहर कर पुन: वापसी भी चर्चा में रही।
प्रदेश के एक अन्य वरिष्ठï नेता तथा छत्तीसगढ़ सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर की हालत किसी से छिपी नहीं है वे हैं तो गृहमंत्री पर पुलिस के एक सिपाही का भी तबादला उनकी मर्जी से नहीं होता है, कहा तो यहां तक जाता है कि गृहमंत्रालय के किसी भी फेरबदल में उनकी राय नहीं ली जाती। अखबरों में समाचार प्रकाशित होने के बाद उन्हें खबर मिलती है। छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तो इस सरकार के लिये संकट मोचक है। प्रदेश में उपचुनाव हो या कोई समस्या खड़ी होती है तो उन्हें आगे करके उपयोग किया जाता है पर हाल ही में एक तथाकथित ठेकेदार के आरोप पर सरकार के मुखिया ने मुख्य सचिव से जांच करने का आदेश देकर भी सभी को चौंका दिया था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार ने आरोप को तो गलत माना पर विदेशी दूतावास में सरकार की तरफ से विरोध पत्र भेजने में भी रुचि नहीं दिखाई है। बृजमोहन अग्रवाल के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में प्रयोग के तहत अधिकारियों की पदस्थापना का खेल भी जारी है। कभी भी किसी की नियुक्ति इन विभागों में की जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 सीटों में चर्चित अजय चंद्राकर को वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाने से भाजपा का एक खेमा नाराज हैं। इधर तकनीकी विश्वविद्यालय पत्रकारिता विश्वविद्यालय सहित लोकसेवा आयोग में 'ऊपरÓ के दबाव पर बाहरी लोगों की नियुक्ति का भी पार्टी स्तर पर विरोध हो रहा है। इससे छत्तीसगढ़ की योग्यता पर यह भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है क्या छत्तीसगढ़ में योग्य लोग इस पद के लिये नहीं हैं? खैर भाजपा का यह अंदरुनी मामला है और सत्ता-संगठन इससे कैसे निजात पाता है यह देखना है।
कांगे्रस और प्रभार
वैसे छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की तरह कांगे्रस में भी असंतोष तो है साथ ही भाई-भतीजावाद, बड़े नेताओं के करीबी लोगों को महत्व देने की चर्चा है। नये प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने सभी नेताओं के 'खासÓ को प्रदेश की कार्यसमिति में स्थान देकर सभी को साथ लेकर चलने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है पर असंतोष तो अभी भी है। अल्पसंख्यक वर्ग से मुसलमान, जैन समाज के लोग पर्याप्त पद नहीं देने से नाराज है।
हाल ही में प्रदेश के 11 लोकसभा क्षेत्र के लिये महामंत्रियों और सदस्यों को प्रभारी बनाया गया है उसमें बड़े नेताओं की पसंद का विशेष ख्याल रखा गया है। कांगे्रस कमेटी कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के कार्यक्षेत्र दुर्ग और राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से उनके खास समर्थक सुभाष शर्मा और उनके पुत्र अरुण वोरा को प्रभारी बनाया गया है तो बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से डॉ. शिवडहरिया प्रभारी बनाये गये हैं इस लोकसभा से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी पिछला लोस चुनाव लड़ चुकी है। छत्तीसगढ़ में महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से हमेशा विद्याचरण शुक्ल का दबाव रहता है हालांकि अजीत जोगी भी यहां से सांसद बन चुके हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल भी यहां से सांसद बन चुके हैं। यहां का प्रभार विधान मिश्रा को सौंपा गया है ये कभी विद्याचरण शुक्ल के करीबी थे, बाद में अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में शामिल हो गये थे। आजकल वे किसके साथ है यह स्पष्टï नहीं है। इसी के साथ बड़े नेताओं से जुड़े चंद्रभान बारमते, वेद प्रकाश शर्मा को सरगुजा, भूपेश बघेल को रायगढ़ पदमा मनहर, दीपक दुबे को जांजगीर, डॉ. प्रेमसाय सिंह को कोरबा, देवव्रत सिंह को रायपुर, फूलोदेवी नेताम, उदय मुदलियार को बस्तर, रमेश वल्र्यानी और अब्दुल हमीद हयात को कांकेर का प्रभारी बनाया गया है। वैसे इन नेताओं को लोकसभा का प्रभार क्या देखकर, क्या सोचकर दिया गया है इसका खुलासा तो नंदकुमार पटेल ही बेहतर कर सकते हैं।
राजेंद्र-सुभाष परेशान!
छत्तीसगढ़ की कांगे्रस के 2 बड़े नेता राजेंद्र तिवारी (एक बार विधानसभा में पराजित) सुभाष शर्मा (एक बार पार्षद बनने का श्रेय) बहुत परेशान है। राजेंद्र तिवारी पहले विद्याचरण शुक्ल और बाद में अजीत जोगी का दामन थामकर बड़े नेता बनने का गुमान पाल बैठे थे। इस बार नंदकुमार पटेल ने उन्हें स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाकर उन्हें उनकी सही जगह दिखा दी है। नाराज राजेंद्र तिवारी ने हाल ही में कांगे्रस भवन में एक कार्यक्रम में (आराम-हराम है) पर अपने स्वभाव के अनुसार, टिप्पणी कर दी और अब उन्हें कारण बताओ नोटिस देने की चर्चा है। वहीं सुभाष शर्मा जो अभी तक स्वयं को कांगे्रस का पर्याय मानते थे। उन्हें मोतीलाल वोरा के चलते महासचिव तो बनाया गया पर प्रभारी महासचिव नहीं बनाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष किसी भी महासचिव को प्रभारी महासचिव बनाने के विरोध में है। बहरहाल हाल ही में सुभाष शर्मा के सुंदरनगर में 14 साल से प्रापर्टी टेक्स नहीं जमा करने पर सुंदरनगर सोसायटी दफ्तर का पहला माला, सांस्कृतिक भवन को सील कर दिया वहीं स्कूल परिसर पर बने 28 दुकानदारों को दुकानें खाली कराने का आदेश दे दिया है। खैर महापौर किरणमयी नायक की नोटसीट से वह सील खुल भी गई। सवाल यह है कि कांगे्रस पार्टी की महापौर है और सुंदरनगर सोसायटी के सर्वेसर्वा सुभाष शर्मा भी कांगे्रस के है फिर निगम ने आनन-फानन में यह कार्यवाही क्यों की? खैर पार्षद मृत्युंजय दुबे का आरोप है कि नगर निगम रिकार्ड में काम्पलेक्स की दुकानें स्कूल के कमरे के रूप में दर्ज है और यह प्रापर्टी 2006 में दुकानदारों को सोसायटी अध्यक्ष शर्मा ने बकायदा रजिस्ट्रीकर के बेची है! परेशान है सुभाष शर्मा, भाजपा के महापौर ने कुछ नहीं किया और कांगे्रसी महापौर ने इसे अंजाम दिया...!
और अब बस
(1)
नगर निगम द्वारा राजधानी रायपुर की सफाई व्यवस्था पर 2009 तक 80 लाख खर्च होता था अब सवा 2 करोड़ खर्चा हो रहे हैं... एक टिप्पणी... राजधानी में सफाई तो होती ही नहीं है...!
(2)
मंत्रालय में पदस्थ और चर्चित एक आईएएस केन्द्र की प्रतिनियुक्ति में जाना चाहते हैं वैसे दिसंबर में उनकी इच्छा पूरी होने की संभावना है।
(3)
पापुनि के महाप्रबंधक के खिलाफ लोक आयोग में 4 प्रकरण पहुंच गये हैं, प्रतिनियुक्ति अवधि भी समाप्त हो गई है। एक बड़े अफसर ने प्रतिनियुक्ति समाप्त करने का अनुरोध भी सरकार से किया है फिर अब देरी क्या है?

Tuesday, November 22, 2011

यूं लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है
मुमकिन हैै लिखने वाले को भी ये खबर नहीं
किस्से में जो नहीं है वही बात खास है

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार और संगठन के कुछ बड़े लोग पीले और सफेद पर्चों से परेशान है। इन पर्चों के माध्यम से पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष को उभारने का प्रयास किया गया है ऐसा लगता है। वैसे प्रदेश में पार्टी के सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी समय-समय पर अपना असंतोष जाहिर करते रहे हैं। डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि ये पर्चे किसने जारी किया है उसकी जांच होगी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा पार्टी के असंतुष्टï या कांगे्रस के लोगों पर यह पर्चा जारी करने का आरोप मढ़ रहे हैं। इधर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी चुटकी ली है कि सवाल यह नहीं है कि पर्चा किसने जारी किया है सवाल यह है कि पर्चे में जो असंतोष जाहिर किया गया है उस पर सरकार और संगठन को जांच करना चाहिए।
बहरहाल भाजपा में असंतोष कोई नई बात नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष के चुनाव से यह असंतोष परिलक्षित हो गया था। नेता प्रतिपक्ष बने नंदकुमार साय, पार्टी अध्यक्ष भी रहे, उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में नये क्षेत्र मरवाही से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ मैदान में उतार कर उन्हें शहीद करा दिया गया। वहां से पराजित होने के बाद वे स्वत: ही मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गये। बाद में प्रदेश अध्यक्ष बने शिवप्रताप सिंह को प्रदेश की राजनीति से अलग कर राज्य सभा भिजवा दिया गया उनका बेटा तो पार्टी से बगावत कर चुनााव मैदान में भी उतरा था। एक और अध्यक्ष ताराचंद साहू की हालत तो और भी खराब है। लगातार भाजपा की ओर से सांसद बनने वाले ताराचंद साहू छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाकर भाजपा की जड़ों में मठा डालने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमप्रकाश पांडे भी हासिये में है। हां, दुर्ग जिले में महापौर, विधायक और सांसद बनकर सुश्री सरोज पांडेय ने एक रिकार्ड बनाया है और वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की राष्टï्रीय पदाधिकारी है।
भारतीय जनता युवा मोर्चा में सक्रिय, जनता पार्टी की सरकार में बस्तर से एक मात्र गैर आदिवासी के रूप में विधानसभा चुनाव में विजयी होकर संसदीय सचिव बनने वीरेंद्र पांडे भी हासिये पर है तथा पार्टी से बाहर हैं। डॉ. रमन सिंह की पहली सरकार बनने पर विधायक खरीदी-बिक्री के मामले को प्रकाश में लाने वाले वीरेंद्र पांडे को उपहार स्वरूप राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था पर बाद में उन्हें विधानसभा की टिकट नहीं दी गई और वे पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावत कर चुनाव भी लड़कर पार्टी से बाहर हो गये वे आजकल भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद और विद्याचरण शुक्ल-श्यामाचरण शुक्ल को लोकसभा चुनावों में पराजित करने वाले रमेश बैसे भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद उपेक्षित ही है। वे कभी-कभी असंतोष जाहिर भी करते रहे हैं। इस सरकार द्वारा नियुक्त छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन द्वारा उन्हें सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने कहा था यह मामला काफी चर्चा में रहा फिर भी राजीव रंजन काफी समय तक अध्यक्ष पद पर काबिज रहे। कमल विहार योजना का भी उन्होंने विरोध किया था पर यह योजना शुरू कर ही दी गई पार्टी के एक सांसद दिलीप सिंह जूदेव भी प्रदेश सरकार से संतुष्ट नहीं है। हाल ही में उन्होंने पुलिसिया कार्यवाही से नाराज होकर 'प्रशासनिक आतंकवादÓ का जिक्र कर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है यही नहीं हाल ही में उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया है कि यदि भाजपा की सरकार तीसरी बार बनी तो मुख्यमंत्री जशपुर का होगा। बगीचा के एक सार्वजनिक समारोह में जब जूदेव ने यह कहा उस समय भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा सांसद विष्णुदेव साय भी मौजूद थे। डॉ. रमन सिंह द्वारा अमर अग्रवाल और ननकीराम कंवर को मंत्रिमंडल से बाहर कर पुन: वापसी भी चर्चा में रही।
प्रदेश के एक अन्य वरिष्ठï नेता तथा छत्तीसगढ़ सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर की हालत किसी से छिपी नहीं है वे हैं तो गृहमंत्री पर पुलिस के एक सिपाही का भी तबादला उनकी मर्जी से नहीं होता है, कहा तो यहां तक जाता है कि गृहमंत्रालय के किसी भी फेरबदल में उनकी राय नहीं ली जाती। अखबरों में समाचार प्रकाशित होने के बाद उन्हें खबर मिलती है। छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तो इस सरकार के लिये संकट मोचक है। प्रदेश में उपचुनाव हो या कोई समस्या खड़ी होती है तो उन्हें आगे करके उपयोग किया जाता है पर हाल ही में एक तथाकथित ठेकेदार के आरोप पर सरकार के मुखिया ने मुख्य सचिव से जांच करने का आदेश देकर भी सभी को चौंका दिया था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार ने आरोप को तो गलत माना पर विदेशी दूतावास में सरकार की तरफ से विरोध पत्र भेजने में भी रुचि नहीं दिखाई है। बृजमोहन अग्रवाल के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में प्रयोग के तहत अधिकारियों की पदस्थापना का खेल भी जारी है। कभी भी किसी की नियुक्ति इन विभागों में की जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 90 सीटों में चर्चित अजय चंद्राकर को वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाने से भाजपा का एक खेमा नाराज हैं। इधर तकनीकी विश्वविद्यालय पत्रकारिता विश्वविद्यालय सहित लोकसेवा आयोग में 'ऊपरÓ के दबाव पर बाहरी लोगों की नियुक्ति का भी पार्टी स्तर पर विरोध हो रहा है। इससे छत्तीसगढ़ की योग्यता पर यह भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है क्या छत्तीसगढ़ में योग्य लोग इस पद के लिये नहीं हैं? खैर भाजपा का यह अंदरुनी मामला है और सत्ता-संगठन इससे कैसे निजात पाता है यह देखना है।
कांगे्रस और प्रभार
वैसे छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की तरह कांगे्रस में भी असंतोष तो है साथ ही भाई-भतीजावाद, बड़े नेताओं के करीबी लोगों को महत्व देने की चर्चा है। नये प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने सभी नेताओं के 'खासÓ को प्रदेश की कार्यसमिति में स्थान देकर सभी को साथ लेकर चलने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है पर असंतोष तो अभी भी है। अल्पसंख्यक वर्ग से मुसलमान, जैन समाज के लोग पर्याप्त पद नहीं देने से नाराज है।
हाल ही में प्रदेश के 11 लोकसभा क्षेत्र के लिये महामंत्रियों और सदस्यों को प्रभारी बनाया गया है उसमें बड़े नेताओं की पसंद का विशेष ख्याल रखा गया है। कांगे्रस कमेटी कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के कार्यक्षेत्र दुर्ग और राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से उनके खास समर्थक सुभाष शर्मा और उनके पुत्र अरुण वोरा को प्रभारी बनाया गया है तो बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से डॉ. शिवडहरिया प्रभारी बनाये गये हैं इस लोकसभा से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी पिछला लोस चुनाव लड़ चुकी है। छत्तीसगढ़ में महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से हमेशा विद्याचरण शुक्ल का दबाव रहता है हालांकि अजीत जोगी भी यहां से सांसद बन चुके हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल भी यहां से सांसद बन चुके हैं। यहां का प्रभार विधान मिश्रा को सौंपा गया है ये कभी विद्याचरण शुक्ल के करीबी थे, बाद में अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में शामिल हो गये थे। आजकल वे किसके साथ है यह स्पष्टï नहीं है। इसी के साथ बड़े नेताओं से जुड़े चंद्रभान बारमते, वेद प्रकाश शर्मा को सरगुजा, भूपेश बघेल को रायगढ़ पदमा मनहर, दीपक दुबे को जांजगीर, डॉ. प्रेमसाय सिंह को कोरबा, देवव्रत सिंह को रायपुर, फूलोदेवी नेताम, उदय मुदलियार को बस्तर, रमेश वल्र्यानी और अब्दुल हमीद हयात को कांकेर का प्रभारी बनाया गया है। वैसे इन नेताओं को लोकसभा का प्रभार क्या देखकर, क्या सोचकर दिया गया है इसका खुलासा तो नंदकुमार पटेल ही बेहतर कर सकते हैं।
राजेंद्र-सुभाष परेशान!
छत्तीसगढ़ की कांगे्रस के 2 बड़े नेता राजेंद्र तिवारी (एक बार विधानसभा में पराजित) सुभाष शर्मा (एक बार पार्षद बनने का श्रेय) बहुत परेशान है। राजेंद्र तिवारी पहले विद्याचरण शुक्ल और बाद में अजीत जोगी का दामन थामकर बड़े नेता बनने का गुमान पाल बैठे थे। इस बार नंदकुमार पटेल ने उन्हें स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाकर उन्हें उनकी सही जगह दिखा दी है। नाराज राजेंद्र तिवारी ने हाल ही में कांगे्रस भवन में एक कार्यक्रम में (आराम-हराम है) पर अपने स्वभाव के अनुसार, टिप्पणी कर दी और अब उन्हें कारण बताओ नोटिस देने की चर्चा है। वहीं सुभाष शर्मा जो अभी तक स्वयं को कांगे्रस का पर्याय मानते थे। उन्हें मोतीलाल वोरा के चलते महासचिव तो बनाया गया पर प्रभारी महासचिव नहीं बनाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष किसी भी महासचिव को प्रभारी महासचिव बनाने के विरोध में है। बहरहाल हाल ही में सुभाष शर्मा के सुंदरनगर में 14 साल से प्रापर्टी टेक्स नहीं जमा करने पर सुंदरनगर सोसायटी दफ्तर का पहला माला, सांस्कृतिक भवन को सील कर दिया वहीं स्कूल परिसर पर बने 28 दुकानदारों को दुकानें खाली कराने का आदेश दे दिया है। खैर महापौर किरणमयी नायक की नोटसीट से वह सील खुल भी गई। सवाल यह है कि कांगे्रस पार्टी की महापौर है और सुंदरनगर सोसायटी के सर्वेसर्वा सुभाष शर्मा भी कांगे्रस के है फिर निगम ने आनन-फानन में यह कार्यवाही क्यों की? खैर पार्षद मृत्युंजय दुबे का आरोप है कि नगर निगम रिकार्ड में काम्पलेक्स की दुकानें स्कूल के कमरे के रूप में दर्ज है और यह प्रापर्टी 2006 में दुकानदारों को सोसायटी अध्यक्ष शर्मा ने बकायदा रजिस्ट्रीकर के बेची है! परेशान है सुभाष शर्मा, भाजपा के महापौर ने कुछ नहीं किया और कांगे्रसी महापौर ने इसे अंजाम दिया...!
और अब बस
(1)
नगर निगम द्वारा राजधानी रायपुर की सफाई व्यवस्था पर 2009 तक 80 लाख खर्च होता था अब सवा 2 करोड़ खर्चा हो रहे हैं... एक टिप्पणी... राजधानी में सफाई तो होती ही नहीं है...!
(2)
मंत्रालय में पदस्थ और चर्चित एक आईएएस केन्द्र की प्रतिनियुक्ति में जाना चाहते हैं वैसे दिसंबर में उनकी इच्छा पूरी होने की संभावना है।
(3)
पापुनि के महाप्रबंधक के खिलाफ लोक आयोग में 4 प्रकरण पहुंच गये हैं, प्रतिनियुक्ति अवधि भी समाप्त हो गई है। एक बड़े अफसर ने प्रतिनियुक्ति समाप्त करने का अनुरोध भी सरकार से किया है फिर अब देरी क्या है?
हम सिर्फ तोहमतों की सफाई न दे सके,
खामोश रहकर शहर में बदनाम हो गये
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने बयानों के लिये चर्चा में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने शिक्षाकर्मियों के आंदोलन पर सरकार द्वारा एस्मा लगाने और गिरतारी के बाद कहा कि मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह 'परबुधियाÓ हैं। परबुधिया का मतलब होता है जो दूसरों की सलाह पर या उनके कहने पर कार्य करें। वैसे पिछले विधानसभा चुनाव के समय अजीत जोगी ने उन्हें 'लबरा राजाÓ भी कई सभाओं में कहा था लबरा छत्तीसगढ़ी का शब्द है और इसका मतलब है 'झूठाÓ। खैर मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह को 'परबुधियाÓ यानि दूसरों की
सलाह पर काम करने वाला तो अजीत जोगी ने कह दिया पर किसकी सलाह पर काम करते हैं यह स्पष्टï नहीं किया है। वैसे छत्तीसगढ़ के कुछ भाजपा नेता, सरकारी अधिकारी, व्यापारी, ठेकेदार भी इसी तलाश में है कि मुयमंत्री किसकी सुनते हैं। पहले चर्चा थी कि डॉ. रमन सिंह तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की सुनते थे, फिर चर्चा थी कि वे भाजपा संगठन के एक दूसरे 'सिंहÓ की सुनते थे। फिर चर्चा चली कि वे अपने आसपास सक्रिय दो अफसरों 'सिंहÓ की भी सुनते हैं। फिर भाजपा में ऊपरी स्तर पर परिवर्तन हो गया और नीतिन
गडकरी भाजपा अध्यक्ष और सुषमा स्वराज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गई। इसके बाद से प्रदेश के कुछ हालात बदल गये हैं। इन दोनों नेताओं के प्रदेश में 2 करीबी नेता हैं पर दोनों ही डॉ. रमन सिंह के करीबी तो नहीं है यह तय है। अब डॉ. रमन सिंह अपनी दूसरी पारी में किसकी सुनते हैं इसका खुलासा नहीं हो सका है। जिस तरह उन्होंने एक झटके से डीजीपी रहे विश्वरंजन को हटाया है, नये जिलों का निर्माण कर कई भाजपा नेताओं को ही आश्चर्य में डाल दिया है, उनके तेवर से अब उनके कुछ मंत्री, सरकारी अफसर
सहित पार्टी के कुछ चर्चित पदाधिकारी पीडि़त हैं वे किसकी सलाह ले रहे हैं यह पता लगाने लोग बेकरार हैं। अजीत जोगी प्रशासनिक अफसर रहे हैं, मुयमंत्री भी रहे हैं यदि वे डॉ. रमन सिंह किसकी सुनते हैं यही स्पष्टï कर दे तो 'जनहितÓ में एक बड़ी मदद कर सकते हैं। बहरहाल आरोप-प्रत्यारोप से दूर विवादों से दूर रहने की डॉ. रमन सिंह की अपनी एक अलग कला है।

कांगे्रस सक्रिय है?

छत्तीसगढ़ में कांगे्रस प्रमुख विपक्षी दल है हाल ही में यह लगने लगा है। जिस तरह सत्ताधारी दल भाजपा को कई मामलों में घेरने का प्रयास किया है उससे सत्ताधारी दल कुछ मुश्किल में लग रहा है तो कांगे्रस के लोग कम उत्साहित नहीं है। विधानसभा के भीतर और बाहर एक तरह से कांगे्रस ने राज्य सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है।
राजनांदगांव के पुलिस कप्तान विनोद कुमार चौबे की नक्सलियों द्वारा हत्या के बाद कांगे्रस ने 4 दिन विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार किया था पर अगले दिन ही कार्यवाही ंमें भाग लेना शुरू कर दिया था। कांगे्रस ने किस कारण सदन की कार्यवाही के बहिष्कार का निर्णय लिया था यह अभी तक ज्ञात नहीं है। इधर बस्तर में ताड़मेटला, तीमापुर, मोरपल्ली में कुछ झोपड़ों में आगजनी, तत्कालीन कमिश्नर और कलेक्टर को राहत सामग्री लेकर जाने से रोकने की घटना के बाद वरिष्ठï विधायक नंदकुमार पटेल की अध्यक्षता में 10
कांगे्रसी विधायक को बस्तर में पुलिस घटनास्थल पर जाने से रोकती है और उस दौरान विधानसभा की कार्यवाही चलती रहती है यह भी चर्चा में है।
बहरहाल कांगे्रस के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार पटेल ने विधानसभा में भी आक्रामक रुख दिखाया तो विधानसभा के बाहर भी उनकी सक्रियता से प्रदेश सरकार के लिये कुछ मुश्किलें तो दिखाई दे रही है। बालोद में सरकारी अस्पताल में मोतियाबिंद आपरेशन के बाद करीब 60 लोगों की आंखों की रौशनी जाने के मामले में कांगे्रस ने सरकार को जमकर घेरा है। स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल के इस मामले में उदासीन रवैये के चलते भी कुछ नाराजगी है वहीं प्रदेश सरकार पर भ्रष्टïाचार का आरोप लगाकर लालकृष्ण
आडवाणी की एकता यात्रा के दौरान कांगे्रस के बड़े नेताओं ने गिरतारी देकर भी विपक्ष की मौजूदगी का एहसास दिलाया। वहीं धान खरीदी एक नवंबर से करने तथा किसानों को बोनस देने के नाम पर धरना भी दिया। यह धरना पूरे प्रदेश में हुआ यह बात और है कि राजधानी के 5 स्थानों पर धरना कार्यक्रम था पर यहां का जिमा लेने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और राजधानी के आसपास का जिमा लेने वाले पूर्व सांसद देवव्रत सिंह केवल एक-एक स्थान पर ही कुछ देर के लिये दिखाई दिये। बहरहाल कहने लगे है कि

प्रदेश में विपक्ष भी मजबूत हो रहा है।

बार बाला और कलेक्टर!

राज्योत्सव के समापन के अवसर पर जशपुर में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुंबई की बार-बालाओं ने 'मुन्नी बदनाम हुईÓ और 'शीला की जवानीÓ जैसे फिल्मी गानों पर फूहड़ नृत्य किया। इस कार्यक्रम में विधायक, कलेक्टर समेत कुछ प्रशासनिक अधिकारी भी देर रात तक झूमते रहे। राज्योत्सव के समापन समारोह में 'मुंबई से आई बार-बालाओं ने कम कपड़ों में नृत्य करते हुए अश्लीलता परोसी और हद तो यह हो गई कि कलेक्टर, पुलिस कप्तान देर रात तक वहां जमे रहे। अधिकारियों की उपस्थिति में कलेक्टर
अंकित आनंद भी बार-बालाओं के साथ मंच पर पहुंचकर न केवल गाना गाया बल्कि उनके साथ झूमते भी देखे गये।
पता चला है कि स्थानीय आदिवासी कलाकारों की उपेक्षा करके 9 लाख रुपए देकर मुंबई की बार बालाओं को बुलाया गया था वैसे सरकारी तौर पर इसकी पुष्टिï नहीं हो सकी है। वैसे राज्योत्सव में इस बार सांसद दिलिप सिंह जूदेव, नंदकुमार साय, संसदीय सचिव युद्घवीर सिंह की अनुपस्थिति चर्चा में रही। ज्ञात रहे कि विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष तथा वरिष्ठï विधायक रामपुकार सिंह को तो आमंत्रित ही नहीं किया गया था। बहरहाल कलेक्टर का मंच पर गाना गाना और झूमना चर्चा में है।

किरण और अमितेष

बालोद नेत्रशिविर में करीब 60 लागों की आंखों की रौशनी चले जाने और प्रदेश सरकार द्वारा मात्र 50 हजार की मुआवजा राशि देने के विरोध में कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव 2011 के बहिष्कार का निर्णय लिया था। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, पूर्व मुयमंत्री अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल सहित कांगे्रस के विधायक आदि ने बहिष्कार किया। कांगे्रसी तो राज्योत्सव देखने भी नहीं गये पर राजधानी की प्रथम महिला महापौर किरणमयी नायक और राजिम के विधायक अमितेष शुक्ला ने जरूर राज्योत्सव के
पहले दिन शिरकत की। महापौर तो मुयमंच पर विराजमान रहीं वहीं अमितेष शुक्ला नीचे दर्शकदीर्घा में रहे यही नहीं एक रात कवि समेलन में भी वे मौजूद रहे। महापौर श्रीमती किरणमयी नायक का कहना है कि वे महापौर होने तथा नगर निगम का एक स्टाल लगे होने के कारण गई थीं पर अमितेष शुक्ला ने तो कोई स्पष्टïीकरण देना भी उचित नहीं समझा। खैर किरणमयी नायक महापौर थीं इसीलिये चली गईं। बहरहाल समापन समारोह में जरूर महापौर और राजिम विधायक नहीं पहुंचे। लगता है कि संगठन ने जरूर ही उनकी पेशी ली होगी।

जल्दी होगी प्रशासनिक सर्जरी

छत्तीसगढ़ में 9 जिलों की और स्थापना हो गई है। इन जिलों के लिये जल्दी ही कलेक्टर, पुलिस कप्तान सहित सरकारी मुलाजिमों की व्यवस्था करना है। इसी के चलते प्रदेश में इसी माह कुछ फेरबदल हो सकता है। कुछ कलेक्टर और कुछ पुलिस कप्तान, एडीशनल कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार, एडीशनल एसपी, डीएसपी आदि को इधर-उधर किया जा सकता है। कहा तो यह जा रहा है कि नये छोटे जिलों में पदोन्नत आईएएस और आईपीएस को मौका दिया जा सकता है। वहीं अभी छोटे जिलों में तैनात कुछ अफसरों को बड़े
जिलों में पदस्थ करने की भी तैयारी की जा रही है। वैसे चर्चा तो यह भी है कि फील्ड और मंत्रालय मेें पदस्थ कुछ अफसरों के प्रभार में भी बदलाव किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि दिसंबर में विधानसभा सत्र है उसके पहले फेरबदल की जगह जनवरी में पदस्थापना ही की जाएगी और शीतकालीन सत्र के बाद बड़ा बदलाव हो सकता है। इधर चर्चा है कि मंत्रिमंडलस्र[स्र[[स्र का विस्तार या तो शीतकालीन सत्र के बाद होगा या फिर बजट सत्र के बाद किया जाएगा। शीतकालीन सत्र में रोगदा बांध के विषय में गठित विधानसभा समिति अपनी रिपोर्ट
देगी इसको लेकर विपक्ष हंगामा भी करेगा। इसलिये शीतकालीन सत्र के बाद ही एक बड़ा प्रशासनिक फेरबदल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं है।

और अब बस
(1)
उत्तर प्रदेश में जन्में छत्तीसगढ़ के एक पूर्व राज्यपाल के एम सेठ भाजपा में आ गये हैं एक टिप्पणी... उत्तर प्रदेश के एक राज्यपाल भी कांगे्रस में वापस आ गये हैं और कांगे्रस की हालत किसी से छिपी नहीं है।
(2)
पूर्व डीजीपी विश्वरंजन बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे मसलन नक्सलियों को घर में घुसकर मारेंगे और वर्तमान डीजीपी अनिल नवानी चुपचाप ही रहते हैं और फाइलों में उलझे रहते हैं।
(3)
शिक्षाकर्मी फेडरेशन के एक नेता कहते हैं कि सरकार ने एस्मा के तहत गिरतार किया यानि सरकार हमें सरकारी कर्मचारी मानती है! छत्तीसगढ़ में कुछ भी हो सकता है।

Thursday, November 3, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

परों को खोल जमाना उड़ान देखता है
जमीन पर बैठकर क्या आसमान देखता है
मिला है हुश्न तो इसकी हिफाजत कर
सहल के चल तुझको जहान देखता है॥

हमारे देश में भ्रष्टïाचार पहले एक नाली की तरह था जो आजकल एक अथाह महासागर के रूप में तब्दील हो चुका है। बड़ी संया में राजनेता, नौकरशाह और व्यापारी भ्रष्टïाचार के महासागर में गोते लगा रहे हंै। एक लाख 70 हजार करोड़ का 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कारगिल युद्घ के शहीदों के नाम से आदर्श सोसायटी घोटाला, कर्नाटक की खान और सरकारी जमीन के आवंटन में घोटाला चर्चा में है। कुछ राजनेता, अफसर तो जेलों में हैं। सांसदों को रिश्वत देने का मामला हो या सवाल पूछने के नाम पर पैसा लेने का मामला
हो या जानवरों के चारा के नाम पर किया गया घोटाला हो इससे राजनेताओं की छवि निश्चित ही खराब हुई है। राजकीय कोष में सेंध लगाकर अपनी जेब भरने को अपना कत्र्तव्य मानने वाले नेताओं, नौकरशाहों, एनजीओ, ठेकेदार पहले से ही मौजूद थे अब तो उनकी संया में लगातार इजाफा होता जा रहा है। भ्रष्टïाचारी आमजनता के धन और संपत्ति को बेखौफ होकर लूटते रहते हैं। क्योंकि राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का कहीं न कहीं इन्हें संरक्षण है। राजनीति में केवल पद से इस्तीफा दे देना ही अपराध के लिये
समुचित दण्ड नहीं है। छत्तीसगढ़ के कुछ राजनेताओं पर भी भ्रष्टïाचार के आरोप लगे हैं पर वे अभी भी 'पदÓ पर काबिज हैं। जहां तक वरिष्ठï प्रशासनिक अफसरों का सवाल है तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये सरकार (वरिष्ठï अफसरों) से अनुमति लेने का प्रावधान है। वैसे तो अनुमति मिलती नहीं है यदि अनुमति मिल भी गई तो न्यायप्रणाली की लबी चलने वाली कार्यवाही भी उनके लिये मददगार होती हैं।
छत्तीसगढ़ के मुयमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विधानसभा में सभी मंत्रियों, विधायकों द्वारा संपत्ति का विवरण देने की बात की थी नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने भी विपक्ष के विधायकों द्वारा भी संपत्ति का विवरण देने की बात स्वीकार की थी पर क्या हुआ? मुयमंत्री ने सभी आईएएस, आईपीएस और आईएफएस द्वारा संपत्ति का विवरण देने कहा था पर कितने अफसरों ने विवरण दिया, कितनों ने नहीं दिया, कितनों ने अपनी सही संपत्ति का विवरण नहीं दिया आखिर इसकी जांच कौन करेगा?
छत्तीसगढ़ की राजधानी में चौपहिया वाहनों की संया तेजी से बढ़ी है, कई वाहनों में सांसद, विधायक, महापौर की पट्टïी लिखी होती हैं यहां तक तो ठीक है पर वार्ड पार्षद, नगर पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष, सरपंच, कांगे्रस-भाजपा के पदाधिकारी, सांसद, विधायक प्रतिनिधि की नाम पट्टिïका लगाकर यातायात पुलिस पर रौब डालते नेताओं को देखा जाता है। आखिर पदाधिकारी बनते ही कौन सा कारुं का खजाना हाथ लग जाता है कि चौपहिया वाहन आ जाता है। गांव में सरपंच बनने के बाद पहले घर पक्का होता है फिर मोटर सायकल या
चौपहिया वाहन खरीदा जाता है बस यहीं से भ्रष्टïाचार की नींव डलती है और सरकार की छवि गांव की जनता में बनना-बिगडऩा शुरू होती है। प्रदेश में कई एनजीओ कार्यरत हैं। आमजनता की सेवा करने बनाये गये कुछ एनजीओ के संचालकों की संपत्तियों में लगातार वृद्घि होती जा रही है। स्कूटर से चौपहिया वाहन, राजधानी में कुछ मकान बनाने आखिर उनके पास पैसा आता कहां से है? यदि कुछ एनजीओ संचालकों की संपत्ति की जांच की जाए तो पता चलेगा कि जनता का नहीं वे अपना हित साध रहे हैं।
छत्तीसगढ़ पाठ््य पुस्तक निगम में 2 सगी बहनें नौकरी कर रही हैं और दोनों की पैदा होने के समय में 3 महीने दस दिन का अंतर है। शिकायत पर लोक आयोग में जांच हो रही है। इसी पाठ््यपुस्तक निगम में पिछले 5-6 सालों में मुत पुस्तक वितरण के लिये करोड़ों का कागज खरीदा गया है। कागज की गुणवत्ता जांच एक हायर सेकेण्ड्री पास कर्मचारी के जिमे हैं। प्रतिनियुक्ति की निर्धारित समय सीमा समाप्त होने के बाद भी एक अधिकारी वहां क्यों पदस्थ है सरकार मौन हैं, क्यों?
बस्तर में सलवा जुडूम आंदोलन के चलते एसपीओ की नियुक्ति की गई थी, उन्हें सुको के निर्देश के बाद हटाकर उनकी भर्ती की नई व्यवस्था कर दी गई है पर करीब 70 हजार आदिवासी जो अपने घर से बेघर होकर सलवा जुडूम राहत कैप में आ गये थे अब सलवा जुडूम आंदोलन समाप्त होने के बाद वे कहां जाएंगे इस पर सत्तापक्ष और विपक्ष मौन है क्यों?
जांजगीर जिले में रोगदाबांध एक निजी कंपनी को बेच दिया गया है, विपक्ष के हमले के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा समिति बना दी है जांच शुरू हो गई है पर सरकार अपने स्तर पर कार्यवाही करने में पीछे क्यों है? जबकि एक एसीएस राधाकृष्ण को हाल ही में एक जांच के बाद ही निलंबित कर दिया गया है?
नक्सलियों को पैसा पहुंचाने के आरोप में एक ठेकेदार लाला को गिरतार कर लिया गया है वहीं नक्सलियों की समर्थक मानकर सोढी सोनी की भी गिरतारी कर ली गई है पर एस्सार के संचालकों से पूछताछ में सरकार की रुचि क्यों नहीं है। भोपाल में यूनियन कार्बाइड की गैस रिसाव के मामले में संचालक की गिरतारी और रिहाई को लेकर भाजपा के बड़े नेताओं ने कांगे्रस को कटघरे में खड़ा कर दिया था जबकि संचालक विदेशी थे पर कोरबा में चिमनी हादसे में मजदूरों की जान चली गई कुछ चीनी अफसरों की
भी गिरतारी की गई परंतु कंपनी के संचालक से पूछताछ की हिमत सरकार क्यों नहीं जुटा पा रही हैïं? वैसे यह जनता है और सब कुछ देख रही है?
रागदरबारी और व्यंग्य
बहरहाल विख्यात लेखक श्री लाल शुक्ल का शुक्रवार को निधन हो गया है।
रागदरबारी वियात लेकर स्व. श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्घ व्यंग्य रचना है। श्रीलाल शुक्ल ने इसमें आजादी के बाद भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उखाड़ कर रख दिया है। रागदरबारी की कथाभूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे एक गांव की है। जहां जिन्दगी की प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। गांव शिवपालगंज की पंचायत, कालेज की प्रबंध समिति और को.आपरेटिव सोसयाटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति है जो प्रजातंत्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारो ओर फल-फूल रही है। उन्होंने उस समय जो व्यंग्य लिखकर सामाजिक व्यवस्था पर चोट की थी वह अक्षरश: अभी गांव-गांव में दिखाई दे रही है। उनके कुछ चुटीले व्यंग्य उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत कर हम उन्हें अपनी श्रद्घांजलि दे रहे हैं।
जाने माने साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की रचना रागदरबारी समकालीन साहित्य में 'एक मील का पत्थरÓ है। 1968 में 1968 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया हाल ही में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। प्रशासनिक सेवा में रहते उन्होंने काफी नजदीक से समाज को देखा है।
रागदरबारी-1
को.आपरेटिव्ह यूनियन का गबन बड़े ही सीधे सादे ढंग से हुआ था, सैकड़ों की संया में रोज होते रहने वाले गबनों की अपेक्षा इसका वही सौंदर्य था कि यह शुद्घ गबन था, इसमें ज्यादा घुमाव फिराव न था।
रागदरबारी-2
जैसे भारतीयों की बुद्घि अंगे्रजी की खिड़की से झांककर संसार का हाल-चाल देती है वैसे ही सनीचर की बुद्घि रंगनाथ की खिड़की से झांककर हुई दिल्ली के हालचाल लेने लगी।
रागदरबारी-3
डिनर के बाद काफी पीते हुए, छके हुए अफसरों का ठहाका दूसरी ही किस्म का होता है। वह ज्यादातर पेट की बड़ी ही अंदरुनी गहराई से निकलता है। उस ठहाके के घनत्व का उनकी साधारण हंसी के साथ वहीं अनुपात बैठता है जो उनकी आमदनी का उनकी तनवाह से होता है। राजनीतिज्ञों का ठहाका सिर्फ मुंह के खोखल से निकलता है और उसके दो ही आयाम होते हैं। उसमें प्राय: गहराई नहीं होती है।
रागदरबारी-4
देशी विश्वविद्यालय के लड़के अंगे्रजी फिल्म देखने जाते हैं। अंगे्रजी बातचीत समझ में नहीं आती है, फिर भी बेचारे मुस्कुराकर दिखाते रहते है कि वे सब समझ रहे हैं और फिल्म बड़ी मजेदार है।
रागदरबारी-5
सड़क पर ट्रक खड़ी है, पुलिस वाला कहता है कि ट्रक सड़क के बीचों-बीच खड़ी है, ट्रक चालक कहता है कि ट्रक सड़क के किनारे खड़ी है। बहरहाल मुझे लगता है कि इन ट्रकों का जन्म ही सड़कों से बलात्कार करने के लिये ही हुआ है।
और अब बस
(1) हम सभी मिलकर एक शाम आयोजित करें, उन भ्रष्टïाचारियों को पुरस्कृत और समानित करें, तब जाकर उन पर भ्रष्टïाचारी होने की पक्की मुहर लगेगी और वे असली भ्रष्टïाचारी कहलाएंगे। वह कौन सा अवार्ड लेना चाहते हैं यह उन्हीं को सोचना है?
(2)
भ्रष्टïाचार के मामले में सबसे अधिक बदनाम पुलिस वाले हैं। यह पूछने पर एक पुलिस अफसर की टिप्पणी:- हम सैकड़ों, हजारों लेकर बदनाम हैं जो लाखों-करोड़ों लेते हैं उन पर मीडिया की निगाह क्यों नहीं पड़ती है?

आइना ए छत्तीसगढ़

किन राहों से दूर है मंजिल, कौन सा रास्ता आसां है
हम भी जब थक कर बैठेंगे, औरों को समझाएंगे
भाजपा के वरिष्ठï नेता लालकृष्ण आडवाणी की छठवीं रथ यात्रा निकल चुकी है। यह रथयात्रा 22 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ पहुंचेगी। आडवाणी साहब की यह रथयात्रा भ्रष्टïाचार के खिलाफ कालाधन की वापसी और नये भारत के निर्माण को लेकर शुरू की गई है। यह रथयात्रा 23 राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों में घूमेगी। लेकिन इस बार यह रथयात्रा न तो अयोध्या की तरफ गई है और न ही इस बार सोमनाथ मंदिर गुजरात जाएगी। वैसे आडवाणीजी रथयात्रा के जनक कहे जाते हैं। 1990 से अभी तक 2011 यानि 21 साल में उनकी यह छठी रथयात्रा है।
सन् 1990 के दशक में आडवाणी जी ने अयोध्या में रामजन्म भूमि पर भव्य राममंदिर के निर्माण के लक्ष्य को लेकर गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक 25 दिसबर 1990 को निकाली थी। हालांकि उस रथयात्रा में उन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला था पर बिहार के तत्कालीन मुयमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरतार करके यह यात्रा पूरी नहीं होने दी थी।
हालांकि इस यात्रा के बाद भाजपा के वोट बैंक में अप्रत्याशित वृद्घि हुई और वह दूसरे नंबर की पार्टी देश में बन गई। 1997 में लालकृष्ण जी ने स्वर्णजयंती रथ यात्रा निकाली, उनकी छवि एक व्यापक जनाधार वाले नेता के रूप में उभरी। 1998 में केन्द्र में गैर कांगे्रसी सरकार बनी थी। यह बात और है कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन सरकार मात्र 13 दिन ही शासन कर सकी।
1999 में भाजपा ने 23 दलों वाली गठबंधन सरकार रही, आडवाणी जी इस सरकार में उपप्रधानमंत्री बने। एनडीए सरकार ने समय पूर्व चुनाव की घोषणा कर दी। 2004 में आडवाणी जी ने भाजपा नीत सरकार की उपलब्धियों को लेकर तीसरी बार भारत उदय यात्रा (इंडिया साइनिंग) निकाली पर भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार केन्द्र में सरकार नहीं बना सकी। आडवाणी जी ने 2006 में 'भारत सुरक्षाÓ नाम से चौथी रथ यात्रा निकालकर कश्मीर की सुरक्षा और आतंकवाद के मुद््दे को जमकर उठाया पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। 2009 में
लालकृष्ण आडवाणी ने 'जनादेश यात्राÓ निकाली जैसे भाजपा ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री का उमीदवार घोषित कर ही दिया था। इस यात्रा में आडवाणी ने महंगाई, भ्रष्टïाचार, विदेश में कालाधन आदि को मुद्दा बनाकर जनादेश मांगा था पर उस यात्रा के बाद चुनाव में एनडीए गठबंधन बुरी तरह पराजित हुआ वहीं भाजपा की भी लोकसभा में संया घट गई थी।
आडवाणी की छठवीं यात्रा 22 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ में पहुंचेगी। लोगों का कहना है कि अटलजी ने नया छत्तीसगढ़ राज्य दिया और उसके बाद के पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा की लगातार दो बार सरकार बनी है। लोकसभा की 11 में 10 सीटों पर भाजपा प्रत्याशी की जीत दो लोस चुनावों में होती रही है तो अब आखिर आडवाणी जी से क्या उमीद रखते है। छत्तीसगढ़ के लोगों ने तो 11 में 10 लोस सीटों पर भाजपा की जीत दिलाकर आडवाणी जी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में अपनी एक तरह से सहमति ही दे दी थी पर
अन्य राज्यों की जनता यदि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में रुचि नहीं ली तो हम कहां दोषी हैं।

एस्सार के सरकारी मददगार!

छत्तीसगढ़ सरकार नक्सलियों को आर्थिक मदद पहुंचाने के नाम पर एस्सार स्टील कंपनी के एक-दो अफसरों, एक ठेकेदार, एक आदिवासी महिला के पीछे पड़ गई है पर अपनी ही सरकार में एस्सार प्रबंधन को मदद पहुंचाने वालों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है यह सवाल अब उठना शुरू हो गया है।
एस्सार का एमओयू समाप्त होने के बाद लगातार एमओयू बढ़ाने के पीछे उद्योग विभाग का कौन मददगार है, एस्सार द्वारा वन क्षेत्रों में पाइप लाइन बिछाने से वनों का विनाश ही हुआ है, पर वन विभाग मौन है, एस्सार ने 5 लाख पौधों का रोपण किया है कहां किया है इसका पता वन विभाग को भी नहीं है। किरदुंल में बेनीफिकेशन प्लांट लगाने 85 एकड़ भूमि आदिवासियों से अधिग्रहित की गई उन्हें मुआवजा मिला कि नहीं, नौकरी मिली कि नहीं इसकी चिंता किसी को नहीं है।
सिंचाई सुविधाओं से वंचित तथा गर्मी में पेयजल के लिये मोहताज होने वाले दक्षिण बस्तर के आदिवासियों की चिंता भी जलसंसाधन विभाग को नहीं है। शबरी नदी के जल से अपनी स्लटी पाइप लाइन योजना से रोज 30 हजार टन लौह अयस्क चूर्ण का परिवहन पानी के दबाव से एस्सार कपंनी करती है। कंपनी ने अपनी अनुबंध में 45 पैसे प्रतिघन मीटर की दर तय की थी पिछले वर्ष 2010 में यह रकम 2 रुपए हो गई है। पहले की तरह आज भी एस्सार प्रति घंटे 10 लाख 6 हजार का चैक जल संसाधन विभाग को देती है। यह भी औसत खपत के आधार पर भुगतान होता
है। सबसे आश्चर्य तो यह है कि एस्सार निर्धारित या तय पानी ही लेता है आज तक जल संसाधन विभाग ने यह जांच करने का प्रयास नहीं किया कि एस्सार प्रबंधन कुल कितने घन मीटर पानी का उपयोग करता है। सवाल यह भी है कि कुल कितना पानी का उपयोग एस्सार प्रबंधन ने किया इसकी जानकारी न तो एस्सार प्रबंधन ने दी और न ही जल संसाधन विभाग ने लेने की जरूरत समझी। आखिर क्यों? छत्तीसगढ़ शासन ने एस्सार प्रबंधन को साढ़े 4 लाख घन मीटर पानी प्रतिमाह दिये जाने की अनुमति दी है और एस्सार उतने ही पानी का भुगतान करता है न तो किसी माह
कम पानी का उपयोग किया है और न ही किसी माह अधिक पानी का? नक्सलियों द्वारा पाइप लाइन उड़ीसा में प्रभावित करने के कारण कुछ महीने परिवहन प्रभावित रहा था उस दौरान एस्सार प्रबंधन ने करार के अनुसार पानी लिया है या नहीं इसका भी खुलासा नहीं हो सका है।
इधर एमओयू की शर्तों के मुताबिक आसपास के 10 गांवों में आधारभूत सुविधाएं मसलन स्कूल, अस्पताल, सड़क पेयजल की व्यवस्था एस्सार प्रबंधन को करनी थी, पर ऐसा कुछ नहीं किया गया है फिर भी एमओयू की अवधि लगातार बढ़ाई जा रही है। क्या एस्सार को छत्तीसगढ़ शासन के अधिकारी- राजनेता मदद नहीं कर रहे हैं यदि यह एस्सार को मदद है तो ऐसे लोगों पर कार्यवाही करने की भी छत्तीसगढ़ सरकार को हिमत जुटानी चाहिये?

महापुरुषों के चयन में भी संकीर्णता!

छत्तीसगढ़ पाठ््य पुस्तक निगम अपनी कारगुजारी को लेकर काफी चर्चा में है। 2 लाख रुपए मासिक किराये पर कार्यालय लेकर पाठ्य पुस्तक वितरण, कागज की खरीदी, जरूरत से अधिक पुस्तकों के प्रकाशन और जबरिया वितरण को लेकर चर्चित पापुनि ने शिक्षा विभाग सहित अनुसूचित जाति/जनजाति विभाग से 100 प्रतिशत राशि वसूलने के मामले की जांच शुरू हो चुकी है। कहा जाता है कि 15 प्रतिशत प्रकाशित मूल्य से कम कीमत में पुस्तक वितरण के आदेश का यहां कुछ सालों से सीधा-सीधा उल्लंघन हो रहा है। वहीं पापुनि ने 10
महापुरुषों के लेमिनेटेड फोटोग्रास प्रायमरी, मिडिल, हाई स्कूल तथा हायर सेकेण्ड्री स्कूल में वितरण करने को लेकर फिर चर्चा में है। पापुनि ने न जाने किस की सलाह पर रानी दुर्गावती, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, विवेकानंद, रविन्द्रनाथ टैगोर, सर्वपल्ली, राधाकृष्णन, डॉ. भीमराव अबेडकर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को ही महापुरुष माना है। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, प्रथम राष्टï्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री जैसे देश के इतिहास पुरुषों को पता नहीं किसकी सलाह पर महापुरुष नहीं माना, वहीं छत्तीसगढ़ के कई समाज सुधारकों को भी इस योग्य नहीं माना है। सवाल यह उठ रहा है कि करोड़ों खर्च करने वाले पापुनि के अफसर चाहते तो 10 की जगह 15 या 20 महापुरुषों के फोटो ग्रास भी स्कूलों में भिजवा सकते थे पर लगता है कि कुछ महापुरुषों के कांगे्रस से नाता होने के कारण तथा प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण कुछ अफसरों ने संर्कीणता की परिचय देकर कुछ महापुुुरुषों की उपेक्षा ही नहीं की बल्किï भावी पीढ़ी को भी इन महापुरुषों से दूर करने की एक तरह से साजिश ही रची है। जहां तक पापुनि की कार्यप्रणाली की बात है तो लोक आयोग तक शिकायत पहुंचना और वहां प्रकरण दर्ज कर जवाब तलब करना ही सभी कुछ स्पष्टï करने काफी है।
दीपावली का तोहफा मिला पटेल को
प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल काफी खुश हैं। उनकी खुशी का एक बड़ा करण यह है कि प्रदेश में कार्य समिति के गठन के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने किसी भी बड़े नेता को मुलाकात का समय नहीं दिया। वहीं शनिवार को न केवल उन्हें मुलाकात का समय दिया बल्कि छत्तीसगढ़ में भी जल्दी आने की सहमति भी दे दी है। साथ ही श्रीमती सोनिया गांधी के निर्देश पर कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा न ेपटेल को नई वाहन खरीदने सवा 9 लाख का चेक भी दे दिया है। 16 साल बाद नये वाहन का कांगे्रस भवन में बल्कि होना अब तय माना जा रहा है।

और अब बस
(1)
प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठï आईएएस अफसर एक हाईपावर कमेटी के सामने प्रस्तुत नहीं हुए। जूनियर अफसर के अनुसार साहब प्रशिक्षण हेतु मसूरी गये हैं, बाद में स्वयं साहब ने बताया कि वे विदेश यात्रा पर हैं?
(2)
संस्कृति विभाग का बजट जस का तस है पर सांस्कृतिक आयोजन बढ़े हैं इससे एक छोटा अफसर हमेशा तनाव में रहता है।