Monday, August 29, 2011

हिन्दुस्तान सबसे बड़ा प्रजातंत्र होने के बावजूद दुनिया का 72वां सबसे भ्रष्टï देश है। दुनिया में 86 ऐसे देश हैं जहां भारत से कम भ्रष्टïाचार है। आजादी के बाद से ही हम भ्रष्टïाचार से जूझ रहे हैं। वैसे भ्रष्टïाचार के खिलाफ कारगर कानून बनाने की योजना 1968 से चल रही है पर 42सालों बाद भी हम अभी कोई कारगर निर्णय नहीं ले सके हैं।
भ्रष्टïाचार के खिलाफ आमजन भी आक्रोशित था और है भी किशन बाबूराव हजारे उर्फ अन्ना हजारे का अनशन भ्रष्टïाचार के खिलाफ आम लोगों के क्रोध की अभिव्यक्ति ही साबित हुआ है। अन्ना हजारे के जनलोकपाल बिल को लेकर समूचे देश में तरह-तरह से अनशन या विरोध का सिलसिला शुरू हो गया है। देश की युवा पीढ़ी सहित अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे लोगों की भागीदारी अधिक रही। समूचे देश की तरह ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लेकर आदिवासी अंचल दंतेवाड़ा, कांकेर हो या सरगुजा का सुदूर क्षेत्र, औद्योगिक नगरी भिलाई, कोरबा की बात हो सभी जगह अन्ना के समर्थन तथा सरकार के विरोध के स्वर उभरे थे। वैसे अन्ना टीम और सरकार के बीच भी सरकारी लोकपाल-जनलोकपाल के मुद््दे पर मतभेद उभरे थे।
दरअसल लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में ब्यूरोक्रेसी से लेकर जजों के साथ-साथ प्रधानमंत्री कार्यालय भी हो इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन लोकपाल को शासन करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है, कानून बनाने का काम संसद का है, शासन करने का अधिकार कार्यपालिका का है और न्यायपालिका को गलतियों की सजा देने का हक है। यही प्रजातंत्र का आधार है, लोकपाल को क्या-क्या अधिकार मिले और क्या नहीं मिले, इस बात पर देश व्यापी बहस की जरूरत है। बहस के बाद ही लोकपाल का अधिकार तय होना चाहिए। लोकपाल के अधिकारों की वजह से प्रजातंत्र का संतुलन न बिगड़े यह भी देखना जरूरी होगा।
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि लोकपाल देश की सबसे शक्तिशाली संस्था बन जाएगा क्या इससे सरकार के कामकाज प्रभावित होने का खतरा नहीं पैदा हो जाएगा। क्या सर्वोच्च न्यायालय को यह संस्था 'बाईपासÓ कर जाएगी? कुछ लोगों को यह भी चिंता है कि भ्रष्टïाचार के खिलाफ यह आंदोलन कहीं प्रजातंत्र विरोधी और विकास विरोधी मुहिम न साबित हो। वैसे प्रजातंत्र और राजनीति के लिये लोकपाल जैसी संस्था नई नहीं है। दुनिया के 50 से अधिक देश ऐसे हैं जहां लोकपाल जैसी संस्था मौजूद है। अंगे्रजी में इसे 'ओम्बड्समैनÓ कहते हैं। इसका मतलब है शिकायत जांच अधिकारी। 'ओम्बड्समैनÓ उस अधिकारी को कहा जाता है जो आमजनता की शिकायत पर किसी भी मामले की जांच करता है इसे सरकार या संसद द्वारा नियुक्त किया जाता है। आधुनिक युग में इसे सबसे पहले 1809 में स्वीडन में लागू किया गया। नार्वे, स्वीडन और फिनलैंड जैसे विकसित प्रजातंत्र में ओम्बड्समैन को विशेष अधिकार मिला है। वह सरकार से कोई भी कागजात, जानकारी प्राप्त कर सकता है, किसी भी गड़बड़ी के अंदेशे पर वह बिना किसी शिकायत के जांच आदेश कर सकता है। भ्रष्टï और गैर कानूनी काम करने वाले अधिकारियों को सजा दिला सकता है। इन देशों में सरकारी महकमों में भ्रष्टïाचार नहीं के बराबर है। अन्ना हजारे और उनकी टीम द्वारा बनाया गया जनलोकपाल इन्हीं देशों के कानून की प्रतिलिपि है।

बहरहाल अन्ना हजारे के आंदोलन की सफलता की पृष्ठïभूमि सरकारी महकमों के घोटाले, ए राजा, कलमाड़ी, नीरा राडिया, येदूयरप्पा जैसे लोगों ने ही तैयार की है। भ्रष्टïाचार के खिलाफ आम आदमी शुरू से परेशान है। संसद में सवाल पूछने कुछ सांसदों को स्टिंग आपरेशन के तहत बेनकाब किया गया है। छत्तीसगढ़ के एक सांसद प्रदीप गांधी भी ऐसे लोगों की सूची में शामिल थे। एक पूर्व मंत्री जो पिछले विधानसभा चुनाव में एक मुद््दा के रूप में उभरा था उसे फिर नया पद दिया गया है।
छत्तीसगढ़ में खाद-बीज खरीदी, दवा एवं उपकरण खरीदी, बिजली की खरीदी बिक्री, डामर घोटाला, सड़क निर्माण में अनियमितता, नियुक्ति, पदोन्नति में घोटाला, पाठ््यपुस्तकों के प्रकाशन, कागज खरीदी आदि में अनियमितता की शिकायत आम हो रही है। कभी अजीत जोगी सरकार को घोटालों की सरकार साबित करने पर तुले तत्कालीन विपक्षी भाजपा के सदस्यों ने अपनी सरकार बनने के बाद यहां भी घोटालों की बात सामने आने पर चुप्पी साध रखी है। अब विपक्ष की भूमिका निभा रही कांगे्रस का हमला जारी है। वैसे अन्ना के आंदोलन की आंधी का असर यदि राजधानी रायपुर से आदिवासी अंचल बस्तर, पेंड्रारोड, जशपुर में भी दिखाई दे रहा है तो यह सरकार के लिये चिंतन का कारण हो सकता है।

1968 से लंबित

भ्रष्टïाचार के खिलाफ लोकपाल जैसे कारगर कानून बनाने की योजना श्रीमती इंदिरा गांधी के समय से चल रही है। 1968 में पहली बार संसद में लोकपाल विधेयक लाया गया उसके बाद 1971, 77, 85, 89, 96, 98 और2001 में भी यह विधेयक लाया गया पर हर बार राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण यह पारित नहीं हो सका। कांगे्रस की केन्द्र सरकारों में ही नहीं विपक्ष की सरकार जब केन्द्र में काबिज थीं तब भी इसे पारित नहीं कराया जा सका। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भी 98 तथा 2001 में बिल लोकसभा में आया पर पारित नहीं हो सका। दरअसल लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होते ही बिल निरस्त हो जाता था और फिर अगली लोकसभा में उसे लाने की तैयारी शुरू हो जाती थी।

छत्तीसगढिय़ा योग्य नहीं?

छत्तीसगढ़ के पूर्वजों ने 'अपना छत्तीसगढ़Ó की कल्पना की थी। छत्तीसगढ़ राज्य तो मिला पर 'अपना छत्तीसगढ़Ó नहीं मिल सका।
छत्तीसगढ़ के मूल निवासी रहे वासुदेव दुबे प्रदेश के सबसे वरिष्ठï आईपीएस अफसर रहे पर उन्हें पुलिस महानिदेशक नहीं बनाया गया। अपने कार्यकाल में सबसे लम्बा समय छत्तीसगढ़ में गुजारने वाले वरिष्ठï आईएएस अफसर बी के एस रे को मुख्य सचिव बनना नसीब नहीं हुआ उनकी जगह उनसे 5 साल जूनियर जॉय उम्मेन को मुख्यसचिव बनाया गया जबकि वासुदेव दुबे दुर्ग में ही रह रहे हैं वहीं बी के एस रे सुंदरनगर में रह रहे हैं। इन दोनों छत्तीसगढिय़ा अधिकारियों को सरकार ने सेवा निवृत्ति के बाद भी किसी भी पद के लिये योग्य नहीं समझा। हाल ही में लोकसेवा आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष पद पर प्रदीप जाशी की नियुक्ति कर दी गई क्योंकि वे भाजपा के एक वरिष्ठï नेता के रिश्तेदार हैं। वैसे इस पद के लिये पुलिस अफसर विश्वरंजन, मुख्यसचिव जॉय उम्मेन तथा आईपीएस आनंद तिवारी के भी नाम चर्चा में थे। एक पूर्व सांसद ने तो आनंद तिवारी को अध्यक्ष बनाने का आश्वासन भी दे दिया था। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के दूसरी बार कुलपति बनाये गये सच्चिदानंद जोशी का छत्तीसगढ़ से क्या संबंध रहा है। पूर्व में रविवि के कुलपति डॉ. लक्ष्मण चतुर्वेदी (आजकल बिलासपुर केन्द्रीय विवि के कुलपति) को किस के कहने पर कुलपति बनाया गया था? एक तरफ तो दूसरे प्रदेशों के लोगों को महत्वपूर्ण नियुक्ति दी जा रही है वहीं आम छत्तीसगढिय़ा कहां है? पुलिस या प्रशासन में छत्तीसगढ़ के रहवासी आईएएस, आईपीएस या राज्य प्रशासनिक, पुलिस सेवा के अधिकारियों की कमी नहीं है पर उनमें से कितने महत्वूपर्ण पद पर पदस्थ हैं? दंतेवाड़ा, बस्तर में तो अब आंध्र प्रदेश के रहने वालों की पदस्थापना का क्रम शुरू हो गया है। डॉ. रमन सिंह के इस कार्यकाल में प्रदेश के सभी जिलों में कलेक्टर और पुलिस कप्तान कहां के मूल निवासी हैं यह किसी से छिपा नहीं है क्या छत्तीसगढिय़ा अफसर अपना छत्तीसगढ़ सम्हालने में सक्षम नहीं है? बहरहाल छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में (नये बने जिले सहित) आईएएस, आईपीएस तथा प्रमोटी अफसरों का तालमेल बनाकर ही पदस्थापना करने का प्रयास होना चाहिए। अन्यथा अपने ही 'राज्यÓ में उपेक्षित का दर्द उठाने वाले अफसर निश्चित ही और अधिक कुंठा का शिकार होंगे वहीं किसी भी नियुक्ति के पहले छत्तीसगढिय़ों को प्राथमिकता का भी प्रावधान रखा जाना चाहिए।
और अब बस
(1)
अन्ना हजारे के आंदोलन पर एक एसएमएस चर्चा में रहा-घर की महिला का कुछ दिन घर से बाहर होने पर घर की स्थिति क्या होती है कोई कांगे्रसी नेताओं से पूछे? (सोनिया गांधी के विदेश पर होने पर)
(2)
एक पूर्व मंत्री को एक महत्वपूर्ण पद देने पर एक टिप्पणी:- जीते विधायकों को मंत्री बनाने पर तो संविधान की अड़चन है पर हारे मंत्रियों को पद देना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है।
(3)
भ्रष्टïाचार और महंगाई के लिये केन्द्र सरकार दोषी है या प्रदेश सरकार! जब पता लगेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

Tuesday, August 23, 2011


अब उजालों को होगा बनवास में ही रहना
सूर्य के बेटे अंधेरों का समर्थन कर रहे हैं!

पूरा भारत भ्रष्टïाचार का समूल नाश करने अन्ना हजारे के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल को लेकर नेताओं और जनता के बीच खाइयां बढ़ती जा रही है। सवाल उठ रहा है कि देश की संसद बड़ी है या सिविल सोसायटी के 5 लोग? वैसे भाजपा इस आंदोलन में अन्ना हजारे के आसपास ही दिखाई दे रही है ऐसे में भाजपा शासित प्रदेश सरकार में शामिल नेता भी अन्ना के समर्थक बनने मजबूर हैं। अभी तक छत्तीसगढ़ की जनता यह नहीं समझ पा रही थी कि महंगाई बढऩे के लिए कौन जिम्मेदार हैं। केन्द्र की कांगे्रस नीत यूपीए सरकार या राज्य की भाजपा सरकार! देश-प्रदेश में भ्रष्टïाचार बढऩे के लिये कौन सी सरकार जिम्मेदार हैं अब यह नई बहस शुरू हो गई है। कांगे्रस, प्रदेश की भाजपा सरकार पर आरोप मढ़ रही है तो भाजपा नेता इसके लिये केन्द्र सरकार को कोस रहे हैं। भाजपा ने तो बकायदा रैली भी निकाली थी और जिसकी अगुवाई भाजपा के युवा नेता तथा अध्यक्ष नीतिन गडकरी ने की थी। खैर हाल ही में भाजपा अध्यक्ष नीतिन गडकरी ने प्रदेश के वरिष्ठï मंत्रियों सर्वश्री ननकीराम कंवर, बृजमोहन अग्रवाल, हेमचंद यादव, राजेश मूणत, रामविचार नेताम, चंद्रशेखर साहू की क्लास लेकर नये विवाद को जन्म दे दिया। दूसरे क्रम में 6 अन्य मंत्रियों की भी पेशी होनी थी पर वह नहीं हो सकी। मतलब यही निकाला जा रहा है कि इन्हीं मंत्रियों के विभागों में फेरबदल हो सकता है और एकाध मंत्री की छुट्टïी भी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं है। हालांकि डॉ.रमन सिंह छुट्टïी होने का संकेत नहीं दे रहे हैं।खैर छत्तीसगढ़ के नक्सलियों से अप्रभावित तथा सिंचित जिले जांजगीर-चांपा में विश्वबैंक से ऋण लेकर बनाया गया रोगदा बांध नहीं उसकी जमीन बिना जल संसाधन विभाग की अनुमति से एस के एस पावर प्लांट को बेच दी गई और विधानसभा की समिति से जांच कराई जा रही है। प्रदेश के एक वरिष्ठï आईएएस अफसर के ठिकानों पर अफसर छापा मारा जाता है और सरकार उसे महत्वपूर्ण पद दे देती है। पिछली सरकार में चर्चित एक मंत्री को हाटने के बाद एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जाता है। पाठ््यपुस्तक निगम पर प्रतिनियुक्ति अवधि पूरी होने के बाद भी एक अफसर को नियम विरुद्घ पदस्थ रखने के पीछे क्या मजबूरी है जबकि पाठ््यपुस्तकों में उल्टा तिरंगा प्रकाशित होने की खबर चर्चा में रही है, शासकीय शालाओं में मुफ्त पाठ््य पुस्तकें बांटने में छपाई से लेकर वितरण तक में अनियमितता की शिकायत आती रहती है। सतनामी समाज के गुरु घासीदास के विषय में अशोभनीय टिप्पणी प्रकाशित हो जाती है, स्कूलों में महापुरुषों की फोटो पापुनि द्वारा भिजवाई गई है उसमें पं. जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभ भाई पटेल, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी की फोटो शामिल नहीं कियो गए है। पापुनि करोड़ों का कागज निर्धारित मापदंड के आधार पर खरीदती है और उसका परीक्षण करने पापुनि के पास कोई विशेषज्ञ मौजूद नहीं है। 2 सगी बहनें पापुनि में कार्यरत हैं जिनके बीच उम्र का अंतर 3 महीने 10 दिन हैं? अब तो लोक आयोग में शिकायत पर प्रकरण दर्ज हो गया है, ईओडब्ल्यू में पहले ही प्रकरण लंबित हैं। यह वही ईओडब्ल्यू है जिसने कुछ आईएएस अफसरों के प्रकरण खारिज भी किये हैं। निजी कंपनियों को बिजली बेचने-खरीदने में अनियमितता की शिकायत मिलती रहती है। पर कार्यवाही शुरू है। जेल विभाग के डीआईजी पी डी वर्मा को दंतेवाड़ा जेल बे्रक में प्रारंभिक तौर पर दोषी मानकर मुख्यमंत्री के आदेश पर निलंबित किया जाता है पर बिना आरोप पत्र दिये ही बहाल कर दिया जाता है। इनके द्वारा पिंकसिटी गृहनिर्माण सोसायटी बनाकर कुछ आईएएस, आईपीएस अफसरों से बिना लेआउट स्वीकृत किये ही भूखंड आबंटन के नाम पर रकम ली जाती है। बाद में कुछ बड़े लोगों का अग्रिम वापस किया जाता है पर गृहमंत्रालय को यह अपराध नजर नहीं आता है क्यों? भाजपा के 2-3 बड़े नेताओं के ठिकानों पर आयकर विभाग दबिश देता है मामला भी बनता है पर वे ही लोग नेतृत्व करते नजर आते हैं क्यों?खैर बात भ्रष्टïाचार से शुरू की गई थी। अफसरों और नेताओं की जुगलबंदी से फैलते भ्रष्टïाचार ने पूरे लोकतंत्र पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। लगता है जनता इनका लक्ष्य रह ही नहीं गई है, जनता दिनोंदिन नेताओं और सरकारी महकमें से दूर होती जा रही है।
सक्रियता सरोज की
छत्तीसगढ़ की तेजतर्रार सांसद सुश्री सरोज पांडेय हाल ही में चर्चा में है। दुर्ग की महापौर, वैशाली नगर भिलाई की विधायक, दुर्ग की सांसद से भाजपा की महिला मोर्चा की राष्टï्रीय नेत्री बनकर वैसे भी सरोज पांडेय ने कम समय में काफी ख्याति प्राप्त कर ली है। वहीं राजनीति में उत्तरोत्तर प्रगति करने वाले बिरले लोगों में उनकी गिनती हो रही है। हाल ही में दिल्ली में 'वाद नहीं संवादÓ विषय पर परिचर्चा आयोजित कराकर उन्होंने नक्सली उन्मूलन की दिशा में एक सार्थक बहस की शुरूआत की है। नक्सली वारदात में कभी बस्तर आदि क्षेत्रों में नहीं जाने वाली सुश्री सरोज पांडेय की यह सक्रियता भी चर्चा में है। सूत्रों की मानें तो वे प्रदेश की राजनीति में अधिक सक्रियता से और जुडऩा चाह रही हैं, वैसे उनकी प्रदेश में सक्रियता की खबर से ही कुछ लोगों के कान खड़े हो गये हैं। हाल ही में उनके समर्थकों द्वारा कुम्हारी टोल नाका में की गई तोड़-फोड़ की भी चर्चा जमकर है। कुछ लोगों का कहना है कि वे समर्थकों के साथ गई थी वहीं कुछ लोग कहते हैं कि वे वहां से निकल रही थी तभी समर्थकों ने वहां हंगामा बरपा दिया। खैर कुम्हार टोल नाका हो या भिलाई का नेहरु नगर नाका हो यहां तैनात लोग दुव्र्यहार करने में पीछे नहीं है। हाल ही में दुर्ग की कलेक्टर रीना बाबा कंगाले भी इन लोगों के व्यवहार से नाराज हो गई थीं। सूत्रों का कहना है कि कलेक्टर महोदया को वहां किसी ने रोककर नाका कर पटाने कहा था तो एक कर्मचारी ने पहचान लिया था। उसने कहा कि 'इन्हें जाने दो ये जिले की कलेक्टर हैं और इन्हें तो फोकट में जाने का अधिकार हैÓ बस इसी बात से नाराज होकर मैडम ने कड़ा कदम उठाकर नाका में टोलटैक्स लेना ही कुछ दिनों के लिये प्रतिबंधित कर दिया था।
पदस्थापना में विसंगति
छत्तीसगढ़ में 103 आईपीएस वाले कैडर में मंजूर पदों के पद नियम विरुद्घ पदस्थापना हो रही है। अफसरों की पदस्थापना को राज्य शासन का अधिकार बताया जा रहा है और इसी कारण विसंगति तो पैदा हो रही है। साथ ही आनेवाले दिनों में केन्द्र से विवाद की नौबत भी आ सकती है। एडीजी के रूप में पदोन्नत एम डब्लू अंसारी को अभियोजन में संचालक बनाया गया है तो ए एन उपाध्याय को गृहमंत्रालय में ओएसडी तथा डी एम अवस्थी को ईओडब्लू का एडीजी बनाया गया है। इन पदों को कैडर के मुताबित राज्य प्रतिनियुक्ति माना जाता है। इधर एडीजी (इंटेलीजेन्स) का पद अभी भी रिक्त है। एडीजी (प्रशासन) और एडीजी (एफ एण्ड पी) के पद पर भी कोई पदस्थ नहीं है और यह कार्य आईजी से कराया जा रहा है। एडीजी (नक्सल आपरेशन एवं सीएएफ) के पद पर रामनिवास ही पदस्थ हैं।दूसरी तरफ दुर्ग रेंज में आईजी का पद मंजूर नहीं है दरअसल आईजी रायपुर के नाम पर पद स्थापना होनी चाहिए थी पर आईजी (रायपुर) के पद पर पदस्थ मुकेश गुप्ता को केवल रायपुर जिले का ही प्रभार दिया गया है वहीं उनके पास आईजी (इंटेलीजेंस) का प्रभार भी है। वहीं दुर्ग आईजी के पद पर आर के विज पदस्थ हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ कैडर में राजनांदगांव, धमतरी तथा कांकेर में डीआईजी पद मंजूर नहीं है पर यहां पदस्थापना कर दी गई है। इसी तरह छत्तीसगढ़ पुलिस के आईजी रेंक के अफसर रवि सिन्हा, अशोक जुनेजा प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र चले गये हैं तो आर सी पटेल होमगार्ड, बी एस मरावी परिवहन, भरत सिंह जेल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमोटी आईपीएस अफसरों को फील्ड में पदस्थ करने की जगह उनसे पुलिस मुख्यालय में एक तरह से बाबू का नाम लिया जा रहा है जबकि ये लोग 'फील्डÓ में अच्छी तरह वाकिफ है पर उनकी जगह दूसरे प्रदेश से आए सीधे आईपीएस की पदस्थापना की गई है। वैसे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नये जिलों की घोषणा की है वैसे इनमें प्रमोटी आईपीएस की स्थापना तो की ही जा सकती है। वैसे भी प्रदेश में फील्ड में लंबी सेवा करने पर उनका हक तो नये जिलों में कप्तानी करने का बनता ही है।
और अब बस
(1)राजधानी में महिला महापौर, एडीशनल एसपी यातायात हैं तो एक महिला सीएसपी, एक महिला डीएसपी हेडक्वाटर, 2 महिला टीआई भी हैं और अब महिला एडीएम भी बन रही हैं, पुरुषों में इसी बात को लेकर चिंता बढ़ गई है।
(2)देश के बड़े शहरों में कुछ बड़े होटलों या बार में महिलाएं शराब परोसती हैं पर छत्तीसगढ़ में तो महिला वाहिनी शराब पीने से रोकेंगी। एक टिप्पणी: छत्तीसगढ़ में कुछ भी हो सकता है।
(3)छत्तीसगढ़ में छोटे-छोटे नये जिले बनने से प्रभारी आईपीएस उम्मीद से हैं कि उन्हें भी जिले की कमान सम्हालने का मौका मिलेगा। इसके पहले तो उन्हें बड़े साहब योग्य ही नहीं मानते थे।

Saturday, August 20, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़
अंगुलियां, थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया, राह पे लाया था जिसे
उसने पोंछे नहीं अश्क मेरी आंखों से
मैनें खुद रो के बहुत देर हंसाया था जिसे

कन्या भ्रूण हत्या जहां एक ओर गंभीर समस्या बनती जा रही है वहीं इस कुप्रथा को रोकने वाले कानून की खामियों का पता लगाकर इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के संबंध में राष्टï्रीय महिला आयोग की सिफारिशें भी अमल में नहीं आ रही है। छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग तो इस दिशा में सक्रिय ही नहीं है। प्रदेश में हाल ही में न्यायधानी बिलासपुर में केन्द्र के स्वास्थ्य मंत्रालय की एक टीम ने लिंग परीक्षण करने वाले एक संस्थान पर छापा मारकर आवश्यक कागजात जब्त कर लिये हैं वहीं कोरबा में तो एक अस्पताल में कुछ मानव भ्रूण भी जब्त किये गये हैं। वैसे छत्तीसगढ़ में कुछ बड़े शहरों सहित अब तो छोटे शहरों में भी 'लिंग परीक्षणÓ की सुविधा चोरी-छिपे शुरू होने की जानकारी मिली है। वैसे छत्तीसगढ़ में एक हजार पुरुष पर 989 महिला का अनुपात है पर जिस तरह महिला भू्रण की हत्या का दौर जारी है उससे पुरुष-स्त्री संतुलन भविष्य में बिगड़ जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है। अभी हरियाणा राज्य में यह अनुपात गड़बड़ा गया है।
पिता-पुत्री के बीच भावुकता पूर्ण संबंधों को दर्शाने वाले अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। वैसे भी बेटी अपने पिता के प्रति अतिरिक्त संवेदनशील रहती है। ससुराल में रहकर भी वह पिता को विस्मृत नहीं कर पाती है। पिता के दुख दर्द को वह गहराई से समझती है। बुंदेली का एक लोकगीत है...'कच्ची ईंट बाबुल देहरी न धरियो, बिटिया न दईयो विदेशÓ।
पुत्री कहती है कि कच्ची ईंट से देहरी न बनाना। आते-जाते देहरी ढ़ह सकती है... और पुत्री को दूर देश में नहीं ब्याहना। इसी लोकगीत में माता और पुत्री, पिता-पुत्री, भाई-बहन और भौजाई, ननद के रिश्ते स्नेह संबंधों का हवाला दिया गया है। मां कहती है बेटी! मायके बराबर आते-जाते रहना, पिता कहता है-समय अवसर पर मायके जरूर आना! भाई कहता है कि बहन बिन बुलाये घर जब चाहे तब न आ जाना। भौजाई (भाभी) कहती है कि ननद! अब मायका तुम्हारा नहीं है।
बेटी और बाबुल के बीच संवादी लोकगीतों की छत्तीसगढ़ में भी भरमार है। बेटी संवेदनशील होती हैं-अपने परिवेश के प्रति! वह अपनी चिंता, अपना प्रतिरोध बाबुल के खाते में दर्ज कराती है। द्वार पर नीम को बाबुल काट रहे हैं, बेटी इस दुर्घटना से आहत है-वह कटते नीम पेड़ के पक्ष में खड़ी हो जाती है। वह नीम के पेड़ का पक्ष इसलिये भी करती है क्योंकि उस पर चिडिय़ा का बसेरा है। नीम का पेड़ कट जाने से चिडिय़ा कहां रहेगी? और चिडिय़ा नहीं रहेगी तो घर का आंगन को सुबह-सुबह कौन चहचहाट से भरेगा। बेटी की असली दोस्त तो वही चिडिय़ा है। आखिर बेटी को यह घर कभी न कभी छोड़कर जाना है- जैसे चिडिय़ा अपना घोसला छोड़कर चली जाती है। बेटी तभी तो अपने पिता से कहती है 'हम तो बाबुल तोरे आंगन की चिडिय़ाÓ बेटी की वेदना का विस्तार बड़ा व्यापक है। बचपन में उसने पिता की तरह हर जरूरतों को जाना-समझा है। पिता के लिए बेटी अनकही अनिवार्यता है। बेटी अपने पिता के स्वाभिमान से परिचित है-लेकिन वह जानती है कि उसके बाबुल का सिर विवाह मंडप में अपने समधी के सामने झुकेगा। बेटी के प्रति पिता की उदार आत्मीयता उसे सिर झुकाने मजबूर करती है। पिता आखिर पिता है, उसकी पीठ अपने बच्चों के लिये सदैव खेलने का मैदान रही है, उसकी छाती सदैव बच्चों की परेशानियों को ठेलने के लिये शिला बनकर अड़ी रहती है। उसके हाथ सदैव बच्चों की अंगुलियां पकड़कर उसे आगे बढ़ाने के लिए उतावले रहते हैं उसके पांव अपने बच्चों की यात्रा में शामिल होकर राहत देने में तत्पर रहते हैं। पिता की आंखों के स्वप्न बेताब हैं, बच्चों की आंखों में उन्हें झिलमिलाते हुए देखने के लिए और पिता उतार देना चाहता है, अपने समस्त अनुभवों को। बच्चों की आत्मा में पिता, सिर का आकाश है, पैरों की जमीन है। पर आजकल बच्चों और पिता के मायने बदलने लगे हैं। कुछ पिता लड़की का बाप होना नहीं चाहते हैं क्योंकि बाजारु समय में पिता दामादों की बोलियां लगाते-लगाते हलाकान हैं और यही देखकर ही कुछ पिता लिंग परीक्षण कराकर अजन्मी बेटी को इस दुनिया में आने से रोक रहे हैं। कुछ चिकित्सक इसमें इनके सहभागी भी हैं। जहां तक लड़कों की बात करें तो उनके लिये तो आजकल पिता एक 'पैकेजÓ बन गया है। जन्म दिया है तो उनकी जरूरतों को पूरा करने का ठेका भी पिता के पास माना जा रहा है। आजकल पिता अपनी संतानों के लिये आकाश-पाताल एक कर रहा है वह बच्चों के लिये स्वयं बिकने तैयार है उसका समस्त अर्जन-उपार्जन संतान केंद्रित हो रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि 'दहेज दानवÓ से मुकाबला करने सरकार या समाज क्या कदम उठा रहा है। लिंग परीक्षण कराने वाले तथा भू्रणहत्या के लिये दोषी मां-बाप या संबंधित चिकित्सक या अन्य को क्या सजा समाज या सरकार ने तय की है ऐसे लोगों का समाज बहिष्कार क्यों नहीं किया जाता है?

खैर समाज में व्याप्त भ्रष्टïाचार के लिये सामाजिक व्यवस्थाएं भी बड़ी दोषी है। बच्चों के जन्म से लेकर लालन-पालन, महंगी पढ़ाई, दहेज लेना और देना आजकल एक शिष्टïाचार बन चुका है। यही कारण है कि कुछ भारतीय बाप 'मायाजोडूÓ हो गये हैं। आगामी सात पीढिय़ों के लिये धन समेटने वाला बाप भ्रष्टïाचार की अनेक गलफासियों के कारण बेदम हो गया है। अरबों-खरबों का घोटाला नित्य सामने आ रहा है। लेकिन संतान सुख की काल्पनिक अनुभूति में डूबे पिता कहां समझ पाते हैं कि 'पूत कपूत तो का धन संचयÓ पूत सपूत तो का धन संचय। बहरहाल बेटियां तो फिर भी ससुराल जाकर पिता को याद करती हैं पर बेटा तो मां-बाप को घर से ही निकाल देता है ऐसे कई उदाहरण मिलते भी हैं। वेैसे इस नये जमाने में पिता की भूमिका उस घोसले जैसी रह गई है जिसमें से पाले-पोसे जाने वाले पक्षी शावक दूर दिशाओं में खो गये हैं और घोसला कंटीले बबूल की शाखाओं पर कांटों की नोकों से हवा के झोकों में छिन्न-भिन्न कर हिल रहा है। वैसे बूढ़ापे में पुत्र को पिता, शत्रु की तरह क्यों लगते हैं। इसका जवाब तो पुत्र को अपने बुढ़ापे के बाद ही समझ में आता है।

और अब बस
(1)
उत्तर प्रदेश के विधि आयोग ने सिफारिश की है कि शादी-शुदा बेटी अगर सक्षम हो तो मां-बाप की देखभाल का फर्ज निभाएगी। इसमें उसकी ससुराल वाले चाहकर भी अडंगा नहीं करने वाला बेटा दण्ड संहिता की धारा 125 के तहत सजा का हकदार होगा।
(2)
देश में हाल ही में जनगणना में 1000 लड़कों पर 914 लड़कियों की औसत है। हरियाणा में तो यह संख्या 830 ही है।

ना मिले जख्म ना निशान मिले पर परिंदे लहु-लुहान मिले।
यही संघर्ष है जमीं से मेरा मेरे हिस्से का आसमान मिले॥

छत्तीसगढ़ के कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर एक कनाडाई कंपनी के संचालक मीर अली ने रिश्वत मांगने का आरोप लगाया और प्रारंभिक जांच में ही यह आरोप छवि धूमिल करनेवाला ही साबित हो रहा है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने स्पष्टï किया कि सड़क ठेका देने का पूरा मामला केन्द्र सरकार का है और राज्य सरकार की इसमें कोई भूमिका ही नहीं है वैसे पता चला है कि नेशनल हाइवे 221 के जगदलपुर-कोण्टा के बीच निर्माण कार्य का ठेका केन्द्र ने मुंबई की नीरज सीमेंट स्ट्रक्चरल को दिया था और उसने किसी सुपर बिल्ड को पेटी कांट्रेक्ट दिया था। सुरक्षा निधि के रुप में सुपर बिल्ड ने ही 14 करोड़ रुपए सुरक्षा निधि के रुप में जमा कराए थे। समय पर काम नहीं होने पर केन्द्र सरकार के परिवहन मंत्रालय ने नीरज सीमेंट को ब्लेक लिस्टेड करके एक करोड़ रुपए जप्त कर लिए है वहीं 13 करोड़ की राशि राजसात करने की कार्यवाही भी शुरू कर दी है। केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय के इस ठेके में राज्य के लोक निर्माण विभाग की भूमिका केवल नोडल एजेंसी की ही है। सुरक्षा निधि जब्त होने की कार्यवाही शुरू होने पर सुपर बिल्ड के मीर अली ने जरूर बृजमोहन अग्रवाल से कार्रवाई रोकने की मांग की, बाद में पीडब्ल्यूडी की ओर से पत्र लिखा गया कि उनकी कंपनी को ठेका नही दिया गया है। इसलिए पत्राचार करके बस इसी के बाद आरोप का दौर शुरू हुआ ऐसा लगता है ।
वैसे 19 अप्रैल 2010 को निविदा आमंत्रण के बाद 24 जून को नीरज सीमेंट स्ट्रक्चरल को 136 करोड़ का ठेका मिला। अक्टूबर 10 में मीर अली की कंपनी ने बिना ड्राइंग डिजाईन के काम शुरू किया पर नक्सलियों ने काम रोक दिया। इसके बाद 13 मई 2011 को केन्द्र ने नीरज सीमेंट को काली सूची में डाल दिया। 20 मई को एक करोड़ की बैक गारंटी जप्त कर ली गई। इसके बाद 20 जून 11 को सुपर बिल्ड ने बैंक गारंटी उनकी है यह पत्र लिखा जिस पर अधीक्षण यंत्री पीडब्ल्यूडी ने पत्र लिखा कि ठेका उनके नाम नहीं है इसलिए पत्राचार न करें। इसके बाद 24 जून 2011 को नीरज सीमेंट को नोटिस दिया गया और 30 जून 2011 को कंपनी की अनुबंध निरस्त कर दिया गया। वैसे इस मामले में कनाडाई अखबार टोरंटो स्टार के साऊथ एशिया ब्यूरो के रीक वेस्टहेड ने ई-मेल भेजकर मुख्यमंत्री सचिवालय और बृजमोहन अग्रवाल से पक्ष मांगा। इसी के बाद यह बात सार्वजनिक हुई। वैसे इस मेल में कहीं भी 10 लाख डालर मांगने का उल्लेख नहीं हे।
बहरहाल इस मामले में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से प्रमुख सचिव पीडब्ल्यूडी एम.के. राउत से जानकारी मांगने पर जरूर कुछ गलत फहमियां बढ़ी थी कि मुख्यमंत्री सीधे अपने मंत्री से क्यों पूछताछ नहीं की और इसी से तरह-तरह के कयास भी लगाने का दौर शुरू हो गया था खैर डा. रमन सिंह ने बृजमोहन पर लगाए गए आरोप को खारिज कर दिया है इसी को कहते है सूत न कपास और जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा।

परिवारवाद जारी

छत्तीसगढ़ में विजयी विधायकों के बल पर कभी अविभाजित म.प्र. से सरकार बना करती थी। जब म.प्र. में छत्तीसगढ़ अलग हुआ तब भी संख्या बल के आधार पर ही प्रदेश में पहली कांग्रेस की सरकार बनी और विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी बने तो विभाजन के बाद स्व. श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा के रूप में 2 पूर्व मुख्यमंत्री हमें विरासत में मिले। पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले चुनाव में भाजपा की सरकार बनी और पिछले 2 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पराजय का सामना कर रही है तो लोकसभा में भी उसे पिछले दो चुनावों में एक-एक सीट से ही संतोष करना पड़ा है पर लगता है कि कांग्रेस की अभी भी नींद खुली नहीं है। पिछली बार प्रदेश कांग्रेस प्रतिनिधियों के चुनाव में अनियमितता के चलते सूची निरस्त हो गई थी पिछले बार आरोप लगाया गया था। दूसरे-दूसरे जिलों से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है पर इस बार नई सूची में भी ऐसा ही हुआ है। रायुपर जिले के या यो कहें कि रायपुर नगर के एक कांग्रेसी नेता को बिलासपुर संभाग से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। वहीं शहर के एक नेता को तो गरियाबंद से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है।
वैसे परिवारवाद छत्तीसगढ़ में अभी भी बदस्तूर चल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को दुर्ग से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में लगातार पराजित होने वाले उनके बेटे अरुण वोरा को भी प्रदेश कांग्रेस का प्रतिनिधि बनाया गया है। हाल ही में जारी प्रदेश प्रतिनिधियों की सूची में मोतीलाल वोरा के बड़े बेटे अरविंद वोरा को भी प्रतिनिधि बनाया गया है। उनके भाई तो रायपुर से प्रदेश प्रतिनिधि हैं ही। हाल ही में दुर्ग जिले के कुछ कांग्रेसियों ने कांग्रेस हाईकमान का ध्यान आकर्षित किया है कि जाने-अनजाने में उनसे एक नाम छूट गया है। मोतीलाल वोरा की धर्मपत्नेी शांति वोरा का नाम भी प्रदेश प्रतिनिधियों की सूची में शाामिल कर लिया जाए इससे हो सकता है कि चौथी बार दुर्ग विधानसभा से अरुण वोरा छत्तीसगढ़ विधानसभा में पहुंचने में सफल हो जाए।
केन्द्रीय राज्यमंत्री
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आखिर छत्तीसगढ़ के एक मात्र विजयी सांसद डा. चरणदास महंत को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर ही लिया और डा. चरणदास को कृषि मंत्रालय में राज्य मंत्री का प्रभार मिला है। उनके काबीना मंत्री आदरणीय शरद पवार है और डा. मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल या सोनिया गांधी के सामने शरद पवार की क्या हैसियत है यह किसी से छिपी नहीं है। वैसे केन्द्र में राज्यमंत्री की हालत क्या रहती है यह किसी से छिपी नहीं है। छत्तीसगढ़ से डा.रमेश बैस लंबे समय तक राज्यमंत्री रहे है वे स्वतंत्र प्रभार भी सम्हाल चुके हैं, अरविंद नेताम भी राज्यमंत्री रह चुके है। छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी कुछ माह केन्द्र में राज्य मंत्री का पद भार सम्हाल चुके हैं। उन्हें राज्यमंत्री के कामकाज और राज्यमंत्री के अधिकार और हैसियत की पूरी जानकारी है। तभी तो पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले चुनाव में उन्हें जब राज्यमंत्री का पद छोड़कर छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनकर चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव आया तो उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। बहरहाल प्रदेश के एक मात्र सांसद डा. चरणदास महंत को केन्द्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया गया है वे अर्जुन सिंह के जमाने में अविभाजित म.प्र. के कृषि मंत्री रह चुके है, उन्हें खेती-किसानी का भी अनुभव है। वे केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से तालमेल रखकर छत्तीसगढ़ में कृषि विकास पर जोर दे, कृषि आधारित शोध संस्थान की स्थापना कराएं साथ ही कृषि आधारित उद्योगों की प्रदेश में स्थापना की पुरजोर कोशिश करेंगे ऐसा लगता है।

नये डीजीपी की कवायद

छत्तीसगढ़ के नये डीजीपी अनिल एम.नवानी ने हाल ही में पुलिस मुख्यालय में पुलिस महानिरीक्षकों, उप महानिरीक्षकों, पुलिस कप्तानों सहित कमाण्डेंटों की बैंठक लेकर अपनी कार्यप्रणाली का खुलासा कर ही दिया उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें रिजल्ट चाहिए। उन्होंने टीम वर्क पर जोर देकर पुलिस को पेशेवर बनाकर दक्षता में वृद्घि करके जनता का विश्वास का त्वरित निराकरण करने पर बल दिया। नये डीजीपी ने कानून के दायरे में रहकर नक्सलियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के भी निर्देश दिए है। बैठक में एक तरह से नये डीजीपी ने पुलिस में सुस्ती, अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं करने की अपनी मंशा जाहिर कर दी वहीं पुलिस को दायरे के भीतर ही काम करने की हिदायत भी दे दी है।
अपनी तेज तर्रार छवि के बजाय शांत और गंभीर रहनेवाले डीजीपी नवानी ने सभी जिलों में शहीद सेल की स्थापना कर पुलिस कप्तानों को स्वयं मानिटरिंग करने का निर्देश देकर शहीद पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के परिजनों के लिए अपनी संवेदनशीलता का ही परिचय दिया है। कार्यभार सम्हालने के डेढ दर्जन दिनों के बीच उन्होंने पाया कि शहीदो के परिजन जानकारी के अभाव में भटकते रहते हैं, शासन से मिलनेवाली सहायता राशि, अनुकंपा नियुक्ति, पेशन आदि के मामलो में शहीदों के परिजन बेवजह इधर-उधर चक्कर लगाते रहते हैं। कुछ मामले तो उनके सामने भी आये थे। बहरहाल उनका शहीद सेल की स्थापना करने का निर्णय स्वागत योग्य है।

पूर्व गृहमंत्री से प्रेम

डीजीपी रहते हुए गृहमंत्री ननकीराम कंवर से 36 का आंकड़ा रहा पर हटने के बाद आजकल पूर्व गृहमंत्री से प्रेम छलकना चर्चा में है।
छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी तथा डीजी होमगार्ड बनाये गए विश्वरंजन द्वारा एक माह के स्वास्थ्यगत कारणों से अवकाश पर जाने और नया कार्यभार नहीं सम्हालने को प्रदेश सरकार गंभीरता से ले रही है। बीमारी के नाम पर अवकाश लेकर एक साहित्यिक आयोजन में शामिल होना चर्चा में है तो हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तथा पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल से उनकी देवेन्द्रनगर आवास पर जाकर मुलकात करने पर भी सरकार के कान खड़े हो गए हैं। विश्वरंजन के करीबी सूत्रों की माने तो नंदकुमार पटेल के काफिले पर नक्सलियों द्वारा हमले के समय अवकाश पर होने के कारण विश्वरंजन नहीं मिल सके थे। इसलिए अनौपचारिक मुलाकात करने गए थे। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब ताड़मेटला में 300 आदिवासियों के मकान जल गए थे तब नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में 10 विधायकों के दल को कुछ लोगों ने रोक दिया था बाद में पुलिस ने इनकी गिरफ्तारी की थी तब बतौर डीजीपी विश्वरंजन मिलने क्यों नहीं गए थे? छत्तीसगढ़ में डीजीपी बनने के बाद नक्सलियों द्वारा कई बड़ी वारदातें की गई तब प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं से मिलने क्यों नहीं गए? खैर नंदकुमार पटेल और विश्वरंजन के बीच क्या बातें हुई, यह तो दोनों ही बता सकते हैं पर डा. रमनसिंह सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर की खुफिया शाखा यह पता लगाने का प्रयास कर रही है।

और अब बस
1. छत्तीसगढ़ में डा. रमनसिंह का सरकार बनने के बाद पुलिस का 10 गुना बजट बढ़ा, इतनी ही फोर्स बढ़ी पर नक्सली वारदात कितने प्रतिशत बढ़ी यह बतानेवाला कोई नहीं हैं।
2. कलेक्टर आफिस रायपुर से लगी ईएसी कालोनी के स्थान पर काम्प्लेक्स बनाने कुछ बड़े लोग रूचि क्यों ले रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है।

Monday, August 1, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़
रोज तारों को नुमाईश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
उसकी याद आई है सांसों जरा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है

छत्तीसगढ़ में दो सिंहों की जमकर चल रही है। एक है भाजपा की प्रदेश में दूसरी बार लगातार सरकार बनाने वाले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तो दूसरे सिंह है अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कांगे्रस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह।
केन्द्रीय राज्य मंत्री पद से इस्तीफा देकर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बनकर छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनाने की चुनौती स्वीकार करने वाले डॉ. रमन सिंह ने कभी 'कांग्रेस के गढ़ रहेÓ छत्तीसगढ़ में दो बार लगातार सरकार बनाने का रिकार्ड बनाया है। अपनी पहली पारी सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद अपनी सादगी और स्वच्छ छवि के चलते दूसरी बार भी मुख्यमंत्री बनकर अपना करीब आधा कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। उनके सामने न तो उनकी पार्टी के नेताओं की कोई चुनौती है और न ही प्रमुख विपक्षी दल कांगे्रस की। उनकी प्रदेश में सरकार चलाने की कार्यप्रणाली इतनी अच्छी है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्य आकर भी उनकी तारीफ कर चुके हैं। वैसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह से उनकी अच्छी बनती थी, लालकृष्ण आडवाणी से भी उनके संबंध मधुर हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी और नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के बनने के बाद कुछ नेता जरूर उत्साहित थे पर डॉ. रमन सिंह ने इन्हें भी साध लिया और अपनी राजनीतिक यात्रा निर्विघ्र जारी रखी है। डॉ.रमन को सत्ताधारी दल या विपक्ष से खतरा नहीं है। दरअसल उनके पास जो नौकरशाहों की टीम है उनके निर्णयों को लेकर कई बार अंगुली भी उठती है खैर क्या यह कम बड़ी बात है कि उनके दूसरे कार्यकाल में कांगे्रस कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर सकी है।
छत्तीसगढ़ में भारी दिग्गी
छत्तीसगढ़ की राजनीति में सर्वश्री अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा के कभी-कभार भारी होने की खबरें उड़ती रही हैं पर फिलहाल तो कांगे्रस के महासचिव दिग्विजय सिंह ही प्रदेश की राजनीति में भारी पड़ रहे हैं। क्योंकि कभी उनके सिपहसलार रहे नेता आजकल महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति में हालांकि पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का पलड़ा दिखाई देता है। प्रदेश युवक कांगे्रस सहित भाराछासं के अध्यक्ष जोगी खेमे के हैं। वहीं लोकप्रियता या यों कहें कि कांगे्रस के भीड़ जुटाने वाले एक मात्र नेताओं में जोगी की गिनती होती है। मोतीलाल वोरा तथा विद्याचरण शुक्ल उम्र के इस पड़ाव में अधिक सक्रिय हैं यह तो कहा नहीं जा सकता है इन दोनों नेताओं की राजनीति करने की कुछ अलग स्टाइल है। खैर मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को पृथक करने में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी से दिग्गी राजा की अगाध श्रद्धा है और साल में दोनों नवरात्रि में वे आते भी हैं। आजकल छत्तीसगढ़ की राजनीति में उनका एक तरह से वर्चस्व है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे कभी दिग्गी राजा के मंत्रिमंडल के लम्बे समय तक सदस्य रहे हैं तो प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल भी दिग्विजय सिंह के काफी करीबी रहे हैं उन्होंने उनके मंत्रिमंडल में गृह मंत्रालय का महत्वपूर्ण प्रभार सम्हाल चुके हैं। इधर हाल ही में डॉ. चरणदास महंत भी दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल में लम्बे समय तक सदस्य रह चुके हैं वहीं दिग्गी राजा के राजनीतिक गुरु स्व. अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में कृषि राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। यानि कांगे्रस के फिलहाल प्रमुख जिम्मेदारी सम्हाल रहे तीनों प्रमुख नेता दिग्गी राजा के 'खासÓ हैं। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री तथा नौकरशाह रहे अजीत जोगी और दिग्गी राजा हमउम्र होने के साथ ही लगभग एक ही समय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की है। कहा तो यह भी जाता है कि अजीत जोगी को आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति प्रवेश में अर्जुन सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी तो 'सलाहÓ दिग्गी राजा की भी थी। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल से दिग्गी राजा के संबंध मधुर ठीक-ठाक हैं पर छत्तीसगढ़ निर्माण के समय शुक्ल के फार्महाउस में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्गी राजा से जो व्यवहार हुआ था वह कम से कम भुलाने वाली बात तो नहीं है। मोतीलाल वोरा की अपनी राजनीति की स्टाइल है और वे दिल्ली-दुर्ग तक ही स्वयं को सीमित कर चुके हैं। ऐसे में दिग्विजय सिंह की छत्तीसगढ़ में एकतरफा चल रही है यह तो कहा ही जा सकता है।
अजय और वित्त आयोग?
छत्तीसगढ़ में राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष पद पर चर्चित नेता तथा पिछले विधानसभा में पराजित अजय चंद्राकर की एक साल के लिये नियुक्ति की गई है वहीं प्रमुख अर्थशास्त्री तथा छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण दुर्गा महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. अशोक पारख को सदस्य बनाया गया है। जाहिर है कि सारा काम काज डॉ. पारख को सम्हालना पड़ेगा, रिपोर्ट तैयार करना होगा और उस रिपोर्ट की प्रस्तुतिकरण में ही अजय की भूमिका रहेगी।
वैसे किसी भी राज्य में वित्त आयोग का कामकाज काफी महत्वपूर्ण होता है। वित्तीय मुद्दा के संबंध में राज्य और केन्द्र सरकार के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना, वित्तीय संसाधनों का आंकलन जिससे केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान किया जा रहा है, राज्यों की पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा, सरकार के राज्य करों, शुल्कों, फीस और ड््यूटी पर होने वाली आय को पंचायतों में वितरित करने का सुझाव, राज्य की पंचायतों की वित्तीय स्थिति सुधारने सुझाव देना आदि है। सवाल यह उठ रहा है कि अपने कार्यकलापों के कारण पिछले विस चुनाव में सभी विधानसभा क्षेत्रों में चर्चा में रहे अजय चंद्राकर ने एक बयान के आधार पर केन्द्रीय मंत्री नारायण सामी के खिलाफ अदालत में मामला दायर किया है नारायण सामी को जमानत कराना पड़ा। ऐसे में केन्द्र से मध्यस्थ की भूमिका अदा करने में क्या अजय चंद्राकर सफल हो सकेंगे? हां पंचायतों की आर्थिक स्थिति सुधारने में उन्हें जरूर महारत हैं क्योंकि पिछले कार्यकाल में बतौर पंचायत मंत्री उन्होंने उल्लेखनीय कार्य जरूर किया है। वैसे विधानसभा चुनाव में पराजित प्रत्याशी को किसी पद पर नहीं लेने का निर्णय जरूर डॉ. रमन सिंह ने बदल दिया है पर जानकार लोगों का कहना है कि केवल एक साल के लिए ही अजय चंद्राकर पदस्थ किया गया है और वह भी ऐसे आयोग का अध्यक्ष बनाया है जिसका आमजन से कोई संपर्क नहीं रहता है। राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे का कहना है कि अजय चंद्राकर 'वित्तÓ को कितना समझते हैं यह तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी जानते हैं पर डॉ. अशोक पारख जैसे योग्य अर्थशास्त्री की नियुक्ति सराहनीय कही जा सकती है। बहरहाल कभी अजय के गुरु रहे डॉ. अशोक पारख फिर गुरु की भूमिका में आ गये हैं पर अजय पुराने शिष्य की भूमिका में रहते हैं या नहीं यहतो वक्त ही बताएगा।
नाराज हैं विश्वरंजन!
बहुत नाराज हैं पूर्व डीजीपी तथा कवि साहित्यकार, लेखक विश्वरंजन। कितने सम्मान से उन्हें आईबी से उनकी शर्तों पर छत्तीसगढ़ बुलवाया गया था और एक ही झटके में डीजीपी पद से बिना सलाह के ही हटाकर होमगार्ड में पदस्थ कर शहर से बाहर कर दिया?(होमगार्ड का मुख्यालय माना के करीब है) वैसे विश्वरंजन जी को अपने हटाने का दुख है और लोगों का कहना है कि डॉ. रमन सिंह ने हटाने में आखिर इतनी देरी क्यों कर दी? डॉ. रमन सिंह करते भी क्या? छत्तीसगढ़ में डीजी पद के तीन वरिष्ठï अफसर हैं पर विश्वरंजन दो अन्य डीजी अनिल नवानी और पासवान से बातचीत या मुलाकात करने में भी रुचि नहीं लेते थे। तीनों पुलिस के आला अफसरों को साथ-साथ काफी अर्से से नहीं देखा गया था जबकि संतकुमार पासवान को तो नक्सली मामले की अच्छी जानकारी है। बहरहाल विश्वरंजन साहब की जगह अनिल नवानी ने कार्यभार सम्हाल लिया है और स्वास्थ्यगत कारणों से विश्वरंजन अवकाश पर चले गये हैं। पर बीमार विश्वरंजन को हाल ही में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के एक कार्यक्रम में जरूर शिरकत करते देखा गया है। खैर विश्वरंजन के खास रहे प्रतिनियुक्ति में पुलिस मुख्यालय पहुंचे एक अफसर भी लम्बी छुट्टïी पर चले गये हैं खबर हैं कि उनका कक्ष किसी आईपीएस को आवंटित कर दिया गया है। बहरहाल अब पुलिस मुख्यालय में तथाकथित साहित्यकारों की आमद कम हुई है वही पीडि़त जन सीधे जाकर नये डीजीपी को अपना दुखड़ा सुनाने का अवसर मिलने से खुश हैं।
और अब बस
(1)
भाजपा के वरिष्ठï नेता लखीराम अग्रवाल की मूर्ति स्थापना समारोह में सांसद नंदकुमार साय का नाम निमंत्रण पत्र में नहीं डाला गया था। साय कार्यक्रम में नहीं गये। एक टिप्पणी:- राजनीति में पास-पास और दूर-दूर का दौर तो चलता ही रहता है।
(2)
रोगदा बांध की जानकारी विपक्ष तक पहुंचाने वाले एक आईएएस अब दिल्ली जाने की तैयारी में है। आखिर बकरे की मां कब तक दुआ मांगेगी?
(3)
छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग में इस बार एक वरिष्ठï आईएएस को नियुक्त करने की संभावना है। दिल्ली जाने से तो अच्छा है कि 62 साल तक पद पर बने रहना।