Sunday, November 28, 2010

मनुष्य जाति की सभ्यता का जन्म स्थान
शंकर पांडे
हमारे छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने दिल खोलकर सजाया है। खूबसूरत वन, हरे-भरे खेत-खलिहान विस्तृत पर्वत श्रृंखलाएं, जीवंत आदिवासी संस्कृति उन्मुक्त वन्य प्राणी सहित जैव विविधता यहां की अनोखी विशेषता है। ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में प्राचीन सभ्यता के उत्कृष्ट पुरातात्विक अवशेष, लोक-जीवन और संस्कृति के अनोखे रंग इस धरती को बाकी भौतिक दुनिया से अलग करते हैं। यहां अबूझमाढ़ की प्राचीन जनजातियां है तो भिलाई और कोरबा की अत्यंत आधुनिक कम्प्यूटर पीढ़ी भी है। विविधता का ऐसा उदाहरण विश्व में शायद ही कहीं दिखाई देता होगा।छत्तीसगढ़ अपनी 10 वीं सालगिरह मना रहा है। इस प्रदेश का इतिहास काफी समृद्ध है। मनुष्य जाति की सभ्यता का यह जन्मस्थान माना जाता है तो लिपी के विकास का भी यहां से सीधा-सीधा संबंध रहा है। आदिमानव, पाषणकाल के औजार तो यहां मिले ही हैं साथ ही साथ सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला की भी यहां मौजूदगी पाई गई है। हाल-फिलहाल पचराही में मिले पाषाण भी यहां के समृद्ध इतिहास की तरफ इशारा कर रहे हैं। नया राज्य बना, विकास के कई सोपान तय किये गये, कई सोपान अभी तय भी करने है पर हमें अपने अतीत को भी भावी-पीढ़ी के लिये सहेजने की ईमानदारी से कोशिश करनी चाहिये। प्रख्यात पुरातत्ववेत्त स्व. पं. लोचन प्रसाद पांडे ने संवत 2000 में एक लेख में उल्लेख किया था कि 'यदि कहा जाए कि वर्तमान छत्तीसगढ़ अर्थात् महाकोशल मनुष्य शांति की सभ्यता का जन्मस्थान है तो भले ही आप इसे महत्व न दें किंतु मैंने इस अरण्य तथा पिछड़े प्रांत के वनवासियों के सहवासी उच्च शिक्षा प्राप्त विद्बान को भारत विख्यात इतिहासज्ञों के बीच यह कहते सुना है कि वर्तमान समय में हमारा कोई इतिहास नहीं है पर यह निश्चित है कि मानव जाति की आदि सभ्यता यही पली थी।Ó स्व. लोचन प्रसाद पांडे ने अपने ग्राम बालपुर के निकट रोमन तथा भिन्न-भिन्न मुद्राएं और अन्य वस्तुएं प्राप्त की थी। कवरा पहाड़ी रायगढ़ से लगभग 10 मील दूर आग्नेय कोण में स्थित है। यहां की चित्रकारी गेरूका रंग सी जान पड़ती है। पहाड़ी में 2 गुफाएं भी हैं। तीसरी गुफा में विश्वविख्यात चित्र रचित हैं। एक चित्र में बहुत से पुरुष लाठी लेकर किसी एक बड़े पशु का पीछा करते हुए दौड़े जा रहे हैं। पास ही एक छोटा पशु (भेड़ या बकरा) एक व्यक्ति के सिर पर हमला करता दिखाई दे रहा है। इसके समय विषय में पुरातावेज्ञों में मतभेद है। कोई इन्हें 20 हजार तो कोई 50 हजार साल पुराना बता रहे हैं।महानदी तथा उसकी सहायक शिवनाथ, हसदो और मांद नदियों के अपवाह क्षेत्र में मध्य पाषाण काल, नवपाषाण काल के उपकरण विपुल मात्रा में प्राप्त होते रहे हैं। रायगढ़ के सिघनगढ़, कबरापहाड़, बसनाझर, ओंगना आदि 13 स्थानों में विद्यमान शैलगुहाओं एवं शैलाश्रयों में मध्यपाषाण एवं नवपाषाण सांस्कृतिक काल के आखेटको का निवास था। इन शैलाश्रयों में विद्यमान चित्रों के विषय में तत्कालीन परिवेश के साथ-साथ समकालीन सांस्कृतिक जीवन के वैशिष्टियों को प्रस्तुत करते हैं। रायगढ़ से संलग्न सारंगढ़ की पहाडिय़ों, पश्चिम दिशा की ओर डोंगरगढ़ अंचल के बोरतालाब, साल्देकसा के शैलाश्रयों और बस्तर के शैलाश्रयों के चित्रों से इस संस्कृति की व्यापकता स्थूल रूप से संपूर्ण छत्तीसगढ़ पर्यंत स्वीकार की जा सकती है। बालोद तहसील के अर्जुनी से ताम्र उपकरण मिले है तो बालोद के ही गुरुर के चारों ओर स्थित गांवों में महाश्मीय संस्कृति (मेगालिथिक कल्चर) से संबंधित स्मारक बड़ी संख्या में विद्यमान है। मुसगहन, घनोरा, कर्काभाट, करहीमदर, सोसर और कुलियों में 1500 से अधिक महाश्मीय स्मारक थे। कर्काभाट तथा आसपास किये गये उत्खनन से मिली सामग्रियों के आधार पर महाश्मीय संस्कृति का काल 2500 ईपू से 1500 ईपू माना गया है। यह सांस्कृतिक काल लौह युगीन था।ताजमहल से भी प्राचीन इंटो का सिरपुर स्थित लक्ष्मण मंदिर अपनी प्राचीनता की कहानी कह रहा है तो रायगढ़ जिले के सिंघनपुर, विक्रमखोल तथा करमागढ़ की पर्वत श्रेणियों में आदि मानव के औजार और शैलचित्र मिले हैं। सिंघनपुर की पहाडिय़ों की सतह पर जो रेखाएं और रेखाकृतियां अंकित है उन्हें प्राचीनकाल की लिपि की जननी माना गया है। इन रेखाकृतियों में ऐसा चिंह मिला है जिनका संबंध जोदड़ों में प्राप्त लिपियों से हो सकता है। हिंदु विश्वविद्यालय वाराणसी डॉ. प्राणनाथ इस लिपि को 1500-2000 ई.पू माना है। यहां मिले चित्र और औजार पूर्वकाल की धरोहर है। सिंघनपुर के कुछ अक्षर जैसे 'क ख घ च छ त न प मÓ अपने प्रारंभिक स्वरूप में पाये गये हैं। संभवत: लिपि का विकास इन्हीं चित्रों से हुआ है। अत: रायगढ़ के पर्वतों से प्राप्त पाषाणकालीन चित्रों को हम मनुष्य की सभ्यता के विकास का प्रथम चरण कह सकते हैं। सरगुजा रामगढ़ में ईसा से 300 वर्ष पूर्व की नाट्यशाला प्राचीनतम मानी जाती है। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ का अतीत काफी समृद्ध था और इसे संजीव रखने की जरूरत है।


राज्योत्सव 10 पर विशेष
शिवाजी महाराज भी आ चुके हैं छत्तीसगढ़
शंकर पांडे
मुगल बादशाह औरंगजेब की कैद से निकलकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने सरगुजा के जंगलों सहित रतनपुर के नवांचलों में गुजारने के पश्चात रायपुर होकर चंद्रपुर (विदर्भ) होकर अपने रायगढ़ (महाराष्ट्र) के किले में पहुंचे थे। 14 अगस्त 1662 से 22 सितंबर 66 तक उन्होंने कुछ समय छत्तीसगढ़ मे भी गुजारा था। राज्योत्सव की दसवीं सालगिरह पर एक सनसनीखेज तथ्य।मुगल बादशाह औरंगजेब ने छलपूर्वक शिवाजी महाराज को सन् 1966 में आगरा के किले में कैद कर लिया था। 1662 में औरंगजेब को शिवाजी, संभाजी बेटे के साथ साथ अपने नौ वर्षीय के साथ अपना 50 वां जन्मदिन के अवसर पर एक योजना के तहत औरंगजेब ने आमंत्रित किया था। शिवाजी को कंधार, अफगानिस्तान भेजने की योजना थी इसके लिए मजबूत मुगल साम्राज्य सीमा के उत्तर पश्चिमी, अदालत ने हालांकि 1662 मई 12, औरंगजेब के बारे में उनकी अदालत के पीछे सैन्य कमांडरों खड़ा कर दिया। शिवाजी को अपमान प्रतीयमान इस अपराध में ले लिया और अदालत के बाहर हमला कर दिया और तुरंत गिरफ्तार कर लिया। बाद में आगरा कोतवाल को अपने जासूसों से पता चला है कि औरंगजेब, शिवाजी को राजा हवेली को अपने निवास ले जाने के लिए और फिर संभवत: उसे मारने के लिए या उसे अफगान सीमा में लडऩे के लिए भेजने की योजना बनाई , एक परिणाम के रूप शिवाजी ने भागने की योजना बनाई। इसके बाद उसके अनुरोध पर मंदिरों में आगरा और दैनिक लदान के मिठाई के लिए संतों उपहार और प्रसाद के रूप में भेजने के लिए अनुमति दी और कई दिनों के बाद शिवाजी, मिठाई और अन्य सामग्री बाहर भेजने बक्से में अपने नौ साल के बेटे संभाजी, खुद को बक्से में छिपा दिया और भागने में कामयाब रहे। इस तरह 14 अगस्त 1666 को ही बड़ी चतुराई से शिवाजी महाराज कैद से भागने में सफल हो गये थे। प्रमाणिक जानकारी के अनुसार जब मूगलों को शिवाजी महाराज के कैद से भागने की खबर मिली तो मुगलों ने रायगढ़ (महाराष्ट्र) किले की ओर जाने वाले सभी मार्गों पर मोर्चाबंदी की थीं पर शिवाजी महाराज दक्षिण की ओर न जाकर उत्तर-पूर्व की ओर जाना ही उचित समझा। वे उस समय इटावा, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी होकर मिर्जापुर पहुंचे। वहां से सरगुजा-रतनपुर-रायपुर-चंद्रपुर होकर चिन्नूर, करीमगंज, मुलबर्ग, मंगलबेड़ा होकर वापस अपने रायगढ़ (तब विदर्भ) के किले में पहुंचने में सफल हो गये थे।शिवाजी महाराज ने छत्तीसगढ़ के सरगुजा और रतनपुर के वन्य अंचलों में कितने दिन गुजारे और रायपुर होकर चंद्रपुर (महाराष्ट्र) कब गये यह तिथि तो ज्ञात नहीं हो सकी है परंतु आगरा में औरंगजेब की कैद से वे 14 अगस्त 1966 के दिन भाग निकले थे और 22 सितंबर 1662 को वापस अपने रायगढ़ किले में पहुंचे थे। इसका मतलब यही है कि एक महीने 8 दिन कुछ दिन जरूर छत्तीसगढ़ प्रवास पर रहे थे।जयराम पिण्डे (1673) तथा भीमसेन सक्सेना (1966) ने अपने लेख में खुलासा किया था, वहीं शिवाजी महाराज के भागने के मार्गों का भी जिक्र किया था। मुगल बादशाह औरंगजेब का इतिहास लिखने वाले खाफी खां ने भी इसका उल्लेख किया है। मुगलकालीन इतिहास के लिये खाफी खां को मुगलों के इतिहास के लिये प्रमाणिक माना जाता है। उन्होंने भी शिवाजी महाराज के औरंगजेब की कैद से भागने के मार्ग और क्रियाकलापों का उल्लेख किया है। पुस्ट जानकारी के अनुसार शिवाजी महाराज ने मुगलों की कैद से भागकर आगरा से अपने पुत्र संभाजी को दासोजी पंत के पास छोड़ दिया। उसके बाद वे कृष्णपंत के साथ फतेहपुर के पास यमुना पार किया, चूंकि दक्षिण जाने के मार्ग पर मुगलसेना शिवाजी को तलाश रही थी इसलिये वे इटावा, कानपुर, इलाहाबाद होते हुए वाराणसी पहुंचे थे। वाराणसी से मिजापुर होकर सरगुजा (छत्तीसगढ़) पहुंचे। यहां के जंगलों से होकर वे रतनपुर पहुंचे। सुदूर और वनांचल क्षेत्र होने के साथ ही उस समय सरगुजा-रतनपुर के जंगल काफी दुर्गम होने के कारण सुरक्षित थे। रतनपुर से रायपुर होकर शिवाजी महाराज चंद्रपुर (विदर्भ) पहुचे और वहां से चिन्नूर, करीमगंज, गुलबर्ग, मंगलबेड़ा होकर 22 सितंबर 1662 को रायगढ़ जिले वापस पहुंच गये थे।

बिलासपुर जेल में लिखी गई थी कविताएं: शहर का भी उल्लेख
शंकर पांडे
महान साहित्यकार पं. माखनलाल चतुर्वेदी 'दादाÓ की जन्म स्थली बाबई (होशंगाबाद) मध्यप्रदेश है। वे अपने साहित्य के नाम पर अमर हो गये है। चतुर्वेदी लाल दादा माखन जन्म 4 अप्रैल 1889 को होशंगाबाद जिले के एक गांव में हुआ था। एक प्रख्यात लेखक, निबंधकार, कवि, पत्रकार और नाटककार के रूप में उन्होंने देश को बहुत कुछ दिया। यही नहीं उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके लिये उन्होंने 1912 में शिक्षक के पद से इस्तीफा दे दिया है और पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया पत्रिकाओं कर्मवीर प्रभा आदि में संपादन किया और 1959 में सागर विश्वविद्यालय भारत की ओर से है डीलिट की उपाधि दी गई, वहीं उन्हें पदमविभूषण से सम्मानित किया गया। 78 वर्ष की आयु में 1968 वर्ष में उनका निधन हो गया। बतौर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उन्हें अंग्रेजों ने बिलासपुर जेल में नजरबंद कर दिया था। इस जेल में पंडित जी ने 13 कविताओं की रचना की जिसमें पुष्प की अभिलाषा, कैदी और कोकिला तथा मेरा व्रत पूजन काफी प्रसिद्ध रही। छत्तीसगढ़ को महान साहित्यकार पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने अमर कर दिया है। होशंगाबाद (म.प्र.) के बाबई नामक एक गांव के मूल निवासी पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने साहित्य साधना के साथ भारत की आजादी के आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हें अंग्रेज शासकों ने किसी मामले में गिरफ्तार कर 5 जुलाई सन् 1921 को बिलासपुर (छत्तीसगढ़) जेल में स्थानांतरित कर दिया था। वे 5 जुलाई 1921 से एक मार्च 1922 तक वे बिलासपुर जेल में बंद रहे। इस दौरान जेल के भीतर उनसे रस्सी आदि बनवाने का काम भी लिया जाता था जिसका उन्होंने उल्लेख भी किया है। बहरहाल जेल के भीतर बंद होकर भी उनका कवि हृदय नई कविताओं का सृजन करता रहा।बिलासपुर जेल के भीतर ही 18 फरवरी 1922 को उन्होंने पुष्प की अभिलाषा शीर्षक की एक कविता लिखी थी जो काफी चर्चित भी रही।चाह नहीं मैं सुरबाला केगहनों में गूंथा जाऊंचाह नहीं, प्रेमी-माला मेंविंध प्यारी को ललचाऊंचाह नहीं, सम्राटों के शवपर हे हरि डाला जाऊंचाह नहीं, देवों के सिर परचढूं भाग्य पर इठलाऊंमुझे तोड़ लेना वनमालीउस पथ पर देना तुम फेंकमातृभूमि पर शीश चढ़ानेजिस पथ जाएं वीर अनेक(बिलासपुर जेल 18 फरवरी 1922) वैसे जेल के भीतर नजरबंद पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने 'कैदी और कोकिलाÓ नामक कविता सहित कुल 13 कविताएं लिखी थीं। उन्होंने उल्लेख किया है कि 7 नवंबर 1921 को मैं एक दिन बिलासपुर जेल के भीतर रस्सी बना रहा था। मेरे पास रस्सी का ढेर था। तब जेल के एक उच्च कर्मचारी ने आकर कहा- क्या यह आपका धंधा है, आखिर आपने यह ढेरा क्यों लिया है। उसकी इच्छा थी कि मैं जेल के भीतर दुख की जिंदगी से किसी तरह छुट्टी पा लूं। उसका संकेत था कि क्षमा प्रार्थना कर जेल से छुट्टी पा लूं। पर उस दिन मेरा 'मौनÓ था। मुस्कुराने के सिवा मेरे पास कोई इलाज नहीं था। दूसरे दिन उसी कर्मचारी ने आकर मेरी डायरी पढ़ा और उसके पश्चात वह सदैव यत्नशील रहा कि कभी मेरा जी न दुखाया जाए। इसी संदर्भ में पंडितजी ने 'मेरा व्रत पूजनÓ में एक कविता लिखी जिसमें बिलासपुर (छत्तीसगढ़) का भी उल्लेख किया था।सन् नहीं तन भारतीयों से मिलाता हूंचक्कर लगाते हुए अलख जगाता हूंयो विश्व बांधने को प्रेम बंधन बनाता हूंनाम ही तो पाता हूं बिलासपुरवासियों सेमैं तो तीर्थराज इन सीखचों में पाता हूंस्वर की कलिन्दजा में मस्ती की सरस्वती लेनयनों की गंगा बना, त्रिवेणी नहाता हूं (बिलासपुर जेल 1921)
राज्योत्सव 2010 पर विशेष
बस्तर बाल-बाल बचा उड़ीसा में शामिल होने से
शंकर पांडे
आदिवासी अंचल बस्तर को तत्कालीन म.प्र., आंध्रप्रदेश तथा उड़ीसा अपने राज्य में शामिल करना चाहते थे। हैदराबाद के निजाम ने तो बैलाडिला को लीज में लेने का प्रस्ताव भी बस्तर रियासत के समक्ष रखकर 1922 में सर्वे भी करा लिया था। खैर बस्तर को उड़ीसा में मिलाने एक आंदोलन भी चलाया गया था। बस्तर उड़ीसा राज्य में शामिल तो नहीं हो सका पर पुरस्कार स्वरूप आंदोलन की अगुवाई करने वाले अभिमन्यु रथ को बाद में उड़ीसा कोटे से राज्यसभा सदस्य बनाया गया।बस्तर की रत्नगर्भा धरती और अकूत वन संपदा को लेकर कुछ प्रदेश इसे अपने राज्य में शामिल करने प्रयासरत रहे। जमशेद भाई दादा ने तो यहां काफी पहले कारखाना स्थापित करने सर्वे कराया तथा वे स्वयं बस्तर प्रवास पर भी आ चुके थे पर यातायात संसाधन नहीं होने के कारण बात आगे नहीं बढ़ी थी। हैदराबाद के निजाम ने बैलाडिला को लीज पर लेने का प्रस्ताव तत्कालीन बस्तर रियासत के सामने रखा था। सर्वे में उनके वैज्ञानिकों ने हजारों टन लौह अयस्क होने की पुष्टि कर दी थी। बहरहाल 1947 तक यह मामला कई कारणों से अटकता ही रहा। इसके बाद आंध्रप्रदेश ने तेलगू भाषी क्षेत्रों को अपने प्रदेश में मिलाने की रूचि दिखाई थी। पर 1952-56 में उड़ीसा राज्य में बस्तर को मिलाने बकायदा एक आंदोलन उड़ीसा की तत्कालीन सरकार के सहयोग से अंचल के लेखक, वक्ता, राजनीतिज्ञ अभिमन्यु रथ के नेतृत्व में शुरू किया गया। 1952 के आम चुनावों में उड़ीसा ही एक ऐसा राज्य था जहां कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला और उसे गणतंत्र परिषद (राजाओं, जमींदारों की पार्टी) के साथ मिलकर सरकार बनाना पड़ा। इस सरकार के मुख्यमंत्री बने डा. हरेकृष्ण मेहताब। वे उत्कल-संस्कृति से प्रभावित आंध्रा का भाग भी उड़ीसा में मिलाकर उड़ीसा का सर्वांगीण विकास करना चाहते थे। वे मानते थे इसके लिये बस्तर के भीतर से उड़ीसा राज्य में शामिल होने की आवाज उठे और वहां के लोग राज्य पुनर्गठन आयोग को इसकी सिफारिश करें फिर उड़ीसा राज्य भी अपना दावा ठोकेगा। इसके लिये उन्होंने जगदलपुर के स्थायी निवासी अभिमन्यु रथ को इसके लिये कमान सौंपी। इसके लिये रथ ने बस्तर के पूर्वी अंचल के भतरा आदिवासियों को पकड़ा, उनकी भाषा-संस्कृति भी उड़ीसा से मेल खाती थी। करीब एक लाख हस्ताक्षर राज्य पुनगर्ठन आयोग के अध्यक्ष सैय्यद फजल अली से मुलाकात की और पक्ष भी रखा। जब यह खबर सीपी एंड बरार के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल और तत्कालीन गृहमंत्री को मिली तो पं. शुक्ल ने अपने मित्र सुंदरलाल त्रिपाठी को इसके विरोध में खड़ा किया। उनके समझाने पर भी जब अभिमन्यु रथ नहीं माने तो त्रिपाठी जी ने जवाबी आंदोलन की शुरूवात कर दी। अभिमन्यु रथ ने बस्तर को उड़ीसा में मिलाने के समर्थन में जगदलपुर में एक रैली निकाली जिसमें हजारों आदिवासी शामिल थे। पं. सुंदरलाल त्रिपाठी ने भाषायी कूटनीति का अस्त्र भी चलाया। एक पर्चा छपवाया कि यदि बस्तर को उड़ीसा में शामिल किया गया तो बच्चों को अतिरिक्त भाषा 'उडिय़ाÓ भी पढऩी पढ़ेगी, जिन सरकारी कर्मचारियों को उडिय़ा नहीं आती है उन्हें उड़ीसा सरकार नहीं लेगी तथा वर्तमान सरकार भी कहीं दूरदराज तबादला कर देगी। इधर उस समय के बस्तर के हालात पर प्रसिद्ध उपन्यासकार शानी ने 'कस्तुरीÓ में लिखा था कि 'हम बस्तर में है तो सरकार हमें कौन से लड्डू खिला रही है और उड़ीसा में रहेंगे तो कौन कड़ाही में तले जाएंगे।Ó तब कांग्रेसी ऐसे प्रश्नों के सामने निरूत्तर हो जाया करते थे। बाद में जनमानस बदला, अभिमन्यु रथ की गिरफ्तारी हुई, बात प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू तक पहुंची और बस्तर-बड़ीसा में जाते-जाते रह गया। हां उड़ीसा में बस्तर को शामिल करने के लिये प्रयास करने के नाम पर अभिमन्यु रथ को तत्कालीन उड़ीसा सरकार ने राज्यसभा सदस्य बनवा दिया था। वे जगदलपुर में ही रहकर 6 सालों तक राज्यसभा का प्रतिनिधित्व किया, संभवत: वे बस्तर अंचल से पहले और अभी तक आखरी राज्यसभा सदस्य रहे। बाद में वे नगरपालिका जगदलपुर में पार्षद भी बने। कुछ वर्षों पूर्व रायपुर रेलवे स्टेशन में हृदयाघात से उनका निधन हो गया और जगदलपुर में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके परिवारजन अभी भी जगदलपुर में रहते हैं।

'धान के कटोरेÓ में 'सोने के सिक्कोंÓ का कभी चलन था
शंकर पांडे
'धान के कटोरेÓ के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ में विश्व की 12 हजार 500 धान की प्रजातियों में करीब 10 हजार प्रजाति केवल छत्तीसगढ़ में ही पाई जाती है। धान के इस कटोरे का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। कभी यहां सोने-चांदी के सिक्कों का चलन था। व्यापारिक क्षेत्र में भी छत्तीसगढ़ काफी समृद्ध था। गरियाबंद के पास ग्राम सिरकट्टी में पैरी नदी के तट पर नदी बंदरगाह (डॉकयार्ड) के अवशेष मिले है। छत्तीसगढ़ से 'रोमÓ का व्यापार प्राचीनकाल में नदी मार्ग से होता था इसकी पुष्टि भी नये बंदरगाह के अवशेष मिलने से होती है।'धान के कटोरेÓ के नाम से चर्चित छत्तीसगढ़ का इतिहास काफी गौरवशाली है। यहां कभी सोने के सिक्के भी चलते थे। कुछ पुरातात्विक स्थलों की खुदाई में 'रोम के सोने के सिक्केÓ भी मिले है। ये छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति, परंपरा और व्यापारिक संबंध विदेशों से होने की भी वकालत करते हैं।छत्तीसगढ़ में कभी स्वर्ण मुद्राएं प्रचलित थी। भारत का पश्चिम देशों से व्यापारिक संबंध अनादिकाल से चला आ रहा है। इसका प्रभाव तब छत्तीसगढ़ में भी पड़ा था। छत्तीसगढ़ में भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशों के सोने के सिक्के भी मिले है। बिलासपुर तथा चकरबेढ़ा नामक गांव में 'रोमÓ के 2 सोने के सिक्के प्राप्त हुए है जो आज भी महंत घासीदास संग्रहालय में सुरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ में चौथी शताब्दी में गुप्त वंश का प्रभाव पड़ा था। समुद्रगुप्त के काल के 20 सोने के सिक्के बनबरद गांव में ही मिले हैं। इनमें से एक सिक्का काच, एक समुद्रगुप्त और 7 चंद्रगुप्त के समय का है। 'काचÓ समुद्रगुप्त के सुपुत्र थे जिसे रामगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। इन सिक्कों में शौर्य, रणक्षेत्र के प्रतीक अजेय राजाओं के सुसज्जित चित्र और वीणा वजाते राजा का चित्र अंकित है। कुछ सिक्कों में अश्वमेघ यज्ञ और माता-पिता के प्रति श्रद्धा के दृश्य अंकित हैं। भरमपुर वंशों के कार्यकाल में भी स्वर्ण मुद्राओं का प्रचलन था। छत्तीसगढ़ की राजधानी शरभवंश के काल में सिरपुर थी। वहां खुदाई से सोने के सिक्के मिले हैं। स्वर्ण मुद्रा अमरार्यकुल के राजा प्रसन्न मात्र की मुद्रा थी। सिक्कों का चलन तब कटक से लेकर चांदा तक प्रचलित था। कल्चुरी नरेश प्रथम जाजल्लदेव ने भी सोने के सिक्के जारी किये थे। इन सोने के सिक्कों के अग्रभाग में श्री जाजल्लदेव और पृष्ठ भाग में कलिंग देश के नृपतिगंग पर मिली विजय का प्रतीक राजशार्टूल चिंह अंकित है। रतनपुर के अनेक कलचुरि नरेशों ने स्वर्ण सिक्के जारी किये थे। दिसंबर 1972 के प्रथम सप्ताह दुर्ग जिले के वानवरद गांव में गुप्तकालीन 9 स्वर्ण सिक्के मिले हैं। इसके पूर्व बिलासपुर में एक गुप्त स्वर्ण सिक्का मिला था। नरेश प्रसन्नमात्र के समय के पांचवीं-छठवीं शताब्दी के कार्यकाल के स्वर्ण सिक्के दक्षिण कोसल के अनेक स्थानों पर मिल चुके हैं। इन सिक्के पर आवक्ष लक्ष्मी और गरूड़ के साथ ही शंख चक्र भी विद्यमान है। वैसे यह सिक्का भग्नावस्था में मिला है। पं. लोचन प्रसाद पांडे ने शोधपत्र के अनुसार बालपुर और महानदी के आसपास अनेक सोने के सिक्के मिले है। हैहृयवंशियों के सोने और चांदी के सिक्कों पर पं. लोचनप्रसाद पांडे ने शोधपत्र भी तैयार किये थे जिनका प्रकाशन आंध्रा हिस्टारिकल रिसर्च सोसायटी में हुआ था। इंडियन म्यूजियम कलकत्ता के पुरातात्विक विभाग के तत्कालीन अधीक्षक वीआर चंद्रा ने तब स्वीकार किया था कि हैहृयवंशी पृथ्वीदेव, जाजल्लदेव और रत्नदेव के समय सोने के सिक्के चलते थे। अभी भी सेंट्रल म्यूजियम नागपुर में कुछ सोने के सिक्के रखे हुए हैं। छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक सोने के सिक्कों के एक साथ मिलने का रिकार्ड बिलासपुर जिले का है। इस जिले के सोनसरी गांव में जमीन के भीतर तांबे के बर्तन में एक साथ 600 सोने के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इसमें 459 सिक्के राजा पृथ्वीदेव (1140-1160 ए.डी.) 36 सिक्के राजा जाजलनदेव (1160-1175 ए.डी.) और 96 सिक्के राजा रत्नदेव (1175-1190 ए.डी.) के शासनकाल के है तो 9 सिक्के दूसरों के शासनकाल के थे। मल्हार के गांवों में खुदाई के समय भी सोने के सिक्के मिले थे। सोने के अलावा चांदी के सिक्के भी छत्तीसगढ़ में प्रचलित थे। नंद-मौर्यकाल में चांदी के सिक्कों का प्रचलन था। रायपुर जिले के तारापुर, रायगढ़ जिले के सारंगढ़ साल्हेपाली बिलासपुर जिले के अकलतरा के पास चांदी के सिक्के भी खुदाई के दौरान मिल चुके हैं।

Monday, November 22, 2010

हालात ने अजीब तमाशे दिखाय्ो हैं
रिश्ते बदल गय्ो कभी रास्ते बदल गय्ो

छत्तीसगढ राज्य्ा का दसवां स्थापना वर्ष हाल ही में मनाय्ाा गय्ाा है। इन 1॰ सालों में कई अविश्वनीय्ा बातें प्रकाश में आती रही है। लगता है कि छत्तीसगढ में घटित घटनाओं को लेकर ही एक अहिंदीभाषी अफसर ने ’विश्वसनीय्ा छत्तीसगढ‘ का स्लोगन तैय्ाार कर डॉ. रमन सिंह से स्वीकृति भी ले ली और राज्य्ाोत्सव पर वह स्लोगन चर्चा में भी रहा। वैसे अविश्वसनीय्ा घटनाओं के बीच विश्वास पैदा करने की जरूरत तो थी ही! राज्य्ा बनते समय्ा कभी प्रधानमंत्र्ाी के बाद की स्थिति में रहने वाले पूर्व केन्द्रीय्ा मंत्र्ाी विद्याचरण शुक्ल ने तत्कालीन गृहमंत्र्ाी लालकृष्ण आडवाणी से भी मुख्य्ामंत्र्ाी बनाने का अनुरोध किय्ाा पर वे तैय्ाार नहीं हुए। दिग्विजय्ा सिंह से उनके फार्म हाऊस में दुव्यर््ावहार भी चर्चा में रहा। विद्याचरण शुक्ल, श्य्ाामा चरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा के रहते एक पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी को छत्तीसगढ का पहला मुख्य्ामंत्र्ाी बनाय्ाा गय्ाा था य्ाह क्य्ाा उस समय्ा विश्वसनीय्ा था? छत्तीसगढ राज्य्ा का निर्माण होने को 1॰ साल हो चुके हैं, अजीत जोगी के बाद डॉ. रमन सिंह मुख्य्ामंत्र्ाी बने हैं। लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बनी और पांच साल का एक कायर््ाकाल पूरा करने के बाद दूसरी बार सरकार बनाकर पुनः मुख्य्ामंत्र्ाी बनकर डॉ. रमन सिंह ने भी रिकार्ड बनाय्ाा है। वैसे भाजपा सरकार के मुख्य्ामंत्र्ािय्ाों में गुजरात के नरेंद्र मोदी के बाद डॉ. रमन सिंह का क्रम दूसरे नंबर में है। जहां तक राज्य्ापालों का सवाल है तो 1॰ साल के कायर््ाकाल में 4 राज्य्ापाल तैनात हो चुके हैं। दिनेश नंदन श्रीवास्तव, के एम सेठ, नरसिम्हन के बाद शेखर दत्त की य्ाहां निय्ाुक्ति हुई है। दिनेशनंदन श्रीवास्तव तथा ई एस एल नरसिम्हन जहां पूर्व में आईपीएस अफसर रह चुके थे तो के एम सेठ सैन्य्ा अधिकारी थे तो शेखर दत्त पूर्व आईएएस अफसर रह चुके हैं। शेखर दत्त तो अविभाजित मध्य्ाप्रदेश में राय्ापुर संभाग के कमिश्नर भी रह चुके हैं वहीं छत्तीसगढ विकास प्राधिकरण से भी जुडे रहे हैं।
विस अध्य्ाक्ष!
छत्तसगढ के पहले विधानसभ अध्य्ाक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला का असमय्ा निधन हो गय्ाा। भाजपा की सरकार बनने से वहले बनवारी लाल अग्रवाल (भाजपा) उपाध्य्ाक्ष बने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिय्ाा और धर्मजीत सिंह विस उपाध्य्ाक्ष बने।पहली बार छत्तीसगढ में कांगे€स का अध्य्ाक्ष तथा उपाध्य्ाक्ष बनने की परंपरा शुरू हुई जो अनवरत जारी है। भाजपा की पहली सरकार बनी तो विधानसभा अध्य्ाक्ष का रदाय्ाित्व प्रेमप्रकाश पांडे तथा उपाध्य्ाक्ष का दाय्ाित्व बुर्जुग राजनेता बद्रीधर दीवान ने सम्हाला। पर विधानसभा चुनाव में बतौर विस अध्य्ाक्ष चुनाव लडने वाले प्रेमप्रकाश पांडे हार गय्ो य्ाह परिणाम भी अविश्वसनीय्ा रहा। बद्रीधर दीवान चुनाव तो जीत गय्ो पर विस उपाध्य्ाक्ष बनने तैय्ाार नहीं हुए। छत्तीसगढ राज्य्ा के तीसरे विस अध्य्ाक्ष धरमलाल कौशिक बने तो उपाध्य्ाक्ष नाराय्ाण सिंह चंदेल को बनाय्ाा गय्ाा।
गृहमंत्र्ाी!
छत्तीसगढ राज्य्ा बनने के बाद पहले मुख्य्ामंत्र्ाी अजीत जोगी के कायर््ाकाल में नंदकुमार पटेल पहले गृहमंत्र्ाी रहे तो डॉ. रमन सिंह के मुख्य्ामंत्र्ाी बनने के बाद सर्वश्री बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम के बाद ननकीराम कंवर गृहमंत्र्ाी बने हैं। सामान्य्ा वर्ग से मुख्य्ामंत्र्ाी बने डॉ. रमन सिंह के साथ सामान्य्ा वर्ग से ही गृहमंत्र्ाी बृजमोहन अग्रवाल को बनाय्ाा गय्ाा फिर उन्हें हटाकर आदिवासी वर्ग से रामविचार नेताम फिर ननकीराम कंवर को गृहमंत्र्ाालय्ा सौंपा गय्ाा पर जिस तरह से आदिवासी अंचल बस्तर में नक्सलवाद और पनपा है, 76 सी आरपीएफ जवानों का नक्सलिय्ाों द्वारा नरसंहार किय्ाा गय्ाा, पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे की नक्सलिय्ाों द्वारा हत्य्ाा की गई, बारुद की सबसे बडी लूट नक्सलिय्ाों ने की, पुलिस का इतना बडा अमला रहने के बाद भी ’एचएम स्क्वॉड‘ गठित करना पडा, गृहमंत्र्ाी ननकीराम कंवर को जिस तरह डीजीपी विश्वरंजन अक्सर चुनौती देते दिखाई देते हैं दोनों के बीच मतभेद मीडिय्ाा के सामने आते रहते हैं वह भी कम से कम पुलिस की कायर््ाप्रणाली के लिय्ो विश्वसनीय्ा तो नहीं कहा जा सकता है। पूर्व गृहमंत्र्ाी एवं जेल मंत्र्ाी रामविचार नेताम के कायर््ाकाल में नक्सली आतंक बढा तो बढा साथ ही जिस तरह दंतेवाडा में नक्सलिय्ाों का सबसे बडा जेलबे€क हुआ उसमें केवल जेल के डिप्टी जेलर को मुजरिम बनाय्ाा गय्ाा, उसका नार्कों टेस्ट भी नहीं हुआ तथा उस पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उसकी निय्ामानुसार राज्य्ा सरकार से पुष्टि नहीं की गई और न्य्ााय्ाालय्ा द्वारा उसे छोडना पडा य्ाह भी कम चर्चा में नहीं रहा क्य्ाा य्ाह पुलिस की कायर््ाप्रणाली की विश्वसनीय्ाता की झ्ालक नहीं है।
मुख्य्ासचिव और डीजीपी
छत्तीसगढ राज्य्ा बनने के बाद पहले डीजीपी मोहन शुक्ल बने फिर पी के दास, अशोक दरबारी, आर एस य्ाादव बने फिर ओ पी राठौर, विश्वरंजन डीजीपी बने, वैसे संतकुमार पासवान, अनिल नवानी भी डीजीपी का कायर््ाभार सम्हाल चुके हैं। जहां मतक मुख्य्ा सचिव का सवाल है तो अरूण कुमार, ए के विजय्ावर्गीय्ा, एस के मिश्रा, आर पी बगई, शिवराज सिंह, जाय्ा उम्मेन को मुख्य्ा सचिव बनाय्ाा बी के एस रे की उपेक्षा कर 5 साल जूनिय्ार उम्मेन को मुख्य्ा सचिव बनाना भी विश्वसनीय्ा निर्णय्ा नहीं कहा जा रहा था। खैर अब जाय्ा उम्मेन की भी चला-चली की बेला है। नाराय्ाण सिंह, सरजिय्ास मिंज, सुनील कुमार कतार में है। तो विश्वरंजन की भी ज्य्ाादा दिन ’सरकार‘ से बनेगी ऐसा लगता नहीं है। वैसे संतकुमार पासावान और अनिल नवानी भी अब डीजी बन चुके हैं और इन दोनों अफसरों को डीजीपी बनने का ही इंतजार है। क्य्ाोंकि इनसे वरिष्ठ राजीव माथुर तो पुलिस अकादमी में संचालक बन चुके हैं ऐसे में वे छत्तीसगढ लौटेंगे ऐसा लगता नहीं है।
य्ो हो क्य्ाा रहा है?
छत्तीसगढ राज्य्ा बनने के बाद पूर्व मुख्य्ामंत्र्ाी अजीत जोगी के शासनकाल में ननकीराम कंवर (अभी गृहमंत्र्ाी) से कोरबा जिले के शराब ठेकेदार के गुर्गों द्वारा बदतमीजी की चर्चा विधानसभा में भी हुई थी वहीं अब गृह एवं जेल विभाग के संसदीय्ा सचिव विजय्ा बघेल ने जुल्म और अत्य्ााचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिय्ो ’फिल्म‘ को माध्य्ाम बनाय्ाा है वे जानते हैं कि जब गृहमंत्र्ाी की आवाज पुलिस मुख्य्ाालय्ा में अनसुनी की जाती है तो वे तो कहीं नहीं लगते हैं। छत्तीसगढ में एक फिल्म बन रही है ’माटी के लाल‘ इसमें विधाय्ाक विजय्ा बघेल सरपंच की भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म में वे नशे के खिलाफ जंग लडने वाले एक आदर्शवादी सिद्घांतों पर चलने वाले सरपंच की भूमिका में है जिन्हें जुबान बंद करने शराब ठेकेदार पैसों का लालच देता है पर वे अपने सिद्घांतों पर अडिग रहते हैं। उनके पुत्र्ा की भूमिका में एसएमएस के रूप में कभी राजधानी में चर्चित पुलिस अधिकारी शशिमोहन सिंह भी उस फिल्म में दिखाई देंगे। वे फिल्म में सरपंच के पुत्र्ा बने हैं। वैसे छत्तीसगढ नक्सली प्रभावित राज्य्ा में जो चल रहा है वह भी चर्चा में नहीं है। पुलिस मुखिय्ाा विश्वरंजन, लेखक, समीक्षक, आलोचक, कवि कलाकार हैं, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्य्ाक्ष हैं। (निय्ामानुसार सरकार से अनुमति ली है य्ाा नहीं य्ाह पता नहीं चला है।) उन्हें गृहमंत्र्ाी ननकीराम कंवर मुख्य्ामंत्र्ाी से अनुमति लेकर कारण बताओ नोटिस दे चुके हैं। गृहमंत्र्ाी ननकीराम कंवर को प्रदेश की पुलिस पर विश्वास नहीं है वे एचएम स्क्वॉड बनाकर शराब, जुआ अड्डों पर छापा मरवा रहे हैं, संसदीय्ा सचिव गृह फिल्मों के माध्य्ाम से शराब के खिलाफ जनजागरण चलाने अभिनय्ा कर रहे हैं। पुलिस अधिकारी शशि मोहन सिंह सरकार से छुट्टी लेकर फिल्मों में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाकर अपना काम चला रहे हैं। एक अफसर अपनी अखिल भारतीय्ा स्तर की नौकरी से त्य्ाागपत्र्ा देकर संविदा निय्ाुक्ति पर कायर््ा कर रहा है। य्ाह बात और है कि उसकी संविदा निय्ाुक्ति पहले हो गई थी और केन्द्र सरकार ने उसका त्य्ाागपत्र्ा पिछले माह ही स्वीकृत किय्ाा है।छत्तीसगढ के मुख्य्ा सचिव जॉय्ा उम्मेन दिल्ली जाते हैं और वहां पत्र्ाकारों से कहते हैं कि वे केन्द्र में आ रहे हैं अपने निचले अधिकारिय्ाों को वे मौका देना चाहते हैं, बहुत दिन छत्तीसगढ में काम कर लिय्ाा। फिर दिल्ली से राय्ापुर लौटते हैं और कहते हैं कि वे केन्द्र में नहीं जा रहे हैं फिर चर्चा चलती है कि वे फिलहाल नहीं जा रहे हैं फिर कहां जाता है कि उनका केन्द्र में जाना तय्ा है आखिर छत्तीसगढ में हो क्य्ाा रहा है?
नेता प्रतिपक्ष!
छत्तीसगढ में नेताप्रतिपक्ष बनने के बाद उनकी राजनीति (?) पर भी प्रश्नचिन्ह ही लगता रहा है। मध्य्ाप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष य्ाा प्रदेश अध्य्ाक्ष सरकार बनने पर मुख्य्ामंत्र्ाी बनता था पर मध्य्ाप्रदेश से ही निय्ाम काय्ादे ग्रहण करने वाले छत्तीसगढ में ऐसा हुआ नहीं। नय्ाा प्रदेश बनने के बाद नंदकुमार साय्ा पहले नेता प्रतिपक्ष बने। उसको लेकर भी पार्टी के भीतर विवाद, बृजमोहन अग्रवाल का निलंबन चर्चा में रहा। जोगी शासनकाल में लाठी चार्ज में साय्ा का पैर फ्रैक्चर होना बैसाखी के सहारे कुछ महीनों चलना भी खबर बना था। पर अगले विस चुनाव में नेता प्रतिपक्ष साय्ा को मुख्य्ामंत्र्ाी जोगी के खिलाफ चुनाव लडवाकर शहीद करने का षड्य्ांत्र्ा चला, विस चुनाव पराजित होकर वे प्रदेश की राजनीति से ही अलग हो गय्ो। विस चुनाव के बाद भाजपा को बहुमत मिला और विधाय्ाकों की खरीद फरोख्त के नाम पर अजीत जोगी को कांगे€स से निलंबित फिर विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ महासमुंद लोस से चुनाव लडने की शर्त पर निलंबन वापसी, विद्याचरण शुक्ल को बतौर भाजपा प्रत्य्ााशी चुनाव समर में उतरना, जोगी से पराजित होना भी अविश्वसनीय्ा घटना ही रही। खैर डॉ.रमन सिंह मुख्य्ामंत्र्ाी बने और महेंद्र कर्मा को नेता प्रतिपक्ष और भूपेश बघेल को उपनेता प्रतिपक्ष (हालांकि इस पद की संवैधानिक मान्य्ाता नहीं) बनाय्ाा गय्ाा और इस विधानसभा में दोनों ही पराजित हो गय्ो। इसके बाद रविन्द्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष बनाय्ाा गय्ाा है ओर अब उनको भी हटाने की मुहिम शुरू हो चुकी है। इधर छत्तीसगढ में मोतीलाल वोरा के प्रदेश कांगे€स अध्य्ाक्ष बनने के बाद से कायर््ा समिति को गठन नहीं होना, केवल अध्य्ाक्ष तथा कायर््ाकारी अध्य्ाक्ष बनाने का सिलसिला जारी रखना, केन्द्रीय्ा मंत्र्ाी तथा प्रदेश कांगे€स के प्रभारी नाराय्ाण सामी पर कालिख फेकना भी अविश्वनीय्ा घटना ही रही है। जहां तक भाजपा संगठन की बात है तो अध्य्ाक्ष नंदकुमार साय्ा को प्रदेश की राजनीति से अलग करना, दूसरे अध्य्ाक्ष शिवप्रताप सिंह का बतौर राज्य्ा सभा सदस्य्ा निलंबन, फिर वापसी, एक और अध्य्ाक्ष ताराचंद साहू का पार्टी से निष्काषन, एक और अध्य्ाक्ष विष्णुदेव साय्ा की विधानसभा चुनाव में पराजय्ा भी बडी खबर रही। छत्तीसगढ भाजपा के पितृपुरुष स्व. लखीराम अग्रवाल के पुत्र्ा अमर अग्रवाल की मंत्र्ािमंडल से छुट्टी फिर वापसी, प्रदेश के वरिष्ठ सासंद रमेश बैस की प्रदेश भाजपा अध्य्ाक्ष बनने की इच्छा के विपरीत रामसेवक पैकरा को प्रदेश भाजपा अध्य्ाक्ष बनाना भी अविश्वसनीय्ा घटना ही रही।
और अब बस
(1)भाजपा के एक बुजुर्ग नेता से किसी ने ’कमल विहार‘ य्ाोजना के विषय्ा में पूछा। उन्होंने जवाब दिय्ाा कुछ लोग कमल (भाजपा का चुनाव चिन्ह) को बदनाम करने ही य्ाह मुद्दा उछाल रहे हैं इसके पीछे विपक्ष की भी साजिश है।(2)पप्पू फरिश्ता पर पुलिस तथा कांगे€स ने 5-5 हजार के इनाम घोषित किय्ो हैं। जब ’कुरैशी‘ और ’शाह‘ और ’दिग्विजय्ा सिंह‘ से कुछ कांगे€सिय्ाों ने ही दुव्यर््ावहार किय्ाा था। उस समय्ा य्ो कांगे€सी कहां थे? उस समय्ा तो इनकी पार्टी की ही सरकार थी।(3)भाजपा के राष्ट्रीय्ा स्तर के बडे नेता के रिश्तेदार ’बडा पोल्ट्रीफार्म‘ चला रहे हैं एक दूसरे बडे नेता की पत्नी के ’एनजीओ‘ को प्रदेश में एक बडा काम सौंपा गय्ाा है और कांगे€स एक-दूसरे पर कालिख पोतने में ही लगी है।-----------





आइना ए छत्तीसगढ़

हालात ने अजीब तमाशे दिखाये हैं
रिश्ते बदल गये ·भी रास्ते बदल गये
छत्तीसगढ़ राज्य ·ा दसवां स्थापना वर्ष हाल ही में मनाया गया है। इन 10 सालों में ·ई अविश्वनीय बातें प्र·ाश में आती रही है। लगता है ·ि छत्तीसगढ़ में घटित घटनाओं ·ो ले·र ही ए· अहिंदीभाषी अफसर ने ‘विश्वसनीय छत्तीसगढ़’ ·ा स्लोगन तैयार ·र डॉ. रमन सिंह से स्वी·ृति भी ले ली और राज्योत्सव पर वह स्लोगन चर्चा में भी रहा। वैसे अविश्वसनीय घटनाओं ·े बीच विश्वास पैदा ·रने ·ी जरूरत तो थी ही! राज्य बनते समय ·भी प्रधानमंत्री ·े बाद ·ी स्थिति में रहने वाले पूर्व ·ेन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने तत्·ालीन गृहमंत्री लाल·ृष्ण आडवाणी से भी मुख्यमंत्री बनाने ·ा अनुरोध ·िया पर वे तैयार नहीं हुए। दिग्विजय सिंह से उन·े फार्म हाऊस में दुव्र्यवहार भी चर्चा में रहा। विद्याचरण शुक्ल, श्यामा चरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा ·े रहते ए· पूर्व नौ·रशाह अजीत जोगी ·ो छत्तीसगढ़ ·ा पहला मुख्यमंत्री बनाया गया था यह क्या उस समय विश्वसनीय था? छत्तीसगढ़ राज्य ·ा निर्माण होने ·ो 10 साल हो चु·े हैं, अजीत जोगी ·े बाद डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने हैं। लगातार दूसरी बार भाजपा ·ी सर·ार बनी और पांच साल ·ा ए· ·ार्य·ाल पूरा ·रने ·े बाद दूसरी बार सर·ार बना·र पुन: मुख्यमंत्री बन·र डॉ. रमन सिंह ने भी रि·ार्ड बनाया है। वैसे भाजपा सर·ार ·े मुख्यमंत्रियों में गुजरात ·े नरेंद्र मोदी ·े बाद डॉ. रमन सिंह ·ा ·्रम दूसरे नंबर में है। जहां त· राज्यपालों ·ा सवाल है तो 10 साल ·े ·ार्य·ाल में 4 राज्यपाल तैनात हो चु·े हैं। दिनेश नंदन श्रीवास्तव, ·े एम सेठ, नरसिम्हन ·े बाद शेखर दत्त ·ी यहां नियुक्ति हुई है। दिनेशनंदन श्रीवास्तव तथा ई एस एल नरसिम्हन जहां पूर्व में आईपीएस अफसर रह चु·े थे तो ·े एम सेठ सैन्य अधि·ारी थे तो शेखर दत्त पूर्व आईएएस अफसर रह चु·े हैं। शेखर दत्त तो अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर संभाग ·े ·मिश्नर भी रह चु·े हैं वहीं छत्तीसगढ़ वि·ास प्राधि·रण से भी जुड़े रहे हैं।विस अध्यक्ष!छत्तसगढ़ ·े पहले विधानसभ अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ·ा असमय निधन हो गया। भाजपा ·ी सर·ार बनने से वहले बनवारी लाल अग्रवाल (भाजपा) उपाध्यक्ष बने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और धर्मजीत सिंह विस उपाध्यक्ष बने।पहली बार छत्तीसगढ़ में ·ांगे्रस ·ा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष बनने ·ी परंपरा शुरू हुई जो अनवरत जारी है। भाजपा ·ी पहली सर·ार बनी तो विधानसभा अध्यक्ष ·ा रदायित्व प्रेमप्र·ाश पांडे तथा उपाध्यक्ष ·ा दायित्व बुर्जुग राजनेता बद्रीधर दीवान ने सम्हाला। पर विधानसभा चुनाव में बतौर विस अध्यक्ष चुनाव लडऩे वाले प्रेमप्र·ाश पांडे हार गये यह परिणाम भी अविश्वसनीय रहा। बद्रीधर दीवान चुनाव तो जीत गये पर विस उपाध्यक्ष बनने तैयार नहीं हुए। छत्तीसगढ़ राज्य ·े तीसरे विस अध्यक्ष धरमलाल ·ौशि· बने तो उपाध्यक्ष नारायण सिंह चंदेल ·ो बनाया गया। गृहमंत्री!छत्तीसगढ़ राज्य बनने ·े बाद पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ·े ·ार्य·ाल में नंद·ुमार पटेल पहले गृहमंत्री रहे तो डॉ. रमन सिंह ·े मुख्यमंत्री बनने ·े बाद सर्वश्री बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम ·े बाद नन·ीराम ·ंवर गृहमंत्री बने हैं। सामान्य वर्ग से मुख्यमंत्री बने डॉ. रमन सिंह ·े साथ सामान्य वर्ग से ही गृहमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ·ो बनाया गया फिर उन्हें हटा·र आदिवासी वर्ग से रामविचार नेताम फिर नन·ीराम ·ंवर ·ो गृहमंत्रालय सौंपा गया पर जिस तरह से आदिवासी अंचल बस्तर में नक्सलवाद और पनपा है, 76 सी आरपीएफ जवानों ·ा नक्सलियों द्वारा नरसंहार ·िया गया, पुलिस अधीक्ष· विनोद चौबे ·ी नक्सलियों द्वारा हत्या ·ी गई, बारुद ·ी सबसे बड़ी लूट नक्सलियों ने ·ी, पुलिस ·ा इतना बड़ा अमला रहने ·े बाद भी ‘एचएम स्क्वॉड’ गठित ·रना पड़ा, गृहमंत्री नन·ीराम ·ंवर ·ो जिस तरह डीजीपी विश्वरंजन अक्सर चुनौती देते दिखाई देते हैं दोनों ·े बीच मतभेद मीडिया ·े सामने आते रहते हैं वह भी ·म से ·म पुलिस ·ी ·ार्यप्रणाली ·े लिये विश्वसनीय तो नहीं ·हा जा स·ता है। पूर्व गृहमंत्री एवं जेल मंत्री रामविचार नेताम ·े ·ार्य·ाल में नक्सली आतं· बढ़ा तो बढ़ा साथ ही जिस तरह दंतेवाड़ा में नक्सलियों ·ा सबसे बड़ा जेलबे्र· हुआ उसमें ·ेवल जेल ·े डिप्टी जेलर ·ो मुजरिम बनाया गया, उस·ा नार्·ों टेस्ट भी नहीं हुआ तथा उस पर राजद्रोह ·ा आरोप लगा·र उस·ी नियमानुसार राज्य सर·ार से पुष्टिï नहीं ·ी गई और न्यायालय द्वारा उसे छोडऩा पड़ा यह भी ·म चर्चा में नहीं रहा क्या यह पुलिस ·ी ·ार्यप्रणाली ·ी विश्वसनीयता ·ी झल· नहीं है। मुख्यसचिव और डीजीपीछत्तीसगढ़ राज्य बनने ·े बाद पहले डीजीपी मोहन शुक्ल बने फिर पी ·े दास, अशो· दरबारी, आर एस यादव बने फिर ओ पी राठौर, विश्वरंजन डीजीपी बने, वैसे संत·ुमार पासवान, अनिल नवानी भी डीजीपी ·ा ·ार्यभार सम्हाल चु·े हैं। जहां मत· मुख्य सचिव ·ा सवाल है तो अरूण ·ुमार, ए ·े विजयवर्गीय, एस ·े मिश्रा, आर पी बगई, शिवराज सिंह, जाय उम्मेन ·ो मुख्य सचिव बनाया बी ·े एस रे ·ी उपेक्षा ·र 5 साल जूनियर उम्मेन ·ो मुख्य सचिव बनाना भी विश्वसनीय निर्णय नहीं ·हा जा रहा था। खैर अब जाय उम्मेन ·ी भी चला-चली ·ी बेला है। नारायण सिंह, सरजियस मिंज, सुनील ·ुमार ·तार में है। तो विश्वरंजन ·ी भी ज्यादा दिन ‘सर·ार’ से बनेगी ऐसा लगता नहीं है। वैसे संत·ुमार पासावान और अनिल नवानी भी अब डीजी बन चु·े हैं और इन दोनों अफसरों ·ो डीजीपी बनने ·ा ही इंतजार है। क्यों·ि इनसे वरिष्ठï राजीव माथुर तो पुलिस अ·ादमी में संचाल· बन चु·े हैं ऐसे में वे छत्तीसगढ़ लौटेंगे ऐसा लगता नहीं है। ये हो क्या रहा है?छत्तीसगढ़ राज्य बनने ·े बाद पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ·े शासन·ाल में नन·ीराम ·ंवर (अभी गृहमंत्री) से ·ोरबा जिले ·े शराब ठे·ेदार ·े गुर्गों द्वारा बदतमीजी ·ी चर्चा विधानसभा में भी हुई थी वहीं अब गृह एवं जेल विभाग ·े संसदीय सचिव विजय बघेल ने जुल्म और अत्याचार ·े खिलाफ आवाज बुलंद ·रने ·े लिये ‘फिल्म’ ·ो माध्यम बनाया है वे जानते हैं ·ि जब गृहमंत्री ·ी आवाज पुलिस मुख्यालय में अनसुनी ·ी जाती है तो वे तो ·हीं नहीं लगते हैं। छत्तीसगढ़ में ए· फिल्म बन रही है ‘माटी ·े लाल’ इसमें विधाय· विजय बघेल सरपंच ·ी भूमि·ा निभा रहे हैं। फिल्म में वे नशे ·े खिलाफ जंग लडऩे वाले ए· आदर्शवादी सिद्घांतों पर चलने वाले सरपंच ·ी भूमि·ा में है जिन्हें जुबान बंद ·रने शराब ठे·ेदार पैसों ·ा लालच देता है पर वे अपने सिद्घांतों पर अडिग रहते हैं। उन·े पुत्र ·ी भूमि·ा में एसएमएस ·े रूप में ·भी राजधानी में चर्चित पुलिस अधि·ारी शशिमोहन सिंह भी उस फिल्म में दिखाई देंगे। वे फिल्म में सरपंच ·े पुत्र बने हैं। वैसे छत्तीसगढ़ नक्सली प्रभावित राज्य में जो चल रहा है वह भी चर्चा में नहीं है। पुलिस मुखिया विश्वरंजन, लेख·, समीक्ष·, आलोच·, ·वि ·ला·ार हैं, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान ·े अध्यक्ष हैं। (नियमानुसार सर·ार से अनुमति ली है या नहीं यह पता नहीं चला है।) उन्हें गृहमंत्री नन·ीराम ·ंवर मुख्यमंत्री से अनुमति ले·र ·ारण बताओ नोटिस दे चु·े हैं। गृहमंत्री नन·ीराम ·ंवर ·ो प्रदेश ·ी पुलिस पर विश्वास नहीं है वे एचएम स्क्वॉड बना·र शराब, जुआ अड्डïों पर छापा मरवा रहे हैं, संसदीय सचिव गृह फिल्मों ·े माध्यम से शराब ·े खिलाफ जनजागरण चलाने अभिनय ·र रहे हैं। पुलिस अधि·ारी शशि मोहन सिंह सर·ार से छुट्टïी ले·र फिल्मों में पुलिस अधि·ारी ·ी भूमि·ा निभा·र अपना ·ाम चला रहे हैं। ए· अफसर अपनी अखिल भारतीय स्तर ·ी नौ·री से त्यागपत्र दे·र संविदा नियुक्ति पर ·ार्य ·र रहा है। यह बात और है ·ि उस·ी संविदा नियुक्ति पहले हो गई थी और ·ेन्द्र सर·ार ने उस·ा त्यागपत्र पिछले माह ही स्वी·ृत ·िया है।छत्तीसगढ़ ·े मुख्य सचिव जॉय उम्मेन दिल्ली जाते हैं और वहां पत्र·ारों से ·हते हैं ·ि वे ·ेन्द्र में आ रहे हैं अपने निचले अधि·ारियों ·ो वे मौ·ा देना चाहते हैं, बहुत दिन छत्तीसगढ़ में ·ाम ·र लिया। फिर दिल्ली से रायपुर लौटते हैं और ·हते हैं ·ि वे ·ेन्द्र में नहीं जा रहे हैं फिर चर्चा चलती है ·ि वे फिलहाल नहीं जा रहे हैं फिर ·हां जाता है ·ि उन·ा ·ेन्द्र में जाना तय है आखिर छत्तीसगढ़ में हो क्या रहा है?नेता प्रतिपक्ष!छत्तीसगढ़ में नेताप्रतिपक्ष बनने ·े बाद उन·ी राजनीति (?) पर भी प्रश्नचिन्ह ही लगता रहा है। मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश अध्यक्ष सर·ार बनने पर मुख्यमंत्री बनता था पर मध्यप्रदेश से ही नियम ·ायदे ग्रहण ·रने वाले छत्तीसगढ़ में ऐसा हुआ नहीं। नया प्रदेश बनने ·े बाद नंद·ुमार साय पहले नेता प्रतिपक्ष बने। उस·ो ले·र भी पार्टी ·े भीतर विवाद, बृजमोहन अग्रवाल ·ा निलंबन चर्चा में रहा। जोगी शासन·ाल में लाठी चार्ज में साय ·ा पैर फै्रक्चर होना बैसाखी ·े सहारे ·ुछ महीनों चलना भी खबर बना था। पर अगले विस चुनाव में नेता प्रतिपक्ष साय ·ो मुख्यमंत्री जोगी ·े खिलाफ चुनाव लड़वा·र शहीद ·रने ·ा षडï्यंत्र चला, विस चुनाव पराजित हो·र वे प्रदेश ·ी राजनीति से ही अलग हो गये। विस चुनाव ·े बाद भाजपा ·ो बहुमत मिला और विधाय·ों ·ी खरीद फरोख्त ·े नाम पर अजीत जोगी ·ो ·ांगे्रस से निलंबित फिर विद्याचरण शुक्ल ·े खिलाफ महासमुंद लोस से चुनाव लडऩे ·ी शर्त पर निलंबन वापसी, विद्याचरण शुक्ल ·ो बतौर भाजपा प्रत्याशी चुनाव समर में उतरना, जोगी से पराजित होना भी अविश्वसनीय घटना ही रही। खैर डॉ.रमन सिंह मुख्यमंत्री बने और महेंद्र ·र्मा ·ो नेता प्रतिपक्ष और भूपेश बघेल ·ो उपनेता प्रतिपक्ष (हालां·ि इस पद ·ी संवैधानि· मान्यता नहीं) बनाया गया और इस विधानसभा में दोनों ही पराजित हो गये। इस·े बाद रविन्द्र चौबे ·ो नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है ओर अब उन·ो भी हटाने ·ी मुहिम शुरू हो चु·ी है। इधर छत्तीसगढ़ में मोतीलाल वोरा ·े प्रदेश ·ांगे्रस अध्यक्ष बनने ·े बाद से ·ार्य समिति ·ो गठन नहीं होना, ·ेवल अध्यक्ष तथा ·ार्य·ारी अध्यक्ष बनाने ·ा सिलसिला जारी रखना, ·ेन्द्रीय मंत्री तथा प्रदेश ·ांगे्रस ·े प्रभारी नारायण सामी पर ·ालिख फे·ना भी अविश्वनीय घटना ही रही है। जहां त· भाजपा संगठन ·ी बात है तो अध्यक्ष नंद·ुमार साय ·ो प्रदेश ·ी राजनीति से अलग ·रना, दूसरे अध्यक्ष शिवप्रताप सिंह ·ा बतौर राज्य सभा सदस्य निलंबन, फिर वापसी, ए· और अध्यक्ष ताराचंद साहू ·ा पार्टी से निष्·ाषन, ए· और अध्यक्ष विष्णुदेव साय ·ी विधानसभा चुनाव में पराजय भी बड़ी खबर रही। छत्तीसगढ़ भाजपा ·े पितृपुरुष स्व. लखीराम अग्रवाल ·े पुत्र अमर अग्रवाल ·ी मंत्रिमंडल से छुट्टïी फिर वापसी, प्रदेश ·े वरिष्ठï सासंद रमेश बैस ·ी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने ·ी इच्छा ·े विपरीत रामसेव· पै·रा ·ो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाना भी अविश्वसनीय घटना ही रही।और अब बस(1)भाजपा ·े ए· बुजुर्ग नेता से ·िसी ने ‘·मल विहार’ योजना ·े विषय में पूछा। उन्होंने जवाब दिया ·ुछ लोग ·मल (भाजपा ·ा चुनाव चिन्ह) ·ो बदनाम ·रने ही यह मुद्दा उछाल रहे हैं इस·े पीछे विपक्ष ·ी भी साजिश है।(2)पप्पू फरिश्ता पर पुलिस तथा ·ांगे्रस ने 5-5 हजार ·े इनाम घोषित ·िये हैं। जब ‘·ुरैशी’ और ‘शाह’ और ‘दिग्विजय सिंह’ से ·ुछ ·ांगे्रसियों ने ही दुव्र्यवहार ·िया था। उस समय ये ·ांगे्रसी ·हां थे? उस समय तो इन·ी पार्टी ·ी ही सर·ार थी।(3)भाजपा ·े राष्टï्रीय स्तर ·े बड़े नेता ·े रिश्तेदार ‘बड़ा पोल्ट्रीफार्म’ चला रहे हैं ए· दूसरे बड़े नेता ·ी पत्नी ·े ‘एनजीओ’ ·ो प्रदेश में ए· बड़ा ·ाम सौंपा गया है और ·ांगे्रस ए·-दूसरे पर ·ालिख पोतने में ही लगी है।—————------