Monday, July 4, 2011

आईना-ए-छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ आदिवासियों की जन्म और कर्म भूमि रही है। आदिवासियों के प्रदेश में संख्या देखकर ही कांगे्रस ने छत्तीसगढ़ में पहला मुख्यमंत्री अजीत जोगी को बनाया था और उसी की देखादेखी में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने आदिवासी नेता नंदकुमार साय को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। राज्य बनने के बाद भाजपा को बहुमत मिला और नंदकुमार साय पहले विधानसभा चुनाव में पराजित हो गये तब डॉ. रमन सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री का पद सम्हाला तो कांगे्रस ने आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी। उसके बाद दूसरी पारी में डॉ. रमन सिंह ने पुन: प्रदेश की बागडोर सम्हाली और महेंद्र कर्मा विस चुनाव में पराजित हो गये तब कांगे्रस ने रविंद्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। हालांकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी नेता ही लगातार बनते रहे। डॉ. रमन सिंह की सरकार बनने पर बृजमोहन अग्रवाल को छोड़ दिया जाए तो आदिवासी नेता रामविचार नेताम, ननकीराम कंवर प्रदेश के गृहमंत्री बने और अब एक-दूसरे आदिवासी नेता केदार कश्यप को गृहमंत्री बनाने की चर्चा है। नया राज्य बनने के बाद आदिवासियों की हालत सुधरी है क्या?
वैसे आदिवासियों के त्याग और बलिदान की बुनियाद पर ही प्रदेश का विकास हो रहा है यह लगभग तय है। सौभाग्य या दुर्भाग्य से प्रदेश की लगभग सभी प्राकृतिक संपदा ऐसे क्षेत्रों में है जहां आदिवासी निवास करते हैं। मैदानी क्षेत्रों के संसाधनों का लगभग पूर्ण दोहन हो चुका है और अब विकास के नाम पर पहाड़ी आदिवासी क्षेत्रों के संसाधनों का दोहन भी शुरू हो चुका है। सिंचाई के लिये बांध बनाने हो तो उसमें आदिवासियों की जमीन, जंगल, घर और गांव यहां तक कि उनकी संस्कृति, धर्म, इतिहास के प्रतीक जलमग्न किये जाएंगे। कोयला या पानी से बिजली बनाना हो तो भी उस परियोजना में आदिवासी ही बर्बाद होंगे। कोयला, लोहा, मैंगनीज, तांबा, हीरा आदि की खदानों का दोहन करना हो तो ये भी कमोबेश आदिवासी क्षेत्रों में ही है और इनसे भी आदिवासी ही विस्थापित या प्रभावित हो रहे हैं या होते रहेंगे। विकास का ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसमें आदिवासियों को कुर्बानी न देनी पड़े या त्याग न करना पड़े। असंगठित तथा अनपढ़ लोग अभी तक आसानी से विस्थापित होकर प्रदेश के विकास के लिये बलि चढ़ाते आ रहे हैं। वास्तव में प्रदेश का विकास और आदिवासियों का विनाश एक-दूसरे का पर्याय बनते जा रहे हैं।
सलवा जुडूम का अंत
प्रदेश में नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में नक्सलियों से तंग आकर आदिवासियों ने 'सलवा जुडूमÓ नामक स्व:स्फूर्त आंदोलन शुरू किया था। कांगे्रस के वरिष्ठï आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा ने इसकी अगुवाई की और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मदद से आंदोलन फला-फूला भी और समूचे देश में 'सलवा जुडूमÓ के चलते ही नक्सली ग्रामीण आदिवासियों के दुश्मन बन गये और सैकड़ों गांवों के हजारों आदिवासियों ने घर, गांव खाली कर दिया और सरकार ने सलवा जुडूम कैम्प में उन्हें पनाह दी। सैकड़ों की संख्या में नक्सलियों से प्रभावित ग्रामीण युवक विशेष पुलिस अधिकारी बन गये। कभी सुरक्षाबल को दुश्मन मानने वाले नक्सलियों ने सलवा जुडूम समर्थकों को दुश्मन मानकर उनका कत्लेआम शुरू कर दिया। कुछ समय से सलवा जुडूम कैम्प खाली होना शुरू हो गये हैं। ग्रामीण पड़ोसी राज्यों की तरफ कूच करना शुरू कर चुके हैं। सलवा जुडूम आंदोलन मृतप्राय ही लग रहा है ऐसे में ग्रामीण आदिवासी न घर के रहे न घाट के। वे सलवा जुडूम कैम्प में ेरहेंगे, अपने पुराने गांव में तो जा नहीं सकते हैं यानि फिर आदिवासी समाज छला गया है।

सीबीआई जांच!

छत्तीसगढ़ में आजकल बात-बात पर सीबीआई जांच की मांग की जाती है। कोई हत्या हो जाए तो सीबीआई जांच की मांग उठती है, हाल ही में छत्तीसगढ़ में प्री मेडिकल टेस्ट के पर्चे लीक होने के मामले में सीबीआई जांच की मांग की जा रही है। वैसे सीबीआई जांच आदि किसी मामले में होती है तो जांच पर भी अंगुली उठाई जाती है।
एक बार रायपुर से दिल्ली जाते हुए सीबीआई के पूर्व संचालक जोगिंदर सिंह ने साफ तौर पर कहा था कि देश की जांच एजेंसियां स्वतंत्र नहीं है। सरकारों ने हमेशा उसका दुरुपयोग किया है। भारत में अभी भी इतनी आजादी नहीं आई है कि जांच एजेंसियां शासकों के खिलाफ जांच करें। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि आईजी, कमिश्नर रैंक के अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच उनसे पूछकर की जाए ऐसे नियम सरकार ने ही बना रखे हैं। दरअसल अभी भी भारत के नेता सीबीआई को सबसे बड़ी जांच एजेंसी मानकार बात-बात पर सीबीआई जांच की मांग कर देते हैं। वैसे छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सीबीआई की जांच कुछ मामलों में हुई भी है और जांच में क्या हुआ है यह किसी से छिपा नहीं है।
ईमानदारी पर शक!
सरायपाली क्षेत्र में एक ट्रक से अवैध शराब छोडऩे की चर्चा चल रही थी इसी बीच राजधानी की पुलिस के एक थानेदार ने 2 विदेशी नागरिकों को 5 कैरेट बीयर और 2 बोतल के साथ पकड़ लिया और तत्काल न्यायालय में प्रस्तुत कर जेल भिजवा दिया। पुलिस जानती है कि विदेशी नागरिक है इनके लिये 'मांडावलीÓ करने तो कोई आएगा नहीं और इन्हें जेल भेज दिया जाएगा तो मीडिया की सुर्खियां बनेगी। छत्तीसगढ़ में पानी की जगह बीयर पीने वाले विदेशी जेल के भीतर टंकी का पानी पी रहे होंगे जबकि वे जेल के बाहर तो बोतलबंद पानी भी पीना पसंद नहीं करते थे। खैर एक पुलिस अफसर की ईमानदार कार्यवाही की चर्चा के बाद ही प्रदेश के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने राजधानी में जमीन आदि के आर्थिक अनियमितता के मामलों को देखने वाली पुलिस के विंग के गठन पर ही सवाल उठा दिया। उन्होंने तो प्रमुख गृह सचिव से ही पूछ लिया है कि यह विंग किसके आदेश पर बनी है। प्रमुख सचिव गृह भी यह पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि इस विंग की स्थापना कैसे हुई। गृहमंत्री ने तो इस विंग पर लेन-देन का आरोप भी मढ़ दिया है। वैसे समूचे छत्तीसगढ़ में केवल राजधानी में ही इस विंग की स्थापना हुई है। वैसे पहले 'गृहमंत्री स्क्वाडÓ की भी स्थापना हुई थी वह भी चर्चा में रही और बाद में उसे भंग कर दिया गया था। देखना यह है कि गृहमंत्री के सवाल के बाद इस आर्थिक विंग का होता क्या है?
और अब बस
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छत्तीसगढ़ के वरिष्ठï आईएएस अफसर सुनील कुमार के केन्द्र से प्रतिनियुक्ति समाप्त होने के बाद अवकाश में जाने की खबर पर एक टिप्पणी:-वे विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद नई जिम्मेदारी सम्हालने वाले हैं।
्र(2)
राष्टï्रपति महोदया के साथ नगरनिगम में पार्षदों की फोटो खींची गई है कुछ पार्षद कैमरामेन और उसका कैमरा देखकर अभी से अच्छी फोटो नहीं आने की बात करने लगे हैं।