Thursday, June 30, 2011

दर्द-आशनाई का क्या खूब ये मंजर देखा
खुद जख्म लगाते हैं, और खुद ही हवा देते हैं

छत्तीसगढ़ में कुछ प्रशासनिक और पुलिस के अफसर समय की नजाकत भांप कर अपनी निष्ठïा बदलते रहते हैं यही कारण है कि अविभाजित मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार से अजीत जोगी और अब डॉ.रमन सिंह सरकार में कुछ अफसर खुशहाल हैं और अच्छे पदों पर नियुक्ति का जुगाड़ भी कर लेते हैं वहीं इन सरकारों में उपेक्षित अफसर अभी तक 'केवल नौकरी करना है इसलियेÓ नौकरी कर रहे हैं। आम जनता यह समझ नहीं पा रही है कि जोगी के शासनकाल में विपक्ष के निशाने पर रहे अफसर भाजपा की सरकार बनने के बाद इस सरकार के साथ कदमताल करने में सक्षम कैसे हो गये हैं। बहरहाल कुछ सालों से 'विकल्प नहीं हैÓ यह जुमला चल पड़ा है। सत्ता के गलियारे में 'डॉ.रमन सिंह का विकल्प नहींÓ तो विपक्ष के गलियारे में 'अजीत जोगी का विकल्प नहींÓ यह चर्चा आम है। अब तो डीजीपी विश्वरंजन, मुख्यसचिव जॉय उम्मेन का विकल्प नहीं मिल रहा है यह जुमला भी उछाला जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में एक शब्द काफी चर्चा में है 'विकल्प नहीं है।Ó

छत्तीसगढ़ में पिछले 7 सालों से अधिक समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्हालने वाले डॉ. रमन सिंह के सद्व्यवहार और उनकी नीति से खुश होकर भाजपा आलाकमान कहता है कि उनका विकल्प नहीं है। कभी छत्तीसगढ़ में चुने गये विधायकों की बदौलत अविभाजित मध्यप्रदेश में कांगे्रस की सरकार बनती थी उसी छत्तीसगढ़ में कांगे्रस की हालत देखकर पुराने कांगे्रसी भी शरमा जाते हैं। तमाम विरोध के बावजूद छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी बनाये गए थे। पिछले 2 विधानसभा चुनावों में कांगे्रस की पराजय के बाद आम कांगे्रसी यही कहता है कि छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी का कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि वे न केवल स्वयं विधायक बनते आ रहे हैं। वहीं उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी भी विधायक बन रही हैं। भाजपा की सरकार होने के बावजूद डॉ. रमन सिंह के गृहक्षेत्र राजनांदगांव लोकसभा उपचुनाव में उन्होंने बाबा देवव्रत को विजयी बनाकर एक चुनौती तो खड़ी कर चुके हैं यह बात और कि हाल ही में बस्तर लोकसभा उपचुनाव में उनका पसंदीदा प्रत्याशी कवासी लखमा पराजित हो गया। पांच वर्षों तक नेता प्रतिपक्ष रहे तथा मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार महेंद्र कर्मा पिछले चुनाव में भाजपा के नये-नये प्रत्याशी से चुनाव हार गये वहीं हाल ही के बस्तर लोकसभा उपचुनाव में उनके निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा को बड़ी लीड मिली है। मोतीलाल वोरा राष्टï्रीय स्तर के नेता हैं पर उनका पुत्र अरुण वोरा लगातार दुर्ग विधानसभा से पराजित हो रहा है। विद्याचरण शुक्ल ने कभी केन्द्र में एकतरफा चलाई थी पर पिछले विस चुनाव में उन्होंने संतोष अग्रवाल को रायपुर ग्रामीण से टिकट दिलवाया था, वे पराजित रहे। आदिवासी नेता अरविंद नेताम की तो बेटी पिछला विस चुनाव हार चुकी हैं। कांगे्रस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू, कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा तो स्वयं ही चुनाव हार चुके हैं। हां, तत्कालीन कांगे्रस के कार्यकारी अध्यक्ष चरणदास महंत जरूर छत्तीसगढ़ से एक मात्र सांसद बनने में सफल रहे। पर उनका ज्यादा समय तो दिल्ली और भोपाल में ही कटता है। ऐसी स्थिति में यदि आमजन कहते है कि अजीत जोगी का विकल्प नहीं है तो गलत नहीं कहते हैं। जहां तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, रविन्द्र चौबे की बात है तो वे आमजनों की कसौटी पर खरा नहीं उतर सके हैं। कांगे्रस अध्यक्ष बने वरिष्ठ विधायक नंदकुमार पटेल से अब कांगे्रसियों को आशाएं हैं वैसे उनका आक्रामक रवैया लोगों को भा रहा है पर उनके आक्रमण की धार कब तक ऐसी पैनी बनी रहेगी यह देखना है। वैसे कई धड़ों में बंटी छत्तीसगढ़ कांगे्रस को वे एकजुट करने का अनवरत प्रयास कर रहे हैं।

बैस का विकल्प नहीं

छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठï सांसद रमेश बैस का भी कोई विकल्प नहीं है। ब्राह्मïणपारा के पार्षद से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत करने वाले रमेश बैस अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक भी बने तथा फिर सांसद बनकर केन्द्रीय राज्यमंत्री तक का सफर पूरा किया और अभी लोकसभा में भाजपा संसदीय दल के मुख्य सचेतक हैं। रमेश बैस का विकल्प न तो भाजपा के पास है और न ही कांगे्रस के पास। कांगे्रस पार्टी के दिग्गज नेता तथा मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री रह चुके स्व. पंडित श्यामाचरण शुक्ल के साथ ही उनके अनुज तथा कई वर्षों तक केन्द्र में मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल को लोकसभा चुनाव में पराजित करने का श्रेय रमेश बैस के खाते में है। कांगे्रस के बुजुर्ग नेताओं को पराजित करने वाले बैस ने पिछले चुनाव में कांगे्रस के युवा नेता भूपेश बघेल को भी पराजय का स्वाद चखाया है।
भारतीय जनता पार्टी में पार्षद विधायक और सांसद होकर केन्द्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले रमेश बैस छत्तीसगढ़ में जरूर उपेक्षित से रहते हैं। कई बार वे राज्य सरकार के खिलाफ बयानबाजी करने में भी परहेज नहीं रखते हैं। प्रदेश सहित देश के वरिष्ठï सांसदों में बैसजी की गिनती होती है पर जहां भी गलत देखते हैं वे उसकी खिलाफत करने में पीछे नहीं रहते हैं। हाल ही में एक चैनल से साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया कि राज्य सरकार काम तो अच्छा कर रही है पर जनता उतना नहीं जुड़ रही है जितना अभी तक जुडऩा चाहिए था। खैर उन्होंने कहा कि अभी ढाई साल का समय विधानसभा चुनाव को है और हम तक तक और भी सब ठीक-ठाक कर लेंगे।

इनका भी विकल्प नहीं है?

छत्तीसगढ़ में विकल्प नहीं मिलने की बात निचले स्तर पर भी है। डॉ. रमन सिंह का विकल्प नहीं मिल रहा है यह तो तय है, पर डॉ.रमन सिंह के सामने 'विकल्प नहीं मिलने की समस्या सामने है।Ó
प्रोटोकाल के हिसाब से किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री के बाद गृहमंत्री वरिष्ठïता क्रम में दूसरे नंबर पर होते हैं। अभी आदिवासी नेता ननकीराम कंवर यह जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। पिछले एक डेढ साल से लगातार गृहमंत्री बदले जाने की चर्चा होती रही है कहा तो यह भी जा रहा है कि अगला मंत्रिमंडल फेरबदल 'गृहमंत्रीÓ बदलने ही किया जाएगा पर डॉ. रमन सिंह को खोजबीन के बाद भी कोई विकल्प नहीं मिल रहा है। बृजमोहन अग्रवाल, चंद्रशेखर साहू, अमर अग्रवाल, केदार कश्यप, राजेश मूणत, धरमलाल कौशिक सभी के नाम अगले गृहमंत्री के रूप में समाचार पत्रों की सुर्खियां बन चुके हैं पर नया गृहमंत्री बनने कोई तैयार नहीं है।
बढ़ती नक्सली वारदात और बिगड़ती कानून व्यवस्था के साथ वर्तमान पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन के रहते कोई भी गृहमंत्री बनने तैयार नहीं है। ऐसे में नया गृहमंत्री बनने के लिये डीजीपी को बदलना पड़ेगा ऐसे में अपै्रल 12 तक या तो डीजीपी के सेवानिवृत्त होने का इंतजार करना होगा या उन्हें किसी संवैधानिक पद पर भेजा जा सकता है। पर नया डीजीपी कौन होगा इसका विकल्प सरकार के पास है। नक्सली क्षेत्र में लम्बे समय तक पदस्थ रहने वाले संतकुमार पासवान एक बार कार्यवाहक डीजीपी बनने वाले अनिल नवानी का विकल्प तो सरकार के पास है ही। वैसे अपनी उपेक्षा से राजीव माथुर प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में चले गये थे और वे पुलिस अकादमी हैदराबाद से सेवानिवृत्ति होने वाले हैं वैसे राज्य सरकार ने जिसे डीजीपी के लायक नहीं समझा वह एकेडेमी के अध्यक्ष बने और आईपीएस अफसर सीआरपीएफ के डीजी और अकादमी का संचालक बनना परम सौभाग्य समझते हैं।
मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन कुछ समय पूर्व प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाना चाहते थे पर उन्हें राज्य सरकार ने रोक लिया था क्योंकि सरकार के पास इनका भी विकल्प नहीं है। वैसे आदिवासियों की हितचिंतक होने का दावा करने वाली सरकार को क्या आदिवासी आईएएस नारायण सिंह योग्य नहीं लगते हैं, अपनी लम्बी आईएएस की पारी खेलने वाले, छत्तीसगढ़ में कई पदों पर कार्य करने वाले सुनील कुमार क्या इस पद के लिए उपयुक्त नहीं लगते हैं। खैर आसन्न विधानसभा सत्र में जब जांजगीर जिले के रोगदा बांध पर विधानसभा कमेटी अपनी रपट प्रस्तुत करेगी तब की किरकिरी को सम्हालना सरकार को ही पड़ेगा और इसके लिये मुख्य सचिव जॉय उम्मेन कम जिम्मेदार नहीं है क्योकि उनकी कार्यप्रणाली को लेकर ही विधानसभा की कमेटी बनाई गई है।

लांगकुमेर?

विकल्प बस्तर में पदस्थ पुलिस महानिरीक्षक टी.जे.लांगकुमेर का भी सरकार के पास नहीं है। बस्तर में सेनानी, पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपमहानिरीक्षक, कार्यकारी महानिरीक्षक से महानिरीक्षक का कार्यकाल आईपीएस टी.जे. लांगकुमेर ने बस्तर में ही पूरा किया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से आज तक यानि करीब-करीब 11 साल का समय उन्होंने बस्तर में ही गुजारा है। सैकड़ों आदिवासियों सहित सुरक्षाबलों के जवानों की शहादत और उसके मुकाबले मु_ïीभर नक्सलियों को मुठभेड़ में मारने की घटना के गवाह हैं लांगकुमेर। कई अफसर आये, चले गये, सलवा जुडूम अभियान की शुरूआत और उसे पल-पल मरते देखने के इतिहास के भी ये साक्षी रहे। सलवा जुडूम केम्प पर नक्सलियों का हमला, विशेष पुलिस अफसर (एसपीओ) की ज्यादती, 76 सीआरपीएफ जवानों की शहादत, दंतेवाड़ा के सबसे बड़े जेल बे्रक भी इनके समय हुआ। बस्तर में 300 झोपडिय़ों के जलाने की घटना, संभाग कमिश्नर और कलेक्टर को घटना स्थल पर जाने से रोकने की बात सामने आई, कांगे्रस के 10 विधायकों को जनविरोध के चलते घटना स्थल पर पहुंचने नहीं दिया गया यह सभी ऐतिहासिक घटनाएं बन चुकी है। 76 सीआरपीएफ जवानों की शहादत पर लांगकुमेर पर भी जांच में छींटे पड़े पर वे वहीं पदस्थ हैं। असल में उनका विकल्प ही नहीं है ऐसा कहा जा रहा है क्या बस्तर में आईजी के रूप में पदस्थ होने प्रदेश में कोई और योग्य अफसर नहीं है? खैर विकल्प तो तत्कालीन आईजी डीएम अवस्थी का भी उस समय नहीं था पर मुकेश गुप्ता को उनका विकल्प बनाया गया और गुप्तवार्ता सहित रायपुर आईजी का काम-काज ठीक-ठाक तो चल ही रहा है।
साहेब बंदगी
दूर करो गंदगी
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांगे्रस की जनजागरण रैली में पहली बार नेताओं की एकजुटता और भारी भीड़ से कांग्रेसी उत्साहित हैं तो सत्ताधारी दल भाजपा में पहली बार कुछ बेचैनी देखी गई है। कांगे्रसी नेताओं ने भाजपा की प्रदेश सरकार बेलगाम भ्रष्टïाचार, वादा खिलाफी तथा कानून व्यवस्था की बदतर स्थिति का आरोप लगाकर इसे उखाड़ फेंकने का आव्हान किया।
प्रदेश कांगे्रस प्रभारी के हरि प्रसाद ने भाजपा के वरिष्ठï नेता तथा पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को लौह पुरुष कहने पर आपत्ति करते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में कुछ घटनाएं शर्मनाक हुई हैं। उन्हें सरदार पटेल की तरह लौहपुरुष कहने की जगह 'डरपोक पुरुषÓ कहना चाहिये। वहीं प्रदेश के एक मात्र सांसद तथा कबीरपंथ समुदाय के डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि (स्वरूप भैया) स्वरूपचंद जैन ने अभी-अभी एक नया नारा दिया है 'साहेब बंदगी-दूर करो गंदगीÓ यानि हम अब गंदगी के साथ ही भाजपा सरकार रूपी भ्रष्टाचार की गंदगी दूर करने का आव्हान करेंगे।
वैसे कांगे्रस की इस विशाल रैली को लेकर कम से कम प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल काफी खुश हैं क्योंकि उनके अध्यक्ष बनने के बाद से कम से कम कांगे्रस के कई गुटों के नेता एक मंच पर तो दिखाई दे जाते हैं। देखना यह है कि वे अपनी टीम में बड़े नेताओं के समर्थक चापलूस नेताओं को स्थान देते हैं या कांगे्रस के प्रति समर्पित नेताओं को।
और अब बस
(1)
छत्तीसगढ़ में किसी उपचुनाव जीतने के लिये भाजपा के पास बृजमोहन अग्रवाल का कोई विकल्प नहीं है यह तो साबित हो ही चुका है।
(2)
छत्तीसगढ़ में आए एक सचिव स्तर के अधिकारी ने अपना आलीशान मकान शहर की एक पोश कालोनी में बनाया है। दरअसल छत्तीसगढ़ में रहने के लिये रायपुर का कोई विकल्प नहीं हैं।
(3)
कांगे्रस की विशाल रैली में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की अनुपस्थिति कुछ लोगों को जरूर खली। एक टिप्पणी:- साहब वहां मौजूद होते तो कई वहां पहुंचते ही नहीं।

Tuesday, June 21, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़
बातें तो सभी करते हैं अमनों-अमन की
'बापू कहां से आएगा इन गांधियों के बीच

भारत की राजनीति में गांधीवाद की बात सभी करते हैं। कांगे्रस भाजपा या अन्य राजनीतिक पार्टियों को समय बे समय गांधीवाद की याद आती रहती है। हाल ही में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के अनशन के बाद फिर गांधी को याद किया जा रहा है। गांधी के भारत में जिस तरह कुछ राजनेता अपशब्दों की आंधी चला रहे हैं, चरित्र हत्या कर रहे हैं, सियासी राजनीति के तहत जनतंत्र की मर्यादा का हास कर रहे हैं शालीन परंपरा को तोड़ रहे हैं वह चिंता का विषय ही है। भारत में कैसी राजनीति हो रही है कांगे्रस, भाजपा के बड़े नेता अपनी मर्यादा भूल गये हैं, शालीनता भूल गये हैं, सियासी दलों का चरित्र क्या होता जा रहा है। मुद्दों को लेकर सत्तापक्ष का विरोध करना विपक्ष अपना कर्तव्य समझता है और सत्ता पक्ष को अपना पक्ष मजबूत करने की भी स्वतंत्रता है पर मुद््दों पर आकर तर्कसंगत विरोध में सही वाक्य कहने की बजाय कुछ नेता कुर्तक कर रहे हैं। विषयांतर होकर राजनीतिक दलों के नेता एक-दूसरे के प्रति अपशब्दों का उपयोग कर रहे हैं। इन नेताओं का असंसदीय संबोधन जब मीडिया से मुखरित होता है, प्रचार पाता है तब सुनने और देखने वाले सभी को आश्यर्च होता है। भाजपा के पितृपुरुष अटल बिहारी बाजपेयी अंलकारित ढंग से मुद्दे का विरोध करते थे तब उनकी दमदार और विरोधी बातों की पं. जवाहरलाल नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी तक तारीफ करते थे। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी विरोध किये जाने वाले विषय को तर्कसंगत तरीके से रखते थे। राजनाथ सिंह का विरोध भी शालीन और सीमित शब्दों में होता रहा। तर्कसंगत और शालीन विरोध भाजपा के दिग्गज नेताओं की पूंजी रही है पर भाजपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी अपशब्द उगलने के लिये चर्चा में हैं। कभी कांगे्रस को औरंगजेब की औलाद, कभी लादेन की औलाद, कभी तलुआ चाटने वाले नेता, कभी हिटलर आदि के उनके कुछ विवादास्पद बयान चर्चा में रहे हैं उनके बयान के बाद भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने भ्रष्टïाचार के जहाज में कांगे्रसी 'भांडÓ कहकर एक नया अध्याय जोड़ा है। हाल ही में भाजपा के नेताओं की तर्क पर कांगे्रस के वरिष्ठï नेता हरिप्रसाद ने भाजपा अध्यक्ष को नालायक, सर्कस का जोकर कहकर एक नई संस्कृति को जन्म दिया है। वैसे जब से भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी बने हैं उन्होंने कई विवादास्पद तथा स्तरहीन टिप्पणियां की है। अमर-सिंह-मुलायम पहले दहाड़ते थे बाद में तलुए चाटते हैं, कांगे्रस के महासचिव दिग्विजय सिंह तो औरंगजेब की औलाद हैं, कांगे्रस और यूपीए की सरकार तो मुन्नी से भी अधिक बदनाम हो गई है, आदि-आदि। एक बार अमर सिंह ने सपा छोडऩे के बाद टिप्पणी की कि मुलायम सिंह तो झाड़ी में छिपे सांप हैं, हाल ही के विधानसभा चुनाव में वरिष्ठï सीपीएम नेता अच्युतानंदन ने राहुल गांधी को 'अमूल बेबीÓ कह दिया था। वैसे पिछले लोस चुनाव में वरुण गांधी ने एक जनसभा में किसी विशेष वर्ग के हाथ कटवाने की टिप्पणी करके हगांमा मचा दिया था उस पर लालूप्रसाद यादव ने जवाब में कहा था कि वे गृहमंत्री होते तो वरुण पर रोलर चलवा देते। खैर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी टिप्पणी करने में पीछे नहीं हैं। उन्होंने एक बार कांगे्रस पार्टी को बुढिय़ा पार्टी कहा था इस पर प्रियंका गांधी ने एक सभा में जनसमुदाय से पूछा था कि क्या वह बुढिय़ा दिखाई देती है। बाद में नरेंद्र मोदी ने अपनी टिप्पणी सुधार कर कहा था कि चलो कांगे्रस बुढिय़ा नहीं 'गुडिय़ाÓ पार्टी है। वैसे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांगे्रस के महासचिव दिग्विजय सिंह भी अपनी टिप्पणियों के लिये आजकल चर्चा में हैं। उन्होंने राजघाट में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और अन्य नेताओं के धरना के दौरान नृत्य करने पर भाजपा को 'नचनियों की पार्टीÓ कह दिया था। उन्होंने खूंखार आतंकवादी लादेन को 'लादेनजीÓ कहकर भी विपक्ष के निशाने पर आ गये थे। उन्होंने हाल ही में बाबा रामदेव को 'ठगÓ कहकर भी संबोधित किया था। कुल मिलाकर बेतुकी टिप्पणियां करके ये राजनेता मीडिया की सुर्खियां बने हुए थे। वैसे ये टिप्पणियां मीडियां में छाने के नाम पर की गई थी या जुबान फिसल गई थी यह तो कहना मुश्किल है पर प्रजातंत्र में यह गालीतंत्र दुखद ही कहा जा सकता है।
छत्तीसगढ़ और बदजुबानी!
छत्तीसगढ़ में भी नेताओं की बदजुबानी चर्चा में रही है। कांगे्रस के वरिष्ठï नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को 'लबरा राजाÓ कहकर विरोध किया था तो भाजपा के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कम से कम अभी तक तो शालीन भाषा का उपयोग करते रहे हैं। पर भाजपा के कुछ नेता मौका मिलते ही अजीत जोगी को तानाशाह, नकली आदिवासी कहने से परहेज नहीं करते हैं। इधर प्रदेश के वरिष्ठï सांसद तथा आदिवासी नेता नंदकुमार साय को पहले 'लखीराम की गायÓ के उपनाम से संबोधित किया जाता था। हाल ही के बस्तर, लोकसभा के उपचुनाव में कुछ भाजपाई नेताओं ने कांगे्रस के प्रत्याशी के खिलाफ 'निरक्षरÓ कहकर प्रचारित करने का भी पहला मामला था। एक बार लोकसभा चुनाव में कांगे्रस के वर्तमान प्रवक्ता तथा अभी तक किसी भी चुनाव में विजयी नहीं होने वाले राजेंद्र तिवारी ने कांगे्रस भवन के सामने विद्याचरण शुक्ल की चुनावी सभा में यह पूछा था कि शुक्ल के पिता कौन है यह सभी जानते हैं पर अटल बिहारी बाजपेयी के पिता का नाम क्या था यह कोई नहीं जानता है? वहां मौजूद लोगों ने हालांकि अटलजी के पिता का नाम तो नहीं बताया पर विद्याचरण शुक्ल को पराजित करके यह साबित कर दिया कि उन्हें राजेंद्र तिवारी की यह जुबानी पसंद नहीं आई। हाल ही तो दुर्ग से सांसद तथा भाजपा की महिला शाखा की राष्टï्रीय महासचिव सुश्री सरोज पांडे ने जबलपुर के बाद रायपुर में पत्रकारों में चर्चा करते हुए एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। सुश्री सरोज पांडे ने कांगे्रस के एक महासचिव के नाम का उल्लेख नहीं करते हुए कहा कि फिरंगी महिला के सामने ये कांगे्रसी दुम हिलाते हुए अपनी वफादारी साबित करने का प्रयास करते हैं। बहरहाल भाजपा और भाजयुमो नेताओं को कांगे्रस के नेताओं या पार्टी का पुतला जलाकर उनकी बदजुबानी का विरोध करने का अधिकार तभी बनता है जब उनकी पार्टी के नेता शालीन विरोध करें। वैसे छत्तीसगढ़ में बदजुबानी को दोनों पार्टी के बड़े नेेताओं को रोकने कारगर कदम उठाना होगा।
कांगे्रस का आंदोलन और पीडीएस की समीक्षा!
छत्तीसगढ़ में करीब 7 साल से अंगद के पांव की तरह स्थापित डॉ. रमन सिंह सरकार को उखाड़ फेकने की तैयारी कांगे्रस संगठन ने शुरू कर दी है। वरिष्ठï नेता, अनुभवी तथा सरपंच से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले नंदकुमार पटेल के कांगे्रस अध्यक्ष बनने के बाद कांगे्रसियों में भी उम्मीद जगी है। कुछ बयानबाज नेताओं का पत्ता कटेगा ऐसी उम्मीद लोग कर रहे हैं क्योंकि कांगे्रस के कुछ नेता केवल मीडिया के ईर्द-गिर्द ही रह कर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं उनका जनाधार क्या है यह सभी को पता है। बहरहाल कांगे्रस के स्थानीय नेता भाजपा की डॉ. रमन सरकार पर घोटाले बाज होने का आरोप लगाते रहते हैं और केन्द्र की यूपीए सरकार में शामिल कांगे्रस के मंत्री जब प्रदेश प्रवास पर आते हैं तो डॉ. रमन सरकार की तारीफ करके चले जाते हैं। प्रदेश सरकार की खिचाई करने वाले कांगे्रसी नेता कुछ करने की स्थिति में नहीं रहते हैं। 26 जून को ही कांगे्रस संगठन ने प्रदेश की भाजपा सरकार की नीतियों, भ्रष्टïाचार को लेकर राजधानी में एक बड़ी रैली करने की योजना बनाई है इसमें प्रदेश के बड़े नेताओं सहित केन्द्र स्तर के कुछ नेता भी शामिल होंगे, रैली में एक लाख लोगों को लाने की तैयारी है। वहां प्रदेश सरकार और उसकी नीतियों को कोसा जाना तय है पर इसके पहले 21-22 को केन्द्रीय खाद्य मंत्री के व्ही थामस अपनी टीम के साथ आकर छत्तीसगढ़ सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अध्ययन करने आ रहे हैं। जाहिर है कि प्रणाली की अच्छाई सुनकर ही वे आ रहे हैं छत्तीसगढ़ सरकार की पीडीएस की तारीफ भी करेंगे ऐसे में कुछ दिन बाद इसी राज्य सरकार की कांगे्रस द्वारा विरोध करना जनता किस रूप में लेगी इसकी कल्पना की जा सकती है।
रामनिवास खुश हैं!
छत्तीसगढ़ में अभी एक डीजी (पुलिस महानिदेशक) का पद केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत है जिस पद पर विश्वरंजन पदस्थ हैं उन्होंने डीजीपी का पद लंबे समय तक विपरीत परिस्थितियों में भी थामकर रखने का रिकार्ड बना लिया है। वहीं डीजी के नान कैडर पद पर डीजी के समतुल्य ही अनिल नवानी पदस्थ हैं वे डीजी होमगार्ड के पद पर तैनात है तो उन्हीं के बैचमेट संतकुमार पासवान डीजी जेल के पद पर पदस्थ हैं। संतकुमार पासवान की वरिष्ठïता देखकर ही केन्द्र सरकार ने उनके लिये डीजी का पद सृजित किया है। विश्वरंजन की सेवानिवृत्ति तक संतकुमार पासवान डीजी रहेंगे और उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात फिर छत्तीसगढ़ में 2 डीजी हो जाएंगे। यानि एक डीजीपी और दूसरे नानकैडर डीजी। इधर हाल ही में पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के केन्द्र सरकार द्वारा 2डीजी का पद स्वीकृत होने के बाद वहां अधिकृत तौर पर 4 डीजी बन सकेंगे यानि 2 डीजी के पद होंगे। वहीं 2 नान कैडर डीजी के पद। ऐसे प्रदेश के चौथे वरिष्ठï आईपीएस अफसर रामनिवास खुश हो सकते हैं। यदि छत्तीसगढ़ में भी 2डीजी का पद स्वीकृत करने में केन्द्र सरकार उदारता दिखाती है तो रामनिवास नान कैडर पद के खिलाफ डीजी बन सकते हैं। वैसे रामनिवास छत्तीसगढ़ के अगले डीजीपी बनने के लिये प्रयासरत हैं पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन के एक करीबी नान पुलिस कर्मी तो यह भी प्रचार कर रहे हैं कि रामनिवास साहब ने उन्हें अपने साथ भी रखने का वादा कर लिया है। बहरहाल अभी तो चर्चा यह है कि विश्वरंजन समय से पहले हटते हैं या नहीं, या उन्हें हटाया जाता है तो पासवान या नवानी को डीजीपी तो पासवान या नवानी को डीजीपी बनाया जाता है या कार्यवाहक डीजीपी के पद पर रामनिवास की नियुक्ति की जाती है, वैसे मुख्यमंत्री ने हाल ही में पुलिस अफसरों की क्लास लेकर वैकल्पिक तलाश की बात की थी उससे पुलिस मुख्यालय में आमद और रवानगी को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं।
और अब बस
(1)छत्तीसगढ़ के एक पुलिस अफसर एक संवैधानिक संस्था के अध्यक्ष बनने के लिये अब लोगों से राय लेना शुरू कर चुके हैं पहले वे इस पदस्थापना में रुचि नहीं ले रहे थे।(2)पुलिस मुख्यालय और बाहर पदस्थ 2 वरिष्ठï आईपीएस अफसरों में अब प्रचार युद्घ शुरू हो गया है। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार-प्रसार में रुचि ले रहे हैं, देखें दोनों में कौन प्रभावित होता है। (3)हाल ही में कांगे्रस के प्रदेश प्रभारी के हरिप्रसाद के एक कार्यक्रम में तरुण चटर्जी दिखाई दिये। एक टिप्पणी-नंदकुमार पटेल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद का यह पहला चमत्कार है।

Wednesday, June 8, 2011

दुनिया से निराली है कुछ अपनी कहानी
अंगारों से बच निकला हूं फूलों से जला हूं

रामलीला मैदान से बाबा रामदेव का तम्बू सरकार ने उखाड़ दिया, उन्हें बल पूर्वक हरिद्घार भिजवा दिया। सरकार का कहना है कि बाबा ने योग शिविर के नाम पर वहां स्थान आरक्षित कराया था और वहां सत्याग्रह शुरू कर चुके थे। सत्याग्रह करना था तो जंतर-मंतर में स्थान सुरक्षित कराना था। बहरहाल केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने पत्र जारी किया है कि 4 जून के आंदोलन के पहले ही बाबा से सरकार का लिखित समझौता हो गया था उनकी मांगे मान ली गई थी फिर बाबा ने अपने समर्थकों सहित मीडिया को गुमराह क्यों किया। बाबा रामदेव कहते हैं कि उनके महामंत्री आचार्य बालकृष्ण से प्रधानमंत्री के नाम धोखे से पत्र लिखाया गया। बहरहाल कांगे्रस के महासचिव तथा अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहते हैं कि बाबा ने लोगों को ठगा है, तो बाबा रामदेव ने केन्द्रीय मंत्री सिब्बल पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया है। सवाल यह उठ रहा है कि जब बाबा आंदोलन समाप्त करने की मंच पर घोषणा कर चुके थे तो आचार्य बालकृष्ण के लिखित पत्र मीडिया के सामने जारी होने पर वे क्यों नाराज हो गये और सम्मानजनक एक बड़ा आंदोलन समाप्त होते-होते न केवल रुक गया बल्कि सरकार की ज्यादती का शिकार हो गया। कालाधन और भ्रष्टïाचार समूचे देश के लिये नासूर बन गया है। कई राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, कर चोर आजकल इसे व्यवसाय का रूप दे चुके हैं। एक ग्राम पंचायत का सरपंच, निगम पार्षद, किसी निगम का अध्यक्ष, नगर पालिका, नगर पंचायत अध्यक्ष, विधायक या सांसद अपना कार्यभार सम्हालने के पश्चात कैसे अचानक चार चक्कों की गाड़ी में घूमना शुरू कर देते हैं, उनके रहन-सहन के स्तर में परिवर्तन आ जाता है, ये तो बकायदा अपने वाहनों में अपने पद की नाम पट्टिïका लगाकर शान से घूमते हैं और अब रौब गालिब करते हैं। इन जनप्रतिनिधियों की आर्थिक स्थिति सुधरती जाती है और उसके बाद भी सरकार उनके भत्ते तथा सुविधाएं बढ़ाने में पीछे नहीं है। छत्तीसगढ़ में आर्थिक अपराध ब्यूरो ने जिस तरह पटवारी, जैसे छोटे शासकीय कर्मचारी सहित कुछ छोटे अफसरों के पास आय से कई गुना अधिक सम्पत्ति का खुलासा किया है वह चौंकाने वाला ही है। सरकार का एक अदना सा कर्मचारी यदि करोड़ों की संपत्ति का मालिक है तो बड़े अफसरों के विषय में अंदाजा लगाया जा सकता है।
संपत्तियों का ब्यौरा क्यों नहीं दिया?
छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने बजट सत्र में सभी मंत्रियों सहित सत्ता पक्ष के विधायकों द्वारा अपनी संपत्ति का विवरण विधानसभा में प्रस्तुत करने की घोषणा की थी और इससे उत्साहित होकर नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने विपक्ष के विधायकों की तरफ से भी संपत्ति का विवरण देने पर हामी भरी थी। बजट सत्र आया, गया, आखिरी दिन तक इंतजार होता रहा पर न तो सत्ता पक्ष के विधायकों ने अपनी संपत्ति का विवरण दिया और न ही विपक्ष के विधायकों ने? संपत्ति का विवरण क्यों नहीं दिया इसका कारण भी जनता को बताना मुनासिब नहीं समझा गया। जाहिर है जब सत्ता और विपक्ष के जनप्रतिनिधि इस दिशा में गंभीर नहीं है तो अफसर कहां से गंभीर होंगे। कुछ अफसरों ने संपत्ति का विवरण दिया, कुछ ने नहीं। वैसे संपत्ति का विवरण नहीं देने वाले अफसरों पर कोई कार्यवाही होती ही नहीं हैै तो अफसर विवरण आखिर क्यों दें। वैसे आईएएस, आईपीएस और आईएफएस के कुछ अफसरों ने जरुर अपनी संपत्ति का विवरण दिया है। वैसे दिग्विजय सिंह-बाबा रामदेव के बीच चल रहा 'ठगीÓ की चर्चा छत्तीसगढ़ के संदर्भ में भी की जा सकती है। प्रदेश का सत्ताधारी दल केन्द्र की सरकार की भ्रष्टïाचार में लिप्त होने का आरोप लगाकर महारैली निकाल चुका है, इसकी युवा शाखा भी रैली निकाल चुकी है। केन्द्र में काबिज तथा राज्य में प्रमुख विपक्षी दल भी राज्य सरकार पर भ्रष्टïाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर धरना-रैली आयोजित कर रहा है। कांगे्रस की सरकार के समय शिवनाथ नदी का पानी बेचने पर बवाल मचाने वाली भाजपा के कार्यकाल में कुछेक अधिकारियों ने मिलकर 'रोगदा बांधÓ ही बेच दिया है। कांगे्रस और भाजपा, एक-दूसरे की सरकार पर महंगाई बढ़ाने का आरोप लगा रही है वैसे आम जनता को कुछ समझ में नहीं आ रहा है इससे लगता है कि जनता ही 'ठगीÓ जा रही है। प्रमुख राजनीतिक पार्टियां तो 'राजनीति-राजनीतिÓ का खेल खेल रही है। एक आईएएस चर्चा में?छत्तीसगढ़ में एक आईएएस अफसर अब फिर चर्चा में है। सरकार के प्रचारतंत्र से जुड़ी एक संस्था के प्रमुख रहते हुए इस अफसर ने एक सवा दो लाख रुपए मासिक पर एक कार्यालय किराये पर लिया था। कांगे्रस के कार्यकाल में इस करार नामे की काफी चर्चा हुई और आखिर वह कार्यालय खाली करना पड़ा पर सरकार को जो क्षति हुई उसका कुछ नहीं हुआ। इसके बाद ग्रामोद्योग, नगरीय प्रशासन आदि विभाग में भी वे कार्यरत रहे और गरीबों के मकान बनाने की योजना में केन्द्र से मिले पैसों को संबंधित ठेकेदार को अग्रिम देने, कार्य में विलंब, 2-3 नगर निगमों में सड़कों की सफाई के लिये स्वीफ्ट वाहन खरीदने के मामले में भी चर्चा में है। हाल ही में उन्हें विभाग से हटाकर दूसरे विभाग में पदस्थ किया गया और आरोप लग रहा है कि उन्होंने पहले वाले विभाग की महत्वपूर्ण जानकारी विपक्ष को मुहैया कराके चले गये हैं। विपक्ष ने इस जानकारी के बिना पर सरकार को घेर लिया है और सरकार इस मामले की जांच भी करा रही है जिससे कम से कम 3-4 आईएएस अफसर बेचैन है। वैसे एक बात तय है कि अजीत जोगी की सरकार हो या डॉ. रमन सिंह की वर्तमान सरकार की बात करें। यह अफसर कई विवादों से घिरे होने के बाद भी मलाईदार पद पाने में सफल हो जाता है। वैसे इस बार सरकार कुछ सजग दिख रही है शायद इसे लूप लाइन में भेजने की तैयारी हो चुकी है।
माल का निर्माण अपनी मर्जी से?नगर निगम से नक्शा पास कराने के बाद अपनी मर्जी से निर्माण करा रहे अंबुजा माल पर नगर निगम ने 7 करोड़ 73 लाख रुपए का जुर्माना किया है। बलौदाबाजार-विधानसभा मार्ग पर शांति सरोवर के सामने अंबुजा माल 5 एकड़ जमीन पर बन रहा है। कहा जाता है कि इसके संचालक ने निगम से नक्शा पास कराकर निर्माण शुरू कराया और बाद में अपनी मनमर्जी से अंदरूनी ले आऊट में छेड़छाड़ की, निगम द्वारा स्वीकृत नक्शे को भी बदल दिया गया। निगम आयुक्त ने शिकायत मिलने पर बड़ा जुर्माना किया है। सवाल यहां यह उठ रहा है कि किसी गरीब की झोपड़ी या छोटे मकान को धरासायी करने में निगम को देर नहीं लगती है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर कब्जा हटाने में उसे समय नहीं लगता है। पर चूंकि माल बड़े आदमी का होता है इसलिये निगम कोई बड़ी कार्यवाही करने से गुरेज रखता है। इसके पहले भी तेलीबांधा रोड पर एक माल के अनियमित निर्माण पर निगम ने राजीनामा शुल्क लेकर उसे नियमित कर दिया था। सवाल फिर यह उठ रहा है कि विधानसभा रोड पर निर्माणाधीन इस अंबूजा माल के अनियमित निर्माण की क्या निगम के अधिकारियों ने पहले रुचि नहीं ली, जिस मार्ग से छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री, विधायक तथा आलाअफसर, विधानसभा सत्र के दौरान निकलते हैं वहांंंंं आखिर नक्शे के विपरीत निर्माण की हिम्मत संचालक ने कैसे जुटाई वैसे निगम प्रशासन को किसी ऐसे बड़े निर्माण पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए, तभी तो लगेगा कि निगम प्रशासन 'आमÓ और 'खासÓ में कोई परहेज नहीं करता है।
नक्सली फिर दोषमुक्त!नक्सली के आरोप में पकड़े गये लोगों को न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया, नक्सली समर्थक राजद्रोह के आरोप में पकड़े गये डॉ. बिनायक सेन और पीयूष गुहा को सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत दे दी। देश के सबसे बड़े दंतेवाड़ा नक्सली जेल बे्रक के आरोपी बनाये गये, जेल इंचार्ज को भी न्यायालय ने राजद्रोह से मुक्त कर दिया, क्योंकि पुलिस ने राजद्रोह का मुकदमा चलाने राज्य सरकार से विधिवत अनुमति नहीं ली थी आखिर यह हो क्या रहा है?10 मई 2009 को सिहावा से करीब 40 किलोमीटर दूर मांदागिरी पर्वत के पास कांकेर जिले के 13 पुलिस कर्मी, एसपीओ नक्सली हमले में शहीद हो गये थे। इसके बाद सिहावा पुलिस ने 44 नामजद नक्सलियों सहित कइयों के खिलाफ जुर्म कायम कर न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया था। 19 कथित नक्सलियों ने 20 सितंबर 10 को न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में दोष मुक्त कर दिया वहीं 5 लोगों को 3 जून को न्यायालय ने दोष मुक्त कर दिया। ठोस गवाह या सबूत सरकार पेश नहीं कर सकी। डॉ. बिनायक सेन के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस पर विपरीत टिप्पणी करके जमानत दे दी। छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल तथा धुर नक्सली प्रभावित जिले दंतेवाड़ा में देश का सबसे बड़ा जेलबे्रक हुआ 299 नक्सली और कैदी फरार हो गये। जेल प्रभारी के खिलाफ 'राजद्रोहÓ का मामला पुलिस ने बनाया पर राज्य सरकार से मुकदमा चलाने अनुमति ही नहीं ली और जेल प्रभारी बरी हो गये। दुर्ग जेल में जाकर एक नक्सली समर्थक से पुलिस के एक आला अफसर ने मुलाकात की और उसका चालान पेश नहीं हो सका और वह छूट गया। जगदलपुर के एक पुलिस कप्तान ने पुलिस मुख्यालय में मुख्यमंत्री के समक्ष 65 नक्सलियों को आत्मसमपर्ण कराया। बाद में उसमें से कई नक्सली नहीं निकले और उन्हें छोडऩा पड़ा। आखिर पुलिस कर क्या रही है और ऐसे मामलों में विवेचना ठीक करने वालों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की जाती है।
और अब बस
(1)छत्तीसगढ़ के रोजगार कार्यालयों में इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे पंजीयन की व्यवस्था शुरू हो गई है... एक टिप्पणी... सरकार के पास नौकरी तो है नहीं कम से कम इस व्यवस्था से चक्कर लगाने से मुक्ति मिलेगी।(2)डॉ. रमन सिंह सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने कांगे्रस अध्यक्ष ने एक उपसमिति गठित की है। एक टिप्पणी... क्या विधानसभा में सरकार पर आरोप लगाने में कोई दिक्कत आ रही है?(3) लखनऊ में भाजपा अधिवेशन के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और वरिष्ठï सांसद रमेश बैस साथ-साथ आये, एक टिप्पणी... साथ-साथ तो कई बार दिखाई देते हैं 'पर साथ-साथ हैं तो नहीं!

Friday, June 3, 2011

तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है

खैरात जो देता है वही लूटता भी है


भारतीय जनता पार्टी के लखनऊ अधिवेशन के बाद छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल के पुनर्गठन की चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह काफी समय से गृहमंत्रालय का प्रभार किसी और को देने प्रयासरत हैं पर प्रदेश के पुलिस मुखिया के रहते कोई नेता गृहमंत्री बनने तैयार नहीं हो रहा है। वैसे गृहमंत्रालय की कमान बृजमोहन अग्रवाल, चंद्रशेखर साहू, राजेश मूणत आदि को देने की चर्चा उड़ती रही पर हाल फिलहाल विधानसभा अध्यक्ष धमरलाल कौशिक और अमर अग्रवाल के नाम चर्चा में हैं। पार्टी के सूत्रों के मुताबिक विस अध्यक्ष कौशिक ने तो गृहमंत्री बनने से मना कर दिया है जहां तक अमर अग्रवाल का मामला है तो वे गृहमंत्री बनने तभी तैयार होंगे जब उन्हें पूरा अधिकार मिलेगा, अभी की स्थिति में तो पुलिस की पूरी कमान डीजीपी विश्वरंजन के पास ही है और उनके रहते कोई अधिकार संपन्न

मुख्यालय में चर्चा के तीन केन्द्र!

हाल ही पुलिस मुख्यालय से लेकर जिला पुलिस अधीक्षकों की नियुक्ति में पुलिस मुखिया से राय नहीं लेने की भी जमकर चर्चा है। वैसे एक एडीजी रैंक के अफसर की पुलिस मुख्यालय में नियुक्ति तथा एक आदिवासी अंचल के पुलिस अधीक्षक नियुक्ति पर भी उनकी राय की उपेक्षा कर दी गई थी। सूत्रों का कहना है कि पुलिस मुख्यालय में एक प्रभावी आईजी पर नियंत्रण रखने एक पसंदीदा एडीजी की नियुक्ति के विपरीत शासन ने एडीजी गिरधारी नायक को प्रशासन और योजना प्रबंध का जिम्मा देकर पावरफुल बनाया गया है। कहा जाता है कि गृहमंत्री सहित कुछ अन्य मंत्रियों की सिफारिश को पुलिस मुख्यालय तवज्जो नहीं देता था और आईजी प्रशासन पवन देव जूनियर होने के कारण चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते थे अब एडीजी गिरधारी नायक इस पदस्थापना के बाद डीजीपी विश्वरंजन के बाद दूसरे नंबर पर आ गये हैं वहीं सरकार की नजदीकियों के चलते एडीजी रामनिवास वैसे भी मुख्यालय में प्रभावशाली अधिकारी है इस तरह पुलिस मुख्यालय में तीन प्रमुख केन्द्र हो गये हैं। वैसे कहा जाता है कि हाल ही में की गई नियुक्तियों में डीजीपी की राय नहीं ली गई है। धमतरी में महासमुंद, धमतरी और गरियाबंद पुलिस जिले को डीआईजी जोन बनाकर भी सरकार ने एक अहम निर्णय लिया है। वहीं 1998 बैच के आईपीएस वी पी पौषार्य को सूरजपुर जिले का एसपी (पहली बार एसपी बनाया गया) बनाकर पदोन्नति आईपीएस अफसरों को भी यह संदेश देने का प्रयास किया है कि देर है पर अंधेर नहीं है। वहीं संजीव शुक्ला को महल (जशपुर) का प्रभार दिया गया है। इतना ही नहीं इन पुलिस कप्तानों के फेरबदल में एक दो पुलिस कप्तान जरूर अप्रभावित रहे जिन्हें मुख्यालय निपटाना चाहता था जिन पर साहित्यक संस्था के कार्यक्रमों में भागीदारी करने नहीं करने के कारण नाराजगी थी।

बड़ा प्रशासनिक फेरबदल जल्दी

छत्तीसगढ़ में आगामी 2-3 माह के भीतर शीर्ष स्तर पर प्रशासनिक फेरबदल से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया पी जॉय उम्मेन के केन्द्र में जाने की पूर्व में चर्चा चली थी उन्होंने भी दिल्ली जाने की बात स्वीकार कर ली थी पर उनकी वापसी टल गई थी। हाल ही में जांजगीर-चांपा जिले में विश्वबैंक योजना के ऋण प्राप्त रोगदा बांध को दक्षिण भारत की एक कंपनी को बेचे जाने के मामले में मुख्य सचिव घिर गये हैं। उनकी अध्यक्षता में एक कमेटी ने रोगदा बांध नहीं उसकी जमीन ही बेच दी। वैसे विपक्ष के तीखे हमले के चलते विस उपाध्यक्ष नारायण चंदेल की अध्यक्षता में विधानसभा की संयुक्त कमेटी ने जांच शुरू कर दी है। 10 जून को समिति दस्तावेजों के परीक्षण के बाद प्रमुख सचिव राजस्व, उद्योग और जल संसाधन विभाग के तत्कालीन सचिवों से जवाब तलब करेगी और जरूरत पड़ी तो मुख्य सचिव को भी तलब का सकती है। वैसे इस रिपोर्ट को समिति आगामी विस सत्र में प्रस्तुत करेगी इधर 28 जून 2011 को यानि अगले माह केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर गये वरिष्ठï आईएएस सुनील कुमार अपना सात साल का समय पूरा कर छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ लौटते ही अतिरिक्त मुख्य सचिव की पदोन्नति मिलते ही वे मुख्य सचिव के दावेदार बन जाएंगे इधर आदिवासी आईएएस नारायण सिंह वैसे भी मुख्यसचिव की दौड़ में पहले ही शामिल हो चुके हैं। अब रोगदा बांध की विधानसभा में रपट पेश होने के बाद प्रदेश सरकार हंगामे से निपटने क्या रास्ता निकालती है यह तो उसी समय पता चलेगा पर सुनील कुमार के छत्तीसगढ़ लौटते ही बड़ी प्रशासनिक सर्जरी से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे जाय उम्मेन और सुनील कुमार की दोस्ती भी किसी से छिपी नहीं है। गृहमंत्री होगा ऐसा लगता नहीं है। हाल ही में गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने भाटापारा एसडीओपी राठौर को निलंबित करने का आदेश दिया पर आज तक आदेश जारी नहीं हो सका है। बहरहाल एक चर्चा यह भी है कि इस बार मंत्रिमंडल फेरबदल में गृह और परिवहन विभाग किसी एक ही के जिम्मे रखा जाएगा। बहरहाल गृहमंत्री बनने छत्तीसगढ़ में कोई तैयार नहीं है यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है। प्रोटोकाल के हिसाब से मुख्यमंत्री के बाद गृहमंत्री का ही नंबर आता है। बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल से गृहमंत्रालय का प्रभार पूर्व से लेकर आदिवासी समाज के रामविचार नेताम और उसके बाद ननकीराम कंवर को सौंपा गया था पर इसी समाज के लोग नक्सलियों द्वारा प्रताडि़त हो रहे हैं वहीं नक्सली अपना क्षेत्र विस्तार भी करते रहे।

रथ पर होकर सवार!

रथ पर सवार चला है दूल्हा यार, कमरिया में बांधे तलवार... यह गीत आजकल पुलिस मुख्यालय से लेकर फील्ड में पदस्थ कुछ पुलिस कप्तानों, नगर पुलिस कप्तानों, थाना निरीक्षकों के बीच काफी चर्चा में हैं। यह दूल्हा बारात लेकर आता है तब तो हंगामा मचता ही है पर कभी गाहे-बगाहे दुल्हे के संगी साथी भी अपना रौब गालिब करने में पीछे नहीं है। कहा जाता है कि कम उम्र का यह दूल्हा 2-3 माह के भीतर छत्तीसगढ़ के किसी भी जिले में कुछ चुनिंदा साहित्यकारों की बारात लेकर पहुंचता है। होटल, आकर्षक उपहार, कार्यक्रम स्थल से लेकर रात का इंतजाम सभी उस जिले के पुलिस से जुड़े अधिकारी करते हैं। वह दुल्हा इस तरह पुलिस के बड़े अफसरों पर रोब गालिब करता है मानो वह उनसे बड़ा पुलिस अफसर है। यही नहीं किसी पुस्तक प्रकाशन, साहित्य गोष्ठïी से लेकर विदेश प्रवास तक के लिये कुछ अफसरों पर दबाव बनाने की भी चर्चा है। चर्चा तो यह भी है कि एक पुलिस कप्तान ने मात्र 2 हजार चंदा देने की पेशकश की और नाराजगी मोल ले ली। अपने मूल विभाग में रहकर उसने जो कृत्य किया है उसकी चर्चा विभाग में आज भी है। चर्चा तो यह भी है कि किसी तरह अपना दबाव बनाकर उस दूल्हे ने अपनी पदोन्नति करा ली है और जूनियर होने के बावजूद अपनी पदोन्नति कराने प्रयासरत है। इसीलिये इनसे वरिष्ठï अफसर की पदोन्नति सूची भी मंत्रालय में जमा करा दी गई है। वैसे यह दूल्हा कार्यालय के अलावा कटोरातालाब में भी कहीं मिलता है। वहां भी लोग इनकी सूर्य आराधना करने पहुंचते हैं।

और अब बस

(1)

छत्तीसगढ़ की संस्कृति से परिचित एक आईपीएस अफसर आजकल नक्सली साहित्य के अध्ययन में रुचि ले रहे हैं।

(2)

छत्तीसगढ़ के एक नये-नये मंत्री (पहली बार मंत्री बने) ने विवेकाधीन अधिकार का उपयोग करते हुए उपलब्ध निधि से बहुत बड़ी राशि, परिवार के सदस्यों और स्टाफ के परिवारों को दे दी... एक टिप्पणी:- बाद में अपने ही तो काम आते हैं।

(3)

लोस बस्तर उपचुनाव कांगे्रस के महेंद्र कर्मा ने हरवा दिया एक आरोप लगा। एक टिप्पणी:- अभी तक तो हराने का आरोप अजीत जोगी पर ही लगता था?