Monday, January 17, 2011

आइना ए छत्तीसगढ़

देखा गया हूं मैं, कभी सोचा गया हूं मैं
अपनी नजरों में आप तमाशा रहा हूं मैं
ऊपर के चेहरे-मोहरे से धोखा न खाइये
मेरी तलाश कीजिये, गुम हो गया हूं मैं

स्नेह की सेवा, स्वामिभक्ति की दृढ़ता, विश्वास की सरलता, वचन की गौरव रक्षा और ममत्व का अधिकार इसी में तो छत्तीसगढ़ की आत्मा है। तभी तो दरिद्रता के अभिशाप के साथ-साथ अज्ञान से ग्रस्त होने पर भी छत्तीसगढ़ के जनजीवन में चरित्र की एक ऐसी उज्ज्वलता है, जो अन्यंत्र नहीं पाई जाती। आधुनिक युग को 'जीवन संघर्षÓ की जटिलता के कारण उच्च श्रेणी के लोगों में अब चरित्र की उज्ज्वलता लुप्त होती जा रही है। उच्च श्रेणी कुछ लोग छत्तीसगढिय़ों के सरल स्वभाव से भी अनुचित लाभ उठाने लगे हैं, फिर भी अभी भी छत्तीसगढ़ के कितने ही लोग स्वयं धोखा खाते हैं पर दूसरों को धोखा नहीं देते हैं। वे स्वयं तो कष्टï सह लेते हैं पर दूसरों को कष्टï नहीं देते हैं, सबसे बड़ी बात तो यह है कि कठिन परिस्थितियों में भी वे स्नेह का ममत्व नहीं छोड़ते हैं। छत्तीसगढ़ के मूर्घन्य साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने 'छत्तीसगढ़ की आत्माÓ शीर्षक से बहुप्रशंसित लेख में यह लिखा था और इस लेख की सार्थकता आज भी है। अपना छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 10 सालों में प्रदेश की जो हालात बन रही है। लूट-खसोट का माहौल बनता जा रहा है, भ्रष्टïाचार अपनी चरमसीमा में हैं, नित नये घोटाले सामने आ रहे हैं। विपक्ष का आरोप लगता है और सत्ताधारी दल का खडंन तो आता है साथ वह पिछली सरकार के घोटालों की बात फिर उठा देता है। यदि पिछली सरकार के घोटाले किये थे तो क्या इस सरकार को भी घोटाला करने की छूट मिल गई है?
जहां आदमी नाम का प्राणी होगा, वहां भ्रष्टïाचार तो होगा ही! भ्रष्टïाचार को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे कम किया जा सकता है, भ्रष्टïाचार को सीमा में बांधना जरूरी है, वरना इसके नतीजे खतरनाक होंगे। यह दुर्र्भाग्य जनक ही है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना पड़ा कि क्यों न सरकारी विभागों में घूसखोरी को कानून बना दिया जाए ताकि लोगों को पता रहे कि किस काम के लिये उन्हें कितने पैसे देने होंगे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि अगर हम केन्द्र से एक रुपया भेजते हैं तो अंतिम व्यक्ति जिसे पैसा मिलना होता है, उसके पास मात्र 15 पैसे ही पहुंचते हैं। सवाल यह है कि अब हालात सुधरे हैं? नहीं हालात और बिगड़े हैं। वैसे राज्यों में लोकायुक्त, एण्टी करप्शन विभाग भी है पर वह छोटी मछलियों पर हाथ डालकर शिकार पकडऩे की नौटंकी भर कर रहे हैं।
भय, भूख और भ्रष्टïाचार मुक्त सुराज देने का दावा करने वाली भाजपा की प्रदेश सरकार पर भी भ्रष्टïाचार के छींटे पड़ रहे हैं। कई घोटालों की चर्चा के बीच सरकार के अदने से कर्मचारी के घर छापे से करोड़ों की संपत्ति का मिलना पूर्व की जनता को हैरान कर रहा है।
स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टïाचार की गंगोत्री निकली है अभी तक करीब 300 करोड़ के दर्जनभर से अधिक घोटाले सामने आ चुके हैं। मलेरिया दवा खरीदी, कलर डॉप्लर, सीरिंज खरीदी, दवा खरीदी, स्वास्थ्य जागरूकता के लिए प्रचार-प्रसार के नाम पर भी घोटाले सामने आ चुके हैं। तत्कालीन चिकित्सा संचालक द्वारा अपनी बेटी को ही फर्जी तरीके से मेडिकल में प्रवेश का मामला भी कम चर्चा में नहीं रहा। स्वास्थ्य विभाग के एक सचिव रहे वरिष्ठï आईएएस बाबूलाल अग्रवाल और उनके परिजनों के ठिकानों पर आयकर छापे के बारे उनका निलंबन, फिर बहाली और हाल ही में पदोन्नत कर राजस्व मंडल के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के पीछे भी राजनेताओं में मधुर संबंध की तरफ इशारा कर रहा है। तत्कालीन विभागीय मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी को स्वास्थ्य विभाग पर लगाम नहीं कसने के कारण इस बार रमन सरकार में शामिल नहीं किया गया था पर हाल ही में उन्हें निगम का अध्यक्ष बनाकर उपकृत किया गया है।
प्रधानमंत्री सड़क योजना में भ्रष्टïाचार के मामले पिछली विधानसभा में सुर्खियों में रहे थे। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि प्रदेश में 500 में 55 सड़कें घटिया पाई गई नतीजन राष्टï्रीय गुणवत्ता निरक्षकों ने 275 किलोमीटर सड़क ही रिजेक्ट कर दी। ठेकेदारों, नेताओं और अफसरों की गुगलबंदी से 70 करोड़ की घपले बाजी हुई। इसी तरह केन्द्र सरकार से जवाहरलाल नेहरु राष्टï्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत छत्तीसगढ़ को 500 करोड़ रुपए मिले थे, जिसका मकसद राज्य के बड़े शहरों को झुग्गी मुक्त करना था मगर इस योजना में भी जमकर भ्रष्टïाचार हुआ। निर्माण कंपनी को 100 करोड़ अग्रिम देने के बाद भी तीन साल में मात्र 64 मकान ही बन सके थे और विभागीय मंत्री ने कम गुणवत्ता वाले इन मकानों को तोडऩे का आदेश दिया था।
महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना में रोजगार की कम, भ्रष्टïाचार की गारंटी ज्यादा नजर आती है, एक तरफ मशीनों से काम लेकर फर्जी मस्टर रोल बनाकर अफसरों पर पैसा हड़पने के आरोप लगे हैं दूसरी तरफ काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन का क्रम जारी है। पिछले दिनों काम की तलाश में 'लेहÓ गये 50 छत्तीसगढ़ मजदूरों की जान प्राकृतिक हादसे में चली गई। मैनपुर ब्लाक के इंजीनियरों पर 2 करोड़ हड़पने का आरोप लगा। कांकेर में मनरेगा के तहत 2 करोड़ का फर्जीवाड़ा सामने आया। नतीजन जिला कमिश्नर ने 7 करोड़ से अधिक का भुगतान रुकवा दिया था। नक्सली प्रभावित दंतेवाड़ा में अफसरों ने तालाब की खुदाई मशीनों से कराकर फर्जी मस्टररोल दिखाकर रकम डकार ली। पाठ््यपुस्तक निगम की कागज खरीदी जरूरत से अधिक पुस्तक छपाई, कबाड़ी बाजार में पाठ््यपुस्तकों का पुलिस द्वारा जब्त करने की भी चर्चा में है।
ऊर्जा विभाग की हालत भी कुछ ठीक नहीं है। 'नो पावर कटÓ की असलियत तो यही है कि पिछले 6 साल में 12 हजार करोड़ की बिजली निजी उत्पादकों से खरीदी गई है। हाल ही में ओपन एक्सेस बिजली खरीदी की भी जमकर चर्चा है हालांकि सरकार एक सलाहकार शिवराज सिंह को पद से हटा दिया है। वहीं बिजली उपभोक्ताओं को घटिया मीटर खरीदी की भी चर्चा है। बिजली वितरण कंपनी के तत्कालीन एमडी जी एस देशपांडे ने भी स्वीकार किया था कि घटिया मीटर आपूर्ति पर दोषी पाई गई कंपनी पर 4 करोड़ का जुर्माना किया।
इधर उरला इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने भी राज्य निर्माण के बाद गठित विद्युत मंडल की तीन कंपनियों जनरेशन, ट्रांसमिशन और वितरण ने आगामी वर्षों के लिये वार्षिक राजस्व पूर्ति के आंकड़ों में गोलमाल कर 6 हजार करोड़ के राजस्व को छिपाने का गंभीर आरोप लगाया है। एसोसिएशन का तो यह भी खुला आरोप है कि अब ये पैसा विद्युत दरों में बढ़ोत्तरी कर उपभोक्ताओं की जेब से निकालने की तैयारी हो रही है। विद्युत दरों में बढ़ोत्तरी की संभावना के चलते ही उद्योगपति लामबंद हो गये हैं।
डॉ. रमन सिंह ने एक और 2 रुपए किलो चावल गरीबों को देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था और इस योजना के पीछे यही मकसद था कि कोई भी गरीब भूखे न सोये पर यह योजना भी भ्रष्टïाचार की भेंट चढ़ रही है। अफसर-नेता इस योजना को 'चारागाहÓ समझ रहे हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की 'लूकपोलÓ भ्रष्टïाचार की भेंट चढ़ रही है। रायगढ़ में डेढ़ करोड़ की कीमत का चावल जो गरीबों को वितरित होना था वह ट्रक से सीधे एक भाजपा नेता के घर जा पहुंचा और नतीजन एफआईआर कराना भी पड़ा।

और अब बस

(1)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने घोषणा की थी कि प्रदेश के मंत्री अफसर अपनी संपत्तियों का विवरण हर साल देंगे। कितने अफसरों ने विवरण नहीं दिया? जिन्होंने अपना विवरण दिया उसकी क्या जांच कराई गई कि जानकारी सही है अथवा नहीं, जिन्होंने संपत्तियों का विवरण नहीं दिया उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई।

(2)

पाठ्यपुस्तक निगम ने सबसे महंगा कार्यालय किराये पर लिया है। इतना महंगा कार्यालय लेने के पीछे आखिर क्या वजह थी यह तो पूछा ही जा सकता है।
आइना ए छत्तीसगढ़

मत कहो आकाश में कोहरा घना है

यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है


छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम अभियान की अब एक तरह से मौत हो रही है। नक्सलियों के खिलाफ अपने पारंपरिक हथियार लेकर संघर्ष का शंखनाद करने वाले आदिवासियों को इस अभियान से क्या मिला यह तो नहीं कहा जा सकता है पर प्रदेश सरकार के मुखिया डॉ. रमन सरकार को काफी वाहवाही मिली यहीं नहीं डीजीपी विश्वरंजन भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्टï्रीय मंच में 'सलवा जुडूमÓ का बखान करने में पीछे नहीं रहते थे पर एक जनवरी को पुलिस मुख्यालय में आयोजित एक समारोह में इस अभियान से कन्नी करते नजर आये वे तो 'सलवा जुडूमÓ की मौत के सवाल पर इस अभियान को 'राजनीतिक अभियानÓ कहने में भी पीछे नहीं रहे।
छत्तीसगढ़ के नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ स्वस्र्फूत पहले आंदोलन की शुरूआत सन् 1991 में अबूझमाड़, नारायणपुर के आदिवासी नेता देवा सोढ़ी ने शुरू किया था। कुछ दिनों बाद नक्सलियों द्वारा उनकी हत्या के बाद यह आंदोलन वहीं समाप्त हो गया। वैसे दंतेवाड़ा के तत्कालीन पुलिस कप्तान वाई के एस ठाकुर, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक वी एस मरावी आदि ने भी नक्सलियों के खिलाफ जनजागरण आंदोलन की शुरूआत की थी पर उसे उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली थी। 4 जून 2005 को कुटरु ब्लाक के कटेली गांव में एक अभियान की शुरूआत हुई जिसे बाद में 'सलवा जुडूमÓ नाम दिया गया। आदिवासियों के स्वस्फूर्त इस आंदोलन को प्रारंभ में ही आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा ने हाईजैक कर लिया और बाद में मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने भी इस आंदोलन को प्रोत्साहित किया। इस समय यूएनओ से लौटे हिमाचल प्रदेश के आदिवासी समाज के ओ पी राठौर को पुलिस महानिदेशक बनाया गया और उनके कार्यकाल में सलवा जुडूम आंदोलन को काफी मदद मिली। सलवा जुडूम समर्थक और माओवादियों के बीच संघर्ष की नौबत भी आई और सलवा जुडूम समर्थक 640 गांवों के करीब 46 हजार लोग राज्य सरकार द्वारा मुख्यमार्ग के आसपास बनाये गये राहत शिविरों में रखा गया था। गीदम ब्लाक के दो राहत शिविरों में 1160, भैरमगढ़ ब्लाक के 8 राहत शिविरों में 9800, बीजापुर के 3 राहत शिविरों में 6 हजार, उसुर ब्लाक के 3 राहत शिविरों में 2 हजार, कोण्टा ब्लाक के 7 राहत शिविरों में 36 हजार 300 शिविरार्थी कभी रहते थे। बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले के दोरनापाल सबसे बड़ा राहत शिविर था जहां 17 हजार 500 शिविरार्थी रहते थे तो उसुर में राहत शिविर में सबसे कम 273 लोग रहा करते थे।

वैसे राहत शिविरों में 45958 लोगों में 40108 शिविरार्थी, 3200 एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारी) 651 निशक्तजन तथा 1999 आत्मसमर्पित नक्सली रहने की बात राज्य सरकार ने भी स्वीकार की थी।

खैर बाद में नक्सलियों द्वारा राहत शिविरों पर हमला, सामूहिक हत्या करने के साथ एसपीओ के बढ़ते आतंक के चलते कई राहत शिविर धीरे-धीरे खाली होते रहे। कुछ शिविरार्थी तो पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश, उड़ीसा आदि में जाकर रहने लगे हैं। तत्कालीन डीजीपी ओ पी राठौर की आकस्मिक मौत के बाद तो यह आंदोलन शिथिल पड़ता गया वहीं मानव अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा फर्जी मुठभेड़, एसपीओ को बिना प्रशिक्षण के हथियार देकर हत्या की छूट देने, नाबालिगों की एसपीओ के रूप में भर्ती आदि के मामले राष्टï्रीय मानव अधिकार आयोग और न्यायालय में ले जाने के बाद भी यहां की हालत लगातार बिगड़ती गई। एक बार तो तत्कालीन गृहमंत्री रामविचार नेताम ने विधानसभा में शिविरार्थी को 'शरणार्थीÓ तक कह दिया था हालांकि बाद में उन्होंने खेद भी प्रकट किया।
बाद में गृहमंत्री ननकीराम कंवर बने और डीजीपी के रूप में बरसो तक फील्ड से पृथक रहे आईबी में पदस्थ अफसर विश्वरंजन को 5 जुलाई 2007 को पदस्थ किया गया। उसके बाद केवल बयानबाजी ही चलती रही। गृहमंत्री और डीजीपी में बेहतर तालमेल नहीं होने के कारण नक्सली वारदात बढ़ी साथ ही सलवा जुडूम समर्थकों की हालत और खराब होने लगी। विश्वरंजन की पदस्थापना के बाद नक्सली वारदात बढ़ती ही गई नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जेल बे्रक किया यह विश्व की सबसे बड़ी जेलबे्रक की घटना थी। राजनांदगांव के मानपुर में पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे को नक्सलियों ने शहीद कर दिया। ताड़मेटला में 75 सीआरपीएफ जवानों सहित एक प्रदेश पुलिस के कर्मचारी की नक्सलियों ने हत्या कर दी यह वारदात भी नक्सलियों द्वारा की गई सबसे बड़ी वारदात थी। वहीं नक्सलियों ने बस्तर में 16 टन अमोनियम नाइटे्रट लूट ली यह भी नक्सलियों देश में सबसे बड़ी विस्फोट को की लूट थी।
खैर सलवा जुडूम कैम्पों में अपै्रल 2010 से मुफ्त राशन देना बंद कर दिया गया वहीं आदेश दिया गया कि शिविरार्थी एक और 2 रुपए किलो चावल योजना का लाभ ले और खरीदें, पर कैम्प में रहने वाले रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण खरीदी में सक्षम नहीं थे। इधर राज्य सरकार ने शपथ पत्र भी दिया है कि वह सलवा जुडूम को आर्थिक मदद नहीं करेगी जाहिर है कि सलवा जुडूम के समर्थक अब न घर के रहे, न घाट के। नक्सलियों के दुश्मन बनने के कारण अब वे अपने गांव तो लौट सकते नहीं हैं। गांव का घर-बार, ढह गया, थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी बंजर हो गई है अब ये लोग कहां जाएंगे?

रात्रिविश्राम...!

छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन ने नक्सली प्रभावित क्षेत्र में कभी रात्रिविश्राम किया है यह याद नहीं है। वे तो किसी वारदात के बाद जाते हैं और लौट कर फिर बयानबाजी में लग जाते हैं, सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि नक्सलियों से निपटने सीआरपीएफ के स्पेशल डीजी विजय रमन को भी पर्याप्त मदद उस समय पुलिस प्रशासन ने नहीं की थी। हाल ही में सीआरपीएफ के डीजी तथा चंदन तस्कर वीरप्पन का सफाया करने वाले विजय कुमार लगातार नक्सली प्रभावित क्षेत्र बस्तर के प्रवास पर आ रहे थे वे केवल मुख्यालय में बैठकर बयानबाजी करने की जगह सुदूर बस्तर के अंचल में लगातार प्रवास कर सुरक्षाबल से बातचीत कर रहे हैं यही नहीं बस्तर में अभी तक 4 रात नक्सली प्रभावित क्षेत्र, सुरक्षाबल के कैम्पों में भी गुजार चुके हैं। एक बार तो उन्होंने प्रदेश के नक्सल एडीजी राम निवास के साथ एक बार एम्बुश में शामिल हो चुके हैं तथा राहत शिविर में रात्रिविश्राम कर चुके हैं। पर अब सीआरपीएफ के डीजी विजय कुमार की नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सक्रियता भी कुछ अफसरों को रास नहीं आ रही है। पिछले प्रवास पर विजय कुमार की अगुवाई में एक डीएसपी स्तर का अधिकारी पुलिस प्रशासन की तरफ से मौजूद था हां उनकी प्रदेश से वापसी के समय जरूर एक बड़े अफसर विदा करने पहुंचे थे।

जांच अधिकारी बने नवानी

सलवा जुडूम की मौत के लिये कुछ ऐसे अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है जो दूसरे प्रदेशों के हैं तथा नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में लम्बे समय तक पदस्थ रहे हैं। पिछले 3 सालों में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन के लगातार कमजोर होने के पीछे क्या कारण है, क्या कुछ अधिकारियों की इस में भूमिका थी, कुछ वामपंथी विचारधारा के लोग इसमें शामिल थे? जब यह शिकायत गृहमंत्री ननकीराम कंवर को मिली तो उन्होंने कुछ बिंदुओं की जांच कराने का आदेश दिया है और जांच का जिम्मा भी डीजीपी होमगार्ड अनिल नवानी को सौंपा हैं। अब वे विश्वरंजन जैसे वरिष्ठï आईपीएस अफसर के रहते उनके मातहत पुलिस अफसरों की 'सलवा जुडूमÓ में भूमिका की कितनी जांच कर पाएंगे इसका पता बाद में ही चलेगा।

और अब बस

(1)
पुलिस मुख्यालय से कुछ अफसर प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाने प्रयासरत हैं पर एक राज्य स्तर का अफसर अपने गृहक्षेत्र से उपचुनाव लडऩे पर तैयारी में है। वह कांगे्रस और भाजपा नेताओं के संपर्क में है।
(2)
राज्य पुलिस सेवा के अफसर डीपीसी की लगातार मांग कर रहे हैं पर जब से विश्वरंजन डीजीपी बने हैं डीपीसी हो ही नहीं सकी है। एक टिप्पणी:- साहब को पता नहीं क्यों राज्य संवर्ग अधिकारियों से चिढ़ सी है?